Tag: Jharkhand Current Affairs 2025

  • झारखंड की भौगोलिक एवं आर्थिक स्थिति: एक विस्तृत विश्लेषण

    आर्थिक विशेषताएँ

    • प्राकृतिक संसाधनों का अर्द्धविकसित उपयोग
      • झारखंड खनिज संपदा से भरपूर राज्य है लेकिन इसका पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है।
      • 28.8% क्षेत्रफल ही खेती योग्य है।
      • 30.22% भूमि बंजर, परती या अनुपजाऊ है।
      • खनिज और जल संसाधन होने के बावजूद संस्थागत रुकावटें और नीतिगत खामियाँ विकास में बाधक हैं।
      • विनिर्माण क्षेत्र में असंतुलन है।
      • राज्य की GDP में हिस्सेदारी 2015-16 में 1.84% थी जो 2018-19 में घटकर 1.61% हो गई।
    • कृषि पर अत्यधिक निर्भरता
      • 70% से 85% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है।
      • कृषि में आधुनिक तकनीकों की कमी है, जिससे उत्पादकता कम है।
      • कृषि का GSDP में योगदान:
        • 2016–17: 14.97%
        • 2017–18: 15%
        • 2022–23: 22%
    • पूंजी की कमी
      • पूंजी की दोहरी कमी — प्रति व्यक्ति पूंजी और पूंजी निर्माण दर दोनों ही कम हैं।
      • कम बचत दर के कारण निवेश कम है।
      • प्रति एक लाख जनसंख्या पर केवल 10 बैंक (2020-21 के अनुसार)।
      • 2018 में कृषि ऋण कुल बैंक ऋण का मात्र 15.55% था।
      • एनपीए 5.87% तक पहुंच गया।
    • औद्योगीकरण में गिरावट
      • आधुनिक और बड़े उद्योगों की कमी है।
      • उद्योगों का GSDP में योगदान:
        • 2011–12: 41.9%
        • 2018–19: 34.93%
        • 2021–22: 33.6%
      • सेवा क्षेत्र का योगदान: 44.1%
    • कम प्रति व्यक्ति आय और जीवन स्तर
      • प्रति व्यक्ति आय:
        • 2001–02: ₹10,129
        • 2018–19: ₹76,806
        • 2020–21: ₹51,365
      • राष्ट्रीय औसत (2020–21): ₹1,12,835
      • झारखंड की रैंकिंग: 26वाँ
      • 70% परिवारों को सरकारी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं।
    • आर्थिक असमानता
      • आय और संपत्ति की असमानता विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक।
      • पूँजी और संसाधनों पर मुट्ठीभर वर्ग का नियंत्रण है।
    • बेरोजगारी एवं छिपी बेरोजगारी
      • 2018–19 में बेरोजगारी दर:
        • राष्ट्रीय: 3.6%
        • झारखंड: 7.7%
      • कृषि में छिपी बेरोजगारी उच्च है।
    • गरीबी का दुष्चक्र
      • गरीबी → कम आय → कुपोषण → कार्यक्षमता में कमी → फिर से कम आय।
    • बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थान
      • बैंक शाखाएँ: 3,008
      • एटीएम: 3,473
      • सीमित वित्तीय पहुँच; विशेषकर सिमडेगा, लातेहार, लोहरदगा, खूंटी में।
      • बैंकों द्वारा ऋण वितरण में झिझक।

    जनसंख्या से जुड़ी चुनौतियाँ

    • (i) उच्च जन्म एवं मृत्यु दर
      • 2015: जन्म दर – 23.5 प्रति हजार
      • 2016: शिशु मृत्यु दर – 29
      • 2020: जन्म दर – 16.66, मृत्यु दर – 3.06
    • (ii) जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
      • दशक दर वृद्धि (2001–2011): 22.34%
      • राष्ट्रीय औसत: 17.70%
      • उच्च वृद्धि वाले जिले: कोडरमा, लातेहार, चतरा, गिरिडीह, पाकुड़, देवघर
      • कम वृद्धि वाले जिले: धनबाद, रामगढ़, पूर्वी सिंहभूम, बोकारो, सिमडेगा, दुमका
    • (iii) ग्रामीण जनसंख्या का प्रभुत्व
      • कुल जनसंख्या: 3.29 करोड़
      • ग्रामीण: 76%, शहरी: 24%
    • (iv) आश्रित जनसंख्या का भार
      • 5 वर्ष से कम आयु: 16%
      • 60+ वृद्ध जनसंख्या में वृद्धि
    • (v) पोषण की कमी
      • शारीरिक क्षमता और उत्पादकता प्रभावित
      • सरकार द्वारा ICDS योजना लागू

    सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक पहलू

    • (i) निम्न साक्षरता दर
      • झारखंड: 54.13%
      • राष्ट्रीय औसत: 64.2%
      • महिला साक्षरता: 39.38%
      • छत्तीसगढ़: 65.2%, उत्तराखंड: 72.3%
    • (ii) सामाजिक दृष्टिकोण और प्रेरणा की कमी
      • सामाजिक पिछड़ापन, रूढ़िवादिता और आत्मबल की कमी विकास में बाधा।
    • (iii) विधि-व्यवस्था की स्थिति
      • 2021 में दर्ज अपराध: 1,792
      • हत्या के मामले: 1,606
      • आर्थिक गतिविधियों और निवेश पर नकारात्मक प्रभाव।

    तकनीकी एवं अवसंरचनात्मक समस्याएँ

    • (i) तकनीकी ज्ञान की कमी
      • पारंपरिक तरीके प्रचलित; आधुनिक तकनीक का अभाव।
      • कुशल श्रमिकों की भारी कमी।
    • (ii) परिवहन एवं संचार का अभाव
      • अविकसित नेटवर्क, जिससे बाजार और सेवाओं तक पहुँच सीमित।
      • सेवा और उद्योग क्षेत्रों के विस्तार में बाधा।

    कृषि एवं औद्योगिक विकास

    • कृषि की स्थिति
      • 2014–15 में चावल उत्पादन: 20,07,881 मीट्रिक टन
      • 2019–20 में: 34,02,173 मीट्रिक टन
      • गेहूँ उत्पादन: 93,253 → 1,86,903 मीट्रिक टन
      • खाद्यान्न उत्पादन में 37% की वृद्धि
      • दलहन उत्पादन में 33.6% की वृद्धि
      • बेहतर बीज, सिंचाई और वैज्ञानिक खेती का योगदान
    • औद्योगिक विकास के संकेत
      • आधारभूत उद्योगों का धीरे-धीरे विकास हो रहा है।
      • पूंजी निर्माण और निवेश दरों में सुधार।
      • निवेश दर 25.9% तक पहुँची।

    झारखंड की भूमि, मिट्टी, सिंचाई और कृषि

    • भूमि व मिट्टी संबंधी समस्याएँ
      • 29.76% वनाच्छादित क्षेत्र (2021 तक)।
      • 72% भूमि पठारी और कठोर; कृषि के लिए अनुपयुक्त।
      • 23.22 लाख हेक्टेयर जंगल, 5.66 लाख हेक्टेयर बंजर।
      • केवल 7.24 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य।
    • भूमि उपयोग (प्रतिशत में) भूमि उपयोग प्रकारप्रतिशतशुद्ध बोया क्षेत्र18.12%वर्तमान परती16.13%वन क्षेत्र28.09%अन्य परती13.86%कृषि अयोग्य16.07%गैर-कृषि कार्य8.6%बंजर भूमि4.62%चरागाह1.59%वृक्षाच्छादित1.52%कृषि योग्य परती3.44%
    • कृषि में सिंचाई की स्थिति
      • 92% खेती वर्षा पर निर्भर
      • सिंचाई:
        • खरीफ: 8%, रबी: 6%
      • सिंचित क्षेत्र में वृद्धि का आंकड़ा (2010–15):
        • 2010–11: 210 (हजार हेक्टेयर), कुल बोया: 1384 → 15.2%
        • 2014–15: 153, कुल बोया: 1250 → 12.2%
    • मिट्टी का वर्गीकरण
      • टांड़-I, II, III (ऊँची जमीन)
      • डोन-III, II, डोन (मध्यम से नीची जमीन)
      • उच्च भूमि: लाल-भूरी, अम्लीय, पोषक तत्वों की कमी
      • मध्यम भूमि: पीली-लाल, संतुलित अम्लीयता
      • नीची भूमि: भारी, क्षारीय, जैविक कार्बन युक्त
    • मृदा अपरदन
      • 23 लाख हेक्टेयर भूमि प्रतिवर्ष कटाव का शिकार
      • कुल भूमि का 40% हल्के से गंभीर कटाव से प्रभावित
      • उर्वरता में गिरावट
    • मिट्टी की अम्लीयता
      • 16 लाख हेक्टेयर अत्यधिक अम्लीय
      • प्रभावित फसलें: दालें, तिलहन, मक्का, गेहूं, सब्जियाँ
    • प्रमुख फसलें और क्षेत्रवार विवरण
      • धान:
        • मुख्य फसल, 15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र
        • प्रमुख जिले: रांची, दुमका, सिंहभूम
      • गेहूं:
        • चौथी प्रमुख फसल
        • प्रमुख जिले: पलामू (25%), हजारीबाग, गोड्डा
      • मक्का:
        • दूसरा महत्वपूर्ण अनाज
        • प्रमुख जिले: दुमका, हजारीबाग, गिरिडीह
      • चना:
        • प्रमुख जिले: पलामू, गोड्डा, गुमला
      • सब्जियाँ:
        • क्षेत्र: 2.89 लाख हेक्टेयर
        • प्रमुख सब्जियाँ: आलू, मटर, मूली, गाजर, टमाटर
        • जिले: रांची, हजारीबाग, दुमका

    झारखंड: वन, वन्यजीव, पर्यावरण संरक्षण, खनिज संपदा, कृषि, निर्यात व कुटीर उद्योगों की समग्र तस्वीर

    झारखंड प्राकृतिक संसाधनों, जैव विविधता, खनिजों और पारंपरिक उद्योगों से समृद्ध राज्य है। यहां वन संरक्षण, वन्यजीव संवर्धन, कृषि उत्पादन, कुटीर उद्योग और खनिज उत्पादन जैसे कई क्षेत्रों में निरंतर प्रगति हो रही है। नीचे झारखंड से संबंधित विभिन्न पहलुओं की विस्तृत जानकारी दी जा रही है:

    वन और पर्यावरण संरक्षण

    • राष्ट्रीय वन नीति (1988) के अंतर्गत पर्यावरणीय संतुलन, वन संरक्षण, जन भागीदारी और पुनर्वनीकरण पर बल दिया गया है।
    • मुख्य उद्देश्य:
      • पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना।
      • प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और पुनर्वनीकरण।
      • मृदा कटाव रोकना, बालू के टीलों का विस्तार रोकना।
      • सामाजिक वनीकरण और जन-सहभागिता बढ़ाना।
      • ग्रामीण व आदिवासी समुदायों की ईंधन, चारा व लघु वनोपज की आवश्यकताओं की पूर्ति।
    • वन सर्वेक्षण 2021 के अनुसार झारखंड की वन स्थिति:
      • अत्यंत घना वन: 2601.05 वर्ग किमी (3.26%)
      • मध्यम घना वन: 9688.91 वर्ग किमी (12.16%)
      • खुला वन क्षेत्र: 11,431.18 वर्ग किमी (14.34%)
      • झाड़-झंखाड़ वन: 584.20 वर्ग किमी (0.73%)
    • प्रमुख वृक्ष प्रजातियाँ:
      • साल, असन, गम्हार, बिजा साल, करम, सालई, खैर, धावड़ा, सेमल, बांस, महुआ, करंज, पलाश, कुसुम, बेर, अमलतास, केंद आदि।
      • झाड़ियाँ और घास: पुटुश और सवाई घास।
    • वन संरक्षण कानून 1980 के तहत केंद्र की अनुमति के बिना वन भूमि का गैर-वन कार्यों में प्रयोग नहीं किया जा सकता।
    • जनजातीय क्षेत्र में degraded forest के पुनरुत्थान हेतु योजना:
      • “उपभोगाधिकार के आधार पर आदिवासियों और ग्रामीण गरीबों द्वारा वन पुनरुत्थान”
      • रोजगार व वन अधिकारों की व्यवस्था।

    वन्यजीव और संरक्षित क्षेत्र

    • प्रमुख वन्यजीव: भालू, लंगूर, बंदर, जंगली कुत्ते, चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर, हाथी, बाघ, तेंदुआ, गौर (बाइसन), भेड़िया, लकड़बग्घा, पक्षी, सरीसृप, कीट आदि।
    • राष्ट्रीय उद्यान:
      • बेतला राष्ट्रीय उद्यान (पलामू) – 1986
    • वन्यजीव अभयारण्य:
      • पलामू टाइगर रिजर्व – 1129.93 वर्ग किमी (1973)
      • हजारीबाग अभयारण्य – 186.25 वर्ग किमी (1976)
      • महुआडांड़ वुल्फ अभयारण्य – 63.25 वर्ग किमी
      • दलमा अभयारण्य – 193.22 वर्ग किमी
      • टोपचांची (धनबाद) – 12.82 वर्ग किमी
      • लवालौंग (चतरा) – 211.03 वर्ग किमी
      • कोडरमा – 177.35 वर्ग किमी
      • पारसनाथ (गिरिडीह) – 39.33 वर्ग किमी
      • पलाकोट (गुमला) – 183.18 वर्ग किमी
      • उधवा पक्षी अभयारण्य (साहेबगंज) – 1991
    • विशेष संरक्षित क्षेत्र:
      • सिंहभूम हाथी रिज़र्व – 23,440 वर्ग किमी
      • राजमहल जीवाश्म अभयारण्य – 5.65 वर्ग किमी
      • गिद्ध प्रजनन केंद्र, ओरमांझी
      • मगरमच्छ प्रजनन केंद्र, मूत (ओरमांझी)
      • बिरसा डियर पार्क, खूँटी
      • भगवान बिरसा जैविक उद्यान, ओरमांझी – 6.65 वर्ग किमी
    • वन्यजीव जनगणना 2002:
      • बाघ – 34
      • तेंदुआ – 164
      • हाथी – 758
      • चीतल – 16,384
      • सांभर – 3,052
      • नीलगाय – 1,262
      • गौर – 256
      • भालू – 1,808
      • जंगली सूअर – 18,550

    झारखंड में सब्जी उत्पादन और निर्यात

    • कुल सब्जी उत्पादन: 34.75 लाख मीट्रिक टन
    • निर्यात राज्य: ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश
    • मुख्य बढ़ते उत्पादन: बैंगन, फूलगोभी, प्याज, मटर, आलू, टमाटर
    • 2021–22 अनुमानित उत्पादन: 38.18 लाख मीट्रिक टन
      • आलू – 4.29 लाख मीट्रिक टन
      • टमाटर – 4.29 लाख मीट्रिक टन
      • बंदगोभी – 3.20 लाख मीट्रिक टन
    • कुछ वर्षों में हल्की गिरावट भी देखी गई है।
    • प्रति व्यक्ति आवश्यक सब्जी मात्रा: 280 ग्राम/दिन
    • झारखंड की उपलब्धता: 246 ग्राम/दिन
    • राष्ट्रीय औसत: 230 ग्राम/दिन
    • निष्कर्ष: झारखंड राष्ट्रीय औसत से बेहतर उत्पादन करता है, परन्तु आंतरिक मांग का केवल 80% ही पूरा कर पाता है।

    खनिज संपदा

    • राष्ट्रीय हिस्सेदारी:
      • कोयला – 29%
      • तांबा – 18%
      • लोहा – 29%
      • बॉक्साइट – 105% (विविध स्रोतों से)
      • पाइराइट – 95%
      • एपाटाइट – 30%
    • अन्य खनिज: मैंगनीज, क्रोमियम, चूना पत्थर, चीन मिट्टी, फायर क्ले, चांदी, डोलोमाइट, यूरेनियम, सल्फर आदि।
    • भारत में योगदान:
      • कुल खनिज उत्पादन मूल्य का 26%
      • खनिज उत्पादन मात्रा का 36%
    • 2013–14 में खनिज उत्पादन मूल्य: ₹20,685.41 करोड़
    • रॉयल्टी: ₹645 करोड़
    • 2022–23 में गौण खनिज उत्पादन (रेत, बजरी, मौरंग): 32.72 लाख मीट्रिक टन
    • शीर्ष रॉयल्टी प्राप्त जिले:
      • पश्चिम सिंहभूम – ₹1865.96 करोड़
      • धनबाद – ₹871.18 करोड़
      • रामगढ़ – ₹277.18 करोड़

    पर्यावरणीय संस्थान

    • झारखंड जैव विविधता बोर्ड (2007):
      • जैव विविधता का संरक्षण व सतत उपयोग।
      • व्यवसायिक उपयोग पर नियंत्रण।
      • लाभ का न्यायसंगत वितरण।
    • झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड:
      • जल, वायु, पर्यावरण और बायोमेडिकल अपशिष्ट अधिनियमों का अनुपालन।
      • NOC जारी करना।
      • राँची, धनबाद, जमशेदपुर, हजारीबाग में जल और ध्वनि प्रदूषण की निगरानी।
    • जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठ:
      • UNDP और राज्य सरकार द्वारा स्थापित।
      • जलवायु से संबंधित जानकारी, नीति समर्थन, और जन-जागरूकता।
    • झारखंड स्टेट फॉरेस्ट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (2002):
      • नक्शत्र वन और कान्हा पार्क का रखरखाव।
      • केन्दु पत्तों का संग्रहण व विपणन।
      • वन उत्पादों की नीलामी।
      • 3 क्षेत्रीय कार्यालय: राँची, हजारीबाग, देवघर
      • 6 प्रमंडलीय कार्यालय: राँची, जमशेदपुर, हजारीबाग, गिरिडीह, डाल्टनगंज, गढ़वा

    कुटीर एवं लघु उद्योग

    • परंपरागत ग्रामीण उद्योग: खादी, हस्तशिल्प, हथकरघा, रस्सी निर्माण।
    • आधुनिक लघु उद्योग: पॉवरलूम, शहरी क्षेत्रों के विद्युत आधारित उद्योग।

    मुख्य कुटीर उद्योग:

    1. कृषि आधारित उद्योग:
      • चावल, दाल मिलिंग, तेल पेराई, गुड़ निर्माण।
      • अचार, चटनी, मुरब्बा।
      • बीड़ी, तंबाकू उद्योग।
      • डेयरी, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन।
      • वस्त्र रंगाई-सिलाई।
    2. वस्त्र उद्योग:
      • कपास धुनाई, कताई, बुनाई, छपाई।
    3. लकड़ी उद्योग:
      • आरा मशीन, फर्नीचर निर्माण, खिलौने व औजार।
    4. धातु उद्योग:
      • लोहे, तांबे का परिष्करण, ताले, चाकू, पीतल बर्तन।
    5. चमड़ा उद्योग:
      • चमड़ा परिष्करण, जूते, बेल्ट, हड्डियों से खाद, बटन।
    6. मिट्टी उद्योग:
      • मिट्टी के बर्तन, ईंट, छत की खपरेल, चूना।
    7. अन्य कारीगरी:
      • लाख कारीगरी, चूड़ी, साबुन, रंग, वार्निश।

    रेशम उद्योग (तसर उत्पादन)

    • झारखंड भारत का तसर रेशम का अग्रणी उत्पादक है।
    • मुख्य क्षेत्र: राँची, हजारीबाग, संथाल परगना, पलामू, धनबाद
    • प्रसिद्ध गांव: गेंगैया, सावनी (गोड्डा)
    • मगईया तसर सहकारी समिति – 98 सदस्य, 1000 गज/माह उत्पादन
    • तसर अनुसंधान केंद्र: राँची (रातू के निकट)
    • उत्पादन वितरण:
      • सिंहभूम – 40%
      • दुमका – 25%
      • हजारीबाग – 13%
    • राष्ट्रीय योगदान: भारत के कुल तसर रेशम का 63% झारखंड से आता है।

    बीड़ी और तंबाकू उद्योग

    • मुख्य केंद्र: पाकुड़, सरायकेला, चाईबासा, जमशेदपुर, चक्रधरपुर
    • प्रत्यक्ष रोजगार: 3,13,442 लोग
    • आंशिक/अंशकालिक कार्य: 28,383 लोग
    • भारत में बीड़ी उद्योग के अन्य प्रमुख राज्य: आंध्र प्रदेश (7.5 लाख), मध्य प्रदेश (6.25 लाख)

    लाख उद्योग

    • भारत का प्रमुख लाख उत्पादक राज्य – झारखंड
    • लाख उत्पादन वाले वृक्ष: पलाश, बेर, कुसुम
    • मुख्य क्षेत्र: राँची, हजारीबाग, संथाल परगना, कोडरमा
    • प्रमुख केंद्र: बुंडू, गढ़वा, मुरहू, खूंटी, पाकुड़, डाल्टनगंज, चाईबासा
    • लाख अनुसंधान केंद्र: नामकुम (राँची)
    • लाख के प्रकार:
      • कुसुमी लाख – उच्च गुणवत्ता, कुसुम वृक्ष से।
      • रंगीनी लाख – गहरा लाल रंग, पलाश व बेर से।

    माचिस उद्योग

    • वन उत्पाद आधारित छोटा उद्योग
    • मुख्य केंद्र: कोडरमा जिला

    Also read in English:-
    https://jharkhandexam.in/economic-condition-and-geography-of-jharkhand-a-detailed-overview/

  • Sher Khan’s Entry into Jharkhand and Initial Conflicts (1536-1539)/ The Arrival of Akbar and Mughal Influence on Chhotanagpur (1556-1605)

    Note on Sher Shah Suri (with reference to Jharkhand and regional history)

    • During the early medieval period, several small Hindu and semi-Hindu kingdoms ruled the Chotanagpur region, including the Raksel of Palamu, Nagvanshis of Kokrah (Khukhra), and Singh dynasty of Singhbhum.
    • Sher Shah Suri, originally known as Sher Khan, first entered Jharkhand in 1536 on his way to Bengal via Rajmahal and Gaur (Gaur being the then capital of Bengal).
    • After defeating Bengal’s ruler Mahmud Shah, Sher Shah was granted all lands west of Rajmahal, which included parts of Jharkhand.
    • On his return from Bengal, he crossed the Ganga near Rajmahal with looted wealth and traveled through Jharkhand to reach Rohtas, evading Mughal pursuit.
    • Before the Battle of Chausa (1539), Sher Shah sent his commander Khawas Khan against a regional king Maharath Chero of Jharkhand.
    • The campaign against Maharath Chero is recorded in Ahmed Yadgar’s “Tarikh-e-Sher Shahi” and referenced in “Tarikh-e-Daudi”, “Tarikh-e-Khandan-e-Taimuriya”, B. Veerottam’s The Nagvanshi and the Cheros, and B.B. Ambasht’s The Decisive Battles of Sher Shah.
    • Sher Shah’s army surrounded Maharath Chero, forcing him to surrender.
    • Among the spoils of war, a notable item presented to Sher Shah was a white elephant named Shyam Sundar.
    • Even after his defeat in 1538, Maharath Chero planned another attack on Sher Shah in June 1539, indicating ongoing resistance.
    • Sher Shah’s entry and campaigns in the region marked one of the earliest direct Muslim military interactions with the tribal and semi-independent kingdoms of Jharkhand.

    Akbar’s Campaigns and Involvement in Jharkhand

    • Akbar ascended the Mughal throne in 1556, marking a new era in the history of Chotanagpur and surrounding Jharkhand regions.
    • Akbar’s interest in Jharkhand was not primarily due to diamonds found in the Shankh River, but rather because rebellious Afghan factions were using the region as a base against Mughal authority.
    • Key Afghan rebels like Gazi and Haji brothers, Junaid, and Bayazid used Jharkhand’s terrain for guerrilla resistance against Mughal control.
    • In 1575, Afghan rebel Junaid tried to enter Bihar via Singhbhum and Ramgarh (Hazaribagh area) but was defeated in the Battle of Rampur by the Mughals.
      • Scholar John Beames identified Rampur as a location in Hazaribagh district.
    • On 3 March 1575, after the Battle of Tukrai, Afghan leader Daud Khan surrendered Bengal and Bihar to the Mughals.
    • However, the Nagvanshi rulers of Kokrah (Khukhra/Chotanagpur) continued to defy Mughal authority, refusing to show allegiance or pay tribute.
    • In 1585, Shahbaz Khan Turbani, a Mughal general, was sent by Akbar to subdue the region; he defeated the Nagvanshi king and brought Chotanagpur under Mughal control.
    • The Nagvanshi ruler Madhukaran Shah (1608–1644) accepted the status of malguzar (taxpayer or feudal vassal) under Mughal rule.
      • This also affected Ramgarh, as it was a vassal state under Kokrah.
    • Earlier, in 1569, Madhukaran Shah (or Madhu Singh) had joined the Mughal campaign against the Afghan ruler of Odisha, Kutlu Khan.
      • He contributed militarily by joining Yusuf Chak’s army and demonstrated loyalty to the Mughals.
    • The Singhbhum region also came under Mughal influence during Akbar’s reign.
      • Prominent Singh rulers during this period included Lakshmi Narayan Singh, Narpat Singh I, Kameshwar Singh, and Ranjit Singh.
      • In 1591–92, Raja Man Singh of the Mughals passed through Singhbhum en route to Bengal.
    • Eventually, Ranjit Singh, successor of Kameshwar Singh, accepted Mughal suzerainty and even joined Man Singh’s royal guard.
    • Hazaribagh and Dhanbad (then part of Manbhum) also came under Mughal control during this time.
    • Ain-i-Akbari (Abul Fazl’s court chronicle) records that parts of Hazaribagh like “Chhai-Champa” pargana were part of Bihar Subah under Mughal administration.
    • In 1590–91, Raja Man Singh dispatched a Mughal army unit from Rohtasgarh through Manbhum to Midnapore, consolidating Mughal presence in the east.
  • Singi Dai – The Brave Oraon Princess of Rohtasgarh

    Background & Identity

    • Singi Dai was a princess of Rohtasgarh and a valiant warrior of the Oraon tribe.
    • She is remembered for her heroic leadership and for defeating Mughal invaders.
    • Often compared to Rani Lakshmi Bai of Jhansi, she fought fiercely to defend her homeland and achieved military victory.

    The Threat of Mughal Invasion

    • The Mughals planned an attack on the Oraon people.
    • Singi Dai received advance intelligence about the planned assault.
    • At the time, Oraon men were intoxicated with “hadiya” (local rice beer) and unaware of the imminent danger.

    Formation of the Women’s Army

    • Observing the situation, Singi Dai quickly mobilized a women’s militia, functioning like a police force.
    • She led the women warriors into direct combat with the Mughals.
    • With her strategy and valor, Singi Dai defeated the Mughal forces.

    Reign of King Urgan Thakur

    • The events took place during the rule of King Urgan Thakur, the Oraon king of Rohtasgarh.

    Betrayal and Recognition

    • A milkmaid named Lundari betrayed Singi Dai by revealing the secret of her women’s army to the Mughals.
    • The Mughal commander was initially in disbelief, refusing to accept they were defeated by women.
    • Lundari told him: “Come and see — the women soldiers are washing their faces in the river using both hands.”

    Allies and Victories

    • Kaili Dai, Singi Dai’s trusted companion, fought alongside her — much like Jhalkari Bai supported Rani Lakshmi Bai.
    • Together, Singi Dai and Kaili Dai defeated the Mughal army three times in battle.

    Legacy and Cultural Tribute

    • In honor of their bravery, Oraon women traditionally tattoo three lines on their bodies — a symbol of remembrance and pride for Singi Dai and her warriors.

  • Sidhu-Kanhu: Heroes of the Santhal Rebellion (1855–56)

    Identity and Family

    • Sidhu-Kanhu were among the greatest tribal warriors from the Santhal Pargana region who led a massive uprising against British rule.
    • They were four brothers: Sidhu, Kanhu, Chand, and Bhairav.
    • Their father’s name was Chunni Manjhi.
    • The family belonged to Bhognadih village, located in the Barhait block (now in Jharkhand).

    Birth and Physical Traits

    • Sidhu was born around 1815.
    • Kanhu was five years younger than Sidhu.
    • Chand was born in 1825, and Bhairav in 1835.
    • Sidhu was known to be 6 feet tall, physically strong, and had great leadership and organizational abilities from a young age.

    Pre-Revolt Situation

    • In May–June 1854, Santhal farmers in Damin-i-Koh attacked moneylenders’ houses, but there was no looting.
    • Leaders like Veer Singh Manjhi (from Borio) and Doman Manjhi (from Hatbanda) played early roles.
    • These activities created fear among the exploiters (dikus).

    Causes of the Uprising

    • Santhals faced:
      • British oppression and exploitation.
      • Corruption and disrespect from colonial officials.
      • Dishonest trade practices by outside traders.
      • Unfair tax collection (malguzari) and property auctions.
    • The culmination of these issues led to the Santhal Rebellion or “Hul”.
    • The aim of the movement was self-rule (Swaraj).

    Mobilization for Rebellion

    • In 1855, Sidhu and Kanhu assumed leadership of the Santhal movement.
    • They used traditional methods of communication, claiming:
      • They had divine blessings to expel the British.
      • They encouraged people to listen to the message from the sal tree, symbolizing unity.
    • Sal tree twigs were sent village to village as calls for revolution.

    Formation of Parallel Government

    • On 30 June 1855, a grand assembly of Majhis was held in Bhognadih.
    • Key decisions and titles:
      • Sidhu was declared king (raja).
      • Kanhu as minister.
      • Chand as administrator.
      • Bhairav as commander.
    • Slogan: “Do or die” and “Angrez, hamari maati chhodo!” (British, leave our land!)
    • They declared “Avua Raj” (Our Own Rule).

    Major Events of the Rebellion

    • 7 July 1855: Followers of Sidhu-Kanhu killed Daroga Mahesh Lal Dutt in Digghi.
    • 8 July 1855: They entered Pakur, causing the local king to flee.
    • Rebels attacked from Pakur to Maheshpur and then towards Rajmahal, causing major disturbances and looting.
    • On 10 July 1855, under Major F.W. Darph, British forces were sent but defeated by Santhals under Sidhu’s leadership.
    • Rebels targeted British allies, including zamindars and collaborating sardars.

    Further Expansion and Defeat

    • Rebels captured Rajmahal in the Ambar (Pakur) Pargana and began marching towards Murshidabad district.
    • British counterattacks eventually led to the defeat of the Santhal warriors.
    • Hundreds of Santhals were killed in retaliation.

    Martial Law and Suppression

    • On 10 November 1855, Martial Law was declared.
    • It remained in effect till 2 January 1856.
    • British imposed martial law in Bhagalpur and announced bounties for the capture of the rebel leaders.

    Capture and Martyrdom

    • In February 1856:
      • Kanhu was captured in Uparbanda (north of Jamtara).
      • Sidhu was captured in Barhait.
    • On 26 July 1856, both were hangedKanhu in Bhognadih and Sidhu in Barhait.
    • Chand and Bhairav were martyred in the Battle of Barhait.

    Legacy

    • Sidhu and Kanhu remain iconic figures in India’s tribal freedom struggle.
    • Their movement was one of the largest tribal uprisings against the British Empire in the 19th century.
    • They symbolize the spirit of resistance, unity, and Swaraj for tribal communities and the broader freedom movement.
  • नीलांबर–पीतांबर – पलामू के महान स्वतंत्रता सेनानी

    परिचय और पृष्ठभूमि

    • नीलांबर और पीतांबर पलामू जिले के महान स्वतंत्रता सेनानी थे।
    • वे दोनों सहोदर (सगे) भाई थे।
    • उनके बचपन के बारे में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है।
    • दोनों ने खरवार समुदाय को संगठित कर एक शक्तिशाली संगठन बनाया।
    • पलामू जिले में चेरो और खरवार जातियों की प्रमुखता है, जिनमें भोक्ता खरवार एक उपजाति है।

    1857 के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

    • 1857 की क्रांति में नीलांबर और पीतांबर ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
    • उन्होंने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए चेरो जागीरदारों से मित्रता की।
      • बदले में उन्हें उनके अधिकार वापस दिलाने का वादा किया गया।
    • 21 अक्टूबर 1857 को दोनों भाइयों के नेतृत्व में चैनपुर, साहपुर, और लेस्लीगंज पर आक्रमण किया गया।
      • वे इस अभियान में काफी हद तक सफल रहे।

    चैनपुर में संघर्ष

    • उस समय चैनपुर के जागीरदार रघुवर दयाल सिंह अंग्रेजों के समर्थक थे।
    • नीलांबर–पीतांबर ने उन पर आक्रमण किया, लेकिन रघुवर सिंह अपना क्षेत्र बचाने में सफल रहे।
    • विद्रोह की सूचना मिलने पर अंग्रेजों ने मेजर कोर्टर के नेतृत्व में एक सैन्य टुकड़ी भेजी।
    • ग्राहम भी साहपुर पहुँचकर सहयोग में शामिल हुए।
    • इस संयुक्त सेना का नीलांबर–पीतांबर सामना नहीं कर सके और उन्हें मनिका के जंगल में भागना पड़ा।

    जंगलों से विद्रोह और संघर्ष

    • जंगल में रहकर दोनों भाइयों ने अपने कमजोर संगठन को मजबूत किया।
    • कुछ समय बाद उन्होंने मनिका और उसके आस-पास के क्षेत्रों में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भड़काया।
    • 16 जनवरी 1858 को कर्नल डाल्टन के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने मनिका के जंगलों से विद्रोहियों को खदेड़ दिया।
    • इसके बाद कर्नल डाल्टन लेस्लीगंज चले गये।

    गिरफ्तारी और दमन

    • अंग्रेजी सरकार लगातार नीलांबर और पीतांबर को पकड़ने का प्रयास करती रही, लेकिन वे बार-बार बच निकलते रहे
    • अंततः कर्नल डाल्टन ने एक भोज के अवसर पर चालाकी से दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर लिया।
    • उनके खिलाफ एक संक्षिप्त मुकदमा चलाकर उन्हें फाँसी की सजा दे दी गई।
    • बाद में उनकी संपत्ति जब्त कर ली गई।

    प्रशासनिक परिणाम

    • विद्रोहों के बाद ब्रिटिश सरकार ने जनजातीय क्षेत्रों के लिए एक विशेष रेगुलेशन प्रणाली लागू करने का निर्णय लिया।
    • इस प्रणाली का उद्देश्य था: जनजातीय हितों की रक्षा करना
    • इस प्रणाली के लागू होने के बाद कोई बड़ा जनजातीय विद्रोह नहीं हुआ।
  • शेख भिखारी – झारखंड के अमर स्वतंत्रता सेनानी (1857)

    जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन

    • जन्म: 1819, खुदिया गाँव, ओरमांझी थाना, राँची
    • पिता: शेख पहलवान – 12 गाँवों के ज़मींदार
    • परदादा: शेख बुंलदु
    • बचपन से ही:
      • घुड़सवारी और युद्ध कौशल में निपुणता हासिल की
      • जमींदारी कार्य प्रणाली का अनुभव प्राप्त किया

    प्रशासनिक जीवन

    • खटंगा के राजा टिकैत उमराव सिंह द्वारा शेख भिखारी को दीवान नियुक्त किया गया
    • टिकैत उमराव सिंह एक सच्चे देशभक्त थे, जिन्होंने शेख भिखारी के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया

    1857 की क्रांति में भागीदारी

    • 31 जुलाई 1857: स्वतंत्रता संग्राम का आरंभ चुटूपाली घाटी (टिकैत उमराव सिंह की जमींदारी के अंतर्गत) से हुआ
    • नेतृत्वकर्ता: माधो सिंह और नादिर अली खाँ
    • शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह ने उन्हें खुलकर सहयोग दिया
    • विद्रोही राँची की ओर बढ़े और डोरंडा छावनी को स्वतंत्र घोषित किया

    अंग्रेजों का पलायन

    • डोरंडा की स्वतंत्रता के बाद:
      • छोटानागपुर के आयुक्त डालटन
      • उपायुक्त डेविस
      • न्यायाधीश ऑक्स
        ➤ ये सभी कॉके–पिठौरिया मार्ग से हजारीबाग भाग गए

    संघर्ष का विस्तार और सहयोगी सेनानी

    • विद्रोहियों में प्रमुख रूप से जुड़े:
      • ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव
      • पाण्डेय गणपत राय
      • जयमंगल पाण्डेय

    संताल विद्रोहियों से सम्पर्क

    • शेख भिखारी ने हजारीबाग क्षेत्र के संताल विद्रोहियों से संपर्क स्थापित किया
    • उन्हें अंग्रेजी शासन के खिलाफ सक्रिय किया

    हजारीबाग जेल विद्रोह

    • 30 जुलाई 1857:
      ➤ हजारीबाग जेल तोड़ दी गई
      ➤ कैदियों को मुक्त किया गया
    • उपायुक्त बरही में शरण लेने को मजबूर हुए

    दमनात्मक कार्रवाई और गिरफ्तारी

    • बंगाल के गवर्नर एडली ने विद्रोह को कुचलने का आदेश दिया
    • हजारीबाग का स्वतंत्रता आंदोलन दमन कर दिया गया
    • लगभग 200 विद्रोहियों को फाँसी की सजा दी गई

    शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह की गिरफ्तारी व बलिदान

    • आयुध (हथियार) खत्म होने के कारण उन्हें समर्पण करना पड़ा
    • 6 जनवरी 1858 को गिरफ्तार कर लिए गए
    • 7 जनवरी 1858 को फाँसी की सजा सुनाई गई
    • 8 जनवरी 1858 को फाँसी दी गई

    विरासत

    • शेख भिखारी झारखंड के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) के एक अग्रणी योद्धा थे
    • उन्होंने राजा टिकैत उमराव सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजों को झारखंड क्षेत्र से खदेड़ने में ऐतिहासिक योगदान दिया
    • उनका बलिदान झारखंड के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है
  • सिद्धु-कान्हु – संथाल विद्रोह के महानायक (1855)

    व्यक्तिगत जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि

    • सिद्धु-कान्हु चार भाई थे: सिद्धु, कान्हु, चाँद और भैरो
    • पिता का नाम: चुन्नी माँझी
    • मूल निवासी: भोगना डीह गाँव, बरहेट प्रखंड, संताल परगना
    • जन्म अनुमानित:
      • सिद्धु: 1815
      • कान्हु: 1820
      • चाँद: 1825
      • भैरो: 1835
    • सिद्धु का कद: 6 फीट, शारीरिक रूप से मजबूत और संगठन क्षमता में अपार

    संथाल विद्रोह (हुल) की पृष्ठभूमि

    • 1854 में दामिन-ए-कोह क्षेत्र में संथाल किसानों ने महाजनों के घरों पर हमला किया (बिना लूटपाट)
    • नेतृत्व कर रहे थे:
      • वीर सिंह मांझी (बोरियो)
      • डोमन मांझी (हाटबांधा)
    • व्यापारी, महाजन और जमींदारों की शोषण नीति, बेईमानी, मालगुजारी की नीलामी जैसी घटनाओं से भारी असंतोष फैला
    • सरकार और प्रशासन की उदासीनता भी आंदोलन का कारण बनी

    विद्रोह की शुरुआत और संगठन

    • 1855 में, सिद्धु-कान्हु ने संथालों का नेतृत्व हाथ में लिया
    • चारों भाई ब्रिटिश शासन के अत्याचार, शोषण और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़े
    • आंदोलन का उद्देश्य: स्वराज्य (अपना शासन – “अवुआ राज”)
    • प्रचार किया गया कि कुल देवी-देवता से आदेश मिला है अंग्रेजों को खदेड़ने का
    • सिद्धु ने मौझियों से कहा: साल वृक्ष में कान लगाकर एकजुटता की आवाज सुनो
    • “साल टहनी संदेश” गाँव-गाँव फैलाया गया – यह एक क्रांतिकारी संदेश बन गया

    विद्रोह की घोषणा और प्रारंभिक सफलता

    • 30 जून 1855: भोगनाडीह में माँझियों की सभा
      • नारे दिए गए:
        • “करो या मरो”
        • “अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो”
      • पद बाँटे गए:
        • सिद्धु – राजा
        • कान्हु – मंत्री
        • चाँद – प्रशासक
        • भैरो – सेनापति
    • इसी सभा में “अवुआ राज” (अपना शासन) की घोषणा की गई

    विद्रोह का विस्तार और हिंसक संघर्ष

    • 7 जुलाई 1855: दिग्धी के दारोगा महेश लाल दत्त की हत्या
    • 8 जुलाई: सिद्धु-कान्हु का दल पाकुड़ पहुँचा, वहाँ के राजा अपने परिवार समेत भाग निकले
    • संथालों ने पाकुड़ से महेशपुर होते हुए राजमहल तक हमला किया
    • 10 जुलाई 1855: मेजर एफ.डब्लू. डारफ के नेतृत्व में भेजी गई अंग्रेजी सेना की टुकड़ी को संथालों ने पराजित किया
    • अंग्रेजी समर्थक सरदारों और जमींदारों को भी निशाना बनाया गया
    • अंबर (पाकुड़) परगना का राजमहल कब्जे में लिया गया
    • संथाल विद्रोही मुर्शिदाबाद की ओर बढ़ने लगे

    दमन और शहादत

    • अंग्रेजों की कड़ी जवाबी कार्रवाई से सैकड़ों संथाल विद्रोही मारे गए
    • 10 नवम्बर 1855: क्षेत्र में “मार्शल लॉ” लागू कर दिया गया (2 जनवरी 1856 तक)
    • भागलपुर में विशेष मार्शल लॉ लगाया गया और गिरफ्तारी हेतु पुरस्कार घोषित हुए
    • बरहैट की लड़ाई में चाँद और भैरो शहीद हो गए
    • फरवरी 1856:
      • कान्हु को उपरबंदा (जामताड़ा के उत्तर) से गिरफ्तार किया गया
      • सिद्धु को बरहैट से गिरफ्तार किया गया
    • 26 जुलाई 1856:
      • सिद्धु को बरहैट, और
      • कान्हु को भोगनाडीह में फांसी दी गई

    विरासत

    • सिद्धु-कान्हु ने झारखंड और संथाल परगना में पहली बार संगठित जनविद्रोह खड़ा किया
    • उनके नेतृत्व में हुआ आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम जनजातीय क्रांति – संथाल हुल (1855) के नाम से इतिहास में अमर है
    • उनका बलिदान आदिवासी अस्मिता, स्वाभिमान और स्वराज्य की प्रेरणा का प्रतीक है
  • तिलका माँझी (1750–1785)

    तिलका माँझी – झारखण्ड के पहले स्वतंत्रता सेनानी (1780–1785)

    • पूरा नाम: तिलका माँझी (जिन्हें जाबरा पहाड़िया के नाम से भी जाना जाता है)
    • जन्म: 11 फरवरी 1750, तिलकपुर गाँव, सुलतानगंज थाना, भागलपुर जिला
    • जाति: संताल (सांथाल) जनजाति
    • पिता का नाम: सुंदरा मुर्मू

    व्यक्तित्व और कौशल

    • तीरंदाजी और जंगली जानवरों के शिकार में माहिर
    • दूरदर्शी, मिलनसार, कर्मठ और देशभक्त
    • एक कुशल योद्धा, जिन्होंने अपने साहस और नेतृत्व से पहचान बनाई
    • अंग्रेजी शोषण के खिलाफ पहले विद्रोहियों में से एक

    अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष

    • तिलका माँझी ने संतालों को जागरूक किया:
      • अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के बारे में
      • फूट डालो और राज करो की नीति से सावधान किया
    • मुगल शासन में संतालों की स्वतन्त्रता थी, जिसे अंग्रेजों ने खत्म कर दिया

    विद्रोह के कारण

    • अंग्रेजी कर नीति के खिलाफ आवाज़ उठाई — पहाड़ियों से कर नहीं लिया जाता था, पर अन्य लोगों से लिया जाता था
    • इस भेदभावपूर्ण नीति के कारण सभी वर्ग तिलका माँझी के नेतृत्व में एकजुट हो गए

    प्रारंभिक संघर्ष

    • 1771 में वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का मिलिट्री गवर्नर नियुक्त किया गया
    • 1773 में अगस्टस क्लीवलैंड को राजमहल क्षेत्र का अधीक्षक बनाया गया
    • 1779 तक, क्लीवलैंड ने 47 पहाड़िया सरदारों को अंग्रेजों का समर्थक बना लिया
    • फिर भी जन असंतोष बढ़ता गया और तिलका माँझी ने विद्रोह का नेतृत्व किया

    संथाल विद्रोह की शुरुआत

    • 1781 में, तिलका माँझी के नेतृत्व में संथाल विद्रोह प्रारंभ हुआ
    • भागलपुर के पास वनचरीजोर नामक स्थान से आंदोलन शुरू किया गया
    • गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाकर अंग्रेजों को कठिनाई में डाल दिया

    मुख्य घटना

    • 13 जनवरी 1784 को, तिलका माँझी ने तीर मारकर अगस्टस क्लीवलैंड की हत्या कर दी
    • यह घटना जनजातीय प्रतिरोध का प्रतीक बन गई

    गिरफ्तारी और बलिदान

    • अंग्रेजों ने बड़ा हमला किया, पर तिलका माँझी पहाड़ों में छिपकर लड़ते रहे
    • अंततः सरदार जौराह ने उन्हें धोखे से पकड़वा दिया
    • तिलका माँझी को पकड़कर अत्यंत क्रूरता से फांसी दे दी गई
    • वे जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले शहीद माने जाते हैं

  • “Freedom Fighters of Jharkhand”

    1. Tilka Manjhi (1750–1785)

    • Place of Birth: Tilakpur, Bhagalpur (present-day Bihar)
    • Tribe: Santhal
    • Father’s Name: Sundara Murmu

    Major Contributions:

    • Considered the first tribal freedom fighter of India.
    • Led the Santhal Rebellion in 1781.
    • Killed British officer Augustus Cleveland with an arrow (13 January 1784).
    • Adopted guerrilla warfare tactics to outsmart the British.

    Sacrifice:

    • Arrested due to betrayal by Paharia chieftain Jaurah.
    • In May 1785, tied to four horses, dragged, and hanged from a banyan tree in Bhagalpur.

    2. Budhu Bhagat (1792–1832)

    • Place of Birth: Silagai village, Lohardaga (Jharkhand)
    • Tribe: Oraon
    • Father’s Name: Heru Bhagat

    Major Contributions:

    • Led a mass rebellion against the British and landlords in 1831–1832.
    • Spread public awareness village to village.
    • Expertly used guerrilla warfare.

    Sacrifice:

    • In 1832, the British surrounded Budhu Bhagat’s house.
    • He and his two sons fought bravely but were martyred.

    3. Pandey Ganpat Rai (1809–1858)

    • Place of Birth: Chatra, Jharkhand
    • Father’s Name: Raja Jugal Kishore Singh
    • Position: Nagvanshi King and Diwan of Chatra

    Major Contributions:

    • Played an active role in the 1857 freedom struggle.
    • United kings and the public against the British.
    • Established alliances with Tatya Tope, Nana Sahib, and Kunwar Singh.

    Sacrifice:

    • Captured by the British.
    • Hanged in an open field in Chatra on 21 April 1858.
    • His last words were: “Victory to Mother India!”

    4. Sidho-Kanho Murmu (1815–1855)

    • Place of Birth: Bhognadih village, Sahibganj (Jharkhand)
    • Tribe: Santhal
    • Father’s Name: Marang Bhagat

    Major Contributions:

    • On 30 June 1855, led the “Santhal Rebellion” (Hul Movement) with over 10,000 Santhals.
    • Gave the slogan against oppression: “Abua Raj Ete Janawar Nay” (We want our own rule, not that of beasts).
    • The rebellion spread across Sahibganj, Dumka, Pakur, and Godda.

    Sacrifice:

    • Killed deceitfully by the British army in 1855.

    5. Thakur Vishwanath Shahdeo (1817–1858)

    • Place of Birth: Badlatoli, Ranchi (Jharkhand)
    • Father’s Name: Thakur Chaitanya Shah
    • Position: Nagvanshi King of Ranchi

    Major Contributions:

    • Active leader in the 1857 revolution.
    • Organized freedom forces against the British.
    • Allied with Pandey Ganpat Rai, Nandaraj, and Murlidhar.
    • Uprooted British administration in Ranchi, Lohardaga, and Chatra.

    Sacrifice:

    • Hanged at Ranchi jail ground on 16 April 1858.

    6. Sheikh Bhikhari

    • Diwan and associate of Tikait Umrao Singh.
    • Actively participated in the 1857 freedom struggle.
    • Played a major strategic role against the British.
    • After the revolution, his property was seized and his family forced to flee.

    7. Birsa Munda (1875–1900)

    • Birth: 15 November 1875, Ulihatu, Khunti
    • Famous Name: Dharti Aaba

    Education & Conversion:

    • Early life full of struggle due to poverty.
    • Converted to Christianity on 7 May 1886 (Chaibasa Lutheran Mission).
    • Later disillusioned with missionary policies and returned to Hindu and tribal values.

    Movement:

    • Goal: Restoration of traditional tribal life and culture.
    • Initiated rebellion against Christian missionaries and British.
    • Arrested in 1895, sentenced to two years of rigorous imprisonment.
    • After release, reorganized the movement.
    • Arrested again in 1900; died in Ranchi jail on 9 June 1900.

    8. Tikait Umrao Singh

    • Birth: Khatanga, Ormanjhi (some sources mention Ganga Patar)
    • Skilled horseman and swordsman.
    • Led the rebellion in the 1857 uprising along with Sheikh Bhikhari.
    • Blocked the Chutupalu valley route to stop the British.
    • Hanged with Sheikh Bhikhari on 8 January 1858.
    • Zamindari of 12 villages was confiscated.

    9. Nilamber–Pitamber (Brave Brothers of Palamu)

    • Belonged to the Chero-Kharwar community of Palamu.
    • Rebelled against the British in 1857.
    • Attacked Chainpur, Sahpur, and Lesliganj.
    • Later took refuge in Manika forest and launched another rebellion.
    • Colonel Dalton arrested them under pretense of a feast and executed them.
    • Their property was confiscated.

    10. Telanga Khadia (1806–1880)

    • Birth: Sisai Murge village
    • Father: Duiya Khadia (treasurer of the Chotanagpur king)

    Struggle and Sacrifice:

    • Illiterate but skilled organizer and warrior.
    • Inspired by Kol Rebellion (1831–32), began guerrilla warfare against the British.
    • Mobilized the entire Khadia region.
    • British made several attempts to catch him but failed.
    • Shot dead by a traitor in Sisai on 23 April 1880.

    11. Singi Dai (Heroine of Rohtas Fort)

    • Princess of the Oraon community.
    • Formed a women’s army and repelled Mughal invasions three times.
    • Fought alongside her companion Kailee Dai.
    • Symbol of bravery: Oraon women tattoo three lines in her memory.

    12. Gaya Munda (Ulgulan Warrior, Atkedih)

    • Rebelled against the British with his entire family.
    • On 5 January 1900, a constable arrived at Atkedih to arrest him during an Ulgulan meeting.
    • His son Sambhar Munda shot an arrow at the constable.
    • On 6 January 1900, Deputy Commissioner Streetfield surrounded their home.
    • Women attacked the soldiers with sticks.
    • Gaya Munda declared: “This is my home. The Deputy Commissioner has no right to enter. If he does, we will kill him!”
    • The Deputy Commissioner set the house on fire, forcing the family out.

    Punishment:

    • Son hanged.
    • Elder son Doka Munda sentenced to life imprisonment.
    • Wife Maki Dai: 2 years in jail.
    • Daughters-in-law and daughters: 3 months imprisonment.
    • Son Jaymasih exiled.
    • 348 Mundas were tried in court.

    Bindrai Manki and Suiya Munda (Kol Rebellion, 1832)

    • Led the rebellion in Singhbhum, Palamu, and Torpa regions.
    • Major allies: Sagar Manki, Sugga Manki, Mohan Manki, etc.
    • British forced the rebels to surrender.
    • On 19 April 1832, Bindrai and Suiya Munda surrendered.
    • British had to promise security and peace in return.

    Poto Sardar (Kolhan Rebellion, 1837)

    • ‘Ho’ tribal leader who fought for independence.
    • Rebelled against British atrocities and the ‘Wilkinson Rule’.
    • Planned the rebellion by sending arrows to village chiefs.
    • 17 November 1837: Captain Armstrong’s army attacked.
    • 8 December 1837: Poto Sardar arrested.
    • 1 January 1838: Poto, Naro, and Badai were hanged.
    • 2 January 1838: Modu and Pandua were also executed.

    Rudan Munda and Konta Munda (Tamar Rebellion, 1819–1821)

    • Led a rebellion in Tamar region against the British in 1819.
    • Key leaders: Daulat Rai Munda, Shankar Manki, Chandan Singh, Bhadra Munda, etc.
    • 31 August 1819: Attacked Pituchara.
    • Reward announced for Rudan Munda; caught and died in jail.
    • 1821: Konta Munda gathered warriors from Singhbhum.
    • Raja Govind Shahi placed ₹200 bounty on his head.
    • Died in jail after arrest; rebellion ended.

    Fetel Singh Kharwar (Tribal Leader, Garhwa–Palamu)

    • Birth: 7 May 1885, Bahahara village, Garhwa
    • Father: Lagan Singh, village chief of Panchayat Chatta
    • Uneducated but deeply aware of forest rights.
    • Influenced by Gandhiji, fought for forest land rights.
    • 1958: Protest escalated against forest department encroachment.
    • 12 January 1958: Clash with police; supporter Kumbhakaran killed.
    • Arrested, fell ill in jail, later released for good conduct.
    • Died on 31 December 1975. His memorial is still in Bahahara village.

  • “झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी”

    1. तिलका माँझी (1750–1785)

    जन्म स्थान: तिलकपुर, भागलपुर (वर्तमान बिहार)
    जाति: संताल
    पिता का नाम: सुंदरा मुर्मू

    मुख्य योगदान:

    • भारत के पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी माने जाते हैं।
    • 1781 में संताल विद्रोह का नेतृत्व किया।
    • ब्रिटिश अधिकारी ऑगस्टस क्लीवलैंड को तीर से मार गिराया (13 जनवरी 1784)।
    • उन्होंने गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाकर ब्रिटिशों को छकाया।

    बलिदान:

    • पहाड़िया सरदार जौराह की गद्दारी से गिरफ्तार हुए।
    • मई 1785 में चार घोड़ों से बाँधकर घसीटे गए और भागलपुर के एक बरगद के पेड़ से फाँसी दी गई।

    2. बुधु भगत (1792–1832)

    जन्म स्थान: सिलागाई गाँव, लोहरदगा (झारखंड)
    जाति: उराँव
    पिता का नाम: हेरू भगत

    मुख्य योगदान:

    • 1831–1832 में ब्रिटिश और जमींदारों के खिलाफ जन विद्रोह का नेतृत्व किया।
    • गाँव-गाँव में जनजागरण फैलाया।
    • गुरिल्ला युद्ध का कुशल प्रयोग किया।

    बलिदान:

    • 1832 में अंग्रेजों ने बुधु भगत के घर को घेर लिया।
    • उन्होंने और उनके दो बेटों ने साहसपूर्वक युद्ध किया, पर अंततः शहीद हो गए।

    3. पाण्डेय गणपत राय (1809–1858)

    जन्म स्थान: चतरा, झारखंड
    पिता का नाम: राजा जुगल किशोर सिंह
    पद: नागवंशी राजा व चतरा के दीवान

    मुख्य योगदान:

    • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई।
    • अंग्रेजों से विरुद्ध राजाओं और जनता को संगठित किया।
    • तांत्या टोपे, नाना साहिब और कुंवर सिंह से सहयोग स्थापित किया।

    बलिदान:

    • अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार किए गए।
    • 21 अप्रैल 1858 को चतरा में खुले मैदान में फाँसी दी गई।
    • उनके अंतिम शब्द थे: “भारत माता की जय!”

    4. सिद्धू-कान्हू मुर्मू (1815–1855)

    जन्म स्थान: भोगनाडीह गाँव, साहिबगंज (झारखंड)
    जाति: संताल
    पिता का नाम: मरांग भगत

    मुख्य योगदान:

    • 30 जून 1855 को 10,000 से अधिक संतालों के साथ “संताल विद्रोह” (हुल आंदोलन) का नेतृत्व किया।
    • अंग्रेजों, साहूकारों और महाजनों के अत्याचार के विरुद्ध “अबुआ राज एते जनावर नाय” (अपना राज लाएँगे, जानवरों का नहीं) का नारा दिया।
    • विद्रोह ने साहिबगंज, दुमका, पाकुड़, गोड्डा तक प्रभाव फैलाया।

    बलिदान:

    • 1855 में अंग्रेजी सेना ने धोखे से उन्हें घेर कर मार दिया।

    5. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव (1817–1858)

    जन्म स्थान: बड़लाटोली, रांची (झारखंड)
    पिता का नाम: ठाकुर चैतन्य शाह
    पद: रांची के नागवंशी राजा

    मुख्य योगदान:

    • 1857 की क्रांति में सक्रिय नेता थे।
    • अंग्रेजों के खिलाफ मुक्ति सेनाओं को संगठित किया।
    • पाण्डेय गणपत राय, नंदराज और मुरलीधर से गठबंधन किया।
    • रांची, लोहरदगा, चतरा में ब्रिटिश प्रशासन को उखाड़ फेंका।

    बलिदान:

    • 16 अप्रैल 1858 को रांची के जेल मैदान में फाँसी दी गई।

    6. शेख भिखारी

    • टिकैत उमराव सिंह के दीवान और सहयोगी।
    • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी।
    • अंग्रेजों के विरुद्ध रणनीतिक सहयोग में प्रमुख भूमिका।
    • स्वतंत्रता संग्राम के बाद सम्पत्ति जब्त और परिवार को पलायन करना पड़ा।

    7. बिरसा मुण्डा (1875 – 1900)

    जन्म: 15 नवम्बर 1875, उलिहातू, खूंटी
    प्रसिद्ध नाम: धरती आबा

    शिक्षा व धर्मांतरण:

    • गरीबी के कारण शुरुआती जीवन संघर्षपूर्ण।
    • 7 मई 1886 को ईसाई धर्म में धर्मांतरण (चाईबासा लूथरन मिशन)।
    • बाद में ईसाई मिशनरियों की नीतियों से असंतुष्ट होकर हिन्दू और आदिवासी मूल्यों की ओर लौटे।

    आंदोलन:

    • लक्ष्य: पारंपरिक जनजातीय जीवन और संस्कृति की पुनर्स्थापना।
    • ईसाई मिशनरियों व अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की शुरुआत।
    • 1895 में गिरफ्तारी व दो वर्ष की सश्रम कारावास।
    • जेल से रिहा होने के बाद फिर आंदोलन को संगठित किया।
    • 1900 में गिरफ्तार; राँची जेल में 9 जून 1900 को मृत्यु।

    8. टिकैत उमराव सिंह

    • जन्म: खटंगा, ओरमांझी (कुछ मतों में गंगा पातर)
    • कुशल घुड़सवार व तलवारबाज।
    • 1857 की क्रांति में शेख भिखारी के साथ मिलकर विद्रोह का नेतृत्व।
    • चुटुपालू घाटी मार्ग अवरुद्ध कर अंग्रेजों को रोका।
    • 8 जनवरी 1858 को शेख भिखारी के साथ फाँसी दी गई।
    • 12 गाँवों की ज़मींदारी जब्त की गई।

    9. नीलांबर-पीतांबर (पलामू के वीर भाई)

    • पलामू के चेरो-खरवार समुदाय से।
    • 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
    • चैनपुर, साहपुर, लेस्लीगंज पर आक्रमण।
    • बाद में मनिका के जंगल में शरण ली और पुनः विद्रोह छेड़ा।
    • कर्नल डाल्टन ने भोज के बहाने गिरफ्तार कर फाँसी दी।
    • उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली गई।

    10. तेलंगा खड़िया (1806 – 1880)

    जन्म: सिसई मुर्गे गाँव
    पिता: दुइया खड़िया (छोटानागपुर महाराज के भंडारी)

    संघर्ष और बलिदान:

    • अनपढ़ लेकिन कुशल संगठक और योद्धा।
    • कोल विद्रोह (1831–32) से प्रेरणा लेकर अंग्रेजों के खिलाफ छापामार युद्ध शुरू किया।
    • पूरे खड़िया क्षेत्र को गोलबंद किया।
    • अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने कई प्रयास किए लेकिन असफल रहे।
    • 23 अप्रैल 1880 को सिसई में एक देशद्रोही द्वारा गोली मारकर हत्या।

    11. सिनगी दई (रोहतास गढ़ की वीरांगना)

    • उरांव समुदाय की राजकुमारी।
    • नारी सेना गठित कर मुगल आक्रमण को तीन बार रोका।
    • सहेली कैली दई के साथ युद्ध में मोर्चा संभाला।
    • वीरता की प्रतीक: उरांव महिलाएं उनकी याद में तीन रेखाएं गुदवाती हैं।

    12. गया मुण्डा (उलगुलान सेनानी, एटकेडीह)

    • गया मुण्डा ने अपने पूरे परिवार के साथ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
    • 5 जनवरी 1900 को खूँटी थाना का कांस्टेबल उन्हें पकड़ने एटकेडीह पहुँचा, जहाँ उलगुलान की बैठक चल रही थी।
    • गया मुण्डा के बेटे सांभर मुण्डा ने सिपाही पर तीर चला दिया।
    • 6 जनवरी 1900 को उपायुक्त स्ट्रीटफील्ड ने एटकेडीह में गया मुण्डा के घर को घेर लिया।
    • महिलाओं ने सिपाही पर लाठी से वार कर दिया।
    • गया मुण्डा का जवाब: “यह घर मेरा है, उपायुक्त को घुसने का अधिकार नहीं है। घुसे तो मार डालेंगे!”
    • उपायुक्त ने घर में आग लगवा दी, जिससे पूरा परिवार बाहर निकला।
    • दंड:
      • बेटे को फाँसी
      • बड़े बेटे डोका मुण्डा को आजीवन कारावास
      • पत्नी माकी दई को 2 साल की कैद
      • बहुएं और बेटियाँ: 3 महीने की कैद
      • बेटे जयमसीह को देश निकाला
      • कुल 348 मुण्डाओं पर मुकदमा चला

    बिंदराई मानकी और सुइया मुण्डा (कोल विद्रोह, 1832)

    • सिंहभूम, पलामू और तोरपा क्षेत्र में विद्रोह का नेतृत्व किया।
    • प्रमुख सहयोगी: सागर मानकी, सुग्गा मानकी, मोहन मानकी आदि।
    • अंग्रेजों ने विद्रोहियों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया।
    • 19 अप्रैल 1832: बिंदराई और सुइया मुण्डा ने आत्मसमर्पण किया।
    • अंग्रेजों को उनके आत्मसमर्पण के बदले सुरक्षा और शांति बनाए रखने का आश्वासन लेना पड़ा।

    पोटो सरदार (कोल्हान विद्रोह, 1837)

    • ‘हो’ आदिवासी नेता जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी।
    • अंग्रेजों के अत्याचार और ‘विल्किन्सन रूल’ के विरोध में विद्रोह।
    • विद्रोह की योजना: ग्राम प्रमुखों को तीर भेजकर आमंत्रण।
    • 17 नवम्बर 1837: कैप्टन आर्मस्ट्रांग की सेना ने हमला किया।
    • 8 दिसम्बर 1837: पोटो सरदार गिरफ्तार।
    • 1 जनवरी 1838: पोटो, नारो और बड़ाय को फाँसी दी गई।
    • 2 जनवरी 1838: मोड़ो और पंडुआ को भी फाँसी।

    रूदन मुण्डा और कोन्ता मुण्डा (तमाड़ विद्रोह, 1819-1821)

    • 1819 में अंग्रेजों के खिलाफ तमाड़ क्षेत्र में विद्रोह।
    • प्रमुख नेता: दौलत राय मुण्डा, शंकर मानकी, चंदन सिंह, भद्रा मुण्डा आदि।
    • 31 अगस्त 1819: पिटुचाड़ा में हमला।
    • रूदन मुण्डा को पकड़ने के लिए इनाम घोषित हुआ और वह पकड़े जाने के बाद जेल में मारे गए।
    • 1821: कोन्ता मुण्डा ने सिंहभूम के लड़ाकों को एकत्र किया।
    • राजा गोविन्द शाही ने उस पर ₹200 का इनाम रखा।
    • गिरफ्तारी के बाद जेल में मौत, विद्रोह का अंत हुआ।

    फेटल सिंह खरवार (जनजातीय नेता, गढ़वा–पलामू)

    • जन्म: 7 मई 1885, बहाहारा गाँव, गढ़वा।
    • पिता: लगन सिंह, पंचायत चट्टा के मुखिया।
    • पढ़ाई नहीं कर सके पर जल-जंगल-जमीन की गहरी समझ।
    • गाँधीजी के प्रभाव में आए और वन अधिकारों की लड़ाई लड़ी।
    • 1958: वन विभाग के कब्जे के खिलाफ संघर्ष उग्र हुआ।
    • 12 जनवरी 1958: पुलिस से भिड़ंत, एक समर्थक कुम्भकरण की मृत्यु।
    • गिरफ्तारी के बाद जेल में स्वास्थ्य बिगड़ा, बाद में अच्छे आचरण के कारण रिहा हुए।
    • 31 दिसम्बर 1975: उनका निधन। समाधि आज भी बहाहारा गाँव में स्थित है।