आर्थिक विशेषताएँ
- प्राकृतिक संसाधनों का अर्द्धविकसित उपयोग
- झारखंड खनिज संपदा से भरपूर राज्य है लेकिन इसका पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है।
- 28.8% क्षेत्रफल ही खेती योग्य है।
- 30.22% भूमि बंजर, परती या अनुपजाऊ है।
- खनिज और जल संसाधन होने के बावजूद संस्थागत रुकावटें और नीतिगत खामियाँ विकास में बाधक हैं।
- विनिर्माण क्षेत्र में असंतुलन है।
- राज्य की GDP में हिस्सेदारी 2015-16 में 1.84% थी जो 2018-19 में घटकर 1.61% हो गई।
- कृषि पर अत्यधिक निर्भरता
- 70% से 85% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है।
- कृषि में आधुनिक तकनीकों की कमी है, जिससे उत्पादकता कम है।
- कृषि का GSDP में योगदान:
- 2016–17: 14.97%
- 2017–18: 15%
- 2022–23: 22%
- पूंजी की कमी
- पूंजी की दोहरी कमी — प्रति व्यक्ति पूंजी और पूंजी निर्माण दर दोनों ही कम हैं।
- कम बचत दर के कारण निवेश कम है।
- प्रति एक लाख जनसंख्या पर केवल 10 बैंक (2020-21 के अनुसार)।
- 2018 में कृषि ऋण कुल बैंक ऋण का मात्र 15.55% था।
- एनपीए 5.87% तक पहुंच गया।
- औद्योगीकरण में गिरावट
- आधुनिक और बड़े उद्योगों की कमी है।
- उद्योगों का GSDP में योगदान:
- 2011–12: 41.9%
- 2018–19: 34.93%
- 2021–22: 33.6%
- सेवा क्षेत्र का योगदान: 44.1%
- कम प्रति व्यक्ति आय और जीवन स्तर
- प्रति व्यक्ति आय:
- 2001–02: ₹10,129
- 2018–19: ₹76,806
- 2020–21: ₹51,365
- राष्ट्रीय औसत (2020–21): ₹1,12,835
- झारखंड की रैंकिंग: 26वाँ
- 70% परिवारों को सरकारी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं।
- प्रति व्यक्ति आय:
- आर्थिक असमानता
- आय और संपत्ति की असमानता विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक।
- पूँजी और संसाधनों पर मुट्ठीभर वर्ग का नियंत्रण है।
- बेरोजगारी एवं छिपी बेरोजगारी
- 2018–19 में बेरोजगारी दर:
- राष्ट्रीय: 3.6%
- झारखंड: 7.7%
- कृषि में छिपी बेरोजगारी उच्च है।
- 2018–19 में बेरोजगारी दर:
- गरीबी का दुष्चक्र
- गरीबी → कम आय → कुपोषण → कार्यक्षमता में कमी → फिर से कम आय।
- बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थान
- बैंक शाखाएँ: 3,008
- एटीएम: 3,473
- सीमित वित्तीय पहुँच; विशेषकर सिमडेगा, लातेहार, लोहरदगा, खूंटी में।
- बैंकों द्वारा ऋण वितरण में झिझक।
जनसंख्या से जुड़ी चुनौतियाँ
- (i) उच्च जन्म एवं मृत्यु दर
- 2015: जन्म दर – 23.5 प्रति हजार
- 2016: शिशु मृत्यु दर – 29
- 2020: जन्म दर – 16.66, मृत्यु दर – 3.06
- (ii) जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
- दशक दर वृद्धि (2001–2011): 22.34%
- राष्ट्रीय औसत: 17.70%
- उच्च वृद्धि वाले जिले: कोडरमा, लातेहार, चतरा, गिरिडीह, पाकुड़, देवघर
- कम वृद्धि वाले जिले: धनबाद, रामगढ़, पूर्वी सिंहभूम, बोकारो, सिमडेगा, दुमका
- (iii) ग्रामीण जनसंख्या का प्रभुत्व
- कुल जनसंख्या: 3.29 करोड़
- ग्रामीण: 76%, शहरी: 24%
- (iv) आश्रित जनसंख्या का भार
- 5 वर्ष से कम आयु: 16%
- 60+ वृद्ध जनसंख्या में वृद्धि
- (v) पोषण की कमी
- शारीरिक क्षमता और उत्पादकता प्रभावित
- सरकार द्वारा ICDS योजना लागू
सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक पहलू
- (i) निम्न साक्षरता दर
- झारखंड: 54.13%
- राष्ट्रीय औसत: 64.2%
- महिला साक्षरता: 39.38%
- छत्तीसगढ़: 65.2%, उत्तराखंड: 72.3%
- (ii) सामाजिक दृष्टिकोण और प्रेरणा की कमी
- सामाजिक पिछड़ापन, रूढ़िवादिता और आत्मबल की कमी विकास में बाधा।
- (iii) विधि-व्यवस्था की स्थिति
- 2021 में दर्ज अपराध: 1,792
- हत्या के मामले: 1,606
- आर्थिक गतिविधियों और निवेश पर नकारात्मक प्रभाव।
तकनीकी एवं अवसंरचनात्मक समस्याएँ
- (i) तकनीकी ज्ञान की कमी
- पारंपरिक तरीके प्रचलित; आधुनिक तकनीक का अभाव।
- कुशल श्रमिकों की भारी कमी।
- (ii) परिवहन एवं संचार का अभाव
- अविकसित नेटवर्क, जिससे बाजार और सेवाओं तक पहुँच सीमित।
- सेवा और उद्योग क्षेत्रों के विस्तार में बाधा।
कृषि एवं औद्योगिक विकास
- कृषि की स्थिति
- 2014–15 में चावल उत्पादन: 20,07,881 मीट्रिक टन
- 2019–20 में: 34,02,173 मीट्रिक टन
- गेहूँ उत्पादन: 93,253 → 1,86,903 मीट्रिक टन
- खाद्यान्न उत्पादन में 37% की वृद्धि
- दलहन उत्पादन में 33.6% की वृद्धि
- बेहतर बीज, सिंचाई और वैज्ञानिक खेती का योगदान
- औद्योगिक विकास के संकेत
- आधारभूत उद्योगों का धीरे-धीरे विकास हो रहा है।
- पूंजी निर्माण और निवेश दरों में सुधार।
- निवेश दर 25.9% तक पहुँची।
झारखंड की भूमि, मिट्टी, सिंचाई और कृषि
- भूमि व मिट्टी संबंधी समस्याएँ
- 29.76% वनाच्छादित क्षेत्र (2021 तक)।
- 72% भूमि पठारी और कठोर; कृषि के लिए अनुपयुक्त।
- 23.22 लाख हेक्टेयर जंगल, 5.66 लाख हेक्टेयर बंजर।
- केवल 7.24 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य।
- भूमि उपयोग (प्रतिशत में) भूमि उपयोग प्रकारप्रतिशतशुद्ध बोया क्षेत्र18.12%वर्तमान परती16.13%वन क्षेत्र28.09%अन्य परती13.86%कृषि अयोग्य16.07%गैर-कृषि कार्य8.6%बंजर भूमि4.62%चरागाह1.59%वृक्षाच्छादित1.52%कृषि योग्य परती3.44%
- कृषि में सिंचाई की स्थिति
- 92% खेती वर्षा पर निर्भर
- सिंचाई:
- खरीफ: 8%, रबी: 6%
- सिंचित क्षेत्र में वृद्धि का आंकड़ा (2010–15):
- 2010–11: 210 (हजार हेक्टेयर), कुल बोया: 1384 → 15.2%
- 2014–15: 153, कुल बोया: 1250 → 12.2%
- मिट्टी का वर्गीकरण
- टांड़-I, II, III (ऊँची जमीन)
- डोन-III, II, डोन (मध्यम से नीची जमीन)
- उच्च भूमि: लाल-भूरी, अम्लीय, पोषक तत्वों की कमी
- मध्यम भूमि: पीली-लाल, संतुलित अम्लीयता
- नीची भूमि: भारी, क्षारीय, जैविक कार्बन युक्त
- मृदा अपरदन
- 23 लाख हेक्टेयर भूमि प्रतिवर्ष कटाव का शिकार
- कुल भूमि का 40% हल्के से गंभीर कटाव से प्रभावित
- उर्वरता में गिरावट
- मिट्टी की अम्लीयता
- 16 लाख हेक्टेयर अत्यधिक अम्लीय
- प्रभावित फसलें: दालें, तिलहन, मक्का, गेहूं, सब्जियाँ
- प्रमुख फसलें और क्षेत्रवार विवरण
- धान:
- मुख्य फसल, 15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र
- प्रमुख जिले: रांची, दुमका, सिंहभूम
- गेहूं:
- चौथी प्रमुख फसल
- प्रमुख जिले: पलामू (25%), हजारीबाग, गोड्डा
- मक्का:
- दूसरा महत्वपूर्ण अनाज
- प्रमुख जिले: दुमका, हजारीबाग, गिरिडीह
- चना:
- प्रमुख जिले: पलामू, गोड्डा, गुमला
- सब्जियाँ:
- क्षेत्र: 2.89 लाख हेक्टेयर
- प्रमुख सब्जियाँ: आलू, मटर, मूली, गाजर, टमाटर
- जिले: रांची, हजारीबाग, दुमका
- धान:
झारखंड: वन, वन्यजीव, पर्यावरण संरक्षण, खनिज संपदा, कृषि, निर्यात व कुटीर उद्योगों की समग्र तस्वीर
झारखंड प्राकृतिक संसाधनों, जैव विविधता, खनिजों और पारंपरिक उद्योगों से समृद्ध राज्य है। यहां वन संरक्षण, वन्यजीव संवर्धन, कृषि उत्पादन, कुटीर उद्योग और खनिज उत्पादन जैसे कई क्षेत्रों में निरंतर प्रगति हो रही है। नीचे झारखंड से संबंधित विभिन्न पहलुओं की विस्तृत जानकारी दी जा रही है:
वन और पर्यावरण संरक्षण
- राष्ट्रीय वन नीति (1988) के अंतर्गत पर्यावरणीय संतुलन, वन संरक्षण, जन भागीदारी और पुनर्वनीकरण पर बल दिया गया है।
- मुख्य उद्देश्य:
- पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना।
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और पुनर्वनीकरण।
- मृदा कटाव रोकना, बालू के टीलों का विस्तार रोकना।
- सामाजिक वनीकरण और जन-सहभागिता बढ़ाना।
- ग्रामीण व आदिवासी समुदायों की ईंधन, चारा व लघु वनोपज की आवश्यकताओं की पूर्ति।
- वन सर्वेक्षण 2021 के अनुसार झारखंड की वन स्थिति:
- अत्यंत घना वन: 2601.05 वर्ग किमी (3.26%)
- मध्यम घना वन: 9688.91 वर्ग किमी (12.16%)
- खुला वन क्षेत्र: 11,431.18 वर्ग किमी (14.34%)
- झाड़-झंखाड़ वन: 584.20 वर्ग किमी (0.73%)
- प्रमुख वृक्ष प्रजातियाँ:
- साल, असन, गम्हार, बिजा साल, करम, सालई, खैर, धावड़ा, सेमल, बांस, महुआ, करंज, पलाश, कुसुम, बेर, अमलतास, केंद आदि।
- झाड़ियाँ और घास: पुटुश और सवाई घास।
- वन संरक्षण कानून 1980 के तहत केंद्र की अनुमति के बिना वन भूमि का गैर-वन कार्यों में प्रयोग नहीं किया जा सकता।
- जनजातीय क्षेत्र में degraded forest के पुनरुत्थान हेतु योजना:
- “उपभोगाधिकार के आधार पर आदिवासियों और ग्रामीण गरीबों द्वारा वन पुनरुत्थान”
- रोजगार व वन अधिकारों की व्यवस्था।
वन्यजीव और संरक्षित क्षेत्र
- प्रमुख वन्यजीव: भालू, लंगूर, बंदर, जंगली कुत्ते, चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर, हाथी, बाघ, तेंदुआ, गौर (बाइसन), भेड़िया, लकड़बग्घा, पक्षी, सरीसृप, कीट आदि।
- राष्ट्रीय उद्यान:
- बेतला राष्ट्रीय उद्यान (पलामू) – 1986
- वन्यजीव अभयारण्य:
- पलामू टाइगर रिजर्व – 1129.93 वर्ग किमी (1973)
- हजारीबाग अभयारण्य – 186.25 वर्ग किमी (1976)
- महुआडांड़ वुल्फ अभयारण्य – 63.25 वर्ग किमी
- दलमा अभयारण्य – 193.22 वर्ग किमी
- टोपचांची (धनबाद) – 12.82 वर्ग किमी
- लवालौंग (चतरा) – 211.03 वर्ग किमी
- कोडरमा – 177.35 वर्ग किमी
- पारसनाथ (गिरिडीह) – 39.33 वर्ग किमी
- पलाकोट (गुमला) – 183.18 वर्ग किमी
- उधवा पक्षी अभयारण्य (साहेबगंज) – 1991
- विशेष संरक्षित क्षेत्र:
- सिंहभूम हाथी रिज़र्व – 23,440 वर्ग किमी
- राजमहल जीवाश्म अभयारण्य – 5.65 वर्ग किमी
- गिद्ध प्रजनन केंद्र, ओरमांझी
- मगरमच्छ प्रजनन केंद्र, मूत (ओरमांझी)
- बिरसा डियर पार्क, खूँटी
- भगवान बिरसा जैविक उद्यान, ओरमांझी – 6.65 वर्ग किमी
- वन्यजीव जनगणना 2002:
- बाघ – 34
- तेंदुआ – 164
- हाथी – 758
- चीतल – 16,384
- सांभर – 3,052
- नीलगाय – 1,262
- गौर – 256
- भालू – 1,808
- जंगली सूअर – 18,550
झारखंड में सब्जी उत्पादन और निर्यात
- कुल सब्जी उत्पादन: 34.75 लाख मीट्रिक टन
- निर्यात राज्य: ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश
- मुख्य बढ़ते उत्पादन: बैंगन, फूलगोभी, प्याज, मटर, आलू, टमाटर
- 2021–22 अनुमानित उत्पादन: 38.18 लाख मीट्रिक टन
- आलू – 4.29 लाख मीट्रिक टन
- टमाटर – 4.29 लाख मीट्रिक टन
- बंदगोभी – 3.20 लाख मीट्रिक टन
- कुछ वर्षों में हल्की गिरावट भी देखी गई है।
- प्रति व्यक्ति आवश्यक सब्जी मात्रा: 280 ग्राम/दिन
- झारखंड की उपलब्धता: 246 ग्राम/दिन
- राष्ट्रीय औसत: 230 ग्राम/दिन
- निष्कर्ष: झारखंड राष्ट्रीय औसत से बेहतर उत्पादन करता है, परन्तु आंतरिक मांग का केवल 80% ही पूरा कर पाता है।
खनिज संपदा
- राष्ट्रीय हिस्सेदारी:
- कोयला – 29%
- तांबा – 18%
- लोहा – 29%
- बॉक्साइट – 105% (विविध स्रोतों से)
- पाइराइट – 95%
- एपाटाइट – 30%
- अन्य खनिज: मैंगनीज, क्रोमियम, चूना पत्थर, चीन मिट्टी, फायर क्ले, चांदी, डोलोमाइट, यूरेनियम, सल्फर आदि।
- भारत में योगदान:
- कुल खनिज उत्पादन मूल्य का 26%
- खनिज उत्पादन मात्रा का 36%
- 2013–14 में खनिज उत्पादन मूल्य: ₹20,685.41 करोड़
- रॉयल्टी: ₹645 करोड़
- 2022–23 में गौण खनिज उत्पादन (रेत, बजरी, मौरंग): 32.72 लाख मीट्रिक टन
- शीर्ष रॉयल्टी प्राप्त जिले:
- पश्चिम सिंहभूम – ₹1865.96 करोड़
- धनबाद – ₹871.18 करोड़
- रामगढ़ – ₹277.18 करोड़
पर्यावरणीय संस्थान
- झारखंड जैव विविधता बोर्ड (2007):
- जैव विविधता का संरक्षण व सतत उपयोग।
- व्यवसायिक उपयोग पर नियंत्रण।
- लाभ का न्यायसंगत वितरण।
- झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड:
- जल, वायु, पर्यावरण और बायोमेडिकल अपशिष्ट अधिनियमों का अनुपालन।
- NOC जारी करना।
- राँची, धनबाद, जमशेदपुर, हजारीबाग में जल और ध्वनि प्रदूषण की निगरानी।
- जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठ:
- UNDP और राज्य सरकार द्वारा स्थापित।
- जलवायु से संबंधित जानकारी, नीति समर्थन, और जन-जागरूकता।
- झारखंड स्टेट फॉरेस्ट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (2002):
- नक्शत्र वन और कान्हा पार्क का रखरखाव।
- केन्दु पत्तों का संग्रहण व विपणन।
- वन उत्पादों की नीलामी।
- 3 क्षेत्रीय कार्यालय: राँची, हजारीबाग, देवघर
- 6 प्रमंडलीय कार्यालय: राँची, जमशेदपुर, हजारीबाग, गिरिडीह, डाल्टनगंज, गढ़वा
कुटीर एवं लघु उद्योग
- परंपरागत ग्रामीण उद्योग: खादी, हस्तशिल्प, हथकरघा, रस्सी निर्माण।
- आधुनिक लघु उद्योग: पॉवरलूम, शहरी क्षेत्रों के विद्युत आधारित उद्योग।
मुख्य कुटीर उद्योग:
- कृषि आधारित उद्योग:
- चावल, दाल मिलिंग, तेल पेराई, गुड़ निर्माण।
- अचार, चटनी, मुरब्बा।
- बीड़ी, तंबाकू उद्योग।
- डेयरी, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन।
- वस्त्र रंगाई-सिलाई।
- वस्त्र उद्योग:
- कपास धुनाई, कताई, बुनाई, छपाई।
- लकड़ी उद्योग:
- आरा मशीन, फर्नीचर निर्माण, खिलौने व औजार।
- धातु उद्योग:
- लोहे, तांबे का परिष्करण, ताले, चाकू, पीतल बर्तन।
- चमड़ा उद्योग:
- चमड़ा परिष्करण, जूते, बेल्ट, हड्डियों से खाद, बटन।
- मिट्टी उद्योग:
- मिट्टी के बर्तन, ईंट, छत की खपरेल, चूना।
- अन्य कारीगरी:
- लाख कारीगरी, चूड़ी, साबुन, रंग, वार्निश।
रेशम उद्योग (तसर उत्पादन)
- झारखंड भारत का तसर रेशम का अग्रणी उत्पादक है।
- मुख्य क्षेत्र: राँची, हजारीबाग, संथाल परगना, पलामू, धनबाद
- प्रसिद्ध गांव: गेंगैया, सावनी (गोड्डा)
- मगईया तसर सहकारी समिति – 98 सदस्य, 1000 गज/माह उत्पादन
- तसर अनुसंधान केंद्र: राँची (रातू के निकट)
- उत्पादन वितरण:
- सिंहभूम – 40%
- दुमका – 25%
- हजारीबाग – 13%
- राष्ट्रीय योगदान: भारत के कुल तसर रेशम का 63% झारखंड से आता है।
बीड़ी और तंबाकू उद्योग
- मुख्य केंद्र: पाकुड़, सरायकेला, चाईबासा, जमशेदपुर, चक्रधरपुर
- प्रत्यक्ष रोजगार: 3,13,442 लोग
- आंशिक/अंशकालिक कार्य: 28,383 लोग
- भारत में बीड़ी उद्योग के अन्य प्रमुख राज्य: आंध्र प्रदेश (7.5 लाख), मध्य प्रदेश (6.25 लाख)
लाख उद्योग
- भारत का प्रमुख लाख उत्पादक राज्य – झारखंड
- लाख उत्पादन वाले वृक्ष: पलाश, बेर, कुसुम
- मुख्य क्षेत्र: राँची, हजारीबाग, संथाल परगना, कोडरमा
- प्रमुख केंद्र: बुंडू, गढ़वा, मुरहू, खूंटी, पाकुड़, डाल्टनगंज, चाईबासा
- लाख अनुसंधान केंद्र: नामकुम (राँची)
- लाख के प्रकार:
- कुसुमी लाख – उच्च गुणवत्ता, कुसुम वृक्ष से।
- रंगीनी लाख – गहरा लाल रंग, पलाश व बेर से।
माचिस उद्योग
- वन उत्पाद आधारित छोटा उद्योग
- मुख्य केंद्र: कोडरमा जिला
Also read in English:-
https://jharkhandexam.in/economic-condition-and-geography-of-jharkhand-a-detailed-overview/