शेर खां का झारखंड में प्रवेश और प्रारंभिक संघर्ष (1536-1539):
- 1536 में शेर खां ने झारखंड के क्षेत्र में प्रवेश किया, जब वह राजमहल होते हुए गोड़ पहुँचा।
- शेर खां ने झारखंड के राजा महारथ चेरो के खिलाफ युद्ध किया, जिसमें चेरो को आत्मसमर्पण करना पड़ा।
- 1539 में महारथ चेरो ने शेर खां के खिलाफ फिर से संघर्ष किया, लेकिन मुगलों का दबदबा बढ़ता गया।
अकबर का आगमन और छोटानागपुर पर मुगलों का प्रभाव (1556-1605):
- अकबर के शासनकाल में छोटानागपुर में नया राजनीतिक बदलाव आया।
- 1585 में शहबाज खां ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया, जिसके बाद छोटानागपुर के राजा ने मुगलों के प्रति पराधीनता स्वीकार की।
- 1589 में राजा भागवत राय ने मुगलों के साथ समझौता किया और मालगुजार बन गए।
- अकबर के शासनकाल में छोटे राजाओं के बीच संघर्ष और सामरिक गतिविधियाँ बढ़ी, जिनमें सिंहभूम और पलामू के राजाओं का भी उल्लेख है।
जहाँगीर का शासन और नागवंशी राजाओं का संघर्ष (1605-1627):
- जहाँगीर के शासन में, नागवंशी राजा दुर्जन साल ने मुगलों के अधीनता को नकारा और स्वतंत्रता की मांग की।
- 1615 में जहाँगीर ने झारखंड पर आक्रमण के लिए जफर खां को भेजा, लेकिन दुर्जन साल ने उसे हीरे और अन्य उपहारों से ललचाकर अधीनता की शर्तों से मुक्त कर दिया।
- दुर्जन साल ने नई राजधानी का निर्माण किया और अपने राज्य को मजबूत किया।
- 1627 में दुर्जन साल की मृत्यु के बाद, कोकरह की स्थिति में फिर से बदलाव हुआ और नये राजा ने मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया।
मुगलों का दबाव और चेरो राजाओं का संघर्ष (1627-1640):
- 1632 में, छोटानागपुर को बिहार के सूबेदार को जागीर के रूप में सौंप दिया गया था, जिससे मुगलों का प्रभाव क्षेत्र बढ़ा।
- दुर्जन साल के उत्तराधिकारी ने मुगलों के साथ संघर्ष जारी रखा, और चेरो राजाओं ने कई बार मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया।
- 1636 में मुगलों ने उनके खिलाफ फिर से आक्रमण किया, लेकिन चेरो राजाओं की साहसिकता और उनके संघर्ष ने क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखी।
शाहजहां और मुगलों के अंतर्गत छोटानागपुर की स्थिति (1640-1707):
- शाहजहां के शासनकाल में छोटानागपुर के क्षेत्र में पूरी तरह से मुगलों का दबदबा स्थापित हुआ।
- मुगलों ने कई बार इस क्षेत्र पर आक्रमण किया और अपने शासन को मजबूत किया, लेकिन स्थानीय शासक और विद्रोही हमेशा उनके खिलाफ संघर्ष करते रहे।
निष्कर्ष:
- मध्यकालीन इतिहास में झारखंड और छोटानागपुर का इतिहास मुगलों के लिए महत्वपूर्ण था, खासकर हीरों की खदानों और विद्रोही गतिविधियों के कारण।
- मुगलों के साम्राज्य में छोटे-छोटे राज्यों का अस्तित्व बरकरार रहा, जहां राजाओं ने अपनी स्वतंत्रता और सामरिक महत्व के लिए संघर्ष किया।
- यह संघर्ष और राजनीतिक गतिविधियाँ आज के झारखंड के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को समझने में मदद करती हैं।
स्थानीय शासकों और मुगलों के बीच संबंधों का अध्ययन
- रघुनाथ शाह और मेदिनी राय के संबंध: रघुनाथ शाह और मेदिनी राय जैसे स्थानीय शासकों ने मुगलों के साथ अपने संबंधों को रणनीतिक रूप से सम्हाला। कभी वे समर्पण करते थे, तो कभी मुगलों के खिलाफ संघर्ष भी करते थे।
- साम्राज्यवादी शक्ति और नियंत्रण: यह अध्ययन यह दर्शाता है कि मुगलों के साम्राज्यवादी प्रयासों के भीतर स्थानीय शासक अपनी स्वायत्तता और शक्ति को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते थे। इन संघर्षों का राजनीतिक परिप्रेक्ष्य आज के इतिहास को समझने में मदद करता है।
सैन्य संघर्षों का इतिहास
- पलामू और कोकरह के संघर्ष: पलामू और कोकरह क्षेत्रों में हुए सैन्य संघर्षों के उदाहरण यह स्पष्ट करते हैं कि मध्यकालीन भारत में सैन्य गतिवधियाँ कैसे राजनीतिक शक्तियों के संघर्ष का रूप लेती थीं।
- शाही खजाने का लेन-देन: इन संघर्षों में शाही खजाने और संसाधनों का लेन-देन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। शाइस्ता खां और इतिकाद खां जैसे मुगल सेनापतियों के आक्रमण और प्रताप राय की आत्मसमर्पण की घटनाएं इन सैन्य संघर्षों की जटिलताओं को दर्शाती हैं।
संस्कृति और धार्मिक निर्माण
- रघुनाथ शाह और मंदिर निर्माण: रघुनाथ शाह और उनके बाद के शासकों ने धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से कई महत्वपूर्ण मंदिरों का निर्माण किया। इस तरह के निर्माण यह दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र सांस्कृतिक रूप से समृद्ध था।
- स्थापत्य और धार्मिक महत्व: इन मन्दिरों और उनके स्थापत्य का अध्ययन करके हम यह समझ सकते हैं कि किस प्रकार स्थानीय शासक धार्मिक पहचान और सांस्कृतिक महत्व को बढ़ावा देने के लिए वास्तुशिल्प और कला के माध्यम से अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते थे।
स्थानीय राजनीति और किलों का महत्व
- किलों का निर्माण और रणनीतिक महत्व: जैसे पलामू किला और नागपुरी गेट, इन किलों का निर्माण स्थानीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। किलों का रणनीतिक स्थान और उनकी सुरक्षा संरचनाएँ क्षेत्रीय शक्ति संरचनाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं।
- स्थानीय राजनीति की संरचना: किलों का अध्ययन यह दर्शाता है कि कैसे इन किलों ने स्थानीय शासकों को एक स्थिर और सुरक्षित शासन बनाए रखने में मदद की। ये किले केवल सैन्य गढ़ ही नहीं थे, बल्कि शक्ति और नियंत्रण के प्रतीक भी थे।
राजमहल और बंगाल का प्रशासन
- शेरशाह और राजमहल: शेरशाह के समय में राजमहल एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र बना। 1592 में बंगाल की राजधानी को राजमहल से स्थानांतरित कर दिया गया।
- तेलियागढ़ी पर संघर्ष: शेरशाह के बेटे जलाल खाँ ने तेलियागढ़ी पर मुगलों से संघर्ष किया था।
- गंगा नदी का परिवर्तन: 1575 में गंगा नदी के खिसकने से गौड़ की राजधानी अस्वस्थ हो गई, और राजमहल को बंगाल का प्रशासनिक केंद्र बनाया गया।
मुगल शासकों और बंगाल
- सुलेमान कर्रानी और अकबर: 1572 में सुलेमान कर्रानी ने अकबर की अधीनता स्वीकार की, लेकिन उसके बाद अफगान शासक दाऊद कर्रानी ने स्वतंत्रता की घोषणा की।
- अकबर का हस्तक्षेप: अकबर ने 1575 में बंगाल के लिए “खान-ए-जहाँ” और टोडरमल को भेजा।
- गिद्धौर और देवघर: 1596 में गिद्धौर के राजा पूरन मल ने देवघर में शिव मंदिर की स्थापना की।
राजमहल का महत्व
- राजधानी का स्थानांतरण: 1612 में बंगाल की राजधानी ढाका में स्थानांतरित हो गई, लेकिन इससे पहले राजमहल महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र था।
- शाहजहाँ का शासन: शाहजहाँ के शासनकाल में शुजा ने राजमहल को अपनी राजधानी बनाया, लेकिन बाद में युद्धों के कारण प्रशासन में बदलाव आया।
- बर्नियर की रिपोर्ट: 1666 में बर्नियर ने लिखा कि राजमहल शिकार स्थल और व्यापारिक केंद्र था, लेकिन गंगा की धारा में परिवर्तन और सुरक्षा कारणों से ढाका को राजधानी बना लिया गया।
राजमहल में युद्ध और संघर्ष
- 1622 में विद्रोह: शाहजहाँ ने अपने पिता से विद्रोह कर दक्कन में विद्रोह किया, और राजमहल में संघर्ष हुआ।
- शाही परिवार का संघर्ष: शुजा और अन्य राजकुमारों के बीच उत्तराधिकार के लिए युद्ध के दौरान राजमहल का महत्वपूर्ण स्थान था।
मुगल साम्राज्य का विस्तार
- उत्तराधिकार युद्ध (1657): शुजा और अन्य राजकुमारों के बीच उत्तराधिकार के लिए युद्ध हुआ, जिसके परिणामस्वरूप बंगाल का प्रशासनिक केंद्र राजमहल से ढाका स्थानांतरित कर दिया गया।