Tag: झारखंड में इको-टूरिज्म

  • “झारखंड की पर्यावरण, जलवायु कार्रवाई और वन नीतियों पर व्यापक मार्गदर्शिका”

    झारखंड, जो प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता से समृद्ध है, ने पिछले दशक में पर्यावरण संरक्षण और जलवायु लचीलापन की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। मुख्यमंत्री जन वन योजना (2015) जैसे प्रमुख नीतियों के शुभारंभ के साथ वनीकरण को बढ़ावा देना, ईको-पर्यटन नीति (2015) के ज़रिए सतत यात्रा को प्रोत्साहन देना, और वन अधिकार अधिनियम के लक्षित क्रियान्वयन द्वारा राज्य स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल कर रहा है। इसके अलावा, मनरेगा आधारित डोभा निर्माण जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं वर्षा जल संचयन के माध्यम से सूखे से निपटने का कार्य कर रही हैं, जबकि झारखंड राज्य जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठ जलवायु निगरानी और अनुकूलन पर काम कर रहा है।

    खूंटी और सिमडेगा जैसे आदिवासी जिलों में लाह उत्पादन को समर्थन देना और पीपीपी मॉडल के माध्यम से आधुनिक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाएं राज्य के एकीकृत पर्यावरणीय स्थिरता दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। इन प्रयासों को झारखंड अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (JREDA) और झारखंड ऊर्जा नीति 2012 के माध्यम से और बल मिलता है, जो सौर और पवन ऊर्जा की ओर स्थानांतरण पर बल देती है।

    कल्पतरु वृक्षों जैसे दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण और इग्नू के नेतृत्व में जलग्रहण प्रबंधन डिप्लोमा जैसे नवाचारात्मक अकादमिक सहयोग झारखंड को पर्यावरणीय रूप से जागरूक शासन प्रणाली के अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित करते हैं।

    यह ब्लॉग झारखंड की हरित नीतियों, सतत विकास लक्ष्यों, और जलवायु कार्रवाई पहलों का समग्र अवलोकन प्रस्तुत करता है, जो JPSC, JSSC, UPSC जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के इच्छुकों, शोधकर्ताओं और पर्यावरण प्रेमियों के लिए अत्यंत उपयोगी है।

    पर्यावरण क्या है?

    पर्यावरण वह परिवेश है जो जीवित (Biotic) और अजीव (Abiotic) घटकों से मिलकर बना होता है।

    • जीवित घटक: सूक्ष्मजीव, पौधे, जानवर और मनुष्य
    • अजीव घटक: वायु, जल, मृदा, पर्वत, पठार, चट्टानें और उनसे संबंधित प्रक्रियाएं

    पर्यावरण का वर्गीकरण:

    • प्राकृतिक पर्यावरण: प्रकृति द्वारा निर्मित (वायु, जल, मृदा, पौधे, जानवर)
    • सांस्कृतिक (मानव निर्मित) पर्यावरण: मानवीय गतिविधियों द्वारा परिवर्तित (उद्योग, कृषि, शहरीकरण, परिवहन)

    मुख्य चिंता का विषय: मानव का अनियंत्रित हस्तक्षेप ➤ प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि, प्राकृतिक आपदाएं
    ➡ इसके लिए तात्कालिक सुधारात्मक कार्यवाही आवश्यक

    पर्यावरणीय प्रदूषण

    परिभाषा: पर्यावरण में अवांछित पदार्थों (प्रदूषकों) का प्रवेश

    प्रदूषक ठोस, तरल, गैस, या ऊर्जा (ध्वनि, ऊष्मा, विकिरण) के रूप में हो सकते हैं।

    प्रदूषण के प्रकार:

    • वायु प्रदूषण
    • जल प्रदूषण
    • मृदा प्रदूषण
    • ध्वनि प्रदूषण
    • तापीय प्रदूषण

    वायु प्रदूषण

    परिभाषा: वायुमंडलीय गैसों की संरचना में असंतुलन, जो भौतिक, रासायनिक या जैविक कणों से होता है।

    मुख्य कारण:

    • वनों की अनियंत्रित कटाईऑक्सीजन में कमी, CO₂ में वृद्धि
    • उद्योगों और वाहनों से उत्सर्जन ➤ सल्फर ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, CFCs, CO, CO₂
    • खेती की दलदली भूमि से मीथेन उत्सर्जन ➤ एक मुख्य ग्रीनहाउस गैस

    ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक ऊष्मीकरण

    • सबसे अधिक उत्तरदायी गैस: कार्बन डाइऑक्साइड
    • अन्य गैसें: मीथेन, CFCs, HFCs, सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड
    • प्रभाव: पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ना ➤ वैश्विक ऊष्मीकरण

    वैश्विक ऊष्मीकरण के प्रभाव

    • वैश्विक तापमान में वृद्धि
    • आर्द्रता में वृद्धि
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता ➤ झारखंड में बंगाल की खाड़ी से आने वाले तूफानों से जान-माल की हानि
    • वर्षा पैटर्न में बदलाव (जैसे एल-नीनो प्रभाव) ➤ मानसून और कृषि पर नकारात्मक असर

    ओजोन क्षरण

    ओजोन परत UV किरणों को अवशोषित कर जीवन की रक्षा करती है।

    कारण: CFCs में वृद्धि ➤ ओजोन परत को नुकसान

    परिणाम:

    • अधिक UV विकिरण
    • वैश्विक ऊष्मीकरण में वृद्धि
    • प्रकाश संश्लेषण व पौधों की उत्पादकता पर प्रतिकूल असर
    • जीवों की आनुवांशिक संरचना को क्षति ➤ रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी
    • त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद, नेत्र रोगों में वृद्धि

    टिप्पणी: झारखंड के वनस्पति-समृद्ध क्षेत्र इस क्षरण से प्रभावित होते हैं ➤ जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ता है।

    अम्ल वर्षा (Acid Rain)

    कारण: जीवाश्म ईंधनों से उत्सर्जित सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड

    झारखंड-विशेष समस्याएं:

    • ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में ईंधन लकड़ी और कोयला का उपयोग ➤ जागरूकता की कमी
    • राज्य गठन के बाद वाहनों की संख्या में वृद्धि ➤ पेट्रोल और डीज़ल का उपयोग

    प्रभाव:

    • मृदा की अम्लता में वृद्धि ➤ उर्वरता में कमी
    • जल प्रदूषण ➤ जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान
    • ऐतिहासिक धरोहरों का रासायनिक क्षरण

    जल प्रदूषण

    परिभाषा: जल में घुलनशील या अघुलनशील पदार्थों की मात्रा बढ़ने से रंग, स्वाद, गुणवत्ता में परिवर्तन

    मुख्य कारण:

    • घरेलू कचरे का जल स्रोतों में फेंकना: मानव मल, प्लास्टिक, इत्यादि
    • औद्योगिक अपशिष्ट: रासायनिक, अम्ल, क्षार
    • कीटनाशक और उर्वरक वर्षा द्वारा नदियों में बह जाना

    प्रभाव:

    • पीने के पानी की गंदगी ➤ स्वास्थ्य खतरे
    • प्रदूषित जल भूमि में प्रवेश ➤ मृदा उर्वरता में कमी
    • जलीय जैव विविधता का नुकसान

    मृदा प्रदूषण

    परिभाषा: मृदा की भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में अवांछनीय परिवर्तन

    परिणाम:

    • मृदा की गुणवत्ता में कमी
    • पौधों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव
    • मानव और पशुओं के स्वास्थ्य पर असर
    • जैव विविधता में कमी

    मुख्य कारण:

    • प्लास्टिक थैलों का प्रयोग
    • अत्यधिक रसायन और कीटनाशकों का उपयोग
    • वनों की कटाई ➤ मृदा अपरदन
    • जल प्रदूषण

    🔸 परीक्षा बिंदु: जिन तथ्यों पर * चिह्न है, वे झारखंड में आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जा चुके हैं।

    झारखंड में मृदा की अम्लता

    • लगभग 10 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि अम्लीय, pH < 5.5
    • पूर्वोत्तर जिलों (धनबाद, गिरिडीह, हजारीबाग, बोकारो, जामताड़ा, रांची) की 50% से अधिक भूमि अम्लीय

    मृदा में पोषक तत्वों की कमी

    • फॉस्फोरस की कमी (80%): गुमला, सिमडेगा, पश्चिमी/पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां
    • सल्फर की कमी (60–80%): लोहरदगा, लातेहार, पूर्वी सिंहभूम
    • सल्फर की कमी (30–60%): रांची, गुमला, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां
    • सल्फर की कमी (5–30%): गढ़वा, देवघर, दुमका, साहिबगंज, गोड्डा आदि

    ध्वनि प्रदूषण

    परिभाषा: अवांछित ध्वनि जो जीवों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

    वैश्विक सुरक्षित सीमा:

    • दोपहर: 45 डेसीबल
    • रात्रि: 35 डेसीबल

    मुख्य कारण:

    • मानवजनित: उद्योग, परिवहन, मनोरंजन
    • प्राकृतिक: तूफान, वर्षा, बिजली, चक्रवात

    थर्मल प्रदूषण
    थर्मल और परमाणु संयंत्रों को ठंडा करने के लिए उपयोग किए गए गर्म पानी के निकासी से होता है।
    यह जलीय पारिस्थितिकी तंत्र और जानवरों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है।

    जलवायु परिवर्तन
    जलवायु में समय के साथ होने वाले परिवर्तनों को कहा जाता है, आमतौर पर इसे 15 वर्षों की अवधि में अध्ययन किया जाता है।
    यह अब जैवमंडल के अस्तित्व के लिए एक गंभीर वैश्विक समस्या बन चुका है।

    जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण

    • ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि
    • ओजोन-क्षयकारी पदार्थों में वृद्धि
    • अम्ल वर्षा के कारण प्रदूषकों में वृद्धि

    जलवायु परिवर्तन के परिणाम
    आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में:

    • आर्द्रता और वर्षा में वृद्धि
    • चक्रवातों की तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि
    • भारी वर्षा के कारण बाढ़

    शुष्क/अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में:

    • वाष्पीकरण दर में वृद्धि
    • जल स्रोतों की कमी के कारण सूखा जैसी स्थिति

    मध्यम अक्षांश क्षेत्रों में:

    • चक्रवातों की वृद्धि और बाढ़

    उच्च अक्षांश क्षेत्रों में:

    • हिमनद पिघलना, बाढ़ और समुद्र स्तर में वृद्धि

    वैश्विक जलवायु परिवर्तन पहलें

    • 1979: जिनेवा में पहला जलवायु सम्मेलन
    • 1985: ऑस्ट्रिया में वियना सम्मेलन (CFCs और मिथाइल ब्रोमाइड पर ध्यान)
    • 1987: कनाडा में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर – CFCs पर प्रतिबंध
      16 सितम्बर को विश्व ओजोन दिवस घोषित किया गया
    • 1992: ब्राजील के रियो डी जनेरियो में पृथ्वी सम्मेलन
      UNFCCC (संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन) का गठन
    • 1994: COP सम्मेलनों की शुरुआत
    • 1997: जापान में क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर (कार्बन उत्सर्जन में कटौती हेतु)

    झारखंड की जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रतिक्रिया

    • UNDP के सहयोग से राज्य जलवायु केंद्र की स्थापना
    • 30 जून 2008 को राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) जारी
    • 2013 में झारखंड ने अपनी राज्य जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (SAPCC) जारी की
    • सारायकेला-खरसावां को सबसे अधिक जलवायु-संवेदनशील जिला घोषित किया गया
    • ग्रीन इंडिया मिशन के अंतर्गत इसे शामिल किया गया

    CCKN-IA (भारतीय कृषि में जलवायु परिवर्तन ज्ञान नेटवर्क), 2013

    • कृषि के लिए ICT-आधारित मंच पर फोकस
    • झारखंड, महाराष्ट्र और ओडिशा में लागू

    जलवायु परिवर्तन का झारखंड पर प्रभाव

    • 2050 तक गर्मियों का तापमान 2–3°C और सर्दियों का तापमान 4.7–5.2°C तक बढ़ सकता है
    • केवल 23% भूमि कृषि उपयोग में है, जो पूरी तरह से मानसून पर निर्भर
    • भारत के 15 कृषि-जलवायु क्षेत्रों में से 3 झारखंड में:
      • केंद्रीय उत्तर-पूर्वी पठार
      • पश्चिमी पठार
      • दक्षिण-पूर्वी पठार
    • कृषि ➤ झारखंड के GSDP में लगभग 17% योगदान
    • जनसंख्या का 70% कृषि पर निर्भर
    • औसत वार्षिक वर्षा: 1149.3 मिमी, जिसमें:
      • 83% दक्षिण-पश्चिम मानसून
      • 6.5% लौटता मानसून
      • 4% पश्चिमी विक्षोभ
      • 6.5% पूर्व-मानसून बारिश
    • पिछले 100 वर्षों में 150 मिमी वार्षिक वर्षा में कमी आई

    झारखंड की जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण

    • जलवायु और जैव विविधता में झारखंड को राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त
    • जैव विविधता हॉटस्पॉट क्षेत्र:
      • नेतरहाट, पिठोरिया घाटी, सरंडा
      • पारसनाथ पर्वत, दलमा पहाड़ियां
      • हजारीबाग, पलामू

    जैव विविधता को खतरे

    • प्रदूषण में वृद्धि ➤ वनस्पति और जीव-जंतु प्रभावित
    • विनाश के कारण:
      • औद्योगीकरण
      • सड़क निर्माण
      • कृषि विस्तार
        पर्यावरणीय क्षरण और जैव विविधता हानि

    सरकारी संरक्षण प्रयास

    • वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग:
      • वनीकरण
      • जन-जागरूकता अभियान
      • प्रदूषण नियंत्रण हेतु कानूनी उपाय

    गिद्ध – झारखंड में संकटग्रस्त

    • झारखंड में पाए जाने वाले तीन गिद्ध प्रजातियाँ:
      • Gyps bengalensis
      • Gyps indicus
      • Egyptian vulture (Neophron percnopterus)
    • जनसंख्या में गिरावट के कारण:
      • डायक्लोफेनाक (पशु चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली दर्द निवारक दवा)
      • वनों की कटाई से घोंसले वाले पेड़ों की कमी

    वनीकरण और हरित पहलें

    • मुख्यमंत्री जन वन योजना (2015) ➤ राज्य में वन क्षेत्र बढ़ाने हेतु शुरू
      • निजी भूमि पर वृक्षारोपण हेतु प्रोत्साहन
      • 75% खर्च की प्रतिपूर्ति वन विभाग द्वारा
        प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार पूछा गया तथ्य
    • “कल्पतरु” वृक्षों की पर्यावरण-अनुकूल रोपण को प्रोत्साहन
      • जल संरक्षण में सक्षम
      • भारत में केवल 9 कल्पतरु पेड़, जिनमें से 4 झारखंड में
        राज्य-स्तरीय पर्यावरणीय तथ्यों के लिए महत्वपूर्ण

    इको-पर्यटन नीति (2015)

    • सतत पर्यटन और जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु नीति
    • प्रमुख विकास स्थल:
      • फॉसिल पार्क (साहिबगंज)
      • कैनरी हिल (हजारीबाग)
      • त्रिकुट पर्वत (देवघर)
      • तिलैया डैम (कोडरमा)
      • पलामू टाइगर रिजर्व
      • नेतरहाट (लातेहार)
      • दलमा वन्यजीव अभयारण्य (जमशेदपुर)
      • पारसनाथ पर्वत (गिरिडीह)
    • स्थानीय ग्रामीणों को ‘नेचर गाइड’ के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है
      पर्यटन आधारित आजीविका को बढ़ावा

    जल संसाधन संरक्षण

    • सूखा मुकाबले हेतु MGNREGA के तहत डोभा निर्माण कार्यक्रम
    • 2016-17 में ₹200 करोड़ का आवंटन
    • लक्ष्य: 6 लाख डोभा (जल संग्रहण गड्ढे) निर्माण

    वन अधिकार अधिनियम का क्रियान्वयन

    • अनुसूचित जनजाति और पारंपरिक वनवासी को वन भूमि पर अधिकार
    • 2006 से पहले निवास करने वालों को भूमि का टाइटल दिया गया
      जनजातीय और वन नीति विषयों में अक्सर पूछा जाता है

    शहरी पर्यावरण जागरूकता

    • शहरी क्षेत्रों में मनोरंजन पार्कों का विकास:
      • पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता
      • प्रदूषण नियंत्रण और जलवायु परिवर्तन पर शिक्षा

    लाह की खेती और आजीविका संवर्धन

    • स्थायी आजीविका के रूप में लाह उत्पादन को बढ़ावा
    • लक्ष्य जिले: रांची, खूंटी, पश्चिम सिंहभूम, सिमडेगा, गुमला, लातेहार, पलामू
    • कार्यान्वयन: वन प्रबंधन समितियाँ और स्वयं सहायता समूह (SHGs)

    ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM)

    • PPP मोड में लागू: रांची, पाकुड़, धनबाद, चाकुलिया
    • हिटाची (जापान) को वेस्ट-टू-एनर्जी संयंत्र के लिए आमंत्रित
    • एस्सेल ईको को रांची की सफाई और अपशिष्ट प्रबंधन की जिम्मेदारी 25 वर्षों के लिए सौंपी गई

    जलवायु परिवर्तन कार्रवाई

    • भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन पर आठ राष्ट्रीय मिशन शुरू किए
    • झारखंड ने राज्य जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठ (Climate Change Cell) की स्थापना की
      • आर्थिक विकास और पारिस्थितिकीय स्थिरता का संतुलन
      • गरीबी उन्मूलन
      • आजीविका की सुरक्षा
    • 2020 से 2050 के बीच संभावित बदलाव:
      • गर्मियों का तापमान: 2–3°C तक बढ़ोतरी
      • सर्दियों का तापमान: 4–5°C तक बढ़ोतरी

    प्रकोष्ठ के लक्ष्य:

    • जलवायु प्रभावित क्षेत्रों की पहचान
    • संवेदनशील क्षेत्रों का मानचित्रण
    • कोयला और खनन उद्योगों से होने वाले प्रदूषण की निगरानी
    • राज्य की नीतियों और योजनाओं में इन क्षेत्रों का समावेश

    प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरणीय विनियमन

    • झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (JSPCB) की स्थापना 2001 में
    • प्रदूषण नियंत्रण मानकों को लागू करने वाली नियामक संस्था
    • उद्योगों को उन्नत और स्वच्छ तकनीक अपनाने हेतु प्रेरित करती है

    नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा

    • झारखंड ऊर्जा नीति (2012): पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का प्रचार
    • झारखंड अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (JREDA), 2001 में स्थापित
      ऊर्जा और पर्यावरण विषयों में बार-बार पूछा जाने वाला तथ्य

    जल नीति और आपदा सहनशीलता

    • झारखंड राज्य जल नीति (2011): सतत जल प्रबंधन का लक्ष्य
    • सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जोखिम को कम करने हेतु तैयार की गई

    जल प्रबंधन में शिक्षा और कौशल विकास

    • IGNOU और झारखंड वाटरशेड मिशन के सहयोग से वॉटरशेड मैनेजमेंट में डिप्लोमा कोर्स
    • ऐसा कोर्स शुरू करने वाला भारत का पहला राज्य झारखंड
      पर्यावरण और शिक्षा विषयों में अक्सर पूछा जाने वाला तथ्य

    संकटग्रस्त पौधों का संरक्षण
    राज्य दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण में प्रयासरत:

    • मखन कटोरी पौधा
    • शिवलिंगम फूल

    मुख्य विशेषताएँ (Key Highlights)

    • मुख्यमंत्री जन वन योजना (2015): 75% वृक्षारोपण लागत की प्रतिपूर्ति
    • इको-टूरिज्म नीति: पर्यटन और स्थानीय आजीविका को बढ़ावा
    • 2016-17 में 6 लाख डोभा लक्ष्य ➤ सूखा निवारण
    • JREDA (2001) और ऊर्जा नीति (2012): नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा
    • जापानी सहयोग से वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट की योजना
    • जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठ ➤ संवेदनशील क्षेत्रों की मैपिंग, खनन प्रदूषण नियंत्रण
    • कल्पतरु वृक्षों का संरक्षण: जल-संरक्षण में उत्कृष्ट
    • झारखंड पहला राज्य जिसने IGNOU के माध्यम से वॉटरशेड डिप्लोमा शुरू किया