संताल परगना काश्तकारी (परिशिष्टीय उपबंध) अधिनियम, 1949

(The Santal Pargana Tenancy (Supplementary Provisions) Act, 1949)
उद्देश्य: आदिवासी भूमिधारकों के अधिकारों की रक्षा करना और संताल परगना क्षेत्र में काश्तकारी प्रथाओं को नियंत्रित करना।

अध्याय 1: प्रारंभिक प्रावधान

संक्षिप्त शीर्षक, प्रारंभ और क्षेत्राधिकार

  • आधिकारिक नाम: संताल परगना काश्तकारी (परिशिष्टीय उपबंध) अधिनियम, 1949
  • प्रभावी तिथि: राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित दिनांक से लागू।
  • क्षेत्राधिकार: दुमका, पाकुड़, साहिबगंज, गोड्डा, देवघर, जामताड़ा

अधिनियम को लागू करने/हटाने की शक्ति

  • राज्य सरकार किसी क्षेत्र से अधिनियम हटा सकती है या पुनः लागू कर सकती है।

प्रमुख परिभाषाएँ

  • आदिवासी: अनुसूची ‘बी’ में सूचीबद्ध जातियों के व्यक्ति।
  • कृषि वर्ष: 1 बैसाख (बंगाली), 1 अश्विन (फसली) या स्थानीय परंपरा अनुसार।
  • भुगतबंध / पूर्ण भोगबंधक: ऋण के बदले भूमि का अस्थायी बंधक।
  • जोत: राययत द्वारा खेती योग्य भूमि।
  • खास गांव: जहां कोई मूल राययत या ग्राम प्रधान नहीं है।
  • राययत: जो ज़मींदार न हो और खुद या दूसरों द्वारा भूमि की खेती करता हो।
  • लगान: ज़मींदार को ग्राम प्रधान या मूल राययत द्वारा देय किराया।
  • संताल सिविल नियम: 1855 अधिनियम के अंतर्गत प्रशासकीय आदेश।
  • रिक्त होल्डिंग: त्यागी गई भूमि या उत्तराधिकारीविहीन भूमि।
  • ग्राम प्रधान: नियुक्त ग्राम मुखिया (जैसे मांझी या मुस्ताजिर)।

अध्याय 2: ग्राम प्रधान एवं मूल राययत

धारा 5: ग्राम प्रधान की नियुक्ति

  • राययत/ज़मींदार के अनुरोध पर और दो-तिहाई राययतों की सहमति से नियुक्त।
  • उपायुक्त द्वारा नियुक्ति।

धारा 7: प्रधान की मृत्यु की सूचना

  • ज़मींदार को 3 माह के भीतर नया ग्राम प्रधान नियुक्त कराने हेतु आवेदन देना होगा।

धारा 8: कबूलनामा और ज़मानत

  • ग्राम प्रधान को कबूलनामा देना होगा।
  • नियम राज्य सरकार द्वारा बनाए जाएंगे।

धारा 9: अभिलेखों की आपूर्ति

  • नया प्रधान यदि उत्तराधिकारी नहीं है, तो 3 माह में जमाबंदी व खेवट खतियान की प्रतियाँ देना अनिवार्य।

धारा 10: पद का हस्तांतरण नहीं

  • ग्राम प्रधान अपने पद को हस्तांतरित नहीं कर सकता।

धारा 11: मूल राययत की जोत

  • मूल राययत या सह-राययत की जोती भूमि गैर-हस्तांतरणीय राययती भूमि मानी जाएगी।

धारा 12: ग्राम प्रधान इनाम कोष

  • प्रधानों, राययतों से वसूले गए जुर्माने का उपयोग उपायुक्त द्वारा निर्धारित नियमों अनुसार किया जाएगा।

अध्याय 3: राययतों के अधिकार व प्रतिबंध

धारा 13: राययत के प्रकार

  • स्थायी निवास वाले पंजीकृत राययत
  • गैर-निवासी पंजीकृत राययत
  • नवीन पंजीकृत राययत

धारा 14: भूमि उपयोग का अधिकार

  • राययत स्थानीय प्रथा अनुसार भूमि का उपयोग कर सकता है, बशर्ते:
    • भूमि की क्षति न हो।
    • भूमि अनुपजाऊ न बने।

धारा 15: बेदखली से संरक्षण

  • राययत को उपायुक्त के आदेश के बिना बेदखल नहीं किया जा सकता।

धारा 16: ईंट व टाइल निर्माण

  • निजी व कृषि उपयोग हेतु शुल्क मुक्त ईंट/टाइल निर्माण की अनुमति।

धारा 17: जल संसाधनों का निर्माण

  • राययत अपने खेत में तालाब, कुआँ, जलाशय बना सकता है बशर्ते अन्य को हानि न हो।

अन्य अधिकार:

  • जलाशयों से मछली या अन्य उत्पाद नि:शुल्क उपयोग कर सकता है।
  • पेड़, बाँस, बागवानी, रेशम उत्पादन पर पूर्ण अधिकार।
    • लेकिन पेड़ काटने के लिए अनुमति अनिवार्य (अनुविभागीय पदाधिकारी से)।
  • कच्चा/पक्का मकान व्यक्तिगत या कृषि प्रयोजन हेतु बनाया जा सकता है।

जोत का विभाजन और लगान

  • ज़मींदार, ग्राम प्रधान या स्वयं राययत की सहमति से विभाजन संभव।
  • ₹3 से कम वार्षिक लगान वाले उपविभाजन मान्य नहीं।
  • ग्राम प्रधान की निजी भूमि को सुरक्षा हेतु विभाजित नहीं किया जा सकता, यदि सरकार से प्राप्त भूमि अपर्याप्त हो।

हस्तांतरण संबंधी प्रावधान

राययती अधिकारों का सामान्य हस्तांतरण निषेध

  • बिना खतियान में स्पष्ट उल्लेख के बिक्री, उपहार, बंधक, पट्टा या वसीयत द्वारा राययत अपना अधिकार हस्तांतरित नहीं कर सकता।
  • पट्टे की अवधि: अधिकतम 1 वर्ष (उपायुक्त की पूर्व लिखित स्वीकृति आवश्यक)।

आदिवासी राययत द्वारा उपहार

  • बहन/बेटी को भूमि उपहार देने के लिए पूर्व लिखित स्वीकृति अनिवार्य (उपायुक्त से)।
  • विधवा माता या पत्नी को आधा हिस्सा भरण-पोषण हेतु उपहार दे सकता है।
  • गैर-आदिवासी को भूमि स्थानांतरण तभी मान्य जब:
    • वह उसी परगना/तालुका का हो और
    • स्वयं भूमि की खेती करता हो।
    • घर जमाई को स्थानांतरण अनुमन्य।
  • स्थानांतरण अवैध, अमान्य और न्यायालय में अस्वीकार्य होगा।
  • उपायुक्त भूमि वापस लेकर मूल राययत या उत्तराधिकारी को लौटाएंगे।

धारा 20: गैर-आदिवासी राययत द्वारा सीमित स्थानांतरण

राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा अनुमति दे सकती है कि गैर-आदिवासी राययत अपनी भूमि का ¼ हिस्सा निम्न को स्थानांतरित कर सकता है:

  • भूमि बंधक बैंक,
  • पंजीकृत अन्न भंडार,
  • सहकारी समिति,
  • अन्य राययत (संताल परगना क्षेत्र का)।

शर्तें:

  • रजिस्टर्ड दस्तावेज़ द्वारा हस्तांतरण।
  • 1 माह में उपायुक्त व ज़मींदार को सूचना देना आवश्यक।
  • अधिकतम वैधता: 6 वर्ष।
  • किराया न चुकाने पर जप्ती व निष्कासन संभव।
  • कार्यकाल समाप्ति पर उपायुक्त द्वारा पुनः कब्जा दिलवाया जाएगा।

उल्लंघन दंड:

  • 3 माह कारावास/₹500 जुर्माना +
  • प्रतिदिन ₹10 अतिरिक्त जुर्माना।

न्यायिक खेती (ट्रस्ट) हेतु अस्थायी अधिकार

  • ग्राम छोड़ने, बीमारी, पशुहानि, नाबालिग/विधवा होने की दशा में:
    • राययत अस्थायी रूप से खेती का अधिकार सौंप सकता है।
    • ग्राम प्रधान, ज़मींदार और SDO को पंजीकृत डाक से सूचित करना अनिवार्य।
    • अधिकतम अवधि: 10 वर्ष
    • अन्यथा स्थानांतरण अवैध माना जाएगा।

राययती भूमि का बदला (बदलईन)

  • उपायुक्त की स्वीकृति से भूमि बदली जा सकती है।
  • आवश्यक शर्तें:
    • दोनों पक्ष वास्तविक राययत हों।
    • भूमि समीपवर्ती गांवों में हो।
    • मूल्य समान हो।
    • यह विक्रय का छद्म रूप नहीं होना चाहिए।
  • बिना स्वीकृति बदला अवैध माना जाएगा।

पंजीकरण संबंधित प्रावधान

  • विक्रय/उपहार/वसीयत/बदला द्वारा हस्तांतरण को ज़मींदार के पास पंजीकृत कराया जा सकता है।
  • यदि ज़मींदार स्वीकार कर ले तो स्थानीय प्रथा/खतियान बाधक नहीं होंगे।

पंजीकरण शुल्क:

  • वार्षिक किराया के 2% तक शुल्क (₹0.5 आना न्यूनतम, ₹50 अधिकतम)।
  • किराया-मुक्त भूमि पर ₹1 का शुल्क।
  • निम्नलिखित पर कोई शुल्क नहीं लगेगा:
    • हिन्दू कानून अनुसार दत्तक संतान।
    • संताल रीति से रक्त संबंधी (3 पीढ़ियों तक)।

अध्याय 4: परती भूमि और रिक्त जोतों का बंदोबस्त

धारा 27 – पट्टा द्वारा बंदोबस्त

  • 4 प्रतियाँ बनाई जाएँगी: उपायुक्त, राययत, ज़मींदार, ग्राम प्रधान/मूल राययत के लिए।

धारा 28 – बंदोबस्त के सिद्धांत

  • खेती की योग्यता, सार्वजनिक सेवा, भूमि की स्थिति के अनुसार बंदोबस्त।
  • स्थायी घरधारी भूमिहीन राययतों को प्राथमिकता।

धारा 29 – उपायुक्त की पूर्वानुमति के बिना बंदोबस्त निषिद्ध

  • कोई ग्राम प्रधान या मूल राययत स्वतंत्र रूप से बंदोबस्त नहीं कर सकता।

धारा 30 – उपविभाजन पर रोक

  • ज़मींदार की सहमति और उपायुक्त की स्वीकृति आवश्यक।

धारा 31 – विवादों की स्थिति में उपायुक्त का अधिकार

  • विवाद होने पर बंदोबस्त रद्द या परिवर्तित किया जा सकता है।

धारा 32 – आपत्ति का अधिकार

  • किसी भी स्वीकृति/अस्वीकृति पर प्रभावित व्यक्ति 1 वर्ष के भीतर उपायुक्त को आवेदन कर सकता है।

धारा 33 – 5 वर्ष तक परती भूमि को न जोतने पर बंदोबस्त रद्द

  • कोई लाभार्थी यदि भूमि 5 वर्ष तक उपयोग नहीं करता है तो उपायुक्त बंदोबस्त रद्द कर पुनः आवंटन कर सकते हैं।

धारा 34 – सामुदायिक उपयोग हेतु भूमि आवंटन

  • यदि जाहेरथान, श्मशान भूमि, या कब्रिस्तान अनुपयुक्त हो जाए,
  • तो उपायुक्त, परामर्श के बाद, नए प्रयोजन हेतु उपयुक्त परती भूमि आवंटित कर सकते हैं।

धारा 35 – सिंचाई स्रोतों का बंदोबस्त निषिद्ध

  • निम्नलिखित जलस्रोतों का बंदोबस्त तभी होगा जब:
    • ग्राम मुखिया/रैयत/ज़मींदार से परामर्श हो, और
    • उपायुक्त की स्वीकृति प्राप्त हो।

इन स्रोतों में शामिल हैं:

  • बांध
  • अहर (पारंपरिक जलाशय)
  • तालाब
  • सार्वजनिक उपयोग की धाराएँ

धारा 36 – जल उपयोग पर कर निषिद्ध

  • पेयजल, स्नान, धोने, या सिंचाई हेतु जलस्रोतों के उपयोग पर कोई कर नहीं लगाया जा सकता।

धारा 37 – कुछ क्षेत्रों का बंदोबस्त प्रतिबंधित

निम्नलिखित भूमि का बंदोबस्त नहीं होगा:

  • ग्राम सीमाओं की धाराएँ
  • श्मशान भूमि / कब्रिस्तान
  • जाहेरथान (पूजास्थल)
  • सार्वजनिक पथ / चबूतरे
  • शिविर, सीमाचिह्न आदि

धारा 38 – पशु चराई का अधिकार

रैयतों को चराई का अधिकार प्राप्त है इन क्षेत्रों में:

  • अभिलेखित ग्राम चारागाह
  • उपायुक्त द्वारा चिह्नित चारागाह
  • संथाल परगना विनियमों के तहत अलग की गई भूमि
  • वन-पुनरुत्पादन क्षेत्र

धारा 39 – चारागाह भूमि की सुरक्षा

  • चारागाह भूमि का अन्य प्रयोजन हेतु उपयोग नहीं किया जा सकता।
  • यदि वह भूमि 5% से कम है, तो उपायुक्त अतिरिक्त परती भूमि को चारागाह घोषित कर सकते हैं।

धारा 40 – तालाब खोदने का अधिकार

  • रैयत, गैर-जोत भूमि पर, ज़मींदार की अनुमति से तालाब/जलाशय बना सकता है।
  • मछली पालन व अन्य उपयोग आपसी सहमति से संभव है।

धारा 41 – मत्स्य पालन अधिकार की रक्षा

  • यदि किसी को मछली पकड़ने का कानूनी अधिकार है, तो उसमें ज़मींदार हस्तक्षेप नहीं कर सकते

धारा 42 – पहाड़ी गाँवों की रक्षा

  • घोषित पहाड़ी गाँवों में परती या खाली जोत का बंदोबस्त ग़ैर-पहाड़ी व्यक्ति के साथ नहीं होगा

धारा 43 – अवैध कब्जा हटाना

  • उपायुक्त को अधिकार है कि वे बिना विधिक अधिकार के कृषि भूमि पर कब्जा करने वाले को बेदखल कर सकते हैं।

अध्याय 5 – किराया (Rent) संबंधी प्रावधान

धारा 44 – प्राकृतिक रूप में किराया निषिद्ध

  • कोई भी ज़मींदार या ग्राम प्रधान अनाज आदि के रूप में किराया वसूल नहीं कर सकता।

धारा 45 – स्वामित्व परिवर्तन पर किराया देयता

  • जब तक रैयत को स्वामित्व परिवर्तन की सूचना नहीं दी जाती, वह नए स्वामी को किराया देने के लिए बाध्य नहीं है

धारा 46 – मनी ऑर्डर द्वारा किराया भुगतान

  • रैयत को अधिकार है कि वह डाक मनी ऑर्डर के माध्यम से किराया ज़मींदार को भेजे।

धारा 47 – किराया रजिस्टर का रखाव

  • प्रत्येक ज़मींदार / ग्राम प्रधान / मौलिक रैयत को वार्षिक किराया रजिस्टर रखना होगा:
    • देय राशि
    • अदा की गई राशि
    • बकाया राशि

धारा 48 – किराया भुगतान की रसीद

  • रैयत को नि:शुल्क रसीद प्राप्त करने का अधिकार है।
  • रसीद अनुपालन प्रारूप में दी जाएगी (राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित)।

धारा 49 – किराया रसीदों का मानक प्रारूप

  • सरकार निर्धारित प्रारूपों को अधिसूचित करेगी।
  • ये प्रारूप उप-विभागीय कार्यालय में उपलब्ध रहेंगे।

धारा 50 – किराया की पहली वरीयता (First Charge)

  • रैयत की हस्तांतरणीय होल्डिंग पर किराया प्राथमिक देनदारी (first charge) होगी।
  • ग्राम प्रधान या मौलिक रैयत की होल्डिंग पर भी यही लागू होगा।

धारा 51 – विशेष परिस्थितियों में किराया में कमी

  • उपायुक्त द्वारा लिखित आदेश पर किराया घटाया जा सकता है, यदि:
    • भूमि की उत्पादकता स्थायी रूप से घटे
    • ज़मींदार सिंचाई हेतु समुचित व्यवस्था न करे
    • फसलों के मूल्य में अस्थायी गिरावट हो

नोट: एक बार कमी हो जाए तो वह नए बंदोबस्त रजिस्टर के प्रकाशन तक प्रभावी रहेगी।

धारा 52 – अतिरिक्त किराया वसूलने पर दंड

  • यदि ज़मींदार या एजेंट कानूनी दर से अधिक किराया वसूलता है, तो:
    • 6 माह तक का कारावास, या
    • ₹500 तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।

धारा 53–54: ज़मींदार द्वारा विशेष प्रयोजन हेतु भूमि अधिग्रहण

प्रयोजन (Purpose)

ज़मींदार निम्नलिखित प्रयोजनों हेतु भूमि अधिग्रहण के लिए आवेदन कर सकता है:

  • व्यक्तिगत/संपत्ति हित
  • धार्मिक / शैक्षिक प्रयोजन
  • सिंचाई / कृषि / उद्योग
  • सरकार की राष्ट्रीय नीति के अंतर्गत

प्रक्रिया (Procedure)

  • उपायुक्त जांच करेंगे और आपत्तियों हेतु सार्वजनिक नोटिस जारी करेंगे।
  • यदि संतुष्ट हुए, तो अधिग्रहण की अनुमति देंगे।

मुआवज़ा अनिवार्य

  • यदि रैयत मुआवज़ा अस्वीकार करता है, तो उपायुक्त ज़मींदार को राशि जमा करवाकर अधिग्रहण की अनुमति दे सकते हैं।

किराया समायोजन

  • अधिग्रहीत भूमि के अनुपात में रैयत का किराया कम किया जाएगा

भूमि वापसी का प्रावधान

  • यदि 5 वर्षों में प्रयोजन पूरा नहीं होता, तो:
    • भूमि मूल रैयत/उत्तराधिकारी को वापस दी जा सकती है,
    • अन्यथा, उसे ग्राम परती भूमि के रूप में बंदोबस्त किया जाएगा।

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