झारखंड की जनजातियाँ – संस्कृति, समाज, अर्थव्यवस्था और धर्म

खड़िया जनजाति

उत्पत्ति और भाषा

  • “खड़िया” नाम की उत्पत्ति “खड़खड़िया” (पालकी उठाने वाले) से मानी जाती है।
  • यह जनजाति प्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड नस्लीय समूह से संबंधित है।
  • खड़िया भाषा को भी “खड़िया” कहा जाता है, जो मुंडारी (ऑस्ट्रो-एशियाटिक) भाषा समूह की है।
  • झारखंड में मुख्य क्षेत्र: गुमला, सिमडेगा, रांची, लातेहार, सिंहभूम, हजारीबाग
  • झारखंड के बाहर: ओडिशा, मध्य प्रदेश, असम, बंगाल

जनजाति के भीतर वर्गीकरण

  • खड़िया जनजाति को तीन उप-समूहों में बाँटा गया है:
    1. पहाड़ी खड़िया (सबसे पिछड़े)
    2. ढेलकी (बेलकी) खड़िया
    3. दूध खड़िया (आर्थिक रूप से सबसे समृद्ध)
  • आर्थिक समृद्धि का क्रम:
    दूध खड़िया > ढेलकी खड़िया > पहाड़ी खड़िया
  • इन तीनों समूहों के बीच अंतर-विवाह मान्य नहीं है

विवाह प्रथा

  • दहेज को “गिनिंग टेह” कहा जाता है।
  • खड़िया परिवार व्यवस्था पितृसत्तात्मक और पितृवंशीय है।
  • बहुपत्नी प्रथा प्रचलित है।
  • प्रमुख विवाह प्रकार: ओलोलदाई (पारंपरिक विवाह)
  • अन्य प्रकार के विवाह:
    • उपहारा उधारी (ऋण विवाह)
    • सह-पलायन (प्रेमियों का भाग जाना)
    • धुकु चोलकी (लिव-इन व्यवस्था)
    • अनाहुत (स्वतः उत्पन्न)
    • टापा या तानिला (अपहरण विवाह)
    • राजी खुशी (आपसी सहमति)
    • प्रेम विवाह
    • सगाई विवाह
    • विधवा/विधुर विवाह

सामाजिक संरचना

  • युवक छात्रावास: गिटियो
  • गाँव का मुखिया: महतो
  • मुखिया का सहायक: नेगी
  • संदेशवाहक: धिरा
  • जनजातीय पंचायत: जातीय पंचायत
  • जातीय पंचायत का मुखिया: गिटियो

आर्थिक व्यवस्था

  • खड़िया लोग मुख्यतः कृषि और शिकार से जीवनयापन करते हैं।
  • पहाड़ी खड़िया आज भी आदिम जीवन शैली अपनाए हुए हैं।
  • मुख्य भोजन: चावल
  • “फगु त्योहार” उनकी आर्थिक स्थिति को दर्शाता है। (परीक्षाओं में अक्सर पूछा जाता है)

धार्मिक विश्वास

  • मुख्य देवता: बेला भगवान / ठाकुर (सूर्य का प्रतीक)
  • अन्य देवी-देवता:
    • पराडूबो
    • बोराम
    • पहाड़ देवता
    • वन देवता
    • सरना देवी
    • गुमी
  • उनकी भाषा में ईश्वर को गिरिंग बेरी या धर्मराजा कहते हैं।
  • धार्मिक प्रमुख:
    • ढेलकी व दूध खड़िया: पाहन या कालो
    • पहाड़ी खड़िया: दिहुरी
  • धर्म और जादू-टोने को अत्यधिक महत्व दिया जाता है।
  • प्रमुख पर्व:
    • बंदेई (कार्तिक पूर्णिमा को)
    • करमा
    • कदलेता
    • बंगारी
    • जोद्देम (नए अन्न का त्योहार)
    • जिमटांग (पशु शेड की पूजा)
    • गिदिद, पोनोमोसोर, भंडा, डोरो बू, पितृ पूजा
    • फगु शिकार – पट और योराम की पूजा और सरना में पशु बलि शामिल

लोहड़ा / लोहरा जनजाति

उत्पत्ति और भाषा

  • यह जनजाति प्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड नस्लीय समूह से संबंधित है।
  • इन्हें असुर जनजाति का वंशज माना जाता है।
  • झारखंड में क्षेत्र: रांची, गुमला, सिमडेगा, पूर्व व पश्चिम सिंहभूम, सरायकेला-खरसावाँ, पलामू, संथाल परगना
  • भाषा: सदानी

सामाजिक संरचना

  • पितृसत्तात्मक और पितृवंशीय समाज
  • प्रमुख गोत्र: सोन, साथ, तुतली, टिक्को, धन, मगहिया

आजीविका और अर्थव्यवस्था

  • मुख्य व्यवसाय: लोहे का काम (विशेषकर कृषि उपकरण बनाना)

धर्म और त्योहार

  • मुख्य देवी-देवता: सिंबोंगा और धरती माई
  • प्रमुख पर्व: विश्वकर्मा पूजा, सोहराय, फगुआ

भूमिज जनजाति

उत्पत्ति और भाषा

  • प्रमुख क्षेत्र: हजारीबाग, रांची, धनबाद
  • प्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड नस्लीय समूह से संबंधित
  • मुग़ल काल में जंगलों में रहने के कारण “धनबाद के सरदार” और चुहार / चुआद कहलाए
  • भाषा: मुंडारी, बंगाली और सदानी से प्रभावित

सामाजिक संरचना

  • पितृसत्तात्मक समाज
  • चार प्रमुख गोत्र:
    • पत्ती (पत्ता)
    • जोयेला (पक्षी)
    • गुलगु (मछली)
    • हेम्ब्रम (बादाम)
  • गोत्र के भीतर विवाह वर्जित है।

विवाह प्रथा

  • संगठित विवाह सबसे सामान्य
  • अन्य प्रकार:
    • अपहरण विवाह
    • गोलात विवाह
    • सेवा विवाह
    • राजी खुशी विवाह
  • तलाक की मान्यता: पति द्वारा पत्ता तोड़ना तलाक का प्रतीक है

पंचायती व्यवस्था

  • गाँव परिषद प्रमुख: प्रधान

आर्थिक व्यवस्था

  • मुख्य पेशा: कृषि
  • इन्हें कुशल कृषक माना जाता है।

धर्म और अनुष्ठान

  • मुख्य देवता: ग्राम ठाकुर और गोराई ठाकुर
  • धार्मिक प्रमुख: लाया
  • श्राद्ध को “कमावत” कहा जाता है
  • मुख्य त्योहार:
    • धुला पूजा
    • चैत पूजा
    • काली पूजा
    • गोराई ठाकुर पूजा
    • ग्राम ठाकुर पूजा
    • करम पूजा

कर्माली जनजाति

सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना
कर्माली झारखंड के सदान समुदाय की एक जनजाति है।
यह प्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड नस्लीय समूह से संबंधित हैं।
इनकी मातृभाषा खोरठा है, लेकिन संचार के लिए कर्माली भाषा (ऑस्ट्रो-एशियाटिक परिवार का हिस्सा) का प्रयोग करते हैं।
मुख्य निवास स्थान: हजारीबाग, चतरा, कोडरमा, गिरिडीह, राँची, सिंहभूम, और संथाल परगना।
इनका कुल व्यवस्था हिंदू समाज जैसी है।
जनजाति सात गोत्रों में बंटी है:

  • कछुवार – कालुवा
  • कैथवार – एक पेड़
  • संदरवार – बैल
  • खालखोहार – साल का पेड़
  • करहार – एक पेड़
  • तिरकी – चूहा
  • सोना – एक पदार्थ
    आर्थिक संरचना
    यह जनजाति कारीगर समुदाय के रूप में जानी जाती है।
    परंपरागत व्यवसाय लोहे का धातु काम और औजार बनाने का है।
    वे हथियार बनाने में दक्ष हैं। 🛠️ (परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण)
    धार्मिक व्यवस्था
    सिंगबोंगा उनका प्रधान देवता है।
    पुजारी को पाहन या नावा कहा जाता है।
    जनजाति के पास एक औषधि-वैद्य भी होता है, जिसे ओझा कहते हैं, और पवित्र स्थान को देउकरी कहा जाता है।
    दमोदर नदी को वे पवित्र मानते हैं।
    मुख्य त्योहार: तुसू पर्व (जिसे मीठा पर्व या बड़ा पर्व भी कहते हैं), सरहुल, कर्मा, सोहराई, नवखनी।
    विवाह प्रकार: गोलाṭ विवाह, विनिमय विवाह, सहमति विवाह, डुकु विवाह।
    दूल्हन मूल्य को पोन या हड़ुआ कहा जाता है।
    गांव के पंचायत प्रमुख को मालिक कहते हैं।

महली जनजाति

सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना
यह भी प्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड नस्लीय समूह से है।
मुख्य क्षेत्र: सिंहभूम, राँची, गुमला, सिमडेगा, लोहर्डागा, हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, संथाल परगना।
कुल व्यवस्था हिंदू समाज जैसी और समाज पितृसत्तात्मक है।
गोत्रों की संख्या 16 है, कुछ उदाहरण:

  • केरकेटा – पक्षी
  • तिरकी – बैल
  • मुरुमाल/मारी – नीलगाय
  • तोवर – पक्षी
  • ढलकी – जंगली सुअर
  • कथरगाछ – कटहल का पेड़
  • चारभांगिया – एक पेड़
    उप-जनजातियां (रिसले के अनुसार):
  • बंसफोड़ महली – बाँस छीलने वाले (तुरी जनजाति भी करती है)
  • पातर महली – कृषक मजदूर (तामर क्षेत्र में)
  • टंती महली – पालकी वाहक
  • सुलांकी महली – खेती और मजदूरी करते हैं
  • महली मुंडा – कृषि मजदूर
    आर्थिक संरचना
    यह जनजाति बाँस के शिल्पकार के रूप में जानी जाती है। (परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण)
    यह बाँस की टोकरी और ढोलक बनाने में माहिर हैं।
    इन्हें सरल कारीगर माना जाता है।
    धार्मिक व्यवस्था
    मुख्य देवता: सूर्य देवी।
    अन्य देवता: बार पहाड़ी, मांसा देवी।
    पूर्वजों की पूजा गोआदम साकी या बुद्धा-बुढ़ी त्योहार के रूप में होती है।
    सिली क्षेत्र में विशेष पूजा उत्तर पूजा कहलाती है।
    विवाह कुलों के भीतर होता है।
    बाल विवाह आम है।
    दूल्हन मूल्य को पोन डुका कहा जाता है।
    जनजातीय परिषद को परगनैत कहते हैं। (महत्वपूर्ण परीक्षा बिंदु)

बैगा जनजाति

सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना
झारखंड की एक पिछड़ी जनजाति है। 🧍‍♂️ (परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण)
प्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड नस्लीय समूह से संबंधित।
मुख्यतः पलामू, राँची, हजारीबाग, सिंहभूम में पाए जाते हैं।
परंपराएं और रीति-रिवाज खड़वार जनजाति के समान हैं।
संयुक्त परिवार प्रणाली अपनाते हैं।
गांव पंचायत के मुखिया को मुकद्दम कहा जाता है। (महत्वपूर्ण)
आर्थिक संरचना
जड़ी-बूटी और टोटके में निपुण माने जाते हैं। (परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण)
खाद्य संग्रह और मजदूरी में भी लगे रहते हैं।
पेड़-पौधों का अच्छा ज्ञान रखते हैं।
सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाएं
मुख्य त्योहार: चरेटा (साल का पहला त्योहार, बच्चे के भोजन के साथ), रसानावा (9 वर्षों में एक बार), सरहुल, दशहरा, दीवाली, होली।
मुख्य देवता: बड़ा देव, जो साल के पेड़ों में रहते हैं।
बाघ को पवित्र माना जाता है।
नृत्य और उपचार परंपराएं:
मुख्य नृत्य: कर्मा।
अन्य: झरपुट, विमला।
पुरुष दसान या मेला उपचार करते हैं।
महिलाएं भी उपचार करती हैं।

खोंड़ जनजाति

सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना
झारखंड की एक अल्पसंख्यक जनजाति।
संताल परगना, उत्तरी और दक्षिणी छोटानागपुर, पलामू और कोल्हान में मिलती है।
भाषा: कोंधी।
गांव इकाई के मुखिया को गौटिया कहा जाता है।
विवाह में माला (वरमाला) आदान-प्रदान एक मुख्य रीति है।
आर्थिक संरचना
मुख्यतः कृषि और मजदूरी करते हैं।
परिवर्तनशील खेती (पॉडचा) करते हैं।
धार्मिक व्यवस्था
मुख्य देवता: सूर्य, जिसे बेलनापुन कहा जाता है।
मुख्य त्योहार: सरहुल, सोहराई, कर्मा, दशहरा, दीवाली, रामनवमी, नाबानंद।
नाबानंद त्योहार में नया कटाई हुआ चावल पकाकर मनाया जाता है।
विशेष: जनजाति में ऐतिहासिक रूप से मानव बलिदान की प्रथा रही है, जिसे मरियाह कहा जाता है। (परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण)

झारखंड की अल्पज्ञात जनजातियाँ: संस्कृति, अर्थव्यवस्था, धर्म और सामाजिक व्यवस्था

झारखंड अपने समृद्ध जनजातीय विरासत के लिए जाना जाता है, जहाँ अनेक छोटे-छोटे जनजातीय समुदाय अपनी अनूठी परंपराओं, विश्वासों और जीवनशैली के साथ मौजूद हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण अल्पज्ञात जनजातियों का सांस्कृतिक, आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक परिचय दिया गया है।

1. बथुड़ी जनजाति

झारखंड की एक अल्पसंख्यक जनजाति जो स्वयं को अनुसूचित जनजाति (ST) नहीं मानती।
स्व-परिचय: अपने को बहुतुली या बहुबली कहते हैं, जिसका अर्थ है “हथियार से तौलने वाले” — जो क्षत्रिय वंशावली का संकेत है।
वंशावली: भूमि-भुईया जनजाति के पूर्वज माने जाते हैं।
भौगोलिक स्थान: मुख्यतः सिंहभूम और ढलभूम पहाड़ी क्षेत्र।
परिवार और सामाजिक व्यवस्था:
पितृसत्तात्मक प्रणाली।
कुल व्यवस्था हिंदू समाज जैसी।
पाँच गोत्र होते हैं।
विवाह प्रणाली: सबसे लोकप्रिय विवाह प्रकार “व्यवस्थित विवाह” है।
गांव प्रशासन: मुखिया को प्रधान कहते हैं।
सांस्कृतिक पहलू:
नृत्य और संगीत में बहुत रुचि।
लोकप्रिय वाद्ययंत्र: काहंगु, बंशी, झल, मंदर।
त्योहार: आशाढ़ी पूजा, शीतला पूजा, वंदना पूजा, धूलिया पूजा, सरोल पूजा, रस पूर्णिमा, मकर संक्रांति।
जीविका: मुख्यतः कृषि, वन उत्पाद संग्रहण और मजदूरी।
धर्म: ग्राम देवता की पूजा।
पुजारी को दीहुरी कहा जाता है।

2. किसान जनजाति

सदान समुदाय की एक जनजाति, जिसे नागेशर या नागेशिया भी कहा जाता है।
वंशावली: नाग राजवंश से उत्पन्न।
डाल्टन के अनुसार पांडवों के वंशज।
भाषा: मुंडारी (ऑस्ट्रो-एशियाटिक परिवार)।
भौगोलिक वितरण: पलामू, लातेहार, गढ़वा, लोहर्डागा, गुमला, सिमडेगा।
विवाह वर्गीकरण:
दो प्रकार: सिंदूरिया (सिंदूर के द्वारा विवाह) और तेलिया (तेल के साथ विवाह)।
परीक्षण विवाह भी प्रचलित है।
दूल्हन मूल्य: “डाली”।
त्योहार: सोहराई, सरहुल, कर्मा, नवखनी, जितिया, फागुन, दीवाली।
जीविका: मुख्यतः कृषि और लकड़ी काटना।
धर्म: प्रधान देवता सिंगबोंगा।
धार्मिक प्रमुख को बैगा कहा जाता है।

3. बनजारा जनजाति

घुमंतू और अल्पसंख्यक जनजाति, जिन्हें 1956 में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला।
जीवनशैली:
घुमंतू, छोटे-छोटे समूहों में घूमते हैं।
स्थायी बस्तियाँ नहीं।
भाषा: लम्बाड़ी।
क्षेत्र: मुख्यतः संथाल परगना।
सामाजिक संरचना:
पितृसत्तात्मक और न्यूक्लियर परिवार।
चार उप-समूह: चौहान, पवार, राठौर, उर्वा।
सामान्य उपनाम: “राय”।
विवाह प्रणाली:
विधवा विवाह को नियोग कहते हैं।
दूल्हन मूल्य: हरजी।
रिवाज: विवाह पूर्व सगाई।
सांस्कृतिक परंपराएं:
लोक

4. कुड़कू जनजाति

झारखंड की एक सामान्य जनजाति।
मुख्यतः धनबाद, रामगढ़, हजारीबाग, चतरा में।
भाषा: कुड़कू।
परिवार: संयुक्त परिवार।
जीविका: कृषि।
धार्मिक प्रथा:
मुख्य देवता: सिंगबोंगा।
त्योहार: सोहराई, सरहुल, करमा।
विवाह:
नियंत्रित विवाह।
दूल्हन मूल्य: “डाली”।

1. गोंड जनजाति

भारत की दूसरी सबसे बड़ी जनजातीय आबादी।

  • उत्पत्ति: मध्य प्रदेश और गोंडवाना क्षेत्र के मूल निवासी।
  • झारखंड में उपस्थिति: मुख्यतः गुमला, सिमडेगा, राँची, पलामू और कोल्हान में।
  • नृवंशीय समूह: प्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड समूह से संबंधित।
  • भाषा: गोंडी बोलते हैं, परंतु दैनिक बातचीत में सादरी-नागपुरी का प्रयोग करते हैं।

उप-विभाजन:

  • राजगोंड – उच्चवर्गीय वर्ग
  • धुर गोंड – सामान्य वर्ग
  • कमिया – कृषि मजदूर

पारिवारिक संरचना:

  • विस्तृत परिवार: “भाई बंड” कहलाता है।
  • रिश्तेदारी नेटवर्क: “भाई बिरादरी”।

सामाजिक संरचना:

  • पितृसत्तात्मक और पितृवंशीय।

युवा संस्था:

  • गोड़ल घोटुल — युवाओं की विशिष्ट संस्था (अत्यंत महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रथा)।

प्रमुख जीविका:

  • कृषि।
  • स्थानांतरित खेती: दीआपा या बेवार कहलाती है।

मुख्य देवता:

  • ठाकुर देग (बुढ़ा देव) – सूर्य का प्रतीक।
  • ठाकुर देई – पृथ्वी की प्रतीक।
  • वंश देवता: प्रत्येक गोत्र अपने कुलदेवता “परसापान” की पूजा करता है।
  • पुरोहित: बैगा कहलाता है।
  • सहायक पुरोहित: माटी कहलाता है।
  • दफनाने का स्थान: मसना।

जातीय उत्पत्ति:

  • प्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड समूह से।

प्रवासन मार्ग:

  • रोहतास होते हुए पलामू क्षेत्र में पहुँचे।

प्रमुख त्योहार:

सोहराय, काली पूजा, छठ, होली।

परीक्षा विशेष: “बैगा” (पुरोहित) और “दस्तूरी” (वधू मूल्य) अक्सर परीक्षा में पूछे जाते हैं।

2. चीक बड़ाइक जनजाति

  • प्रमुख पेशा: पारंपरिक हथकरघा वस्त्र बुनाई।
  • उपनाम: हथकरघा वस्त्रों के निर्माता।
  • भौगोलिक विस्तार: लगभग सभी जिलों में, मुख्यतः गुमला और सिमडेगा।
  • भाषा: नागपुरी।
  • सामाजिक ढांचा: पितृसत्तात्मक और पितृवंशीय।

जातीय विभाजन:

  • बड़ा गोहरी (बड़ी जाति) और छोटा गोहरी (छोटी जाति)।

गोत्र:

  • तनरिया, खम्बा, ताजना।
  • कोई सामुदायिक संस्था नहीं: न अखड़ा है न पारंपरिक पंचायत।

विवाह प्रथा:

  • सगाई: पुनर्विवाह को कहते हैं।

धार्मिक आस्था:

  • मुख्य देवता: सिंघबोंगा।
  • देवी: देवी माई।
  • पूर्व में नरबलि की प्रथा थी, अब समाप्त हो चुकी है।
  • दफनाने का स्थान: मसना।

त्योहार:

सरहुल, नवाखानी, कर्मा, जितिया, बार पहाड़ी, सुराही पूजा, देवठान, होली, दिवाली।

परीक्षा विशेष: अखड़ा और पंचायत की अनुपस्थिति इस जनजाति की एक विशिष्ट पहचान है।

3. बेड़िया जनजाति

  • जनसंख्या: अल्पसंख्यक जनजाति।
  • नृवंशीय समूह: द्रविड़ समूह।
  • आत्म-परिचय: वेदनिवास या वेदवाणी कहते हैं।
  • सामाजिक स्थिति: स्वयं को उच्च जाति का हिन्दू मानते हैं।

उपनाम:

  • बेड़िया और मांझी।
  • भौगोलिक उपस्थिति: राँची, हजारीबाग, बोकारो।

विवाह में दहेज:

दली टाका कहलाता है।

  • ग्राम प्रधान: प्रधान कहलाते हैं, इन्हें महतो या ओहदार भी कहते हैं।
  • नृत्य स्थल: अखड़ा।
  • विवाह प्रणाली: मुख्यतः आयोजित विवाह।
  • गोत्रों में विवाह निषिद्ध: थुकुर थेनी नामक अंतर्जातीय विवाह वर्जित है।

पारंपरिक वस्त्र:

  • पुरुष: केरया, कच्छा/भगवा।
  • महिला: थेथी, पचन।

टोटेम और गोत्र:

गोत्रप्रतीक चिह्न
थेरहरएक पक्षी
फेचासूअर
सूदीएक पक्षी
बंबी/अहरमछली
बरवारवटवृक्ष
काछिमकछुआ
गिलहरी

त्योहार:

दशहरा, दीपावली, छठ, सोहराय, कर्मा।

परीक्षा विशेष: “दली टाका” वधू मूल्य तथा “थुकुर थेनी” विवाह निषेध उल्लेखनीय हैं।

4. चिद्रा जनजाति

  • विवाह: मुख्यतः आयोजित विवाह।
  • अंतर्जातीय विवाह वर्जित: थुकुर थेनी विवाह को सामाजिक मान्यता नहीं।

पारंपरिक पोशाक:

  • पुरुष: केरया, कच्छा/भगवा।
  • महिला: थेथी, पचन।
  • त्योहार: दशहरा, दिवाली, छठ, सोहराय, कर्मा।
  • प्रमुख पेशा: कृषि।
  • मुख्य देवता: सूर्य देवता।
  • धार्मिक स्थल: सरना।

परीक्षा विशेष: “सारना” पूजा स्थल और “सूर्य उपासना” पहचान के रूप में महत्वपूर्ण हैं।

5. गदैत जनजाति

  • स्थिति: झारखंड की अल्पसंख्यक जनजाति।
  • नृवंशीय समूह: प्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड।
  • भौगोलिक विस्तार: राँची, पलामू, हजारीबाग, धनबाद, लोहरदगा, संथाल परगना, सिंहभूम।
  • भाषा: सादानी।
  • सामाजिक प्रणाली: पितृसत्तात्मक।

विवाह नियम:

  • एक ही गोत्र में विवाह और विधवा पुनर्विवाह निषिद्ध।

धार्मिक प्रथाएँ:

  • मुख्य देवता: देवी माई और पुरुबिया
  • पुरुबिया: एक आदिवासी आत्मा, जिसे प्रति वर्ष बकरे की बलि दी जाती है।
  • पुरोहित: बैगा।
  • तांत्रिक: माटी।
  • मुख्य पेशा: कृषि।
  • ऐतिहासिक रूप से: चौकीदार या सुरक्षा कर्मियों के रूप में काम करते थे।

6. कोरा जनजाति

  • स्थिति: झारखंड की एक प्रमुख अल्पसंख्यक जनजाति।
  • प्रमुख क्षेत्र: धनबाद, गिरिडीह, चतरा, पलामू, लोहरदगा, गुमला, दुमका, साहेबगंज।
  • भाषा: संथाली, हिंदी।

पारंपरिक कार्य:

  • पूर्व में डाक व्यवस्था (दौड़कर संदेश पहुंचाना)।
  • वर्तमान में मुख्यतः मजदूरी और कृषि

गोत्र:

  • हांसदा, किस्कु, मरांडी, सोरेन आदि।

सामाजिक व्यवस्था:

  • पितृसत्तात्मक और पितृवंशीय।
  • विवाह के समय वधू मूल्य “दस्तूरी” लिया जाता है।

धर्म और आस्था:

  • मुख्य देवता: धरती माता और जाहेर-एरा
  • धार्मिक स्थल: सरना

त्यौहार:

  • सरहुल, करमा, बंदना, होली, दिवाली।

परीक्षा विशेष: डाक व्यवस्था से ऐतिहासिक जुड़ाव और जाहेर एरा/धरती माता की उपासना

7. कवार जनजाति

  • स्थिति: झारखंड में अल्पसंख्यक, पर छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में बड़ी संख्या में।
  • भाषा: हिंदी और कवार बोली।
  • नृवंशीय वर्ग: द्रविड़ समूह।

सामाजिक व्यवस्था:

  • पितृसत्तात्मक।
  • मुख्य पेशा: कृषि, मजदूरी।

प्रमुख गोत्र:

  • चौरसिया, भोगता, खरे, पटेल।

प्रमुख देवी-देवता:

  • कनकेली माता, भवानी माता, हनुमान जी

धार्मिक कर्मकांड:

  • पुरोहित: बैगा।
  • पूजा स्थल: सरना, कभी-कभी मंदिर भी।

विवाह परंपरा:

  • वधू मूल्य लिया जाता है।
  • विधवा विवाह को सामाजिक स्वीकृति है।

त्यौहार:

  • होली, दीवाली, सरहुल, करमा, बंदना।

परीक्षा विशेष: “कनकेली माता” की पूजा इस जनजाति की पहचान है।

8. कोल जनजाति

  • स्थिति: झारखंड की आदिम जनजातियों में एक, विशेषकर पलामू और सिंहभूम में।
  • भाषा: कोलारी भाषा समूह से जुड़ी।
  • नृवंशीय वर्ग: प्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • ब्रिटिश काल में कोल विद्रोह (1831–32) के लिए प्रसिद्ध।
  • “कोल” नाम का प्रयोग कई जनजातियों के लिए छत्रक नाम के रूप में हुआ है – जैसे मुण्डा, हो, संथाल आदि।

सामाजिक संगठन:

  • पितृसत्तात्मक।
  • विवाह में वधू मूल्य लिया जाता है।

धार्मिक आस्था:

  • प्रकृति पूजा – धरती माता, सूर्य देवता।
  • पूजा स्थल: सरना।
  • पुरोहित: बैगा।

आजीविका:

  • कृषि, वनोपज, मजदूरी।

प्रमुख त्यौहार:

  • करमा, सरहुल, होली, दिवाली।

परीक्षा विशेष: “कोल विद्रोह” और “कोल” शब्द का छत्रक प्रयोग अक्सर पूछे जाते हैं।

9. पुरन जनजाति

  • स्थिति: झारखंड की बहुत ही अल्पसंख्यक जनजाति।
  • प्रमुख क्षेत्र: चाईबासा, सिंहभूम, पश्चिमी झारखंड।
  • भाषा: पुरन बोली, नागपुरी/हो से मिलती-जुलती।

सामाजिक संरचना:

  • पितृसत्तात्मक और गोत्र आधारित।
  • गोत्र: नाग, कछुआ, बाघ आदि टोटेमिक प्रतीकों पर आधारित।

मुख्य पेशा:

  • कृषि और मजदूरी।

धार्मिक विश्वास:

  • प्रकृति पूजा — विशेषकर धरती माता और वृक्ष पूजा
  • पूजा स्थल: सरना।

सांस्कृतिक विशेषता:

  • गाँवों में पारंपरिक अखड़ा और सामूहिक नृत्य का आयोजन।

त्यौहार:

  • करमा, सरहुल, होली, बंदना।

परीक्षा विशेष: पुरन जनजाति की टोटेमिक गोत्र व्यवस्था और सरना पूजा

सभी जनजातियों के लिए प्रमुख परीक्षा-सामग्री आधारित बिंदु (Quick Revision Table):

जनजातिप्रमुख देवतापूजा स्थलयुवा संस्थाप्रमुख पेशाविवाह में वधू मूल्यविशेष तथ्य
गोंडठाकुर देग, ठाकुर देईमसनागोड़ल घोटुलकृषिहाँदीआपा खेती
चीक बड़ाइकसिंघबोंगा, देवी माईसरनानहींबुनाईहाँ (सगाई)पंचायत नहीं होती
बेड़ियासूर्य देवता, देवी माईसरनाअखड़ाकृषिदली टाकाथुकुर थेनी वर्जित विवाह
चिद्रासूर्यसरनाकृषिहाँपचन-थेथी पोशाक
गदैतदेवी माई, पुरुबियासरनाकृषिहाँपुरुबिया पूजा में बकरे की बलि
कोराजाहेर एरा, धरती मातासरनाडाक सेवा/मजदूरीहाँऐतिहासिक डाक भूमिका
कवारकनकेली मातासरना/मंदिरकृषिहाँद्रविड़ जनजाति
कोलसूर्य, धरती मातासरनाकृषिहाँकोल विद्रोह (1831–32)
पुरनधरती मातासरनाअखड़ाकृषिहाँटोटेमिक गोत्र

1. माल पहाड़िया (Mal Pahariya)

पक्षविवरण
नस्लद्रविड़ीय
भाषामाल पहाड़िया (डॉ. फैमिली की पहाड़ी बोली)
धर्मप्रकृतिपूजक, शिकार और जड़ी-बूटी से जुड़े देवी-देवता
आजीविकाझूम खेती, वनोपज संग्रह, शिकार
विवाहबाल विवाह, बहुपति प्रथा नहीं, वर पक्ष द्वारा वधू मूल्य
विशेषतासंथाल और अन्य जातियों से खुद को श्रेष्ठ मानते हैं

2. सौरिया पहाड़िया (Sauria Pahariya)

पक्षविवरण
नस्लप्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड
भाषामाल्टो (द्रविड़ीय भाषा)
धर्मप्रकृति पूजक, भूत-प्रेतों में विश्वास
आजीविकाझूम खेती, वनोपज, शिकार
विवाहयुवागृह ‘घोटुल’ जैसे संस्थान, वधू मूल्य
विशेषतापहाड़ी क्षेत्रों में अलग-थलग जीवन, गहन पारंपरिकत

3. असुर (Asur)

पक्षविवरण
नस्लऑस्ट्रिक / प्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड
भाषाअसुरी (मुण्डारी उपसमूह)
धर्मप्रकृति पूजा, लोहे के देवता (लोहम देवता) की पूजा
आजीविकापारंपरिक लोहा गलाने का कार्य, कृषि, वनोपज
विवाहकबीलाई सहमति, वर-वधू चयन स्वतंत्र, वधू मूल्य
विशेषताप्राचीनतम आदिवासी माने जाते हैं, मिथकों में राक्षस जाति

4. बिरजिया (Birjia)

पक्षविवरण
नस्लप्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड
भाषाकुरुख (ओरांव समूह की भाषा)
धर्मप्रकृति पूजा, पूर्वजों की आत्मा की पूजा
आजीविकावनोपज, कुटीर काष्ठ उद्योग, खेती
विवाहसगोत्र विवाह निषेध, वधू मूल्य प्रचलित
विशेषताखुद को ओरांवों से अलग पहचानते हैं

5. परहिया (Parahiya)

पक्षविवरण
नस्लप्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड
भाषापरहिया (हिंदी से मिलती-जुलती बोली)
धर्मप्रकृति पूजक, कुल देवी-देवताओं की मान्यता
आजीविकाकृषि, वनोपज, दिहाड़ी मजदूरी
विवाहवधू मूल्य, सरल विवाह प्रणाली
विशेषताजंगल के किनारे, अर्ध-आदिवासी जीवनशैली

6. बिरहोर (Birhor)

पक्षविवरण
नस्लप्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड
भाषाबिरहोर (ऑस्ट्रो-एशियाटिक परिवार)
धर्मप्रकृति और आत्मा पूजा, बोंगा देवता
आजीविकारस्सी बनाना, मधुमक्खी पालन, शिकार
विवाहवधू मूल्य, बाल विवाह नहीं, पितृसत्तात्मक परिवार
विशेषताअत्यंत घुमंतू जनजाति, जंगल पर आश्रित

7. कोरवा (Korwa)

पक्षविवरण
नस्लप्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड
भाषाकोरवा (ऑस्ट्रो-एशियाटिक)
धर्मभूत-प्रेत और प्रकृति पूजा
आजीविकाझूम खेती, कंदमूल संग्रह, टोकरी बनाना
विवाहसगोत्र विवाह निषेध, वधू मूल्य प्रचलित
विशेषताबहुत ही सीमित क्षेत्र में बसते हैं, गहन पारंपरिक संस्कृति

8. सबर (Sabar)

पक्षविवरण
नस्लप्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड
भाषासाबर / हिंदी मिश्रित
धर्मभूत-प्रेत, जंगल देवताओं की पूजा
आजीविकावनोपज, शिकार, खेती
विवाहवधू मूल्य, सरल विवाह प्रथा
विशेषताऐतिहासिक रूप से ‘जंगली’ माने जाते रहे, बस्तर और झारखंड दोनों में निवास

सामान्य विशेषताएँ (सभी PTGs में सामान्य बातें)

  • प्रकृति पूजा और आत्मा पर विश्वास।
  • झूम या पारंपरिक खेती व वनोपज पर निर्भरता।
  • विवाह में वधू मूल्य प्रथा आम।
  • भाषा स्थानीय और ऑस्ट्रिक या द्रविड़ीय परिवार से जुड़ी।
  • सामाजिक जीवन में कबीलाई व्यवस्था और वृद्धों का सम्मान।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *