1. तिलका माँझी (1750–1785)
जन्म स्थान: तिलकपुर, भागलपुर (वर्तमान बिहार)
जाति: संताल
पिता का नाम: सुंदरा मुर्मू
मुख्य योगदान:
- भारत के पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी माने जाते हैं।
- 1781 में संताल विद्रोह का नेतृत्व किया।
- ब्रिटिश अधिकारी ऑगस्टस क्लीवलैंड को तीर से मार गिराया (13 जनवरी 1784)।
- उन्होंने गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाकर ब्रिटिशों को छकाया।
बलिदान:
- पहाड़िया सरदार जौराह की गद्दारी से गिरफ्तार हुए।
- मई 1785 में चार घोड़ों से बाँधकर घसीटे गए और भागलपुर के एक बरगद के पेड़ से फाँसी दी गई।
2. बुधु भगत (1792–1832)
जन्म स्थान: सिलागाई गाँव, लोहरदगा (झारखंड)
जाति: उराँव
पिता का नाम: हेरू भगत
मुख्य योगदान:
- 1831–1832 में ब्रिटिश और जमींदारों के खिलाफ जन विद्रोह का नेतृत्व किया।
- गाँव-गाँव में जनजागरण फैलाया।
- गुरिल्ला युद्ध का कुशल प्रयोग किया।
बलिदान:
- 1832 में अंग्रेजों ने बुधु भगत के घर को घेर लिया।
- उन्होंने और उनके दो बेटों ने साहसपूर्वक युद्ध किया, पर अंततः शहीद हो गए।
3. पाण्डेय गणपत राय (1809–1858)
जन्म स्थान: चतरा, झारखंड
पिता का नाम: राजा जुगल किशोर सिंह
पद: नागवंशी राजा व चतरा के दीवान
मुख्य योगदान:
- 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई।
- अंग्रेजों से विरुद्ध राजाओं और जनता को संगठित किया।
- तांत्या टोपे, नाना साहिब और कुंवर सिंह से सहयोग स्थापित किया।
बलिदान:
- अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार किए गए।
- 21 अप्रैल 1858 को चतरा में खुले मैदान में फाँसी दी गई।
- उनके अंतिम शब्द थे: “भारत माता की जय!”
4. सिद्धू-कान्हू मुर्मू (1815–1855)
जन्म स्थान: भोगनाडीह गाँव, साहिबगंज (झारखंड)
जाति: संताल
पिता का नाम: मरांग भगत
मुख्य योगदान:
- 30 जून 1855 को 10,000 से अधिक संतालों के साथ “संताल विद्रोह” (हुल आंदोलन) का नेतृत्व किया।
- अंग्रेजों, साहूकारों और महाजनों के अत्याचार के विरुद्ध “अबुआ राज एते जनावर नाय” (अपना राज लाएँगे, जानवरों का नहीं) का नारा दिया।
- विद्रोह ने साहिबगंज, दुमका, पाकुड़, गोड्डा तक प्रभाव फैलाया।
बलिदान:
- 1855 में अंग्रेजी सेना ने धोखे से उन्हें घेर कर मार दिया।
5. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव (1817–1858)
जन्म स्थान: बड़लाटोली, रांची (झारखंड)
पिता का नाम: ठाकुर चैतन्य शाह
पद: रांची के नागवंशी राजा
मुख्य योगदान:
- 1857 की क्रांति में सक्रिय नेता थे।
- अंग्रेजों के खिलाफ मुक्ति सेनाओं को संगठित किया।
- पाण्डेय गणपत राय, नंदराज और मुरलीधर से गठबंधन किया।
- रांची, लोहरदगा, चतरा में ब्रिटिश प्रशासन को उखाड़ फेंका।
बलिदान:
- 16 अप्रैल 1858 को रांची के जेल मैदान में फाँसी दी गई।
6. शेख भिखारी
- टिकैत उमराव सिंह के दीवान और सहयोगी।
- 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी।
- अंग्रेजों के विरुद्ध रणनीतिक सहयोग में प्रमुख भूमिका।
- स्वतंत्रता संग्राम के बाद सम्पत्ति जब्त और परिवार को पलायन करना पड़ा।
7. बिरसा मुण्डा (1875 – 1900)
जन्म: 15 नवम्बर 1875, उलिहातू, खूंटी
प्रसिद्ध नाम: धरती आबा
शिक्षा व धर्मांतरण:
- गरीबी के कारण शुरुआती जीवन संघर्षपूर्ण।
- 7 मई 1886 को ईसाई धर्म में धर्मांतरण (चाईबासा लूथरन मिशन)।
- बाद में ईसाई मिशनरियों की नीतियों से असंतुष्ट होकर हिन्दू और आदिवासी मूल्यों की ओर लौटे।
आंदोलन:
- लक्ष्य: पारंपरिक जनजातीय जीवन और संस्कृति की पुनर्स्थापना।
- ईसाई मिशनरियों व अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की शुरुआत।
- 1895 में गिरफ्तारी व दो वर्ष की सश्रम कारावास।
- जेल से रिहा होने के बाद फिर आंदोलन को संगठित किया।
- 1900 में गिरफ्तार; राँची जेल में 9 जून 1900 को मृत्यु।
8. टिकैत उमराव सिंह
- जन्म: खटंगा, ओरमांझी (कुछ मतों में गंगा पातर)
- कुशल घुड़सवार व तलवारबाज।
- 1857 की क्रांति में शेख भिखारी के साथ मिलकर विद्रोह का नेतृत्व।
- चुटुपालू घाटी मार्ग अवरुद्ध कर अंग्रेजों को रोका।
- 8 जनवरी 1858 को शेख भिखारी के साथ फाँसी दी गई।
- 12 गाँवों की ज़मींदारी जब्त की गई।
9. नीलांबर-पीतांबर (पलामू के वीर भाई)
- पलामू के चेरो-खरवार समुदाय से।
- 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
- चैनपुर, साहपुर, लेस्लीगंज पर आक्रमण।
- बाद में मनिका के जंगल में शरण ली और पुनः विद्रोह छेड़ा।
- कर्नल डाल्टन ने भोज के बहाने गिरफ्तार कर फाँसी दी।
- उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली गई।
10. तेलंगा खड़िया (1806 – 1880)
जन्म: सिसई मुर्गे गाँव
पिता: दुइया खड़िया (छोटानागपुर महाराज के भंडारी)
संघर्ष और बलिदान:
- अनपढ़ लेकिन कुशल संगठक और योद्धा।
- कोल विद्रोह (1831–32) से प्रेरणा लेकर अंग्रेजों के खिलाफ छापामार युद्ध शुरू किया।
- पूरे खड़िया क्षेत्र को गोलबंद किया।
- अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने कई प्रयास किए लेकिन असफल रहे।
- 23 अप्रैल 1880 को सिसई में एक देशद्रोही द्वारा गोली मारकर हत्या।
11. सिनगी दई (रोहतास गढ़ की वीरांगना)
- उरांव समुदाय की राजकुमारी।
- नारी सेना गठित कर मुगल आक्रमण को तीन बार रोका।
- सहेली कैली दई के साथ युद्ध में मोर्चा संभाला।
- वीरता की प्रतीक: उरांव महिलाएं उनकी याद में तीन रेखाएं गुदवाती हैं।
12. गया मुण्डा (उलगुलान सेनानी, एटकेडीह)
- गया मुण्डा ने अपने पूरे परिवार के साथ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
- 5 जनवरी 1900 को खूँटी थाना का कांस्टेबल उन्हें पकड़ने एटकेडीह पहुँचा, जहाँ उलगुलान की बैठक चल रही थी।
- गया मुण्डा के बेटे सांभर मुण्डा ने सिपाही पर तीर चला दिया।
- 6 जनवरी 1900 को उपायुक्त स्ट्रीटफील्ड ने एटकेडीह में गया मुण्डा के घर को घेर लिया।
- महिलाओं ने सिपाही पर लाठी से वार कर दिया।
- गया मुण्डा का जवाब: “यह घर मेरा है, उपायुक्त को घुसने का अधिकार नहीं है। घुसे तो मार डालेंगे!”
- उपायुक्त ने घर में आग लगवा दी, जिससे पूरा परिवार बाहर निकला।
- दंड:
- बेटे को फाँसी
- बड़े बेटे डोका मुण्डा को आजीवन कारावास
- पत्नी माकी दई को 2 साल की कैद
- बहुएं और बेटियाँ: 3 महीने की कैद
- बेटे जयमसीह को देश निकाला
- कुल 348 मुण्डाओं पर मुकदमा चला
बिंदराई मानकी और सुइया मुण्डा (कोल विद्रोह, 1832)
- सिंहभूम, पलामू और तोरपा क्षेत्र में विद्रोह का नेतृत्व किया।
- प्रमुख सहयोगी: सागर मानकी, सुग्गा मानकी, मोहन मानकी आदि।
- अंग्रेजों ने विद्रोहियों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया।
- 19 अप्रैल 1832: बिंदराई और सुइया मुण्डा ने आत्मसमर्पण किया।
- अंग्रेजों को उनके आत्मसमर्पण के बदले सुरक्षा और शांति बनाए रखने का आश्वासन लेना पड़ा।
पोटो सरदार (कोल्हान विद्रोह, 1837)
- ‘हो’ आदिवासी नेता जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी।
- अंग्रेजों के अत्याचार और ‘विल्किन्सन रूल’ के विरोध में विद्रोह।
- विद्रोह की योजना: ग्राम प्रमुखों को तीर भेजकर आमंत्रण।
- 17 नवम्बर 1837: कैप्टन आर्मस्ट्रांग की सेना ने हमला किया।
- 8 दिसम्बर 1837: पोटो सरदार गिरफ्तार।
- 1 जनवरी 1838: पोटो, नारो और बड़ाय को फाँसी दी गई।
- 2 जनवरी 1838: मोड़ो और पंडुआ को भी फाँसी।
रूदन मुण्डा और कोन्ता मुण्डा (तमाड़ विद्रोह, 1819-1821)
- 1819 में अंग्रेजों के खिलाफ तमाड़ क्षेत्र में विद्रोह।
- प्रमुख नेता: दौलत राय मुण्डा, शंकर मानकी, चंदन सिंह, भद्रा मुण्डा आदि।
- 31 अगस्त 1819: पिटुचाड़ा में हमला।
- रूदन मुण्डा को पकड़ने के लिए इनाम घोषित हुआ और वह पकड़े जाने के बाद जेल में मारे गए।
- 1821: कोन्ता मुण्डा ने सिंहभूम के लड़ाकों को एकत्र किया।
- राजा गोविन्द शाही ने उस पर ₹200 का इनाम रखा।
- गिरफ्तारी के बाद जेल में मौत, विद्रोह का अंत हुआ।
फेटल सिंह खरवार (जनजातीय नेता, गढ़वा–पलामू)
- जन्म: 7 मई 1885, बहाहारा गाँव, गढ़वा।
- पिता: लगन सिंह, पंचायत चट्टा के मुखिया।
- पढ़ाई नहीं कर सके पर जल-जंगल-जमीन की गहरी समझ।
- गाँधीजी के प्रभाव में आए और वन अधिकारों की लड़ाई लड़ी।
- 1958: वन विभाग के कब्जे के खिलाफ संघर्ष उग्र हुआ।
- 12 जनवरी 1958: पुलिस से भिड़ंत, एक समर्थक कुम्भकरण की मृत्यु।
- गिरफ्तारी के बाद जेल में स्वास्थ्य बिगड़ा, बाद में अच्छे आचरण के कारण रिहा हुए।
- 31 दिसम्बर 1975: उनका निधन। समाधि आज भी बहाहारा गाँव में स्थित है।