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  • अध्याय IV पलामू और रांची के साथ प्रारंभिक ब्रिटिश संबंध (सितंबर 1771-जून 1813)

    खंड ए – पहला चरण: शत्रुता से राजनीतिक जुड़ाव तक (1771–1813)

    I. कैमक का अभियान और इसके तत्काल परिणाम

    🏴 ब्रिटिश विस्तार का संदर्भ:

    • बंगाल पर विजय के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने बिहार के भीतरी क्षेत्रों, विशेषकर पलामू, की ओर ध्यान केंद्रित किया।
    • चेरो, जिन्होंने पूर्व में मुगलों को श्रद्धांजलि दी थी, अब विद्रोही हो गए और ब्रिटिश प्रभुत्व को अस्वीकार कर दिया।

    ⚔️ कैमक का अभियान (1771):

    • कैप्टन कैमक को पलामू के ज़मींदारों को अधीन करने और कंपनी का नियंत्रण स्थापित करने के लिए भेजा गया।
    • उन्होंने चेरो विद्रोह को कुचलते हुए उनके नेता जयनाथ सिंह को हरा दिया, जो जंगलों में भाग गए।

    📜 अभियान के पश्चात:

    • जयनाथ सिंह ने पुनः सत्ता प्राप्त करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें पकड़कर कलकत्ता निर्वासित कर दिया गया।
    • कंपनी ने सैन्य विजय से प्रशासनिक पुनर्गठन की ओर कदम बढ़ाया।

    II. ब्रिटिश सत्ता की स्थापना

    🛡️ समेकन की चुनौतियाँ:

    • स्थानीय जनता ब्रिटिश शासन को अस्वीकार कर रही थी और चेरो नेतृत्व के प्रति वफादार थी।
    • घने जंगलों और चेरो समर्थकों ने नियंत्रण स्थापित करने में बाधा उत्पन्न की।

    🏛️ प्रशासनिक उपाय:

    • राजस्व संग्रह की निगरानी और कंपनी के कानूनों को लागू करने हेतु ब्रिटिश अधिकारी नियुक्त किए गए।
    • क्षेत्र पर अधिकार को वैध रूप देने के लिए कर प्रणाली और श्रद्धांजलि की व्यवस्था लागू की गई।

    🤝 स्थानीय सहयोगियों की भूमिका:

    • कुछ ज़मींदारों को विशेषाधिकार और सुरक्षा के बदले ब्रिटिश व्यवस्था में सम्मिलित कर लिया गया।
    • इस प्रकार के गठबंधन औपनिवेशिक नियंत्रण को स्थिर करने में सहायक सिद्ध हुए।

    III. शेष चेरो प्रतिरोध और सह-चयन रणनीति

    ⚔️ निरंतर प्रतिरोध:

    • जयनाथ सिंह के पराजय के बावजूद, चेरो प्रतिरोध जारी रहा — गुरिल्ला युद्ध और छिटपुट विद्रोह के रूप में।
    • इससे ब्रिटिश सैन्य प्रभुत्व की सीमाएँ स्पष्ट हुईं।

    🕊️ ब्रिटिश प्रतिक्रिया:

    • निरंतर सैन्य कार्रवाई अप्रभावी सिद्ध होने पर, कंपनी ने “चयनात्मक संलग्नता” की नीति अपनाई।
    • चेरो अभिजात वर्ग के सहमत सदस्यों को प्रशासनिक पद और भूमि सुरक्षा प्रदान की गई।

    🧱 दीर्घकालिक प्रभाव:

    • पूर्व अभिजात वर्ग को संरक्षण और समावेशन देकर ब्रिटिश शासन धीरे-धीरे मजबूत हुआ।
    • टकराव से सहयोग की ओर संक्रमण ने एक नई राजनीतिक व्यवस्था की नींव रखी।

    पलामू में उथल-पुथल (1777–1801)

    🏹 व्यवस्था का पतन और सैन्य हस्तक्षेप:

    • चेरो नेता सुगंध राय जंगलों में चले गए और ब्रिटिश सत्ता को अस्वीकार कर दिया।
    • गोपाल राय को बंदी बना लिया गया, जिससे राजस्व संग्रह रुक गया।
    • कैप्टन ऐश सीमित बलों के साथ संघर्ष कर रहे थे।
    • अक्टूबर 1777: कैप्टन हार्डी के नेतृत्व में दो सैन्य कंपनियाँ भेजी गईं।

    📜 नवाबी फरमान:

    • नवंबर 1777: बंगाल के नवाब के फरमान द्वारा गोपाल राय और कर्णपाल राय को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
    • रामगढ़ के कलेक्टर ने गोपाल राय की कुख्यात प्रतिष्ठा के आधार पर कड़े दंड की सिफारिश की।

    🔥 लूटपाट और ब्रिटिश प्रतिक्रिया:

    • सुगंध राय ने व्यापक लूटपाट शुरू की।
    • हार्डी की सेना अपर्याप्त सिद्ध हुई — सुदृढीकरण की मांग की गई।

    📦 दिसंबर 1777:

    • कैप्टन ऐश को दीनापुर भेजा गया — गोपाल राय को पटना ले जाने हेतु।
    • कलकत्ता परिषद, लगातार सैन्य तैनाती से थकी हुई, सेना की वापसी चाहती थी।

    👑 गजराज राय की नियुक्ति और स्थानीय विरोध:

    • फरवरी 1778: गोपाल राय के चाचा गजराज राय को राजस्व प्रशासक नियुक्त किया गया।
    • उनकी कंपनी के प्रति पिछली सेवा और प्रभाव के आधार पर यह निर्णय लिया गया।
    • लेकिन सुगंध राय और ठकुराई शिव प्रसाद सिंह के विरोध ने क्षेत्र को अस्थिर कर दिया।

    📉 रामस की रिपोर्ट:

    • जिला तबाह हो चुका था।
    • खेती की उपेक्षा हो रही थी।
    • केवल सुगंध राय और शिव प्रसाद सिंह ही सक्रिय विद्रोही रह गए थे।

    🏃 सैन्य वापसी और निरंतर अशांति:

    • मई 1778: कलकत्ता परिषद ने सेना वापसी पर ज़ोर दिया।
    • रामस को निर्देश:
      • मिलिशिया को सुदृढ़ किया जाए।
      • सिपाही बटालियनों पर निर्भरता कम की जाए।

    📉 अगस्त 1778:

    • रामस ने चिंता जताई — युद्ध के कारण लोग विस्थापित हो गए थे।
    • शेष आबादी अराजकता में जीवन जी रही थी।

    🪖 रामगढ़ बटालियन का गठन:

    • 18 सितंबर 1778: रामगढ़ बटालियन की स्थापना की गई।
    • इसमें सिपाहियों की पाँच कंपनियाँ सम्मिलित की गईं।

    📍 चतरा में ब्रिटिश तैनाती और स्थानीय सत्ता संघर्ष

    • कैप्टन क्रॉफर्ड और लेफ्टिनेंट गुमली चतरा में तैनात थे।
    • दलजीत राय ने मेदिनी राय के वंश को बहाल करने का प्रयास किया।
    • 1780 में, कलकत्ता परिषद ने बसंत राय (गोपाल राय के भाई) को उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता दी।
    • 1781 में, गजराज राय को बेलौंजा में पकड़ लिया गया; सुगंध राय 1784 में लौटे।

    👑 बसंत राय और उत्तराधिकार विवाद

    • बसंत राय की मृत्यु 1783 में मात्र 17 वर्ष की आयु में हुई।
    • उनकी माँ ने 1786 तक अन्य दावेदारों का विरोध किया।
    • 1784 में चूड़ामन राय को उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता दी गई।

    🏰 चूड़ामन राय का शासन (1784–1813)

    🔸 प्रारंभिक चुनौतियाँ और शिव प्रसाद सिंह का उदय

    • जयनाथ सिंह के भतीजे शिव प्रसाद सिंह 1778 में लौटे और प्रभावशाली हो गए।
    • 1786 में कलेक्टर एम. लेस्ली ने:
      • चूड़ामन को दरकिनार करते हुए शिव प्रसाद से सीधे राजस्व निपटान किया।
      • चूड़ामन का नाम सनद से हटा दिया।

    🔸 जागीरदारी बस्तियाँ और राजस्व

    • सुगंध राय ने देवगन पर अधिकार बनाए रखा।
    • छत्रपति राय और धरनी राय को बिश्रामपुर व बरांव मिला।
    • रामबख्श सिंह को अपनी जमीन वापस मिली।
    • चूड़ामन पर ₹12,812 की बकाया राशि व पुलिस व्यय थोपे गए।

    🔸 औपचारिक मान्यता और प्रशासनिक परिवर्तन

    • 1788: चूड़ामन राय को राजा के रूप में निवेश किया गया; पेशकाश ₹5,000।
    • 1789: शिव प्रसाद को संपत्ति प्रबंधन सौंपा गया (चूड़ामन के वयस्क होने तक)।
    • 1795: चूड़ामन को अपनी सनद मिली।

    🔸 राजस्व और भ्रष्टाचार की समस्याएँ

    • शिव प्रसाद ने वार्षिक किराये के बजाय एकमुश्त राशि ली।
    • 1805 तक राजस्व ₹2,000 तक गिर गया।
    • जागीरदारों ने भूमि को गलत रूप से करमुक्त जागीर के रूप में घोषित किया।
    • 1795 में चूड़ामन ने सज़ावल नियुक्ति की माँग की।

    🔥 विद्रोह और दमन (1800–1801)

    🔸 भूखन सिंह का चेरो विद्रोह

    • अक्टूबर 1800: 1,500 लोगों के साथ हमला; मराठा दलजीत सिंह की सहायता।
    • फरवरी 1801: रांका किले पर हमला; शिव प्रसाद के बेटे की मृत्यु।

    🔸 ब्रिटिश प्रतिक्रिया

    • कमांडेंट एस. जोन्स ने मेजर डफ से सहायता मांगी।
    • लेफ्टिनेंट ई. रफसेज की सेना ने विद्रोह दबाया।
    • शिव प्रसाद निर्दोष सिद्ध हुए।
    • 1,500 मवेशी खो गए; सहयोगियों ने आत्मसमर्पण किया।

    ⚔️ ब्रिटिश अभियान और प्रभाव (1801–1813)

    🔸 सरगुजा अभियान (1801–1802)

    • कर्नल जोन्स और मेजर डेविडसन ने अभियान चलाया।
    • वार्ता विफल होने पर सैन्य कार्रवाई हुई।
    • भूखन सिंह संबलपुर भागा।
    • अभियान महंगा और नुकसानदायक सिद्ध हुआ।

    🔸 चूड़ामन पर प्रभाव

    • राजस्व संग्रह में रुकावट।
    • ₹20,000 के नुकसान पर ₹7,000 की आंशिक क्षतिपूर्ति दी गई।
    • जागीरदारों की अड़ियल नीति और पुलिसिंग का बोझ।

    ⚖️ आंतरिक संघर्ष और प्रशासनिक विफलता

    🔸 जागीरदारों का अड़ियल रवैया

    • आदेशों की अवहेलना, चूड़ामन की पकड़ कमजोर।
    • रिश्वतखोरी, झूठी सनदें; चूड़ामन फारसी न जानने के कारण अंधाधुंध हस्ताक्षर करते रहे।

    🔸 ब्रिटिश हस्तक्षेप

    • 1810: सहायक कलेक्टर ई. पैरी ने हस्तक्षेप किया।
    • चूड़ामन की सनद रद्द, लेस्ली का समझौता बहाल।
    • सीधे चतरा को भुगतान का आदेश।

    🏚️ चूड़ामन राय का पतन और संपत्ति जब्ती (1810–1813)

    • जागीरदार जंगलों में रहते थे, अनुपालन से बचते रहे।
    • चूड़ामन राय कार्रवाई में विफल रहे, सलाहकार भ्रष्ट थे।
    • 1810: पैरी ने चूड़ामन को दरकिनार कर राजस्व खुद वसूला।
    • संपत्ति जब्त; अमीन नियुक्त; ₹10% भत्ता प्रस्तावित।

    💸 संपत्ति की बिक्री और अंतिम निर्णय

    • 1812: 55,000 रुपये बकाया पर संपत्ति की नीलामी घोषित।
    • चूड़ामन ने साहूकार से ऋण लेकर चुकाने की कोशिश की।
    • संपत्ति 51,000 में बेच दी गई, याचिका अस्वीकार।
    • चूड़ामन ने भावुक अपील की; ईमानदारी का हवाला।
    • 29 जुलाई, 1815: संपत्ति वापस नहीं दी गई।
    • चेरो राजवंश का अंत हुआ।

    🌍 ब्रिटिश रणनीति और राजनीतिक उद्देश्य

    • राजस्व बिक्री का बहाना, असली उद्देश्य सामरिक नियंत्रण।
    • सरगुजा से सटे पलामू को कमजोर सैन्य सीमा माना गया।

    🏞️ रांची के साथ शुरुआती ब्रिटिश संबंध (1771–1773)

    🔸 ब्रिटिश प्रभाव और स्थानीय सत्ता में गिरावट

    • ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव बढ़ा; नागवंशी शासकों की शक्ति घटी।
    • मराठा हमले और अशांति ने कोल विद्रोह (1831–32) की भूमि तैयार की।

    🔸 ड्रिप नाथ शाह का गठबंधन

    • 12 दिसंबर, 1771 को पटना परिषद से खिलत प्राप्त की।
    • वफादारी, दर्रों की रक्षा, खुफिया जानकारी देने का वादा।

    🔸 नन्ना शाह के साथ संघर्ष

    • कैप्टन कार्टर ने नन्ना शाह का समर्थन किया, जो खुद को शासक घोषित करता था।
    • नन्ना शाह को स्थानीय समर्थन मिला, पर कैमक और पटना परिषद ने दावों को अस्वीकार किया।
    • कार्टर को नन्ना शाह को कैमक को सौंपने का आदेश मिला।

    मराठा आक्रमण

    • लगभग 1,200 घुड़सवार और 4,000 लुटेरों वाली मराठा सेना ने ड्रिप नाथ शाह के क्षेत्र पर आक्रमण किया।
    • टोरी के राजा ने विद्रोह किया और शाह के एजेंटों व कंपनी के सिपाहियों को खदेड़ दिया।
    • शाह को पालकोट में पीछे हटना पड़ा।
    • मराठों ने श्रद्धांजलि और छावनी के अधिकार मांगे।

    ब्रिटिश सैन्य प्रतिक्रिया

    • कैमक की चेतावनी: मराठा-सिरदार गठबंधन के खतरे को देखते हुए सुदृढ़ीकरण की मांग की।
    • पटना परिषद (20 जुलाई, 1772):
      • कैमक को फील्ड कमांड सौंपा गया।
      • कर्नल अलेक्जेंडर चैंपियन से 4 कंपनियाँ सिपाही भेजने का अनुरोध।
      • बाद में दीनापुर से आए सैनिकों की जगह मुंगेर से सैनिक भेजे गए।

    मराठों के खिलाफ अभियान

    • कैमक 20 अगस्त, 1772 को कुंडा पहुंचे।
    • छोटा नागपुर की रक्षा के लिए सिपाही भेजे।
    • मराठों ने पालकोट के पास डेरा डाला; कैमक की सेनाएँ निकट थीं।
    • अधिकांश पहाड़ी दर्रे अवरुद्ध, केवल बुरवा का मार्ग खुला रहा (मराठा समर्थक)।

    मराठा वापसी और परिणाम

    • ले. थॉमस स्कॉट पर मराठों का हमला विफल:
      • मराठों के कई सैनिक मरे, 16 घोड़े भी मारे गए।
      • स्कॉट को मामूली नुकसान।
    • मराठा पीछे हटे; घाटवालों ने उनका सामान लूटा।
    • पीछे हटते समय गुलाब सिंह और मुकुंद सिंह का अपहरण किया।

    अधीनस्थ सरदार और स्थानीय विद्रोह

    • टोरी, तामार, बुरवा आदि के सरदारों ने राजस्व देना बंद किया।
    • सिल्ली का सरदार:
      • सबसे विद्रोही।
      • ब्रिटिश आपूर्ति लूट ली, रामगढ़ पर छापा मारा।
      • 1773 में पकड़ने के प्रयास विफल।
      • अंततः ठाकुर जगमोहन सिंह की मध्यस्थता से आत्मसमर्पण।

    ड्रिप नाथ शाह के साथ राजस्व विवाद

    • भुगतान को विवादित भूमि की बहाली से जोड़ा गया।
    • फरवरी 1773 से भुगतान बंद; ब्रिटिश सिपाहियों की टुकड़ी को घेर लिया।
    • ले. फेनेल द्वारा प्रयास (1773) विफल।
    • कैमक ने जनवरी 1774 में सैन्य बल से दबाव डाला:
      • 18 जनवरी को हमला।
      • फरवरी 1774 में शाह ने भुगतान किया।

    प्रशासनिक सुधार

    • 3 मई, 1774: कलकत्ता परिषद ने मध्यम दरों की नीति को जारी रखने की मंजूरी दी।
    • 1775: एस.जी. हीटली को सिविल कलेक्टर नियुक्त किया गया।
    • 1776: शाह ने भुगतान फिर रोका; ऐश का प्रस्तावित अभियान रद्द हुआ।
    • शाह ने कभी ब्रिटिश कलेक्टर से भेंट नहीं की।
    • मराठा-नियंत्रित सरगुजा भाग जाना आम रणनीति रही।
    • 1781: जेम्स क्रॉफोर्ड ने शाह को हटाने की सिफारिश की।

    तामार क्षेत्र की समस्या

    • 18वीं शताब्दी से विद्रोही और स्वायत्त क्षेत्र।
    • ड्रिप नाथ शाह के नियंत्रण प्रयास विफल।
    • 1782 की शुरुआत में गोला पर हमला।

    तामार में सैन्य प्रतिक्रिया (1783–1798)

    • 1783: मेजर क्रॉफोर्ड ने गढ़ नष्ट करने और लूट लौटाने का आदेश दिया।
    • 1789: बिष्णु और मौजी मानकी का विद्रोह; ले. कूपर ने दबाया।
    • 1794-1795: तामार में दोबारा अशांति; सख़्त दमनात्मक निर्देश जारी।

    कैप्टन बी. बेन का अभियान (1796)

    • 16–23 फरवरी:
      • अभियान में आपूर्ति की भारी कमी।
      • ग्रामीणों का प्रतिरोध।
      • अंततः झालदा लौटे।
      • कठोर दंड और स्थायी तैनाती की मांग की।

    फरवरी 1796 के बाद का व्यापक विद्रोह

    • 27 फरवरी: राम शाही और ठाकुर दास मुंडा द्वारा राहे का किला लूटा।
    • सिल्ली, राहे, तामार के मुंडा और मानकी विद्रोह में शामिल।

    आगे के ब्रिटिश अभियान (1797–1798)

    • मुख्य विद्रोही नेता: ठाकुर बिश्वनाथ, भोलानाथ, हीरानाथ, शिवनाथ सिंह।
    • 20 दिसंबर 1797: प्रमुख विद्रोहियों को पकड़ने की कार्रवाई।
    • 1798:
      • कई छापे और गिरफ़्तारियाँ।
      • भोलानाथ सिंह पकड़ा गया।
      • शिवनाथ सिंह ने आत्मसमर्पण किया।
      • 1798 के मध्य तक: शांति बहाल।

    गोविंद नाथ शाह का शासन और संघर्ष (1806–1812)

    प्रारंभिक समस्याएँ (1806–1808)

    • देव नाथ शाह की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार विवाद।
    • गोविंद नाथ पर हत्या और अत्याचार के आरोप।
    • उदयपुर परगना को लेकर विवाद।

    दीवान दीन दयाल नाथ का प्रभाव

    • 1808 तक राजा की शक्ति नाम मात्र की रह गई।
    • ज़मींदारों और किसानों को बेदखल किया गया।
    • सिविल अदालतों के माध्यम से टालमटोल।

    ब्रिटिश हस्तक्षेप और समाधान (1808–1809)

    • दीन दयाल की गिरफ्तारी।
    • गोविंद नाथ ने आत्मसमर्पण कर शांति समझौता किया:
      • ₹35,000 भुगतान।
      • पुलिस सुधार स्वीकार।
      • विवाद मध्यस्थता हेतु प्रस्तुत।

    पुलिस प्रणाली का कार्यान्वयन (1809)

    • 4 जून से लागू।
    • प्रशासनिक नियंत्रण रामगढ़ मजिस्ट्रेट के पास।
    • मुंडा और उरांव असंतुष्ट।

    बढ़ता असंतोष और विद्रोह (1811–1812)

    • ब्रिटिश कानून और बाहरी अधिकारियों से व्यापक असंतोष।
    • मुख्य विद्रोही: बैद्यनाथ शाही (बक्तूर सोह)।
    • बुरवा, जशपुर में छापे; ब्रिटिश एजेंट की हत्या।

    ब्रिटिश सैन्य प्रतिक्रिया (1812)

    • ले. ओ’डोनेल:
      • नवाडीहा पहुंचे।
      • रात का हमला असफल।
      • भारी नुकसान और पीछे हटना पड़ा।
    • कैप्टन रफ़सेज:
      • 24–28 मार्च नवागढ़ पर सफल हमला।
      • विद्रोही सरगुजा भाग गए।
      • 1 अप्रैल को वापसी।

    परिणाम

    • बड़े पैमाने पर अशांति समाप्त।
    • कुछ छिटपुट लूट जारी रही।
    • गोविंद नाथ शाह ने राजस्व न देने का कारण विद्रोह बताया।
    • अंग्रेज केवल अनुस्मारक भेजने तक सीमित रहे — कोई प्रभावी तंत्र नहीं।