Tag: झारखंड का सांस्कृतिक इतिहास

  • “झारखंड के प्रसिद्ध मंदिर, मस्जिद और चर्च: इतिहास, स्थान और महत्व”

    झारखंड, खनिज और वनों से समृद्ध होने के साथ-साथ कई प्राचीन और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिरों का भी घर है। ये मंदिर न केवल वास्तुकला के अद्भुत उदाहरण हैं, बल्कि इनका आध्यात्मिक महत्व भी अत्यधिक है। यहां झारखंड के कुछ प्रमुख मंदिरों की विस्तृत सूची दी गई है, जो प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते हैं और देशभर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

    1. वैद्यनाथ मंदिर (बाबा वैद्यनाथ धाम / बैजनाथ मंदिर) – देवघर

    • हिंदू शास्त्रों के अनुसार इसे रावण द्वारा स्थापित माना जाता है।
    • वर्तमान मंदिर का निर्माण 1514–1515 ई. में गिद्धौर वंश के 10वें राजा पुरनमल द्वारा किया गया।
    • मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश गिद्धौर वंश के राजा चंद्रमौलेश्वर सिंह द्वारा स्थापित किया गया।
    • भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक।
    • यहाँ स्थित मनोकामना लिंग, 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
    • भारत का एकमात्र मंदिर जहाँ ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ एक साथ स्थित हैं।
    • इस परिसर में कुल 22 मंदिर हैं।
    • विशेषता: ऊपर त्रिशूल के बजाय पंचशूल (पाँच त्रिशूल) स्थापित है।
    • प्राचीन शास्त्रों के अनुसार यह श्राद्ध (दाह संस्कार) के लिए पवित्र स्थान माना गया है।

    2. तपोवन मंदिर – देवघर

    • भगवान शिव को समर्पित है।
    • यहाँ कई गुफाएँ हैं जहाँ ब्रह्मचारी (व्रती) निवास करते हैं।
    • माना जाता है कि देवी सीता ने यहाँ तप किया था।

    3. युगल मंदिर (नौ लाखा मंदिर) – देवघर

    • नौ लाख की राशि दान करने के कारण इसे नौ लाखा मंदिर कहा जाता है।
    • रानी चारुशीला द्वारा दान किया गया।
    • निर्माण 1936 में प्रारंभ हुआ और 1948 में पूर्ण हुआ।
    • बेलूर के रामकृष्ण मंदिर की शैली पर आधारित है।
    • मंदिर की ऊँचाई 146 फीट है।
    • निर्माण बालानंद ब्रह्मचारी के शिष्य ने किया।

    4. पथरोल काली मंदिर – देवघर

    • पथरोल राज्य के राजा दिग्विजय सिंह द्वारा निर्मित।
    • दक्षिण कालीका के रूप में माँ काली की प्रतिमा स्थापित है।
    • दीपावली के समय भव्य मेला आयोजित होता है।

    5. बासुकीनाथ धाम – जरमुंडी (दुमका)

    • हरिजन समुदाय के बसाकी तांती द्वारा निर्मित।
    • समुद्र मंथन कथा से जुड़ा – वासुकी नाग को रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया।
    • मंदिर की आयु लगभग 150 वर्ष मानी जाती है।
    • महाशिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है।
    • यहाँ मनोकामना पूर्ति के लिए धरना देकर प्रार्थना करने की परंपरा है।

    6. मौलिक्षा मंदिर – दुमका

    • 17वीं सदी में ननकार राजा बसंत राय द्वारा निर्मित।
    • इसमें देवी दुर्गा का अधूरा विग्रह (केवल सिर – “मौली”) स्थित है।
    • विग्रह लाल पत्थर से निर्मित है; सामने काले पत्थर का शिवलिंग है।
    • भैरव की प्रतिमा दाएँ ओर स्थित है (बलुआ पत्थर की)।
    • मंदिर बंगाली वास्तुकला में निर्मित है।
    • यह तांत्रिक साधना केंद्र रहा है।
    • मौलिक्षा देवी को ननकार वंश की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।

    7. झारखंड धाम – गिरिडीह

    • हरिहर धाम के नाम से भी प्रसिद्ध।
    • धनवार के पास स्थित है।
    • यहाँ 65 फीट ऊँचा शिवलिंग है।
    • मंदिर के दक्षिण-पश्चिम में लारगा नदी बहती है।

    8. माँ योगिनी मंदिर – बाराकोपा पहाड़ी (गोड्डा)

    • माना जाता है कि सती का दायाँ जांघ (Right Thigh) यहाँ गिरा था – शक्तिपीठ
    • पत्थर के आकार को कामाख्या मंदिर की तरह पूजा जाता है।
    • श्रद्धालु लाल वस्त्र अर्पित करते हैं
    • रानी चारुशीला देवी द्वारा निर्मित।
    • महाभारत में गुप्त योगिनी के रूप में उल्लेख।
    • पांडवों ने यहाँ विसर्जन काल के दौरान समय बिताया था।

    9. पंच मंदिर – पोबी (गोड्डा)

    • तीन भाइयों – दुर्गा प्रसाद, महाराज सहाय, विष्णु प्रसाद द्वारा निर्मित।
    • लगभग 300 वर्ष पुराना है।
    • सुंदर नक्काशी और डिज़ाइन के लिए प्रसिद्ध।

    10. बेलनिगढ़ मंदिर – मेहरमा ब्लॉक (गोड्डा)

    • भगवान बुद्ध से जुड़ी मान्यताएँ हैं।

    11. रत्नेश्वरनाथ धाम – शिवपुर (गोड्डा)

    • कझिया नदी के तट पर स्थित।
    • लगभग 500 वर्ष पहले ऋषियों के एक समूह द्वारा स्थापित किया गया।

    12. कैथा शिव मंदिर – रामगढ़

    • 17वीं सदी में रामगढ़ रियासत के दलेल सिंह द्वारा निर्मित।
    • मुगल, राजपूत, बंगाली शैलियों का सम्मिलन।
    • ऐतिहासिक रूप से सैन्य उपयोग में भी लिया गया।
    • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा राष्ट्रीय धरोहर स्थल घोषित।

    परीक्षोपयोगी मुख्य बिंदु:

    • बाबा वैद्यनाथ धामज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों
    • युगल मंदिरनौ लाखा मंदिर
    • बासुकीनाथ धामसमुद्र मंथन की कथा से जुड़ा।
    • मौलिक्षा मंदिरतांत्रिक साधना केंद्र
    • कैथा शिव मंदिरराष्ट्रीय धरोहर स्थल
    • माँ योगिनी मंदिरशक्तिपीठ और महाभारत से संबंध।

    13. छिन्नमस्तिका मंदिर – राजरप्पा (रामगढ़)

    • दामोदर और भैरवी (भेड़ा) नदियों के संगम पर स्थित।
    • यहाँ कटी हुई सिर वाली देवी काली की प्रतिमा है – छिन्नमस्तिका
    • दक्षिण और बाएँ ओर डाकिनी और शाकिनी, पाँवों के नीचे रति और कामदेव – इच्छाओं के दमन का प्रतीक।
    • सती के अंग यहाँ गिरने की कथा – शक्तिपीठ
    • तांत्रिक साधना स्थल के रूप में विख्यात।
    • छिन्नमस्तिका की मूर्ति – शक्ति का उग्र स्वरूप।
    • 1947 तक इसे “वन दुर्गा मंदिर” कहा जाता था – घने जंगलों के कारण।
    • शारदीय दुर्गा पूजा में संथाल समुदाय द्वारा पहली नवमी पूजा और बलि प्रथा
    • कामाख्या मंदिर शैली में निर्मित।
    • राजरप्पा के राजाओं ने तांत्रिक पुजारियों को निकटवर्ती गाँवों में बसाया।

    14. शिव मंदिर, बड़मगाँव – हजारीबाग

    • 17वीं सदी के अंत में बने चार गुफा मंदिर, भगवान शिव को समर्पित।

    15. नरसिंहस्थान मंदिर – खड़कहरियावां गाँव, हजारीबाग

    • मुख्य रूप से भगवान विष्णु को समर्पित, गर्भगृह में शिवलिंग भी स्थित।
    • कार्तिक पूर्णिमा पर विशाल मेला आयोजित होता है।

    चंचला देवी मंदिर

    स्थान: कोडरमा-गिरिडीह मार्ग पर, चंचला देवी पहाड़ी के पास, कोडरमा के निकट
    महत्त्व:

    • शक्ति पीठ के रूप में माना जाता है, चंचला देवी को मां दुर्गा के रूप में पूजा जाता है।
    • यहां सिंदूर का प्रयोग सख्त वर्जित है, जो इसे अन्य मंदिरों से विशिष्ट बनाता है।

    भद्रकाली मंदिर – इटखोरी (चतरा)

    स्थान: इटखोरी, भदुली गांव, चतरा जिला
    ऐतिहासिक काल: पाल वंश काल (5वीं-6वीं शताब्दी ई.)
    महत्त्व:

    • यह मूर्ति देवी भद्रकाली के सौम्य रूप को दर्शाती है — शक्ति के तीन स्वरूपों में से एक: सौम्य, उग्र और कामनीय
    • मूर्ति में देवी कमल पर खड़ी हैं और वरद मुद्रा में हैं।
    • बौद्ध धर्म के अनुयायी इस मूर्ति को तारा देवी मानते हैं
    • एक पाली लिपि में लिखे अभिलेख से ज्ञात होता है कि यह मूर्ति बंगाल के राजा महेन्द्र पाल द्वितीय द्वारा निर्मित करवाई गई थी।
    • मंदिर एक ही बलुआ पत्थर की शिला से निर्मित है।
    • मंदिर की दीवारों में 1008 लघु शिवलिंगों की नक्काशी की गई है।
    • मंदिर के पास कोठेश्वरनाथ स्तूप (मानौती स्तूप) है, जिसमें परिनिर्वाण मुद्रा में बुद्ध की मूर्ति है।
    • स्तूप के शीर्ष भाग में जल से भरा एक गड्ढा (लगभग 4x4x4 इंच) है, जो हमेशा जल से भरा रहता है

    कौलेश्वरी मंदिर – कोल्हुआ पहाड़ी (चतरा)

    स्थान: कोल्हुआ पहाड़ी, चतरा जिला
    धार्मिक महत्व: हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म का संगम स्थल
    विवरण:

    • यह स्थान 10वें जैन तीर्थंकर शीतलनाथ के ध्यान स्थल के रूप में माना जाता है।
    • यह जैन महापुराण के लेखक जिनसेन का तपोस्थल भी माना जाता है।
    • यहां बुद्ध की ध्यान मुद्रा में मूर्ति, तथा जैन तीर्थंकर ऋषभदेव और पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
    • पहाड़ी की ऊंचाई लगभग 1575 फीट है।
    • देवी कौलेश्वरी (दुर्गा) की मूर्ति काले पत्थर से निर्मित है।

    सहस्त्रबुद्ध (कंतेश्वरनाथ) मंदिर – चतरा

    स्थान: चतरा जिला
    विवरण:

    • इस मंदिर के बारे में संक्षिप्त जानकारी है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।

    तांगीनाथ धाम मंदिर – गुमला

    स्थान: मझा गांव पहाड़ी, गुमला जिला
    ऐतिहासिक काल: प्रारंभिक मध्यकाल
    महत्त्व:

    • यहां एक विशाल शिवलिंग और आठ अन्य शिवलिंग स्थित हैं।
    • मंदिर में देवी दुर्गा, लक्ष्मी, भगवती, गणेश, हनुमान आदि की मूर्तियां भी हैं।
    • पास में एक आठकोणी टूटी हुई त्रिशूल (लगभग 11 फीट ऊंची) है, जिसे 5वीं-6वीं शताब्दी का माना जाता है।
    • यह स्थल परशुराम से जुड़ा है, जहां उनके पदचिन्ह और “तांगी” (कुल्हाड़ी) के गाड़े जाने की किंवदंती है।
    • यह स्थान पाशुपत संप्रदाय से संबंधित है।

    घोड़सीमर धाम – कोडरमा

    स्थान: सतगावां, कोडरमा
    महत्त्व:

    • यह एक प्रमुख पुरातात्त्विक और धार्मिक स्थल है।
    • मंदिर परिसर में एक वृत्ताकार शिवलिंग है, जिसका व्यास लगभग चार फीट है।
    • यह परिसर नदी के किनारे तक फैला हुआ है।

    उग्रतारा / नगर मंदिर – चंदवा (लातेहार)

    स्थान: चंदवा, लातेहार जिला
    महत्त्व:

    • यह मंदिर विशिष्ट है क्योंकि एक ही गर्भगृह में उग्रतारा (काली संप्रदाय) और लक्ष्मी (श्री संप्रदाय) की मूर्तियां स्थित हैं।
    • प्रांगण में कुछ बौद्ध मूर्तियां भी हैं।
    • यह एक महत्वपूर्ण तांत्रिक तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
    • पलामू गजेटियर के अनुसार, यह मंदिर अहिल्याबाई होल्कर द्वारा मराठों की विजय के स्मारक के रूप में बनवाया गया था।

    बंशीधर मंदिर – नगर उंटारी (गढ़वा)

    स्थान: नगर उंटारी, गढ़वा जिला
    निर्माण वर्ष: 1885 ई.
    महत्त्व:

    • मंदिर में अष्टधातु से बनी राधा-कृष्ण की 4 फीट ऊंची मूर्ति है, जिसका वजन लगभग 32 मन है।
    • श्रीकृष्ण त्रिभंगी मुद्रा में हैं और कमल के आधार पर खड़े हैं

    बाबा खोरनाथ मंदिर – गिजना (गढ़वा)

    स्थान: गिजना, गढ़वा
    महत्त्व:

    • राज्य सरकार द्वारा इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है

    दशशीश महादेव मंदिर – जापला (पलामू)

    स्थान: जापला, पलामू
    महत्त्व:

    • मान्यता है कि रावण हिमालय से शिवलिंग लेकर यहां रुका था, परंतु बाद में वह उसे उठा नहीं सका

    राम-लक्ष्मण मंदिर – बमनडीग्राम (पलामू)

    स्थान: बमनडीग्राम, पलामू
    महत्त्व:

    • मंदिर में भगवान राम और लक्ष्मण की मूर्तियां स्थित हैं।

    महत्वपूर्ण तथ्य:

    • जिन मंदिरों के आगे * चिह्न है, वे झारखंड राज्य की विभिन्न परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते हैं
    • कई मंदिर ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक और धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
    • इन स्थलों में जनजातीय परंपराएं, तांत्रिक साधनाएं, बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
    • कुछ मंदिर शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध हैं, और देवी उपासना तथा तांत्रिक क्रियाओं के प्रमुख केंद्र हैं।

    वासुदेव राय मंदिर — कोरम्बे गाँव (लोहरदगा)

    स्थान: कोरम्बे गाँव, लोहरदगा जिला।
    विशेषता:

    • काले पत्थर की वासुदेव राय की प्रतिमा है।
    • प्रतिमा की स्थापना राजा प्रताप कर्ण ने 1463 ई. में की थी।
    • स्थानीय किंवदंती के अनुसार, यह मूर्ति घुना मुंडा, एक आदिवासी किसान को खेत जोतते समय मिली थी।
    • यह स्थल राक्सेल और नागवंशी वंशों के बीच हुए भीषण युद्धों का साक्षी रहा है।
    • इसे “हल्दी घाटी मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है।

    महामाया मंदिर — हपामुनी गाँव (गुमला)

    स्थान: हपामुनी गाँव, गुमला जिला।
    ऐतिहासिक युग: नागवंशी शासक गजघंट राय द्वारा 908 ई. में निर्मित।
    धार्मिक महत्त्व:

    • देवी काली को समर्पित, जिसे त्रिक पीठ (शक्ति उपासना के तीन मुख्य केन्द्रों में से एक) माना जाता है।
    • पहले पुजारी थे द्विज हरिनाथ, जो मराठा ब्राह्मण थे।
    • भगवान विष्णु की प्रतिमा शिवदास कर्ण के आदेश पर सियानाथ देव ने स्थापित की थी।
    • 1831 के कोल विद्रोह में मंदिर को क्षति पहुँची, लेकिन बाद में पुनर्निर्माण हुआ।
    • चैत्र पूर्णिमा पर मंडा पूजा होती है, जिसमें भक्त नंगे पाँव आग पर चलने (‘फूल’) की रस्म निभाते हैं।

    अंजन धाम मंदिर — अंजन गाँव (गुमला)

    📍 स्थान: अंजन गाँव, गुमला जिला।
    महत्त्व:

    • भगवान हनुमान का जन्मस्थल माना जाता है।
    • यहाँ देवी अंजना (हनुमान की माता) की पत्थर की मूर्ति है।
    • मंदिर परिसर में चक्रधारी मंदिर और नकटी देवी मंदिर भी हैं।
    • शिवलिंग के ऊपर एक छिद्र युक्त भारी पत्थर का चक्र रखा है।
    • यह क्षेत्र नेतरहाट की पहाड़ियों तक फैला है और एक दक्षिणवाहिनी नदी के पास स्थित है।

    कपिलनाथ मंदिर — डोईसानगर (गुमला)

    🏛️ निर्माण काल: नागवंशी राजा राम शाह द्वारा 1710 ई. में निर्मित।
    स्थापत्य विशेषता:

    • डोईसा क्षेत्र में पत्थर शिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।

    चिंतामणि मंदिर — पालकोट (गुमला)

    स्थान: पालकोट, नागवंशी वंश की पूर्व राजधानी।
    महत्त्व: नागवंशी शासक द्वारा अपने कुलदेवी चिंतामणि की उपासना हेतु निर्मित।

    सती मठ — पालकोट (गुमला)

    स्थान: पालकोट।
    महत्त्व:

    • एक नागवंशी रानी द्वारा सती होने के पश्चात निर्मित।
    • इस कारण इसे सती मठ कहा जाता है।

    जगन्नाथ मंदिर — जगन्नाथपुर (रांची)

    स्थान: जगन्नाथपुर, रांची जिला।
    🏛️ निर्माण काल: 25 दिसंबर 1691 ई., नागवंशी राजा राम शाह के पुत्र ठाकुर अनी शाह द्वारा।
    महत्त्व:

    • जगन्नाथ, सुभद्रा, बलराम की मूर्तियाँ विराजमान हैं।
    • वंशधर की धातु मूर्ति भी है, जो मराठों से युद्ध में प्राप्त की गई थी।
    • स्थापत्य शैली पुरी के जगन्नाथ मंदिर से मिलती है।
    • रथ यात्रा उत्सव प्रति वर्ष धूमधाम से मनाया जाता है।
    • मंदिर की ऊँचाई लगभग 100 फीट है।
    • 1991 में ₹1 करोड़ की लागत से जीर्णोद्धार हुआ।

    सूर्य मंदिर — बुंडू (रांची)

    स्थान: रांची-टाटा राजमार्ग पर स्थित।
    स्थापत्य विशेषता:

    • मंदिर का आकार सूर्य के रथ के जैसा है।
    • इसे “पत्थर पर लिखी कविता” कहा जाता है।
    • निर्माणकर्ता: संस्कृति विहार, रांची आधारित संस्था।
    • शिल्पकार: प्रसिद्ध मूर्तिकार एस.आर.एन. कालिया

    सुरेश्वर धाम महादेव मंदिर — चुटिया, रांची

    स्थान: स्वर्णरेखा नदी के तट पर, चुटिया, रांची।
    मुख्य विशेषताएँ:

    • मंदिर में 108 फीट ऊँचा अनूठा शिवलिंग है।
    • शिव परिवार की मूर्ति भी है।
    • यह झारखंड का पहला और भारत का दूसरा सबसे ऊँचा शिवलिंग है।
    • धार्मिक महत्त्व: श्रद्धालुओं का प्रमुख तीर्थस्थल।

    शिव मंदिर — बेदो, रांची

    स्थान: बेदो, रांची।
    स्थापत्य शैली:

    • लगभग 800–900 वर्ष पुराना
    • ओडिशा के रेखा शैली में बना है।
    • लाल बलुआ पत्थर से निर्मित, बाहरी दीवारें खुरदरी और अंदरूनी सतह चिकनी।
    • ओडिशा की स्थापत्य शैली का झारखंड में सुंदर उदाहरण

    हिलटॉप शिव मंदिर — टुंगरी पहाड़ी (रांची)

    स्थान: टुंगरी पहाड़ी (रांची गुरु पहाड़ी), रांची।
    इतिहास:

    • 1905 के आसपास पलकोट के राजा द्वारा निर्मित।
    • पास में नाग देवता का मंदिर भी है, जो रांची नगर देवता माने जाते हैं।
      धार्मिक मान्यता:
    • श्रावण मास और महाशिवरात्रि पर भारी भीड़ उमड़ती है।
    • भक्त स्वर्णरेखा नदी (12 किमी दूर) से जल लाकर सोमवार को अर्पित करते हैं।
      अतिरिक्त तथ्य:
    • ब्रिटिश काल में यहाँ फांसी स्थल था।
    • 1947 से स्वतंत्रता दिवस पर यहाँ राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है।
    • पहाड़ी की ऊँचाई 300 फीट, सीढ़ियाँ 468
      भूवैज्ञानिक महत्त्व:
    • चट्टानें प्रोटेरोज़ोइक युग (लगभग 4500 मिलियन वर्ष पुरानी)।
    • चट्टानों का नाम गार्नेटिफेरस सिलिमेनाइट स्किस्ट (स्थानीय नाम: खोदलाइट)

    देउरी मंदिर — टापाद, रांची

    विशेष विशेषता:

    • 16 भुजाओं वाली दुर्गा की अनोखी काली पत्थर की मूर्ति है।
    • देवी कमलासन पर विराजमान हैं, जो सामान्यतः शेर पर दिखाई जाती हैं।
    • मूर्ति के ऊपर शिव और फिर बेताल की मूर्ति है।
    • पास में सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक और गणेश की मूर्तियाँ भी हैं।
      पूजा पद्धति:
    • आदिवासी पुजारी (पाहन) द्वारा 6 दिन, और ब्राह्मण पुजारी द्वारा 1 दिन पूजा होती है — जनजातीय और ब्राह्मण परंपराओं का समन्वय
    • दशहरा पर बलि प्रथा प्रचलित।
      इतिहास:
    • सिंहभूम के केरा क्षेत्र के एक आदिवासी सरदार द्वारा बनवाया गया।
    • चतुर्भुजाकार पत्थरों से निर्मित

    राम-सिता (राधावल्लभ) मंदिर — चुटिया, रांची

    निर्माण काल: नागवंशी राजा रघुनाथ शाह द्वारा 1685 ई. में।
    वास्तुकला:

    • विस्तृत नक्काशीदार पत्थरों से बना।
    • पहले इसे राधावल्लभ मंदिर कहा जाता था — ऊपरी मंजिल पर कृष्ण रासलीला का चित्रण।
      ऐतिहासिक महत्त्व:
    • 28 जनवरी 1898 को मुंडा उलगुलान के समय बिरसा मुंडा व उनके अनुयायी यहाँ आए थे।

    शिव मंदिर — हरिन, रांची

    इतिहास:

    • मध्यकालीन काल का मंदिर।
    • कोल विद्रोह (1831-32) के दौरान ब्रिटिश सैनिकों ने मंदिर पर गोलियाँ चलाईं — गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं।

    मदन मोहन मंदिर — बोडेया, कांके, रांची

    निर्माण काल:

    • 1665 (विक्रम संवत 1722) में निर्माण प्रारंभ।
    • 1668 में पूर्ण, लेकिन दीवारें व मंच 1682 तक बने
      वास्तुकला:
    • ग्रेनाइट पत्थर से बना — पहले लाल रंग, बाद में सफेद रंग में रंगा गया
    • छत पर 40 फीट ऊँचा गोल शिखर, ऊपर लोहे का चक्र और त्रिशूल
    • निर्माता: लक्ष्मीनारायण तिवारी, राजा रघुनाथ शाह की उपस्थिति में।
      धार्मिक महत्त्व:
    • अष्टधातु की राधा-कृष्ण प्रतिमा स्थापित।
    • राम-सिता और लक्ष्मण की मूर्तियाँ भी हैं।
      त्योहार:
    • कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष आयोजन।
    • पूर्णिमा पर सत्यनारायण पूजा होती है।
    • होली में “फडगोल” खेला जाता है, रंगों से सजे कृष्ण को दर्शनार्थ प्रस्तुत किया जाता है।
      नियम:
    • केवल पुजारी ही गर्भगृह में प्रवेश कर सकते हैं।

    हराडीह मंदिर — तामरद

    स्थिति: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा राष्ट्रीय धरोहर और पुरातात्विक स्थल घोषित।
    स्थान: कांची नदी के तट पर स्थित।
    खोज: पूर्व पुरातत्व सर्वेक्षण महानिदेशक ए. घोष द्वारा खोजा गया।
    प्रतिमाएँ:

    • 16 भुजाओं वाली महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) की काली पत्थर की प्रतिमा
    • दक्षिण-पश्चिम कोने में रेखा-देउल शैली में निर्मित दो छोटे मंदिर हैं।
      सामग्री: मुख्य रूप से ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित।

    झारखंड परीक्षाओं और सामान्य ज्ञान के लिए महत्वपूर्ण बिंदु

    • सुरेश्वर धाम महादेव जैसे मंदिर धार्मिक महत्व और शिवलिंग के आकार के कारण खास माने जाते हैं।
    • तुंगरी पहाड़ी पर शिव मंदिर धार्मिक के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े ऐतिहासिक महत्व का प्रतीक है।
    • देउरी मंदिर की दोहरी पुजारी परंपरा (आदिवासी पाहन और ब्राह्मण) झारखंड की सांस्कृतिक समन्वय को दर्शाती है।
    • मुंडा उलगुलान (राम-सीता मंदिर) और कोल विद्रोह (हरिन शिव मंदिर) से जुड़े मंदिरों का ऐतिहासिक महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है।
    • रेखा देउल जैसी स्थापत्य शैली और ओडिशा से प्रभाव झारखंड की प्राचीन कला की पहचान कराते हैं।
    • मदन मोहन मंदिर का इतिहास, निर्माण काल और उत्सव परंपराएं झारखंड की धार्मिक परंपराओं को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
    • हराडीह जैसे स्थल, झारखंड की पुरातात्विक और सांस्कृतिक धरोहर को राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित दर्शाते हैं।

    झारखंड के प्रमुख मंदिर

    1. भूफोर मंदिर, धनबाद

    • आदिवासी भूमि और पृथ्वी देवी को समर्पित।
    • स्थानीय धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र

    2. विष्णु मंदिर, डलमी (धनबाद)

    • 17वीं सदी में निर्मित
    • उस युग की ऐतिहासिक स्थापत्य कला का उदाहरण

    3. पार्वती मंदिर, धनबाद

    • कंसाई नदी के किनारे स्थित।
    • चार भुजाओं वाली देवी पार्वती की प्रतिमा विद्यमान।

    4. शिव मंदिर, चेचगाँव (धनबाद)

    • भगवान शिव को समर्पित

    5. शिव मंदिर, तेलकुप्पी (धनबाद)

    • 16वीं सदी में निर्मित
    • दामोदर नदी के किनारे स्थित।

    6. बेनिसागर शिव मंदिर, पश्चिमी सिंहभूम

    • 602-625 ई. के बीच गौड़ शासक शशांक द्वारा निर्मित माने जाते हैं
    • 33 छोटी-बड़ी मूर्तियाँ, हनुमान और दुर्गा सहित।
    • शिलालेख और शिवलिंग विद्यमान

    7. महादेवसाला मंदिर, पश्चिमी सिंहभूम

    • मनोहपुर और गोइलकेरा स्टेशनों के बीच स्थित
    • सावन और महाशिवरात्रि के मेलों के लिए प्रसिद्ध

    8. रंकिनी मंदिर, घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम)

    • देवी रंकिनी को समर्पित
    • प्रमुख सांस्कृतिक व धार्मिक स्थल

    9. महादानी बाबा मंदिर, बेड़ो (रांची)

    • 9वीं सदी में निर्मित
    • भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर की शैली पर आधारित
    • द्रविड़ और नागर स्थापत्य शैलियों का सम्मिलन
    • पुजारी परंपरागत रूप से गाँव का पाहन (आदिवासी पुजारी)
    • श्रद्धालु गोयंदा और गोयंदी (शिव-पार्वती) को पीठा चढ़ाते हैं

    10. अमरेश्वर धाम, खूंटी जिला

    • अंगराबाड़ी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध
    • स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा नामकरण
    • मुख्य शिव मूर्ति वटवृक्ष के नीचे स्थापित
    • राम-सीता, हनुमान और गणेश की मूर्तियाँ भी विद्यमान

    11. शक्ति मंदिर, धनबाद

    • ज्वालामुखी मंदिर (हिमाचल प्रदेश) से लाई गई अखंड ज्योति यहाँ स्थापित।

    12. लिल्लोरी मंदिर, धनबाद

    • करीब 800 वर्ष पूर्व कात्रासगढ़ (म.प्र.) के राजा सुजान सिंह द्वारा काली प्रतिमा स्थापित
    • रोज पशु बलि दी जाती है, और पहली पूजा राजपरिवार के सदस्यों द्वारा की जाती है

    13. सुरेश्वर धाम महादेव मंदिर, चुटिया, रांची

    • स्वर्णरेखा नदी के किनारे स्थित
    • 108 फीट ऊँचा शिवलिंग — झारखंड में सबसे ऊँचा, और भारत में दूसरा सबसे ऊँचा
    • शिव परिवार की मूर्तियाँ भी विद्यमान

    14. शिव मंदिर, बेड़ो (रांची)

    • 800–900 वर्ष पूर्व ओडिशा की रेखा शैली में निर्मित
    • लाल और सफेद बलुआ पत्थर से बना हुआ

    15. पहाड़ी मंदिर, रांची

    • तुंगरी पहाड़ी (रांची गुरु पहाड़ी) पर स्थित
    • 1905 में संभवतः पालकोट के राजा द्वारा निर्मित
    • पास में नाग देवता का मंदिर भी स्थित
    • श्रावण और महाशिवरात्रि के समय अत्यधिक श्रद्धालु आते हैं
    • ब्रिटिश शासन में यह पहाड़ी फांसी देने के लिए उपयोग होती थी
    • हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर यहाँ झंडोत्तोलन होता है
    • पहाड़ी की ऊँचाई: 300 फीट, 468 सीढ़ियाँ
    • चट्टानें लगभग 4500 मिलियन वर्ष पुरानी (प्रोटेरोज़ोइक युग)

    16. महुलिया पहाड़ी पर रंकिनी मंदिर

    • पहले यह मंदिर पहाड़ी पर था जहाँ नरबलि दी जाती थी
    • प्रथा को रोकने हेतु मंदिर को महुलिया थाना परिसर में स्थानांतरित किया गया
    • देवी रंकिनी को समर्पित, जो ढालभूम राजाओं द्वारा पूजित थीं

    झारखंड के प्रमुख मस्जिदें और मज़ार

    1. दौद खान की मस्जिद, पलामू किला, लातेहार

    • 16वीं सदी में बिहार के मुगल गवर्नर दौद खान द्वारा निर्मित
    • बंगाल विजय के बाद शेरशाह सूरी ने यहाँ नमाज़ अदा की थी

    2. मदार शाह की मजार, मंदरगिरि पहाड़ी, लातेहार

    • सूफी संत मदार शाह से संबंधित।

    3. जामा मस्जिद, डोरंडा, रांची (1804-05)

    • रांची की एक प्रमुख मस्जिद।

    4. हांडा मस्जिद, अपर बाजार, रांची (1852)

    • 19वीं सदी की महत्वपूर्ण मस्जिद।

    5. अपर बाजार जामा मस्जिद, रांची (1867)

    • रांची की एक बड़ी मस्जिद।

    6. हिंदिही बड़ी मस्जिद, रांची (1886-87)

    • क्षेत्र की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक।

    7. जामी मस्जिद, राजमहल (16वीं सदी)

    • राजा मान सिंह द्वारा निर्मित।
    • ऐतिहासिक महत्व की मस्जिद।

    8. मीरन की मजार, राजमहल के पास

    झारखंड के प्रमुख चर्च

    चर्च का नामस्थानस्थापना वर्षसंबद्ध मिशन
    जी.ई.एल. चर्च / क्राइस्ट चर्चरांची1855जी.ई.एल. मिशन
    स्टीवेंसन मेमोरियल चर्चखूंटी1869एस.पी.जी. मिशन
    चर्च, चाईबासाचाईबासा1869रोमन कैथोलिक मिशन
    संथाल मिशन चर्च, पचंबागिरिडीह1871संथाल मिशन
    सेंट कैथेड्रल चर्चरांची1870-73जनरल रॉलेट
    सेंट पॉल चर्चरांची1873एस.पी.जी. मिशन
    रोमन कैथोलिक चर्चखूंटी1898रोमन कैथोलिक मिशन
    रोमन कैथोलिक चर्चखटकाही1899रोमन कैथोलिक मिशन
    रोमन कैथोलिक चर्चनवाटोली1901रोमन कैथोलिक मिशन
    सेंट मैरी चर्चपुरुलिया रोड, रांची1909रोमन कैथोलिक मिशन
    रोमन कैथोलिक चर्चनवाडीह1911रोमन कैथोलिक मिशन
    रोमन कैथोलिक चर्चदिधिस्या1914रोमन कैथोलिक मिशन

    महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

    • ये सभी मंदिर और धार्मिक स्थल झारखंड राज्य स्तरीय प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार पूछे जाते हैं
    • ड्रविड़, नागर और ओडिशा रेखा शैली जैसी स्थापत्य विविधताएँ झारखंड की सांस्कृतिक विविधता का प्रमाण हैं।
    • कई संरचनाएँ 6वीं सदी या उससे पहले की हैं, जो क्षेत्र की प्राचीनता को दर्शाती हैं।
    • कई मंदिर आदिवासी परंपराओं और देवी-देवताओं से गहरे जुड़े हुए हैं
    • तुंगरी पहाड़ी जैसे स्थल धार्मिक ही नहीं, ऐतिहासिक और भूवैज्ञानिक महत्व भी रखते हैं।

  • “झारखंड का इतिहास: जनजातीय आंदोलन, राज्य संघर्ष और गठन की समयरेखा”

    वर्ष 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड एक स्वतंत्र राज्य बना, लेकिन इसका इतिहास हजारों साल पुराना है। यह भूमि प्रागैतिहासिक सभ्यता, आदिवासी विद्रोहों और राज्य निर्माण की जटिल प्रक्रियाओं से जुड़ी हुई है। आइए झारखंड की इस समृद्ध ऐतिहासिक यात्रा को कालखंडों के अनुसार समझें।

    प्रागैतिहासिक युग: आरंभिक मानव बस्तियाँ

    • छोटानागपुर पठार में मेसोलिथिक और नियोलिथिक युग के औजार और माइक्रोलिथ मिले हैं।
    • इस्को (हजारीबाग) में 9000-5000 ई.पू. की गुफा चित्रकला, भारत की सबसे पुरानी कलात्मक अभिव्यक्तियों में से एक है।
    • पुंकरी बरवाडीह (बड़कागांव) में 5000 वर्ष पुराने मेगालिथिक स्मारक मिले हैं।

    ताम्रपाषाण युग (चालकोलिथिक काल)

    • दूसरी सहस्राब्दी ई.पू. में तांबे के उपकरण और कॉपर होर्ड संस्कृति का उद्भव।
    • कबरा-कला (पलामू) में नवपाषाण से मध्यकाल तक की निरंतर सांस्कृतिक उपस्थिति:
      • लाल मृद्भांड
      • काले-लाल मृद्भांड
      • उत्तरी काले पॉलिशदार बर्तन (NBPW)

    लौह युग: तकनीकी प्रगति

    • बारुडीह (सिंहभूम) से लौह स्लैग और पहिए से बने बर्तन मिले।
    • रेडियोकार्बन डेटिंग अनुसार कलाकृतियाँ 1401–837 ई.पू. की हैं।

    प्राचीन काल: वैदिक से मौर्य युग

    • वैदिक युग में आर्यों का पूर्व की ओर प्रसार और कृषि विस्तार।
    • महाजनपदों और श्रमण आंदोलनों (जैन-बौद्ध) का प्रभाव क्षेत्र में देखा गया।
    • महाभारत में क्षेत्र को कर्क खंड कहा गया है।
    • मौर्य काल में यह अटाविका राज्यों के अंतर्गत आया; अशोक के शासन में मौर्य साम्राज्य में विलय।
    • ब्रह्मी लिपि के शिलालेख और पुरातात्विक खोजें सारिदकेल और कर्बकला में पाई गईं।

    गुप्त एवं पाल युग: सांस्कृतिक उत्कर्ष

    • समुद्रगुप्त ने अपने दक्षिणी अभियान में इस क्षेत्र से होकर प्रस्थान किया।
    • पाल साम्राज्य के अधीन बौद्ध संस्कृति का प्रभाव, हजारीबाग के मठ इसके प्रमाण हैं।

    मध्यकाल: नागवंशी और मुगल संपर्क

    • 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने क्षेत्र का वर्णन किया।
    • नागवंशी राजाओं का शासन, नवरत्नगढ़ किला और जगन्नाथ मंदिर (रांची, 1691) के निर्माण के लिए प्रसिद्ध।
    • अकबर ने हीरों के लिए खुखरा क्षेत्र में हस्तक्षेप किया।

    औपनिवेशिक युग: ब्रिटिश शासन और विद्रोह

    • चेरो, नागवंशी, रामगढ़, खड़गडीहा जैसे राजवंशों का शासन।
    • पलामू के राजा मेदिनी राय ने किले को सुदृढ़ किया।
    • दाउद खान (1660) और कैप्टन कैमक (1771) के हमले के बाद ब्रिटिश अधिपत्य।
    • क्षेत्र को नौ रियासतों में बाँटा गया, और समयानुसार बंगाल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पूर्वी राज्य एजेंसी में समाहित किया गया।

    जनजातीय विद्रोह: ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध संघर्ष

    • चुआर विद्रोह (1766–1809)
    • तिलका मांझी का विद्रोह (1780–1785)
    • कोल विद्रोह (1831–32) – बिंदराय मानकी और बुधु भगत
    • संथाल विद्रोह (1855–60) – सिधू-कान्हू
    • 1857 का विद्रोह – टिकैत उमराव सिंह, विश्वनाथ शाहदेव, शेख भिखारी
    • बिरसा मुंडा का उलगुलान (1895–1900) – रांची जेल में मृत्यु

    आधुनिक युग: स्वतंत्रता संग्राम और राज्य निर्माण

    • 1914: टाना भगत आंदोलन – बाद में गांधीवादी आंदोलनों से जुड़ा।
    • 1940: रामगढ़ में कांग्रेस का 53वां अधिवेशन – गांधी, नेहरू, सरोजिनी नायडू की उपस्थिति।
    • 1947: स्वतंत्रता के बाद क्षेत्र बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश में विभाजित।

    झारखंड आंदोलन और राजनीतिक विकास

    • 1928: ‘उन्नति समाज’ द्वारा अलग राज्य की माँग।
    • 1955: जयपाल सिंह मुंडा की झारखंड पार्टी का ज्ञापन – अस्वीकार।
    • 1972: झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और AJSU का गठन।
    • 1988: भाजपा द्वारा वनांचल आंदोलन।
    • 1994: झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद (JAAC) की स्थापना।
    • 1998: न्यायमूर्ति एल.पी.एन. शाहदेव के नेतृत्व में आंदोलन तेज।

    झारखंड राज्य का गठन

    • 2000: संसद ने बिहार पुनर्गठन अधिनियम पारित किया।
    • 15 नवंबर 2000: झारखंड भारत का 28वां राज्य बना।
      • पहले मुख्यमंत्री: बाबूलाल मरांडी
      • क्षेत्र: छोटानागपुर पठार, संथाल परगना

    राज्य स्थापना के बाद

    • 15 नवंबर 2023: झारखंड ने 23वां स्थापना दिवस मनाया।
    • विकास, जनजातीय सशक्तिकरण और सांस्कृतिक संरक्षण पर निरंतर ध्यान।