Tag: झारखंड सामान्य ज्ञान 2025

  • “झारखंड आपदा प्रबंधन प्रणाली और प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों की व्याख्या”

    झारखंड: आपदा प्रबंधन प्रणाली और पर्यावरणीय चुनौतियों का विश्लेषण

    झारखंड, भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित एक खनिज-समृद्ध और वनाच्छादित राज्य है, जो प्राकृतिक और मानवजनित आपदाओं की एक जटिल श्रृंखला का सामना करता है — जैसे कि बार-बार हाथी हमला, जंगल की आग, सूखा, बाढ़ और खनन से जुड़ी दुर्घटनाएं। बढ़ती जनसंख्या और जंगलों में मानव दखल के कारण, झारखंड में एक सशक्त और उत्तरदायी आपदा प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गई है।

    यह ब्लॉग झारखंड की बहु-स्तरीय आपदा तैयारी रणनीति, झारखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (JSDMA) की संरचना और कार्यों, तथा जिला और ग्राम स्तर की प्रतिक्रिया प्रणाली की गहराई से जानकारी प्रदान करता है। साथ ही इसमें विभिन्न आपदाओं से प्रभावित जिलों, जैसे कि आकाशीय बिजली, भूकंप क्षेत्र, औद्योगिक दुर्घटनाएं, और ठंडी लहर तथा चक्रवात जैसी मौसमी आपदाओं का विश्लेषण शामिल है — जो JPSC, JSSC, UPSC और अन्य राज्य स्तरीय परीक्षाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है।

    मॉक ड्रिल, GIS सिस्टम, स्कूल सुरक्षा कार्यक्रमों और सामुदायिक जागरूकता अभियानों से लेकर इस गहन अवलोकन में झारखंड की आपदा लचीलापन क्षमता की सम्पूर्ण जानकारी शामिल है।

    आपदाओं का वर्गीकरण

    प्राकृतिक आपदाएँ: प्रकृति की घटनाओं से उत्पन्न होती हैं जैसे भूकंप, चक्रवात, बाढ़, सुनामी, सूखा आदि।
    मानवजनित आपदाएँ: मानव गतिविधियों से उत्पन्न होती हैं, जैसे युद्ध, परमाणु दुर्घटनाएं, रासायनिक विस्फोट आदि — जिन्हें अक्सर सामाजिक आपदाएं भी कहा जाता है।

    झारखंड में भूकंप

    • झारखंड को कम जोखिम वाला भूकंप क्षेत्र माना जाता है।
    • भूकंपीय संवेदनशीलता के अनुसार राज्य को Zone II, III और IV में विभाजित किया गया है।
    जोनजिलों की संख्याजिले
    Zone II07रांची, लोहरदगा, खूंटी, रामगढ़, गुमला, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम
    Zone III15पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा, हजारीबाग, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, कोडरमा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, गोड्डा, पाकुड़, साहिबगंज
    Zone IV02गोड्डा और साहिबगंज के उत्तरी हिस्से

    यह वर्गीकरण कई प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछा जा चुका है।

    झारखंड में बाढ़

    • 11 जिले बाढ़ प्रवण हैं: साहिबगंज, गोड्डा, पाकुड़, दुमका, धनबाद, देवघर, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, हजारीबाग, पलामू, गढ़वा, लातेहार (सोन और उत्तर कोयल नदियों के जलस्तर में वृद्धि के कारण)।
    • मुख्य कारण: मानसूनी वर्षा से नदियों में जल स्तर का बढ़ना।

    प्रभाव:

    • धान की फसल को नुकसान और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव।
    • घरों, सड़कों, पुलों का विनाश
    • परिवहन ठप और जलजनित बीमारियों का प्रसार, विशेषकर रांची और जमशेदपुर में।

    झारखंड में सूखा

    वर्षा की कमी के आधार पर श्रेणीबद्ध किया गया है:

    • सामान्य सूखा: 25% कम वर्षा
    • मध्यम सूखा: 25–50% कम
    • गंभीर सूखा: >50% कम
    • विनाशकारी सूखा: सामान्य वर्षा का <75%

    प्रभावित क्षेत्र: उत्तर-पश्चिम झारखंड — विशेष रूप से पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा, लोहरदगा
    पलामू: झारखंड का सबसे सूखा-प्रवण जिला
    2010 में 24 में से 12 जिले गंभीर रूप से प्रभावित हुए (महत्वपूर्ण परीक्षा तथ्य)

    निवारण उपाय:

    • बांध, तालाब, डोबा और वॉटरशेड निर्माण
    • फसल योजना, मृदा संरक्षण, वनीकरण
    • स्थानीयों के बीच प्रशिक्षण और जागरूकता

    आकाशीय बिजली (ताड़ित)

    • वर्षा के दौरान बिजली गिरने से हर साल मानव और पशुधन की मौतें होती हैं
    • प्रमुख प्रभावित जिले: पलामू, चतरा, लातेहार, गुमला, रांची, गिरिडीह, कोडरमा

    सुरक्षा प्रशिक्षण (श्रीकृष्ण प्रशासन संस्थान द्वारा तैयार):

    • तूफान के दौरान घर के अंदर रहें
    • पेड़ों, पोल और खुले क्षेत्रों से बचें

    खनन दुर्घटनाएँ

    • झारखंड में भारत के 40% खनिज भंडार हैं
    • खनन राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है, परंतु निम्न आपदाओं का कारण बनता है:
      • खदान धंसना
      • श्रमिकों का फँसना
      • प्रदूषण से स्वास्थ्य समस्याएं
      • झरिया और रामगढ़ में कोयले की आग

    रोकथाम उपाय:

    • खनिकों का प्रशिक्षण
    • आपातकालीन त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली
    • मास्क जैसे सुरक्षा उपकरणों का उपयोग
    • व्यावसायिक खतरों पर जागरूकता अभियान

    जंगल की आग

    • झारखंड के सूखे पर्णपाती जंगल गर्मी में अग्नि प्रवण होते हैं
    • कारण:
      • तेज़ हवा में सूखी लकड़ियों का रगड़ना
      • महुआ संग्रह के लिए स्थानीयों द्वारा आग का प्रयोग
      • पर्यटकों की लापरवाही (जली हुई तीली फेंकना)
    • उच्चतम आग की घटनाएँ मार्च–अप्रैल में होती हैं

    प्रमुख प्रभावित क्षेत्र: पलामू, लातेहार, गढ़वा, चतरा, हजारीबाग, सिमडेगा, गुमला

    रोकथाम रणनीति:

    • पर्यटन पर कड़े नियम और जुर्माना
    • आग बुझाकर जंगल से लौटने की चेतना
    • पुराने पेड़ों की कटाई, नए वृक्षारोपण
    • वॉच टावर और जंगल सड़कों का निर्माण

    हाथियों का हमला

    • हाथी झारखंड का राज्य पशु है
    • मुख्य निवास स्थान: पलामू, दुमका, सारंडा (पश्चिमी सिंहभूम), हजारीबाग, दलमा वन
    • मानव बस्तियों और फसलों पर बार-बार हमले होते हैं
    • यह एक गंभीर मानव-वन्यजीव संघर्ष बन चुका है

    मुख्य कारण:

    • प्राकृतिक आवासों में मानवीय हस्तक्षेप और वनों की कटाई
    • महुआ फूल की सुगंध से आकर्षण

    अधिक प्रभावित जिले: खूंटी, सिमडेगा, गुमला, लातेहार, पलामू, चतरा, हजारीबाग

    निवारण व सामुदायिक प्रतिक्रिया:

    • जागरूकता अभियान
    • हाथियों को भगाने के सामान्य उपाय:
      • ड्रम बजाना और तेज़ आवाजें करना
      • आग जलाना
      • मिर्ची धुएं का प्रयोग

    झारखंड में आपदा प्रबंधन प्रणाली

    आपदा प्रबंधन को तीन चरणों में विभाजित किया गया है:

    1. पूर्व-आपदा तैयारी:

    • योजना, शमन, रोकथाम
    • आपदा की प्रकृति और स्तर की समझ
    • पूर्व चेतावनी प्रणाली
    • जनजागरूकता फैलाना

    2. आपदा के समय:

    • बचाव कार्य, लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाना
    • खाद्य, पानी, दवाइयाँ, कपड़े जैसी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति

    3. आपदा के बाद पुनर्प्राप्ति:

    • प्रभावित लोगों का पुनर्वास
    • नष्ट हुई संरचनाओं का पुनर्निर्माण
    • सामान्य जीवन की बहाली

    मुख्य परीक्षा बिंदु (Key Exam Highlights)

    • पलामू: सबसे सूखा और आकाशीय बिजली प्रभावित जिला
    • 2010: 12 जिले गंभीर सूखे से प्रभावित
    • Zone II, III, IV: झारखंड के भूकंप संवेदनशील क्षेत्र
    • झरिया और रामगढ़: कोयले की आग के लिए प्रसिद्ध
    • मार्च–अप्रैल: जंगल की आग का चरम समय
    • हाथी हमला: मानव-हस्तक्षेप और महुआ मुख्य कारण

    आपदा प्रबंधन हेतु संस्थागत ढांचा

    राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) — अध्यक्षता करते हैं प्रधानमंत्री

    राज्य स्तर पर (At the State Level)

    झारखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (JSDMA)

    • स्थापना तिथि: 28 मई 2010
    • गठन: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 14(1) के तहत
    • अध्यक्ष: झारखंड के मुख्यमंत्री
    • सदस्य संख्या: अधिकतम 9 सदस्य

    JSDMA के प्रमुख उद्देश्य

    • बहु-स्तरीय आपदा प्रतिक्रिया की योजना एवं रणनीति बनाना
    • पुनर्निर्माण एवं पुनर्वास हेतु परियोजनाओं का निर्माण
    • राज्य, जिला, प्रखंड और पंचायत स्तर पर अवसंरचना और संचार नेटवर्क का विकास
    • GIS (भौगोलिक सूचना प्रणाली) का उपयोग कर आपदा न्यूनीकरण
    • जनजागरूकता को बढ़ावा देना, दिशा-निर्देश जारी करना एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना

    झारखंड आपदा प्रबंधन योजना (2009)

    • आपदा प्रबंधन विभाग की स्थापना: अक्टूबर 2004
    • प्राथमिक उद्देश्य: आपदा से प्रभावित लोगों को त्वरित राहत देना

    राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (State Disaster Response Fund)

    • वित्तीय हिस्सेदारी: 75% केंद्र सरकार, 25% राज्य सरकार
    • सभी जिलों में आपातकालीन संचालन केंद्र (EOCs) की स्थापना — NDMA के अंतर्गत
    • V-SAT (उपग्रह संचार) से रीयल-टाइम समन्वय सुनिश्चित किया गया

    राष्ट्रीय एवं राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF & SDRF)

    • NDRF की स्थापना: 2006 — राष्ट्रीय स्तर पर बचाव एवं राहत कार्यों हेतु
    • SDRF — राज्य स्तर पर त्वरित तैनाती के लिए गठित
    • प्रशिक्षण प्रदाता संस्था: श्रीकृष्ण लोक प्रशासन संस्थान (SKIPA), रांची — 2005 से
    • ‘स्कूल सुरक्षा कार्यक्रम’: 2015 में प्रारंभ — राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के सहयोग से

    तकनीकी सहयोग (Technology Support)

    झारखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (JSAC)

    • आपदा के दौरान रिमोट सेंसिंग एवं मैपिंग सूचना प्रदान करता है

    आपदा ज्ञान-कम-प्रदर्शन केंद्र (‘सृजन’)

    • विभिन्न आपदाओं पर जनजागरूकता फैलाना
    • नई तकनीकों एवं उपकरणों से आमजन को परिचित कराना
    • फोकस क्षेत्र: बाढ़, सूखा, खनन दुर्घटनाएं, वनाग्नि, आदि

    झारखंड की आपदा संबंधित प्रमुख संस्थाएं

    आपदा प्रकारसंबंधित संस्थान
    सूखाबिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची
    खनन दुर्घटनाएंइंडियन स्कूल ऑफ माइंस, धनबाद
    भूकंपबिट (BIT), मेसरा
    बाढ़, सूखा, वनाग्निJSAC, रांची
    औद्योगिक आपदाएंमेकॉन (MECON), रांची
    जनजागरूकता‘सृजन’ नॉलेज सेंटर

    जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMAs)

    • सभी 24 जिलों में गठित
    • अध्यक्ष: जिला दंडाधिकारी / उपायुक्त
    • सदस्य:
      • मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी
      • जल एवं सिंचाई विभागों के प्रमुख अभियंता
      • पशुपालन अधिकारी
      • NGO प्रतिनिधि

    प्रमुख कार्य:

    • जिला स्तर की आपदा योजनाओं का निर्माण
    • आपदा प्रतिक्रिया दलों का प्रशिक्षण समन्वय
    • आपदा न्यूनीकरण पर जनजागरूकता बढ़ाना

    प्रखंड एवं ग्राम स्तर पर आपदा प्रबंधन

    प्रखंड स्तर (Block Level)

    • अध्यक्ष: प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO)
    • सदस्य: स्वास्थ्य अधिकारी, अग्निशमन सेवा, NGOs, स्थानीय नेता
    • कार्य: मॉक ड्रिल, स्थानीय योजना बनाना

    ग्राम स्तर (Village Level)

    • अध्यक्ष: ग्राम सभा के मुखिया
    • उत्तरदायित्व:
      • ग्राम-स्तरीय आपदा योजना तैयार करना और लागू करना
      • प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण के माध्यम से जागरूकता फैलाना

    झारखंड के आपदा-प्रवण क्षेत्र (Disaster-Vulnerable Zones)

    आपदा प्रकारप्रभावित जिले / क्षेत्र
    भूकंप
    • Zone II – रांची, खूंटी, रामगढ़, लोहरदगा, गुमला, पूर्व व पश्चिम सिंहभूम (7 जिले)
    • Zone III – पलामू, चतरा, हजारीबाग, धनबाद, गिरिडीह आदि (15 जिले)
    • Zone IV – गोड्डा व साहिबगंज का उत्तरी भाग (2 जिले)
      | सूखा | सभी 24 जिले; गंभीर रूप से प्रभावित – गढ़वा, पलामू, चतरा, सिमडेगा आदि
      | बाढ़ | प्रमुख जिले – पूर्व व पश्चिम सिंहभूम, रांची, कोडरमा, धनबाद, दुमका
      | आकाशीय बिजली | सभी जिले प्रभावित; विशेष रूप से – चतरा, पलामू, सिमडेगा, गुमला आदि
      | वनाग्नि | गढ़वा, पलामू, चतरा, गुमला, सिंहभूम, सिमडेगा आदि
      | खनन आपदाएं | धनबाद, बोकारो, रामगढ़, रांची, हजारीबाग, पूर्वी सिंहभूम आदि
      | औद्योगिक आपदाएं | रांची, हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, रामगढ़, गिरिडीह
      | चक्रवात | पूर्वी जिले – सिंहभूम, रांची, सिमडेगा आदि
      | शीत लहर | सभी 24 जिले प्रभावित
      | आगजनी घटनाएं | सभी जिलों में रिपोर्ट की गईं
      | भीड़ दुर्घटनाएं | देवघर (विशेष रूप से तीर्थ के दौरान)

    परीक्षा के लिए मुख्य बिंदु (Key Exam Highlights):

    • JSDMA का गठन: 2010
    • वित्तीय सहायता अनुपात: केंद्र 75%, राज्य 25%
    • प्रशिक्षण संस्था: SKIPA, रांची
    • GIS आधारित योजना: JSAC
    • ‘सृजन’ केंद्र: आपदा जागरूकता हेतु
    • भूकंप जोन: II, III, IV
    • प्रत्येक जिले में DDMAs
    • ग्राम स्तर पर मुखिया द्वारा योजना क्रियान्वयन


    Also read in English: https://jharkhandexam.in/jharkhand-disaster-management-system-key-environmental-challenges-explained/

  • झारखंड की लोकनृत्य और लोकनाट्य परंपरा – 2025 परीक्षाओं के लिए सम्पूर्ण मार्गदर्शिका

    झारखंड की जनजातीय और लोक परंपराएं इसकी गहराई से जुड़ी सांस्कृतिक पहचान की जीवंत गवाही देती हैं, जहाँ प्रत्येक नृत्य, गीत और प्रस्तुति भूमि और लोगों की कहानी कहती है। यह सम्पूर्ण गाइड झारखंड की विविध लोकनृत्य शैलियों और जीवंत लोकनाट्य रूपों जैसे डोडोंग, तुमगो, फिरकल और सोहराय नृत्य तथा जात-जटिन, समा-चकेवा और डोमकच जैसे समृद्ध लोकनाटकों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करता है। ये कला रूप धार्मिक त्योहारों, विवाह समारोहों और मौसमी उत्सवों से जुड़ी सामाजिक और धार्मिक महत्ता रखते हैं। यह ब्लॉग इनके प्रमुख विशेषताओं, प्रदर्शन शैली, शामिल समुदायों और पारंपरिक अवसरों को सरल भाषा में समझाते हुए JPSC, JSSC और UPSC जैसी परीक्षाओं में पूछे गए महत्वपूर्ण तथ्यों को भी उजागर करता है। यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं या झारखंड की सांस्कृतिक आत्मा को समझना चाहते हैं, तो यह ब्लॉग आपके लिए 2025 और उससे आगे तक का सम्पूर्ण स्रोत है।

    झारखंड के लोकगीत

    मुंडा जनजाति के लोकगीत

    • दोड़ – विवाह से संबंधित लोकगीत
    • वीर सेरेन – जंगलों से संबंधित गीत
    • सोहराय लगड़े, मिंसर, बहा, दसाय, पतवार, रिजा, डाटा, धार, मतवार, भींसर, गोलवारी, धरुमजक, रिंझो, झीका – विभिन्न मौसमी एवं धार्मिक अवसरों से संबंधित
    • जादुर – सरहुल/बाहा पर्व पर गाया जाने वाला
    • गेना और ओरा जादुर – जादुर गीत के पूरक
    • अदांदी – एक और विवाह गीत
    • जापी – शिकार से संबंधित गीत
    • जार्गा, कर्मा – जनजातीय अनुष्ठानों से जुड़ा

    उरांव जनजाति के लोकगीत

    • वा – बसंत ऋतु का लोकगीत
    • हैरो – धान की बुआई के समय
    • नोमनामा – नया अन्न खाने के समय
    • सरहुल – वसंत गीत
    • जात्रा – सरहुल के बाद
    • कर्मा – जात्रा के बाद
    • अन्य प्रमुख गीत: धूरिया, असाढ़ी, जदुरा, माथा

    विशेष अवसरों के लोकगीत

    • झांझैन – जन्म संस्कार के समय महिलाएं गाती हैं
    • दईधारा – वर्षा ऋतु में देवस्थलों पर गाया जाता है
    • प्रताकली – सुबह-सुबह गाया जाता है
    • अधर्तिया – मध्यरात्रि में गाया जाता है
    • कजली – वर्षा ऋतु का गीत
    • अंडी – विवाह में महिलाएं गाती हैं
    • अंगाई – केवल महिलाएं गाती हैं
    • मार – जितिया, सोहराय, कर्मा जैसे पर्वों में शुमरा राग में
    • उदासी और पावस
      • उदासी – गर्मी में
      • पावस – वर्षा ऋतु के प्रारंभ में
    • तुनमुनिया, बारहमासा, झलागीत – कजली शैली से संबंधित

    महत्वपूर्ण: कजली, अंडी, उदासी, पावस से जुड़े प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में कई बार पूछे गए हैं।

    झारखंड के लोकनृत्य

    छऊ नृत्य – झारखंड का सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य

    • शब्दार्थ: छाया
    • उत्पत्ति: सरायकेला (झारखंड), बाद में मयूरभंज (ओडिशा) और पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) में फैला
    • पहली अंतरराष्ट्रीय प्रस्तुति: 1938 में सुदेन्द्र नारायण सिंह द्वारा
    • गांधी जी के समक्ष प्रदर्शन: 1941
    • प्रदर्शन शैली: केवल पुरुष, उर्जावान नृत्य
    • प्रमुख शैलियाँ:
      • सरायकेला छऊ – झारखंड (सबसे प्राचीन)
      • मयूरभंज छऊ – ओडिशा
      • पुरुलिया छऊ – पश्चिम बंगाल

    मुख्य विशेषताएं:

    • मास्क का प्रयोग (मयूरभंज को छोड़कर)
    • पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं का चित्रण
    • कथा, भावना और मार्शल कला का मिश्रण
    • सरायकेला और मयूरभंज – तांडव + लास्य
    • पुरुलिया – केवल तांडव
    • शस्त्र और वाद्ययंत्रों में वीर रस
    • संवाद नहीं – केवल पृष्ठभूमि संगीत
    • प्रारंभ – भैरव वंदना (शिव प्रार्थना)
    • गुरु की उपस्थिति अनिवार्य

    युनेस्को मान्यता:

    • 2010UNESCO अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल
    • 2022 – प्रभात कुमार महतो द्वारा IPL समापन समारोह (अहमदाबाद) में प्रदर्शन

    प्रमुख छऊ केंद्र (झारखंड):

    केंद्रस्थानस्थापना वर्ष
    सरायकेला छऊ केंद्रसरायकेला1960
    नटराज कला केंद्रचौगा, इचागढ़, सरायकेला-खरसावां2004
    मानभूम छऊ केंद्रसिल्ली2011

    प्रसिद्ध छऊ गुरु एवं पुरस्कार:

    नामपुरस्कार वर्ष
    सुदेन्द्र नारायण सिंह1991
    केदारनाथ साहू2005
    श्यामचरण पाटी2006
    मंगलाचरण मोहंती2009
    मकरध्वज दरोगा2011
    पं. गोपाल प्रसाद दुबे2012
    गुरु शशधर आचार्य2020

    जादुर नृत्य (नीर सुसांको) – उरांव जनजाति का प्रमुख नृत्य

    • अवसर: फाल्गुन में कोलम सिंग-बोंगा उत्सव के बाद शुरू होकर चैत्र के सरहुल तक
    • भावना: उत्पादकता, ऊर्जा, मातृभूमि के प्रति सम्मान
    • प्रकार: सह-नृत्य (महिला-पुरुष दोनों), गोल घेरे में
    • महिलाएं ताल और धुन के साथ वृत्ताकार भागती हैं

    जापी नृत्य

    • भावना: शिकार से विजयी लौटने का प्रतीक
    • अवसर: सरहुल (चैत्र) से आशाढ़ी पर्व (आषाढ़) तक
    • प्रकार: मध्यम गति, सह-नृत्य
    • महिलाएं – एक-दूसरे की कमर पकड़कर नाचती हैं
    • पुरुष – गायक व वादक के रूप में घेरे में रहते हैं

    सारांश और परीक्षा बिंदु

    • छऊ नृत्य – सबसे महत्वपूर्ण; अंतरराष्ट्रीय मान्यता; UNESCO 2010
    • जादुर और जापी नृत्य – उरांव जनजाति के मुख्य नृत्य
    • कजली, उदासी, पावस, अंडी – प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार पूछे गए
    • लोकगीत – कृषि, विवाह, शिकार, त्योहार और सामाजिक अनुष्ठानों से संबंधित
    • छऊ नृत्य के गुरु – 1991 से 2020 तक सम्मानित
    • छऊ की विशेषता – नृत्य, कथा, भावना और युद्ध कला का संगम

    करमा / लहुसा नृत्य

    • भागीदारी: 8 पुरुष और 8 महिलाएं
    • अवसर: करमा पर्व
    • शैली: झुककर नृत्य करते हैं; पुरुष और महिलाएं आमने-सामने होकर आगे-पीछे झूमते हैं
    • गीत: लहुसा गीतों पर आधारित
    • प्रकार: दो – खेमता और भीनुसारी

    बुरू नृत्य

    • स्वरूप: जादुर और करमा नृत्य का मिश्रण
    • अवसर: मागे और गेना पर्वों के समान

    पैका नृत्य

    • शब्दार्थ: पैका = पैदल सैनिक
    • स्वभाव: वीरता और युद्ध शैली
    • पोशाक: तलवार, ढाल, रंगीन कलगी या मोरपंख की सजावट
    • प्रकार: युद्ध नृत्य; गीत रहित
    • विशेषता: युद्ध कौशल का प्रदर्शन
    • प्रदर्शन: केवल पुरुष; जोड़े में – 5, 7 या 9
    • समुदाय: आदिवासी और सदान दोनों
    • जनजाति: विशेष रूप से मुंडा जनजाति
    • मान्यता:
      • 1987 – भारत उत्सव (रूस) में डॉ. रामदयाल मुंडा के नेतृत्व में प्रदर्शन
    • प्रसिद्ध कलाकार: शिवशंकर महतो, रामप्रसाद महली, अशोक कच्छप

    जातरा नृत्य (Jatra Nritya)

    • समुदाय: उराँव जनजाति
    • रचना: पुरुष और महिलाएँ हाथ पकड़कर वृत्ताकार/अर्धवृत्ताकार पंक्ति में
    • महत्व: सामाजिक मेलजोल व उत्सव का प्रतीक
      परीक्षा बिंदु: उराँव जनजाति का पारंपरिक समूह नृत्य

    नतुआ नृत्य (Natua Nritya)

    • प्रकृति: पुरुष प्रधान
    • वेशभूषा: पुरुष स्त्री वेश में
    • अवसर: मेलों, उत्सवों में हास्य-रस हेतु
      मुख्य विशेषता: स्त्रीवेश में पुरुष कलाकार

    नाचनी नृत्य (Nachni Nritya)

    • प्रकार: पेशेवर लोकनृत्य
    • जोड़ी: महिला नाचनी और पुरुष रसिक
    • अवसर: कार्तिक पूर्णिमा, मेले
    • कला स्वरूप: संगीत, अभिनय, नृत्य का समावेश

    काली नृत्य (Kaali Nritya)

    • मुख्य भूमिका: महिला नर्तकी (काली)
    • सजावट: मुकुट, आभूषण
    • विषय: राधा-कृष्ण प्रेम प्रसंग
    • वाद्ययंत्र: नगाड़ा, ढाक, शहनाई
      महत्व: स्त्री सौंदर्य व प्रेम का प्रतीकात्मक नृत्य

    अग्नि नृत्य (Agni Nritya)

    • प्रकृति: धार्मिक अनुष्ठानिक
    • अवसर: मंडा या बीपू पूजा
    • उद्देश्य: ‘शील’ देवता की आराधना
      परीक्षा बिंदु: ‘शील’ देवता की पूजा हेतु किया जाने वाला नृत्य

    मंडा / भगतिया नृत्य (Manda / Bhgatiya Nritya)

    • लिंग: केवल पुरुष
    • अवसर: शिव पूजा अवसर
    • अनुष्ठान: महिलाएँ जल लाकर नर्तकों को शुद्ध करती हैं
    • वाद्ययंत्र: ढाक, शहनाई, नगाड़ा
      विशेषता: सात्विक भावना और भक्ति भाव से किया जाने वाला नृत्य

    झूमर नृत्य (Jhumar Nritya)

    • प्रकृति: महिला प्रधान, वृत्तीय शैली
    • अवसर: फसल कटाई, त्योहार, विवाह
    • प्रमुख रूप:
      • करिया झूमर (हाथ पकड़कर)
      • उधुआ झूमर (भावपूर्ण)
      • रसकी झूमर (तेज गति)
      • अध रातिया झूमर (रात्रि)
      • भिनसरिया झूमर (प्रभात)

    मर्दानी झूमर नृत्य

    • प्रकृति: पुरुष प्रधान
    • विशेषता: वीरता व शक्ति प्रदर्शित
    • गति: तीव्र, सामूहिक लय

    अंगनई नृत्य (Angnai Nritya)

    • समुदाय: सदान महिलाएँ
    • अवसर: करमा व जितिया
    • प्रकार: महिला प्रधान समूह नृत्य
      परीक्षा बिंदु: करमा व जितिया पर किया जाने वाला महिला प्रधान नृत्य

    लुहारी / लुहकुआ नृत्य

    • प्रकृति: झूलन गति वाली शैली
    • सामान्य रूप: अंगनई नृत्य की एक शैली
    • भागीदारी: दोनों लिंग

    ददरा धारा नृत्य

    • प्रकृति: पुरुष प्रधान
    • शैली: कमर पकड़कर पंक्ति में नृत्य
    • विशेषता: तेज गति और सामूहिक समन्वय

    कठोरवा नृत्य

    • प्रकृति: पुरुष प्रधान
    • विशेषता: मुखौटे पहनकर प्रदर्शन
      परीक्षा बिंदु: पारंपरिक मुखौटों के प्रयोग वाला नृत्य

    जनजातीय विशिष्ट नृत्य

    मुंडा जनजाति

    • प्रमुख नृत्य:
      • गेना नृत्य (विजय पर आधारित)
      • जापी नृत्य (शिकार उत्सव)
      • चिटिड नृत्य (पूजा)
      • जादुर, बारू, छव आदि

    संथाल जनजाति

    • लंगड़े नृत्य: हर्ष व उल्लास
    • बाहा नृत्य: सरहुल में, साल-महुआ फूलों के साथ
    • दाहर नृत्य: मागह बोंगा पर्व
    • दसाइन नृत्य: दशहरा के समय, पुरुष स्त्रीवेश में

    हो जनजाति

    • गऊंग नृत्य: समुदायिक पर्वों में
    • मागे नृत्य: मागह पूर्णिमा, सामूहिक
    • बा नृत्य: सरहुल पर्व

    अन्य प्रमुख नृत्य

    डोमकच नृत्य

    • अवसर: विवाह
    • प्रकृति: महिला प्रधान, गायक-उत्तर शैली
    • वाद्ययंत्र: मादर, शहनाई, थेचुका आदि
      विशेषता: विवाह के अवसर पर नृत्य-गीत का संगम

    घोड़ा नृत्य

    • अवसर: मेले, बारात
    • प्रदर्शन: बांस के घोड़े पर
    • प्रसिद्ध कलाकार: दुर्गानाथ राय (नगड़ी)
      परीक्षा बिंदु: नकली घोड़े और तलवार के साथ किया जाने वाला युद्ध रूपक नृत्य

    सोहराय नृत्य

    • अवसर: दीपावली के अगले दिन
    • उद्देश्य: पालतू पशुओं की रक्षा व सम्मान
      विशेषता: पशुओं की भलाई के लिए समर्पित नृत्य

    निष्कर्ष: परीक्षा हेतु अति महत्वपूर्ण बिंदु

    नृत्यसमुदाय/अवसरमुख्य विशेषता
    पैकामुंडायुद्ध शैली, तलवार-ढाल
    झूमरसभीमहिला प्रधान, फसल उत्सव
    डोमकचसदानविवाह में, गीतों के साथ
    घोड़ासभीघोड़े के आकार में युद्ध शैली
    दसाइनसंथालदशहरा, स्त्रीवेश
    मंडाउराँवभक्ति गीत, शिव पूजा

    काली नृत्य

    • केवल महिलाएँ इस नृत्य में भाग लेती हैं।
    • नृत्य करते समय श्रृंगार व मुकुट पहनती हैं।
    • राधा-कृष्ण की प्रेम-लीला पर आधारित।
    • इसे नाचनी-खेलाड़ी नृत्य भी कहते हैं।

    दोहा (दरम-दह) नृत्य

    • संथाल जनजाति का पारंपरिक नृत्य।
    • शादी के अवसर पर दुल्हा-दुल्हन दोनों के घर में किया जाता है।
    • इसे दरम-दह नृत्य भी कहा जाता है।

    डोंगेड नृत्य

    • संथाल जनजाति के पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
    • सामूहिक शिकार के दौरान जंगल में किया जाता है।
    • वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है।

    संकतुल्य संशय नृत्य

    • दशहरा पर गुरुगृह (आश्रम) में किया जाता है।
    • मंत्र विद्या व तांत्रिक परंपरा से जुड़ा है।
    • पुरुष स्त्री वेशभूषा में नृत्य करते हैं।
    • वाद्य: आग, नगाड़ा, डांक, बांसुरी, तुरही, बनाम।

    दोसामी नृत्य

    • अगहन माह में जाहेरथान (पवित्र स्थल) पर किया जाता है।
    • वाद्य: मंदर, नगाड़ा, तमाक, घंटी।
    • लंगरे गीत इस दौरान गाया जाता है।

    सकरात नृत्य

    • संथाल जनजाति में प्रचलित।
    • पौष माह में दरवाजे की चौखट पूजन के बाद किया जाता है।
    • पुरुष और महिलाएँ दोनों भाग लेते हैं।

    हल्का नृत्य

    • पुरुष व महिलाएँ अलग-अलग समूहों में नृत्य करते हैं।
    • गायन और नृत्य एक साथ होता है।
    • अंत में नर्तक ज़ोर से पाँव पटकते हैं।
    • ‘पाड़ गीत’ गाया जाता है।
    • दूसरा समूह पहले समूह के बाद ही नृत्य करता है।

    दोयर नृत्य

    • हल्का नृत्य का एक प्रकार।
    • नर्तक कंधों पर लकड़ी का डंडा रखते हैं।
    • नाग-शैली में आगे बढ़ते हुए नृत्य करते हैं।

    फगुआ नृत्य

    • फाल्गुन-चैत्र संधि काल का पुरुष प्रधान नृत्य।
    • होली व बसंत उत्सव के दौरान किया जाता है।
    • वाद्य: शहनाई, बांसुरी, मुरली, ढोल, नगाड़ा, करहा, डांक, मंदर।

    प्रकार:

    • पंचरंगी फगुआ: प्रत्येक अंतरे में राग बदलता है।
    • फगुआ पुच्छरी: दो दलों द्वारा प्रश्नोत्तरी शैली में गीत गाए जाते हैं।

    कड़सा नृत्य

    • कलश उठाकर महिलाएँ नृत्य करती हैं।
    • पुरुष केवल वाद्य बजाते हैं।
    • स्वागत व त्योहारों के अवसर पर किया जाता है।

    मैतकोध व पादकाटना नृत्य

    • विवाह से पूर्व की रस्मों (मिट्टी खोदना, पानी भरना) पर आधारित।
    • दो महिलाएँ एक-दूसरे की कमर पकड़कर नृत्य करती हैं।
    • केवल वाद्य बजते हैं, कोई गीत नहीं गाया जाता।

    हरियो नृत्य

    • युवा समूहों (यात्रा दल) द्वारा किया जाता है।
    • पुरुष-महिला मिलकर तेज़ गति से गोल घूमते हुए नृत्य करते हैं।

    किनभार नृत्य

    • फाल्गुन से बैसाख तक किया जाता है।
    • घर के आंगन में होता है।
    • नर्तक “हो हरे हारे रे” कहते हुए नृत्य करते हैं।

    जेठ लहसूआ नृत्य

    • जेठ माह की रातों में अखड़ा मैदान पर किया जाता है।
    • खासकर खड़िया जनजाति के युवा (स्त्री-पुरुष) इसमें भाग लेते हैं।

    फग्गू खड़ी नृत्य

    • सरहुल की प्रतीक्षा में फाल्गुन से शुरू होता है।
    • “हुुर्रे” ध्वनि के साथ समाप्त होता है।

    परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रमुख लोकनृत्य

    • टुसू नृत्य
    • रास नृत्य
    • धुरिया नृत्य
    • दोहा (दरम-दह) नृत्य
    • फगुआ नृत्य
    • कड़सा नृत्य
    • संकतुल्य संशय नृत्य
    • दोसामी नृत्य
    • सकरात नृत्य
    • जेठ लहसूआ नृत्य
    • फग्गू खड़ी नृत्य

    अन्य प्रमुख लोकनृत्य

    डोडोंग नृत्य (जवीरा नृत्य)

    • दो कतारों में खड़े होकर किया जाता है।
    • जादुर नृत्य का एक प्रकार है।
    • मुंडा और सदान समुदाय में प्रचलित।
    • वाद्य: मंदर
    • खेल लझर लझर” का जाप होता है।
    • परीक्षा हेतु अति महत्वपूर्ण।

    टुमगो नृत्य

    • करमा त्योहार के बाद किया जाता है।
    • सभी आयु वर्ग भाग लेते हैं।
    • वाद्य: मंदर
    • “चल हारे हारे” कहते हुए कंधे पकड़कर आगे बढ़ते हैं।

    फिरकल नृत्य

    • झारखंड का ‘कलारिपयट्टू’ नृत्य। (परीक्षा उपयोगी तथ्य)
    • केरल की युद्ध कला से प्रेरित।
    • जमशेदपुर के जनुमदीह क्षेत्र में किया जाता है।
    • भूमिज समुदाय द्वारा किया जाता है।
    • अब यह नृत्य पुनर्जीवन की स्थिति में है।

    सोहराय नृत्य

    • गोषाला (पशुशाला) पूजन से जुड़ा नृत्य।
    • पुरुष “गांव जमाव” और महिलाएँ “चुमावड़ी” गीत गाती हैं।
    • जनुमदीह (जमशेदपुर) में भी प्रचलित।
    • भूमिज समुदाय की सांस्कृतिक शान।

    प्रमुख नृत्यों से संबंधित माह / पर्व

    नृत्यमाह / पर्व
    जादुर नृत्यफागुन से चैत्र (सरहुल)
    जापी नृत्यचैत्र से आषाढ़
    करमा नृत्यआषाढ़ से भादों, कार्तिक
    सोहराय नृत्यकार्तिक
    माघ पर्वकार्तिक से फागुन

    प्रदर्शक के आधार पर लोकनृत्य का वर्गीकरण

    पुरुष प्रधान नृत्य

    • चद, पैका, नटुआ, फिरकल, कठोरबा, मरदानी झुमर, दसई, दैंढ़ारा, दसाय, मंड़ा, फगुआ, हुंटा, रास

    महिला प्रधान नृत्य

    • उमकच, अंगनाई, करिया, जननी झुमर, दुश, काली, गेना, जार्गा

    स्त्री-पुरुष संयुक्त नृत्य

    • जोमनामा मागे, नाचनी, सकराव, करमा/राया, हीरो, हरियो, हल्का, जात्रा, जापी, जादुर, ठाढ़िया

    झारखंड के प्रमुख लोकनाट्य

    1. जात-जटिन

    • श्रावण से कार्तिक माह के बीच खेला जाता है।
    • अविवाहित लड़कियाँ अभिनय करती हैं।
    • जात व जटिन के दाम्पत्य जीवन की कहानी पर आधारित।
    • परीक्षा में बार-बार पूछा जाता है।

    2. भकुली-बंका

    • श्रावण से कार्तिक तक प्रदर्शित।
    • जात-जटिन के साथ प्रदर्शित किया जाता है।
    • भकुली (पत्नी) व बांका (पति) के संबंधों को दर्शाता है।

    3. सामा-चकेवा

    • कार्तिक शुक्ल सप्तमी से पूर्णिमा तक खेला जाता है।
    • मिट्टी की मूर्तियों के माध्यम से युवा लड़कियाँ अभिनय करती हैं।

    मुख्य पात्र:

    • सामा (नायिका), चकेवा (नायक), चुगला (खलनायक), सांबा (सामा का भाई)
    • भाई-बहन के पवित्र संबंध पर आधारित।
    • प्रश्नोत्तर शैली में समूह गीतों के माध्यम से प्रस्तुत।

    4. डोमकच

    • स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला घर पर आधारित लोकनाट्य।
    • शादी व त्योहारों पर किया जाता है।
    • हास्य, व्यंग्य व अश्लील संवादों के लिए प्रसिद्ध।
    • सार्वजनिक रूप से नहीं खेला जाता, पुरुषों को देखना मना है।

    5. लोक

    • शादी या सामाजिक अवसरों पर रात्रिकालीन लोकनाट्य।

    6. कीर्तनिया

    • भगवान कृष्ण की लीलाओं को गीतों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।

    परीक्षा उपयोगी संक्षिप्त तथ्य

    • जवीरा (डोडोंग), फिरकल, सामा-चकेवा, जात-जटिन: बार-बार पूछे जाने वाले नाट्य।
    • भूमिज समुदाय: फिरकल व सोहराय नृत्य के लिए प्रसिद्ध।
    • मंदर वाद्य: डोडोंग, टुमगो जैसे अनेक नृत्यों में प्रयोग होता है।
    • डोमकच: महिला-केन्द्रित घरेलू लोकनाट्य – लैंगिक संस्कृति से संबंधित प्रश्नों में पूछा जाता है।