झारखंड जनजातीय पर्व – JPSC, SSC और अन्य राज्य परीक्षाओं के लिए महत्त्वपूर्ण

झारखंड, जो अपनी जनजातीय विरासत और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, भारत के कुछ सबसे अनोखे और जीवंत आदिवासी त्योहारों का घर है। तमाड़ के सरना मंदिरों में मनाया जाने वाला प्रतीकात्मक भगता पर्व हो या जनशक्ति का प्रतीक जानी शिकार, जिसमें महिलाएं पारंपरिक हथियारों के साथ शिकार पर निकलती हैं — ये पर्व जनजातीय पहचान, प्रतिरोध और आध्यात्मिकता के जीवंत प्रतीक हैं। संथाल, उरांव, खड़िया और माल पहाड़िया जैसी प्रमुख जनजातियों द्वारा मनाए जाने वाले सेंदरा पर्व, देशौली, मुक्का सेंदरा और हल हाय जैसे त्योहार न केवल ऋतु परिवर्तन को चिह्नित करते हैं, बल्कि पूर्वजों की वीरता, कृषि चक्र और सामाजिक एकता का उत्सव भी होते हैं।
यह गाइड झारखंड के कम-प्रसिद्ध लेकिन सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण जनजातीय और ऋतुक पर्वों की विस्तृत जानकारी देता है — इनके अनुष्ठानों, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, अनोखी परंपराओं, और स्थानीय संस्कृति में इनके महत्त्व को उजागर करता है।
चाहे आप प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हों या गहराई से सांस्कृतिक समझ चाहते हों, यह लेख झारखंड के आदिवासी पर्वों की पूरी जानकारी एक ही जगह पर देता है।

सरहुल पर्व

  • झारखंड का सबसे महत्वपूर्ण जनजातीय पर्व है।
  • मध्य मार्च (चैत्र शुक्ल तृतीया) में मनाया जाता है।
  • यह प्रकृति-आधारित व पुष्प पर्व है, जो वसंत ऋतु में मनाया जाता है।
  • साल वृक्ष (Shorea robusta) का विशेष महत्व है क्योंकि जनजातीय मान्यता अनुसार बोंगा देवता साल वृक्ष में निवास करते हैं।
  • विभिन्न जनजातियों में इसके अलग-अलग नाम हैं:
    • सुत्थी – उरांव
    • बा परब – संथाल
    • जकोर – खड़िया

चार दिनों तक मनाया जाता है:

  1. पहला दिन:
    • मछली पूजा के बाद घरों में पवित्र जल छिड़का जाता है।
    • ग्राम पुजारी (पहान) हर घर की छत पर साल फूल चढ़ाता है।
  2. दूसरा दिन:
    • सरना स्थल (पवित्र वन) में सरई फूलों की पूजा होती है।
    • अनुष्ठानों में उपवास, मुर्गे की बलि और सुदी (चावल और चिकन से बनी खिचड़ी) का प्रसाद वितरण होता है।
  3. तीसरा दिन:
    • सरहुल फूलों को “गिदुआ” नामक स्थान पर विसर्जित किया जाता है।
  4. चौथा दिन:
    • पहान तीन मटकों में जल भरता है, अगले दिन यदि जल कम हो जाए तो अकाल का संकेत, जल यथावत रहे तो अच्छी बारिश का संकेत होता है।

मांडा पर्व

  • भगवान शिव (महादेव) को समर्पित पर्व।
  • बैसाख माह की अक्षय तृतीया को प्रारंभ होता है।
  • आदिवासी और सदान दोनों समुदायों द्वारा मनाया जाता है।
  • यह झारखंड में शिव भक्ति का सबसे कठिन रूप माना जाता है।
  • पुरुष भक्त “भगता”, महिलाएं “सोकठाइन” कहलाती हैं।

मुख्य अनुष्ठान:

  • रात को अग्नि के ऊपर उल्टा लटकना – इसे धुवांसी कहते हैं।
  • जलते अंगारों पर चलनाफूलखुंडी कहलाता है।
  • कहीं-कहीं पर लोहे के हुक से पीठ छेदकर रस्सी से लटकाया जाता है।
  • इस दौरान भगता की माँ या बहन शिव की पूजा करती है।

करम पर्व

  • प्रकृति आधारित पर्व जो आदिवासी और सदान दोनों समुदायों में लोकप्रिय है।
  • मानव जीवन में कर्म (कार्य) के महत्व का उत्सव है।
  • बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र के लिए उपवास करती हैं, ठीक भैया दूज की तरह।
  • भाद्रपद (भादो) शुक्ल एकादशी को मनाया जाता है।

अनुष्ठान:

  • अखाड़ा (नृत्य स्थल) में करम पेड़ की दो शाखाएँ लगाई जाती हैं।
  • पहान “कर्मा और धर्मा” भाइयों की कथा सुनाता है।
  • पूरी रात गीत-संगीत और पारंपरिक नृत्य होता है।

मुंडा जनजाति में दो प्रकार के करम पर्व:

  • राज करम: घरों में पारिवारिक पूजा।
  • देश करम: अखाड़ा में सामूहिक पूजा।
  • कुवांरी लड़कियाँ “जावा” (7 अनाजों के अंकुर) जैसे – चना, गेहूं, मक्का, मसूर, जौ, मटर – उगाकर नदी/तालाब में अगली सुबह विसर्जित करती हैं।

सोहराय पर्व

  • दीवाली के अगले दिन मनाया जाता है।
  • पशुओं का मुख्य पर्व, फसल और मवेशियों के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक।
  • कार्तिक मास में, फसल कटाई के बाद मनाया जाता है।
  • संथाल जनजाति का सबसे बड़ा पर्व है।
  • घरों की दीवारों को प्राकृतिक रंगों से सजाया जाता है, जिसमें चावल का आटा, कोयला और मिट्टी का उपयोग होता है।

पाँच दिनों का उत्सव:

  1. पहला दिन:
    • गोड टांडी (पशु स्थल) में जाहेर एरा की पूजा।
    • युवाओं द्वारा गो-पूजन।
  2. दूसरा दिन:
    • पशुओं को नहलाया व रंगा जाता है।
    • सींगों पर तेल व सिंदूर लगाया जाता है।
    • फूलों व धान की भूसी (सांताउ) से सजाया जाता है।
  3. तीसरा दिन:
    • युवक धान, दाल, मसाले आदि सामग्री इकट्ठा करते हैं।
  4. चौथा दिन:
    • भोजन की तैयारी।
  5. पाँचवां दिन:
    • सामूहिक रूप से खिचड़ी पकाई जाती है और बाँटी जाती है।

धान बुनी (Rice Sowing) पर्व

  • आदिवासी और सदान दोनों समुदायों द्वारा मनाया जाता है।
  • यह पर्व धान बोने की शुरुआत को दर्शाता है।
  • स्थानीय हड़िया (चावल की शराब) अर्पित की जाती है और प्रसाद का वितरण होता है।
  • इसे “राइस बाहरलाक” भी कहा जाता है।

बहुरा पर्व

  • भादो मास की कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाता है।
  • महिलाएं बच्चों व वर्षा की कामना हेतु व्रत करती हैं।

मुर्गा लड़ाई (Cock Fight)

  • यह झारखंड की पारंपरिक सांस्कृतिक धरोहर मानी जाती है।
  • मुर्गों की लड़ाई होती है, जिस पर लोग दांव लगाते हैं।
  • यह मेलों के दौरान आयोजित एक उत्सव और प्रतियोगिता है।

कडलेटा पर्व

  • भादों माह में करमा से पहले मनाया जाता है।
  • मेंढक भूत (Medhak Bhoot) को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है।
  • पाहन (जनजातीय पुजारी) गाँव से चावल एकत्र करता है और हड़िया (स्थानीय शराब) बनाता है।
  • पूजा अखड़ा में साल, भेलवा और केंदु की टहनियों से की जाती है।
  • पूजा के बाद, इन शाखाओं को खेतों में लगाया जाता है ताकि फसलों को बीमारियों से बचाया जा सके।
  • मुर्गी बलि दी जाती है और मांस को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

फगुआ (फगुआ)

  • फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाता है।
  • होली जैसा रंगों का त्योहार है।
  • पाहन के साथ आदिवासी लोग सेमल या अरंडी की शाखाएं लगाकर संवत जलाते हैं।
  • मुख्य अनुष्ठानों में मुर्गी बलि और हड़िया चढ़ाना शामिल है।
  • गैर-आदिवासी भी संवत जलाते हैं लेकिन बलि नहीं देते।
  • अगले दिन को धुर खेल कहा जाता है।

रोग खेदना पर्व

  • गाँव से बीमारियों को बाहर निकालने की प्राचीन लोक-परंपरा है।

आषाढ़ी पूजा

  • आदिवासी और सदान दोनों समुदायों द्वारा आषाढ़ महीने में मनाई जाती है।
  • घरों और आंगनों में बकरी बलि दी जाती है और हड़िया चढ़ाया जाता है।
  • यह माना जाता है कि यह पूजा चेचक जैसी बीमारियों से रक्षा करती है।

नवाखानी पर्व

  • करमा पर्व के बाद मनाया जाता है।
  • अर्थ:नया अन्न खाना’।
  • नए अन्न को घर लाया जाता है और मुसल व ओखली से कूटा जाता है।
  • इसे देवताओं और पितरों को अर्पित किया जाता है, फिर दही-चूड़ा खाया जाता है।
  • हड़िया भी चढ़ाया जाता है।

सुरही पूजा

  • अगहन माह में मनाई जाती है।
  • सफेद मुर्गे की बलि और हड़िया चढ़ाने की परंपरा होती है।

जिउतिया पर्व

  • माँ द्वारा अपने पुत्रों की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए उपवास रखा जाता है।

छाड़ पर्व

  • माघ पूर्णिमा को उरांव जनजाति द्वारा मनाया जाता है।
  • गर्भवती महिलाओं वाले घरों के पुरुष और महिलाएं इस पूजा में भाग नहीं लेते।
  • पुरुष चंडी स्थल पर देवी की पूजा करते हैं।
  • सफेद व लाल मुर्गे और सफेद बकरी की बलि दी जाती है।

देव उठान पर्व

  • कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है।
  • देवताओं को जगाने का कार्य होता है।
  • इसके बाद शादी के प्रस्तावों की शुरुआत मानी जाती है।

भाई भीख पर्व

  • हर 12 वर्षों में एक बार मनाया जाता है।
  • बहनें भाइयों के घरों से भीख मांगती हैं और फिर उन्हें भोजन पर बुलाती हैं।

बुरू पर्व (महत्वपूर्ण – मुंडा जनजाति)

  • मुंडा जनजाति द्वारा मनाया जाता है।
  • टांड़ (टीले) पर आयोजित होता है।
  • केवल पुरुष इसमें भाग लेते हैं।

छठ पर्व (अत्यंत महत्वपूर्ण – बार-बार पूछा जाता है)

  • चैत्र और कार्तिक में साल में दो बार मनाया जाता है।
  • सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
  • झारखंड का प्रमुख त्योहार है।
  • ठेकुआ प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

बंदना पर्व (बार-बार परीक्षा में आता है)

  • कार्तिक अमावस्या को सप्ताह भर तक मनाया जाता है।
  • ओहिरा गीतों से शुरुआत होती है।
  • पालतू जानवरों को समर्पित पर्व है।
  • जानवरों को कपड़े, गहनों से सजाया जाता है और लोकचित्रों से रंगा जाता है।

रोहिन/रोहिणी पर्व (महत्वपूर्ण)

  • वर्ष का पहला त्योहार है।
  • बीज बोने का पर्व है।
  • इस दिन से किसान बीज बोना शुरू करते हैं।
  • इस पर्व में नृत्य व गीत नहीं होते।

हीरो पर्व (Ho जनजाति – महत्वपूर्ण)

  • ‘हीरो’ का अर्थ है बिखेरना या बोना
  • माघे व बहा पर्व के बाद मनाया जाता है।
  • कोल्हान क्षेत्र में हो जनजाति द्वारा मनाया जाता है।
  • इसे फसल की सुरक्षा हेतु मनाया जाता है; न मनाने पर फसल क्षति मानी जाती है।

जावा पर्व (आदिवासी युवतियों के लिए महत्वपूर्ण)

  • भादों माह में मनाया जाता है।
  • युवतियों की उर्वरता व अच्छे वर प्राप्ति के लिए मनाया जाता है।

परीक्षा हेतु मुख्य बिंदु:

झारखंड राज्य की प्रतियोगी परीक्षाओं में इन पर्वों पर आधारित कई प्रश्न पूछे जाते हैं।
चिह्नित त्योहारों पर विशेष ध्यान दें – ये बार-बार परीक्षा में आते हैं।
जनजातीय संबंध, समय (माह), अनुष्ठान (बलि, हड़िया आदि), और सामाजिक परंपराएं – इन पर केंद्रित अध्ययन करें।

भगता पर्व

  • बसंत और ग्रीष्म ऋतु के बीच मनाया जाता है।
  • तमाड़ क्षेत्र में अधिक प्रचलित।
  • सरना मंदिरों में “बूढ़ा बाबा पूजा” के रूप में मनाया जाता है।
  • पाहन को कंधे पर उठाकर सरना स्थल ले जाया जाता है।
    परीक्षा बिंदु: सरना धर्म में बूढ़ा बाबा पूजन से संबंधित।

सेन्द्रा पर्व (शिकार पर्व)

  • उरांव जनजाति की परंपरा से जुड़ा।
  • सेन्द्रा” का अर्थ है शिकार करना
  • एक विशेष प्रकार है “मुक्का सेन्द्रा” जिसमें महिलाएं पुरुष वेश में शिकार करती हैं।
    मुख्य बातें:
  • सैन्य प्रशिक्षण, आत्मरक्षा, और संसाधन जुटाने का पर्व।
  • वैशाख (विश सेन्द्रा), फगुन (फगुन सेन्द्रा), ज्येष्ठ (ज्येष्ठ सेन्द्रा) में मनाया जाता है।
  • छछरा बेचना” में पक्षी (विशेषकर शिकरा) का शिकार होता है।

जानी शिकार (महिला शिकार पर्व)

  • महिलाएं शिकार करती हैं, पीठ पर बच्चे (बेत्रा) लेकर।
  • पुरुषों का वेष, पारंपरिक हथियार, और अखड़ा में पकाकर भोज होता है।
  • पाहन मांस बांटते हैं।
    विशेष तथ्य:
  • केवल झारखंड में मनाया जाता है।
  • हर 12 वर्षों में एक बार मनाया जाता है।
  • उरांव इतिहास से जुड़ा: जब महिलाओं ने मुगल आक्रमण के विरुद्ध लड़ाई लड़ी।
  • सिंघी दाई (राजा की बेटी) और केला दाई (सेनापति की बेटी) के नेतृत्व में।
  • मुगलों ने तोपें चलाईं, कई महिलाएं शहीद हुईं।

देशावली पर्व

  • हर 12 वर्षों में एक बार मनाया जाता है।
  • भूमिहार धारी द्वारा मारांग बुरु को भैंस (काड़ा) की बलि।
  • बलिदान पशु को भूमि में दफनाया जाता है।
    अनुष्ठानिक महत्व: पृथ्वी-केंद्रित बलिपरंपरा का दुर्लभ उदाहरण।

माघे पर्व

  • माघ महीने में मनाया जाता है।
  • कृषि वर्ष के अंत और नए चक्र की शुरुआत का प्रतीक।
  • धानगरों (मजदूरों) को विदाई दी जाती है।
  • रोटी और पीठा से भोजन व भेंट दी जाती है।
    मौसमी महत्व: कटाई का आभार और श्रमिक सम्मान का प्रतीक।

सावनी पूजा

  • श्रावण शुक्ल सप्तमी को मनाई जाती है।
  • देवी को बकरी की बलि दी जाती है।
  • हड़िया का प्रयोग अनुष्ठान में होता है।
    बरसात के मौसम से जुड़ी उर्वरता और रक्षा की पूजा।

हल हया पर्व

  • माघ माह के पहले दिन से शुरू होता है।
  • हल से ढाई फेरा खेत जोता जाता है – शुभ माना जाता है।
    कृषि मान्यता: उर्वरता व भूमि शुद्धि का प्रतीक।

अन्य प्रमुख जनजातीय पर्व (झारखंड के)

पर्वजनजातिमुख्य विशेषताएं
एरोकसंथालसावन में जब धान हरा होता है, अच्छी फसल की प्रार्थना।
हरियरसंथालआषाढ़ में बीज बोने के समय मनाया जाता है।
सकरातसंथालपौष में परिवार की समृद्धि हेतु।
बाहासंथालफागुन में पवित्र जल की होली।
जात्राउरांवजेठ, अगहन, कार्तिक में गोत्र पूजा से संबंधित।
जंकोर पूजाखरियाभादों में नई फसल काटने के बाद।
आया पर्वखरियावसंत ऋतु में।
कुत्सी पर्वमाल पहाड़ियाघर की रक्षा और समृद्धि हेतु।
मुक्का पर्वअसुरलोहा गलाने के उद्योग से जुड़ा।
मालवाआदिवासी महिलाएंपुरुष वेश में शिकार करती हैं। कडलेटा के बाद।
फरेखसंथालभाख काटेक के नाम से भी जाना जाता है।

महत्वपूर्ण: उपरोक्त सभी पर्व कृषि, प्रकृति और जनजातीय परंपराओं से जुड़े हैं और झारखंड की सरकारी परीक्षाओं में बार-बार पूछे जाते हैं।

8. पाटो सरना पूजा (खरिया जनजाति)

  • वैशाख माह में मनाई जाती है।
  • भैंस, बकरी और पांच मुर्गों की बलि दी जाती है।
  • कालो नामक पुजारी द्वारा आयोजित की जाती है।
  • सर्ना स्थल पर दूध उबाला जाता है – दूध किस दिशा में बहता है, उससे वर्षा की भविष्यवाणी की जाती है।
  • एक युवा कालो को कंधे पर उठाकर गांव में घुमाता है।
    उद्देश्य: मानव व पशुओं को बुरी शक्तियों से बचाना।

परीक्षा हेतु मुख्य निष्कर्ष:

जानी शिकार, भगता, मुक्का सेन्द्रा, पाटो सरना जैसे पर्व झारखंड की विशेष पहचान हैं।
कई पर्वों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी, खासकर शिकार व सुरक्षा में देखी जाती है।
कृषि, प्रकृति पूजा, और ऐतिहासिक घटनाएं जनजातीय उत्सवों का आधार हैं।
JPSC, JSSC, JTET सहित अन्य झारखंड राज्य परीक्षाओं में अत्यधिक पूछे जाने वाले विषय।











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