Tag: झारखंड का इतिहास

  • मध्यकालीन इतिहास में छोटानागपुर और झारखंड की भूमिका (1526-1707)

    शेर खां का झारखंड में प्रवेश और प्रारंभिक संघर्ष (1536-1539):

    • 1536 में शेर खां ने झारखंड के क्षेत्र में प्रवेश किया, जब वह राजमहल होते हुए गोड़ पहुँचा।
    • शेर खां ने झारखंड के राजा महारथ चेरो के खिलाफ युद्ध किया, जिसमें चेरो को आत्मसमर्पण करना पड़ा।
    • 1539 में महारथ चेरो ने शेर खां के खिलाफ फिर से संघर्ष किया, लेकिन मुगलों का दबदबा बढ़ता गया।

    अकबर का आगमन और छोटानागपुर पर मुगलों का प्रभाव (1556-1605):

    • अकबर के शासनकाल में छोटानागपुर में नया राजनीतिक बदलाव आया।
    • 1585 में शहबाज खां ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया, जिसके बाद छोटानागपुर के राजा ने मुगलों के प्रति पराधीनता स्वीकार की।
    • 1589 में राजा भागवत राय ने मुगलों के साथ समझौता किया और मालगुजार बन गए।
    • अकबर के शासनकाल में छोटे राजाओं के बीच संघर्ष और सामरिक गतिविधियाँ बढ़ी, जिनमें सिंहभूम और पलामू के राजाओं का भी उल्लेख है।

    जहाँगीर का शासन और नागवंशी राजाओं का संघर्ष (1605-1627):

    • जहाँगीर के शासन में, नागवंशी राजा दुर्जन साल ने मुगलों के अधीनता को नकारा और स्वतंत्रता की मांग की।
    • 1615 में जहाँगीर ने झारखंड पर आक्रमण के लिए जफर खां को भेजा, लेकिन दुर्जन साल ने उसे हीरे और अन्य उपहारों से ललचाकर अधीनता की शर्तों से मुक्त कर दिया।
    • दुर्जन साल ने नई राजधानी का निर्माण किया और अपने राज्य को मजबूत किया।
    • 1627 में दुर्जन साल की मृत्यु के बाद, कोकरह की स्थिति में फिर से बदलाव हुआ और नये राजा ने मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया।

    मुगलों का दबाव और चेरो राजाओं का संघर्ष (1627-1640):

    • 1632 में, छोटानागपुर को बिहार के सूबेदार को जागीर के रूप में सौंप दिया गया था, जिससे मुगलों का प्रभाव क्षेत्र बढ़ा।
    • दुर्जन साल के उत्तराधिकारी ने मुगलों के साथ संघर्ष जारी रखा, और चेरो राजाओं ने कई बार मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया।
    • 1636 में मुगलों ने उनके खिलाफ फिर से आक्रमण किया, लेकिन चेरो राजाओं की साहसिकता और उनके संघर्ष ने क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखी।

    शाहजहां और मुगलों के अंतर्गत छोटानागपुर की स्थिति (1640-1707):

    • शाहजहां के शासनकाल में छोटानागपुर के क्षेत्र में पूरी तरह से मुगलों का दबदबा स्थापित हुआ।
    • मुगलों ने कई बार इस क्षेत्र पर आक्रमण किया और अपने शासन को मजबूत किया, लेकिन स्थानीय शासक और विद्रोही हमेशा उनके खिलाफ संघर्ष करते रहे।

    निष्कर्ष:

    • मध्यकालीन इतिहास में झारखंड और छोटानागपुर का इतिहास मुगलों के लिए महत्वपूर्ण था, खासकर हीरों की खदानों और विद्रोही गतिविधियों के कारण।
    • मुगलों के साम्राज्य में छोटे-छोटे राज्यों का अस्तित्व बरकरार रहा, जहां राजाओं ने अपनी स्वतंत्रता और सामरिक महत्व के लिए संघर्ष किया।
    • यह संघर्ष और राजनीतिक गतिविधियाँ आज के झारखंड के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को समझने में मदद करती हैं।

    स्थानीय शासकों और मुगलों के बीच संबंधों का अध्ययन

    • रघुनाथ शाह और मेदिनी राय के संबंध: रघुनाथ शाह और मेदिनी राय जैसे स्थानीय शासकों ने मुगलों के साथ अपने संबंधों को रणनीतिक रूप से सम्हाला। कभी वे समर्पण करते थे, तो कभी मुगलों के खिलाफ संघर्ष भी करते थे।
    • साम्राज्यवादी शक्ति और नियंत्रण: यह अध्ययन यह दर्शाता है कि मुगलों के साम्राज्यवादी प्रयासों के भीतर स्थानीय शासक अपनी स्वायत्तता और शक्ति को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते थे। इन संघर्षों का राजनीतिक परिप्रेक्ष्य आज के इतिहास को समझने में मदद करता है।

    सैन्य संघर्षों का इतिहास

    • पलामू और कोकरह के संघर्ष: पलामू और कोकरह क्षेत्रों में हुए सैन्य संघर्षों के उदाहरण यह स्पष्ट करते हैं कि मध्यकालीन भारत में सैन्य गतिवधियाँ कैसे राजनीतिक शक्तियों के संघर्ष का रूप लेती थीं।
    • शाही खजाने का लेन-देन: इन संघर्षों में शाही खजाने और संसाधनों का लेन-देन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। शाइस्ता खां और इतिकाद खां जैसे मुगल सेनापतियों के आक्रमण और प्रताप राय की आत्मसमर्पण की घटनाएं इन सैन्य संघर्षों की जटिलताओं को दर्शाती हैं।

    संस्कृति और धार्मिक निर्माण

    • रघुनाथ शाह और मंदिर निर्माण: रघुनाथ शाह और उनके बाद के शासकों ने धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से कई महत्वपूर्ण मंदिरों का निर्माण किया। इस तरह के निर्माण यह दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र सांस्कृतिक रूप से समृद्ध था।
    • स्थापत्य और धार्मिक महत्व: इन मन्दिरों और उनके स्थापत्य का अध्ययन करके हम यह समझ सकते हैं कि किस प्रकार स्थानीय शासक धार्मिक पहचान और सांस्कृतिक महत्व को बढ़ावा देने के लिए वास्तुशिल्प और कला के माध्यम से अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते थे।

    स्थानीय राजनीति और किलों का महत्व

    • किलों का निर्माण और रणनीतिक महत्व: जैसे पलामू किला और नागपुरी गेट, इन किलों का निर्माण स्थानीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। किलों का रणनीतिक स्थान और उनकी सुरक्षा संरचनाएँ क्षेत्रीय शक्ति संरचनाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं।
    • स्थानीय राजनीति की संरचना: किलों का अध्ययन यह दर्शाता है कि कैसे इन किलों ने स्थानीय शासकों को एक स्थिर और सुरक्षित शासन बनाए रखने में मदद की। ये किले केवल सैन्य गढ़ ही नहीं थे, बल्कि शक्ति और नियंत्रण के प्रतीक भी थे।

    राजमहल और बंगाल का प्रशासन

    • शेरशाह और राजमहल: शेरशाह के समय में राजमहल एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र बना। 1592 में बंगाल की राजधानी को राजमहल से स्थानांतरित कर दिया गया।
    • तेलियागढ़ी पर संघर्ष: शेरशाह के बेटे जलाल खाँ ने तेलियागढ़ी पर मुगलों से संघर्ष किया था।
    • गंगा नदी का परिवर्तन: 1575 में गंगा नदी के खिसकने से गौड़ की राजधानी अस्वस्थ हो गई, और राजमहल को बंगाल का प्रशासनिक केंद्र बनाया गया।

    मुगल शासकों और बंगाल

    • सुलेमान कर्रानी और अकबर: 1572 में सुलेमान कर्रानी ने अकबर की अधीनता स्वीकार की, लेकिन उसके बाद अफगान शासक दाऊद कर्रानी ने स्वतंत्रता की घोषणा की।
    • अकबर का हस्तक्षेप: अकबर ने 1575 में बंगाल के लिए “खान-ए-जहाँ” और टोडरमल को भेजा।
    • गिद्धौर और देवघर: 1596 में गिद्धौर के राजा पूरन मल ने देवघर में शिव मंदिर की स्थापना की।

    राजमहल का महत्व

    • राजधानी का स्थानांतरण: 1612 में बंगाल की राजधानी ढाका में स्थानांतरित हो गई, लेकिन इससे पहले राजमहल महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र था।
    • शाहजहाँ का शासन: शाहजहाँ के शासनकाल में शुजा ने राजमहल को अपनी राजधानी बनाया, लेकिन बाद में युद्धों के कारण प्रशासन में बदलाव आया।
    • बर्नियर की रिपोर्ट: 1666 में बर्नियर ने लिखा कि राजमहल शिकार स्थल और व्यापारिक केंद्र था, लेकिन गंगा की धारा में परिवर्तन और सुरक्षा कारणों से ढाका को राजधानी बना लिया गया।

    राजमहल में युद्ध और संघर्ष

    • 1622 में विद्रोह: शाहजहाँ ने अपने पिता से विद्रोह कर दक्कन में विद्रोह किया, और राजमहल में संघर्ष हुआ।
    • शाही परिवार का संघर्ष: शुजा और अन्य राजकुमारों के बीच उत्तराधिकार के लिए युद्ध के दौरान राजमहल का महत्वपूर्ण स्थान था।

    मुगल साम्राज्य का विस्तार

    • उत्तराधिकार युद्ध (1657): शुजा और अन्य राजकुमारों के बीच उत्तराधिकार के लिए युद्ध हुआ, जिसके परिणामस्वरूप बंगाल का प्रशासनिक केंद्र राजमहल से ढाका स्थानांतरित कर दिया गया।

  • “झारखंड का इतिहास: जनजातीय आंदोलन, राज्य संघर्ष और गठन की समयरेखा”

    वर्ष 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड एक स्वतंत्र राज्य बना, लेकिन इसका इतिहास हजारों साल पुराना है। यह भूमि प्रागैतिहासिक सभ्यता, आदिवासी विद्रोहों और राज्य निर्माण की जटिल प्रक्रियाओं से जुड़ी हुई है। आइए झारखंड की इस समृद्ध ऐतिहासिक यात्रा को कालखंडों के अनुसार समझें।

    प्रागैतिहासिक युग: आरंभिक मानव बस्तियाँ

    • छोटानागपुर पठार में मेसोलिथिक और नियोलिथिक युग के औजार और माइक्रोलिथ मिले हैं।
    • इस्को (हजारीबाग) में 9000-5000 ई.पू. की गुफा चित्रकला, भारत की सबसे पुरानी कलात्मक अभिव्यक्तियों में से एक है।
    • पुंकरी बरवाडीह (बड़कागांव) में 5000 वर्ष पुराने मेगालिथिक स्मारक मिले हैं।

    ताम्रपाषाण युग (चालकोलिथिक काल)

    • दूसरी सहस्राब्दी ई.पू. में तांबे के उपकरण और कॉपर होर्ड संस्कृति का उद्भव।
    • कबरा-कला (पलामू) में नवपाषाण से मध्यकाल तक की निरंतर सांस्कृतिक उपस्थिति:
      • लाल मृद्भांड
      • काले-लाल मृद्भांड
      • उत्तरी काले पॉलिशदार बर्तन (NBPW)

    लौह युग: तकनीकी प्रगति

    • बारुडीह (सिंहभूम) से लौह स्लैग और पहिए से बने बर्तन मिले।
    • रेडियोकार्बन डेटिंग अनुसार कलाकृतियाँ 1401–837 ई.पू. की हैं।

    प्राचीन काल: वैदिक से मौर्य युग

    • वैदिक युग में आर्यों का पूर्व की ओर प्रसार और कृषि विस्तार।
    • महाजनपदों और श्रमण आंदोलनों (जैन-बौद्ध) का प्रभाव क्षेत्र में देखा गया।
    • महाभारत में क्षेत्र को कर्क खंड कहा गया है।
    • मौर्य काल में यह अटाविका राज्यों के अंतर्गत आया; अशोक के शासन में मौर्य साम्राज्य में विलय।
    • ब्रह्मी लिपि के शिलालेख और पुरातात्विक खोजें सारिदकेल और कर्बकला में पाई गईं।

    गुप्त एवं पाल युग: सांस्कृतिक उत्कर्ष

    • समुद्रगुप्त ने अपने दक्षिणी अभियान में इस क्षेत्र से होकर प्रस्थान किया।
    • पाल साम्राज्य के अधीन बौद्ध संस्कृति का प्रभाव, हजारीबाग के मठ इसके प्रमाण हैं।

    मध्यकाल: नागवंशी और मुगल संपर्क

    • 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने क्षेत्र का वर्णन किया।
    • नागवंशी राजाओं का शासन, नवरत्नगढ़ किला और जगन्नाथ मंदिर (रांची, 1691) के निर्माण के लिए प्रसिद्ध।
    • अकबर ने हीरों के लिए खुखरा क्षेत्र में हस्तक्षेप किया।

    औपनिवेशिक युग: ब्रिटिश शासन और विद्रोह

    • चेरो, नागवंशी, रामगढ़, खड़गडीहा जैसे राजवंशों का शासन।
    • पलामू के राजा मेदिनी राय ने किले को सुदृढ़ किया।
    • दाउद खान (1660) और कैप्टन कैमक (1771) के हमले के बाद ब्रिटिश अधिपत्य।
    • क्षेत्र को नौ रियासतों में बाँटा गया, और समयानुसार बंगाल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पूर्वी राज्य एजेंसी में समाहित किया गया।

    जनजातीय विद्रोह: ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध संघर्ष

    • चुआर विद्रोह (1766–1809)
    • तिलका मांझी का विद्रोह (1780–1785)
    • कोल विद्रोह (1831–32) – बिंदराय मानकी और बुधु भगत
    • संथाल विद्रोह (1855–60) – सिधू-कान्हू
    • 1857 का विद्रोह – टिकैत उमराव सिंह, विश्वनाथ शाहदेव, शेख भिखारी
    • बिरसा मुंडा का उलगुलान (1895–1900) – रांची जेल में मृत्यु

    आधुनिक युग: स्वतंत्रता संग्राम और राज्य निर्माण

    • 1914: टाना भगत आंदोलन – बाद में गांधीवादी आंदोलनों से जुड़ा।
    • 1940: रामगढ़ में कांग्रेस का 53वां अधिवेशन – गांधी, नेहरू, सरोजिनी नायडू की उपस्थिति।
    • 1947: स्वतंत्रता के बाद क्षेत्र बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश में विभाजित।

    झारखंड आंदोलन और राजनीतिक विकास

    • 1928: ‘उन्नति समाज’ द्वारा अलग राज्य की माँग।
    • 1955: जयपाल सिंह मुंडा की झारखंड पार्टी का ज्ञापन – अस्वीकार।
    • 1972: झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और AJSU का गठन।
    • 1988: भाजपा द्वारा वनांचल आंदोलन।
    • 1994: झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद (JAAC) की स्थापना।
    • 1998: न्यायमूर्ति एल.पी.एन. शाहदेव के नेतृत्व में आंदोलन तेज।

    झारखंड राज्य का गठन

    • 2000: संसद ने बिहार पुनर्गठन अधिनियम पारित किया।
    • 15 नवंबर 2000: झारखंड भारत का 28वां राज्य बना।
      • पहले मुख्यमंत्री: बाबूलाल मरांडी
      • क्षेत्र: छोटानागपुर पठार, संथाल परगना

    राज्य स्थापना के बाद

    • 15 नवंबर 2023: झारखंड ने 23वां स्थापना दिवस मनाया।
    • विकास, जनजातीय सशक्तिकरण और सांस्कृतिक संरक्षण पर निरंतर ध्यान।