“झारखंड की परंपरागत सांस्कृतिक पहचान: नृत्य, संगीत और लोकवाद्य”

मुख्य सांस्कृतिक तत्व

  • पर्व-त्योहार
  • नृत्य-संगीत
  • वाद्ययंत्र
  • भाषा व लोक साहित्य

पर्व-त्योहार

साझे और भिन्न त्योहार

  • कुछ पर्व पूरे झारखंड में सामूहिक रूप से मनाए जाते हैं।
  • अधिकांश पर्व जनजाति-विशेष होते हैं।
जनजातिप्रमुख त्योहार
संतालएरोक, हरियाड़ जपाड़, सोहराय, सकरात, भागसिम, बाहा
उराँवखद्दी, करमा, सोहराय, चांडी, माघे, फागु, जतरा, दशहरा, छठ, दीपावली, होली
मुण्डासरहुल, करम, सोहराय, बुरू पूजा, फागु, माघ
होमाघी, बाहा, डमुरी, होरो, जोमनमा, कोलोम
सौरिया पहाड़ियागांगी आड़या, पुनु आड़या, ओसरा आड़या, कर्रा पूजा
माल पहाड़ियाबीचे आड़या, घंघरा पूजा, माघी
भूमिजचैत पूजा, काली पूजा, ग्राम ठाकुर पूजा, करम पूजा
खड़ियागिडिङ, पोनोमोसोर, भडन्दा, बंदई, कदलेटा, करम
खरवारदशहरा, छठ, सरहुल, करमा, दीपावली
महलीसूरजी, मनसा, छठ, दुर्गा, टुसू
लोहराफागुआ, सोहराय, विश्वकर्मा पूजा
बेदियासरहुल, सोहराय, जितिया, दीपावली
चीक बड़ाईकसरहुल, करम, जितिया
गोंडफरसा पेन, मतिया, बूढ़देव
चेरोदुर्गा, काली, होली, छठ, सोहराय
कोराबागेश्वर, भगवती माय, नवाखानी
कोरवापाट देवता, ग्राम देवता
करमालीसरहुल, करमा, दिवाली, छठ
परहियाधरती पूजा, सरहुल, सोहराय
गोड़ाइतदेवी माय, मति
बिनियासरहुल, करम, जनीशिकार, कार्तिक, रथयात्रा
असुरसिंगबोंगा, मरांगबोंगा, काढ़डेली
बिरहोरकांदो बोंगा, ओरा बोंगा
बिरझियाफगुआ, काढ़डेली
सबरकाली, मनसा, दुर्गा पूजा
बथुड़ीरास पूर्णिमा, मकर संक्रांति, शिव चतुर्दशी
बंजाराबंजारी देवी पूजा
बैगादशहरा, होली, दीपावली, नवाखानी
किसानफगुआ, नवाखानी, जितिया
खोड़करमा, फागु, दिवाली, रामनवमी
कावरखूँट पूजा, सनातनी पर्व
कोलसिंगबोंगा पूजा, सभी हिन्दू पर्व

नृत्य एवं संगीत

सांस्कृतिक विरासत

  • झारखंड का इतिहास भले ही अलिखित हो, पर संस्कृति लोकगीतों, कथाओं व गाथाओं में जीवित है।
  • प्रारंभिक समुदाय असुर, फिर मुण्डा, संताल, हो, उराँव, सदान आदि का आगमन।
  • भाषा विविधता के बावजूद सांस्कृतिक समन्वय की अद्भुत मिसाल।

प्रमुख वाद्ययंत्र

श्रेणीवाद्ययंत्र
तंतु वाद्यकेंदरा, बनम, टुईला
वायु वाद्यमुरली, बाँसुरी, शहनाई, तुरही
घर्ष वाद्यगुबगुबी, चोड़चोड़ी
ताल वाद्यमांदर, ढोल, ढाक, नगाड़ा, मृदंग, झांझ, ढप, झाल

लोकसंगीत की श्रेणियाँ

  1. जनजातीय लोकसंगीत
    • भाषाएँ: संताली, मुण्डारी, खड़िया, हो, उराँव आदि
    • प्रकृति: सामूहिक, मौखिक परंपरा में संरक्षित
  2. सदानी (क्षेत्रीय) लोकसंगीत
    • भाषाएँ: नागपुरी, कुरमाली, खोरठा, पंचपरगनिया
    • शैली: गीत, गाथा, नृत्यगीत व संस्कार गीत

नागपुरी लोकसंगीत

विशेषताएँ

  • समृद्ध परंपरास्थानीय राग-रागिनियाँ
  • आसपास के राज्यों व जनजातियों का प्रभाव स्पष्ट
  • प्रमुख राग: मरदाना झूमर, जनानी झूमर, अंगनई, फगुआ, पावस, उदासी
    (ये राग अन्य भाषाओं में नहीं मिलते)

नागपुरी लोकगीत की श्रेणियाँ

श्रेणीउदाहरण
(क) मौसमी गीतफगुआ, उदासी, पावस, कजली
(ख) त्योहार गीततीज, करमा, जितिया, सोहराय
(ग) संस्कार गीतदेवी गीत, झांझइन, बिडा गीत, लाईर
(घ) नृत्य गीतमर्दाना झूमर, जनानी झूमर, डमकच, खेमटा, लुझरी

फगुआ गीत की परंपरा

  • नागपुरी होली गीत: पुरुष आमने-सामने पंक्ति में खड़े होकर झुंड में नाचते व गाते हैं।
  • गीत में हास्य, व्यंग्य व उल्लास का मेल होता है।

झारखण्ड का लोक संगीत और नृत्य – एक समग्र परिचय (बुलेट पॉइंट्स में)

  • उदासी गीत
    • ग्रीष्म ऋतु के आगमन के साथ गाया जाता है।
    • भक्ति युक्त, भावनात्मक गीत जिनमें वाद्य यंत्रों की प्रधानता नहीं होती।
    • स्वरावली दीर्घ होती है; शब्दों की संख्या अधिक होती है।
  • पावस गीत
    • वर्षा ऋतु में पुरुषों द्वारा गाया जाता है।
    • अन्य नागपुरी गीतों की तुलना में अलग स्वर और शैली होती है।
  • भदवाही गीत
    • नागपुरी में प्रचलित, संभवतः कुरमाली से आया हुआ।
    • मुख्यतः वर्षा ऋतु में गाया जाता है।

(ख) पर्व त्योहारों के गीत

  • करमा गीत
    • करमा पर्व पर करमा राग के गीत-नृत्य की प्रस्तुति महिलाएं सामूहिक रूप से करती हैं।
    • आंगन या अखड़े में प्रस्तुत किया जाता है।
  • सोहराई गीत
    • दीपावली के आस-पास मनाया जाने वाला पर्व।
    • पूरे झारखण्ड क्षेत्र में उल्लासपूर्वक मनाया जाता है।

(ग) संस्कार गीत

  • बिहा गीत
    • विवाह संस्कार पर गाये जाते हैं।
    • विवाह पूर्व से लेकर बारात विदाई तक के नेगवार गीतों की प्रचुरता।

(घ) नृत्य गीत

  • मर्दाना झूमर
    • ओजपूर्ण शैली में पुरुषों द्वारा गाया और नृत्य किया जाता है।
  • जनानी झूमर
    • पर्व-त्योहारों पर महिलाएं सामूहिक रूप से प्रस्तुत करती हैं।
  • डाइड़धरा
    • कमर पकड़कर नाचने की शैली पर आधारित नृत्य-गीत।
    • अन्य सदानी भाषाओं में भी इस राग का प्रचलन है।
  • झूमर, गोलवारी, खेमटा, रंग, झिंगफलिया
    • सभी नृत्य प्रधान राग-रागिनियाँ हैं।
    • गोलवारी पंचपरगनिया क्षेत्र का रूप।
    • खेमटा, रंग, झिंगफुलिया: द्रुत गति की रागिनियाँ।
  • डमकच
    • स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला नृत्य प्रधान राग।
    • एकहरिया, दोहरी, शुमटा आदि रूप।
    • विवाह संस्कार गीतों के अतिरिक्त उल्लास के प्रतीक।

| कुरमाली लोक संगीत |

  • गीत और नृत्य: कुरमाली जनजीवन की मौलिक संस्कृति।
  • कोई भी अनुष्ठान इनके बिना सम्पन्न नहीं होता।
  • संगीत में कई राग-रागिनियाँ, जिनके अनुसार ताल और नृत्य शैली बदलती है।
  • स्त्री-पुरुषों का सामूहिक नृत्य और गायन।
  • गीत प्रायः मौसमी, जिनके सुर, लय, ताल के अनुसार नृत्य किया जाता है।

प्रमुख गीत:

  • टुसु गीत – स्त्रियों का गीत; पौष से मकर संक्रांति तक।
  • ढप गीत – पुरुषों का वैराग्य भाव से भरा गीत; अगहन से फाल्गुन तक।
  • सरहुल गीत – बसंती पर्व सरहुल पर सामूहिक नृत्य।
  • पाता गीत – सामूहिक नृत्य गीत; बारहमसिया गीत के नाम से जाना जाता है।
  • उधवा गीत – पौष संक्रांति से आषाढ़ तक; प्रश्नोत्तर शैली में।
  • अढ़इया – करमा पर्व की समाप्ति पर ढाई कदमों का नृत्य।

अन्य गीत: डहरवा, चांचर, कुंआरी झुपान, रोपनी संगीत, संस्कार गीत आदि।

| खोरठा लोक संगीत |

  • प्रमुख राग-रागिनियाँ: भादरिया, भटियाली, झुमटा, खेमटा, लुझरी, सोहराई, सरहुल, बुड़ी, किसानी, उधवा, रसवारी, रास नृत्य, चाचइर, गोवर कांदा, जगवा, भोकरन, बारहमसिया।
  • नागपुरी, बंगला, मगही भाषाओं का आंशिक प्रभाव।

प्रमुख गीत-नृत्य विश्लेषण:

  • उधवा या रिंझा – बिना वाद्य यंत्र के उच्च स्वर में गाया जाता है।
  • करमा गीत – करमा पर्व पर महिलाओं द्वारा गाया व नाचा जाता है।
  • भोकरन – शिवरात्रि पर घूम-घूम कर गाया जाता है।
  • रास-नृत्य – कार्तिक पूर्णिमा पर नर्तकी द्वारा प्रस्तुत।
  • सोहराई गीत – कार्तिक अमावस्या के बाद; चांचइर, गोवारकांदा, जगवा, भोकरन आदि।
  • बीउड़ी – मकर संक्रांति पर मेलों में प्रस्तुत नृत्य; कुल-कुली देने की परंपरा।
  • हाराबदिया गीत – प्रश्नोत्तर शैली के गीत।
  • संस्कार गीतों की परम्परा भी प्रचलित है।
  • फगुआ गीत – अन्य भाषाओं के प्रभाव से प्रचलित हुआ।

| पंचपरगनिया लोक संगीत |

  • पंचपरगिया: तमाड़, सिल्ली, सोनाहातू, राहे, अड़की, अनगड़ा आदि क्षेत्रों की भाषा।
  • इसमें नागपुरी, कुरमाली, खोरठा, तमाड़िया आदि भाषाओं का समावेश।
  • चैतन्य महाप्रभु के आगमन से बंगला लोकसंगीत का प्रभाव।

विशेषताएं:

  • नागपुरी और कुरमाली से समानता।
  • रासलीला की पृष्ठभूमि में नर्तक-नर्तकियों के एकल व युगल नृत्य।
  • गीत प्रायः शिष्ट, स्वर-ताल-वाद्य पूर्णतः स्थानीय।
  • झूमर में रंग, खेमटा, लहसुवा, झिंगफुलिया, लुझरी रागिनियाँ शामिल।
  • ठेठ लोक गीतों में: संस्कार गीत, करम गीत, जितिया-गीत, सोहराई गीत, टुसू गीत, भादरिया आदि।

झारखण्डी लोक संगीत की विशेषताएँ

  • ऋतु, श्रम, उत्सव और आनन्द की अनुभूति पर आधारित।
  • कुछ गीत अकेले में, कुछ समूह में गाये जाते हैं; कहीं वाद्य यंत्रों के साथ, कहीं बिना।
  • भाव केन्द्रीकरण, आरोह-अवरोह की तीव्रता और सहज भावों पर आधारित।

नृत्य की विशेषताएँ

  • सामूहिक नृत्य: झारखण्ड में दर्शक नहीं, सभी प्रतिभागी कलाकार होते हैं।
  • गायन, वादन, नर्तन में सभी सक्रिय।
  • एकल नृत्य का अभाव; सदान और आदिवासी दोनों में सामूहिक नृत्य की प्रधानता।
  • एक जैसे वाद्य यंत्र, एक जैसे गीत, भिन्नता केवल भाषा में।
  • आग्नेय, द्रविड़ और सदानी समूहों में शैली का भेद।
  • सदानी समूह में नागपुरी, पंचपरगनिया, खोरठा, करमाली में समरूपता।
  • आग्नेय समूह (मुंडारी, संताली, हो, खड़िया) और द्रविड़ समूह (उरांव) के नृत्य विशिष्ट।

नृत्य-संगीत की आत्मा

  • झारखंड के अधिकतर नृत्य गीत-आधारित होते हैं।
  • मुख्य नृत्य शैलियाँ: झुमटा, खेमटा, उड़िया, गोलवारी, डंडचरा, लहसुआ, ठहरूआ, लुझरी आदि।
  • नागपुरी समाज में नृत्य को “खेल” या “खेलेक” कहा जाता है।
    • उदाहरण: अखरा खेलेक (अखरा में नाचना), डमकच खेलइया (डमकच नाचने वाला)।

मौसमी और अवसर आधारित नृत्य

  • नृत्य का स्वरूप पर्व, मौसम और अवसर विशेष पर बदलता है।
  • प्रमुख उदाहरण:
    • फगुआ नृत्य (फाल्गुन–चैत्र),
    • मंडा नाच, भगतिया नृत्य,
    • सोहराई नृत्य, मइटकोड़न, काटन नृत्य आदि।

गीत, वाद्य और नृत्य का संबंध

  • अधिकतर नृत्य में गीत और वाद्य यंत्र अनिवार्य होते हैं।
  • प्रमुख वाद्य यंत्र:
    • शहनाई, बाँसुरी, मादर, ढोल, ढांक, नगाड़ा, भेइर आदि।

पुरुष प्रधान नृत्य

  • छव नाथ, नटुआ, पड़का नाच, मंड़ा नाच,
    मरदानी झूमर, फगुआ, घोड़ा नाच आदि।

महिला प्रधान नृत्य

  • कली, नचनी, खेलड़ी नाच, जनानी झूमर,
    अंगनइ, डमकच, मइटकोड़न, पइनकाटन आदि।

संयुक्त और बच्चों के नृत्य

  • पुरुष-महिलाओं के संयुक्त नृत्य:
    उड़िया, गोलवारी, लहसूआ, लुझरी आदि।
  • कुछ नृत्य केवल गीत आधारित होते हैं, कुछ गीत + वाद्य आधारित:
    • जैसे: छव, पइका, नटुआ, मंड़ा, मइटकोड़न, पइन काटन, घोड़ा नाच

नृत्य की जटिलता

श्रेणीउदाहरण
सरल नृत्यजनानी झूमर
जटिल नृत्यमरदानी झूमर, छव, पइका, नटुआ

नृत्य की सामाजिक शिष्टता

  • सभी नृत्य सामूहिक व शिष्ट होते हैं।
  • अश्लीलता व अभद्रता की कोई गुंजाइश नहीं, क्योंकि:
    • माता-पिता, भाई-बहन, बेटा-बेटी सभी सम्मिलित होते हैं।

नृत्य की गति व अंग संचालन

  • गति में विविधता: धीमी, मध्यम, तेज, उछलती, लचकती, सर्पिल
  • प्रमुख अंग संचालन: वक्ष, कंधे, बाजू, सिर, कमर, पैर।

महिला नृत्य की शैलियाँ

  • कतार में नृत्य: सीधी, वृत्ताकार, अर्थवृत्ताकार
  • हाथों से हाथ, अंगुलियाँ या कमर पकड़कर तालबद्ध नृत्य।

वाद्य यंत्र और उनका उपयोग

वाद्य यंत्रबजाने वाले
नगाड़ा, ढोलक, मांदर आदिपुरुष
करताल, झाँझ, ठेचकामहिलाएँ
  • महिलाएँ भारी वाद्य नहीं बजातीं – शारीरिक कठिनाई के कारण।

पोशाक, मुखौटा और श्रृंगार

  • कुछ नृत्यों में विशेष पोशाक/श्रृंगार आवश्यक:
    • मरदानी झूमर, पइका, नटुआ, घोड़ा नाच, भगतिया, छव, कली नाच
  • मुखौटा प्रयोग:
    • छव नाच में कुछ क्षेत्र जैसे खूँटी में बिना मुखौटे के भी नृत्य होता है।

रस व भाव अनुसार नृत्य

  • प्रमुख रस: भक्ति, श्रृंगार, करुण, युद्ध, शिकार, शांत, वीर

सदानी समूह के पारंपरिक नृत्य

  • प्रमुख नृत्य:
    छव, पड़का, नटुआ, कली, नचनी, खेलड़ी, मंडा, भगतिया, मरदानी झूमर, जनानी झूमर, अंगनाई, डमकच, एक हरिया, दोहरी, जशपुरिया, असमिया, गोलवारी, झुमा, खेमटा, उड़िया, संधरा, लहसुआ, लुझरी, फगुआ का पुछारी, मइटकोड़न, पइन काटन, बंगला, झूमर, रास, उधवा माठा, जदुरा, जतरा, घोड़ा नाच आदि।

फगुआ नृत्य (पुरुष प्रधान)

  • फाल्गुन–चैत के संधिकाल में होता है।
  • जैसे ही फागुन चढ़ता है, तैयारी शुरू हो जाती है।

अन्य प्रमुख नृत्य

पंचपरगनिया नृत्य

  • क्षेत्र: बुंडू, तमाड़, सोनाहात, सिल्ली, बरेंदा परगना
  • प्रभाव: नागपुरी, खोरठा, आदिवासी
  • विशेषता: अपनी मौलिक शैली और बंगाली रागों का प्रभाव
  • प्रमुख नृत्य:
    रास, बंगला झूमर, टुसू, खेमटा, लहसुआ, लुझरी, करम, सोहराई आदि।

खोरठा नृत्य

  • सदानी से शैली में मिलता-जुलता, परंतु अलग छाप।
  • प्रमुख नृत्य:
    करम, रास, सोहराई, बाँडी

कुरमाली नृत्य

  • इनकी संस्कृति सदानी संस्कृति के करीब है, फिर भी नृत्य-संगीत में विशिष्टता देखी जा सकती है।
  • नृत्य शैली व मुद्रा झारखंडी नृत्यों के समान हैं।
  • स्त्री-पुरुष अलग-अलग या समूह में नृत्य करते हैं।
  • प्रमुख नृत्य: टुसू, सरहुल, पाता, अढ़इया आदि।

मुंडारी नृत्य

  • मुंडा समाज की पहचान भाषा और संस्कृति से जुड़ी है।
  • ऋतु परिवर्तन के अनुसार विभिन्न राग, लय, ताल में साल भर नृत्य होते हैं।
  • नृत्य-संगीत इनके हर पर्व का अनिवार्य अंग है।
  • प्रमुख नृत्य: जदुर, ओरदुर, जापी, गेना, चिटिद, छव, करम, खेटमा, जरगा, जतरा, पइका, बुरू, जाली आदि।
  • विशेषता: महिला दल में पुरुष नहीं नाचते।

संतालों के नृत्य

  • संताल, मुंडा कुल के हैं और आग्नेय भाषा परिवार का बड़ा अंग हैं।
  • भाषा-संस्कृति में समानता के बावजूद नृत्य-संगीत में मौलिक भेद हैं।
  • साल भर ऋतु के अनुसार उत्सवों में नृत्य होते हैं (सावन-भादो में नहीं)।
  • नृत्य के तीन वर्ग:
    • (क) युद्ध और शिकार नृत्य
    • (ख) धार्मिक नृत्य
    • (ग) सामाजिक नृत्य
  • प्रमुख नृत्य: डाहार, बाहा, लांगड़े, दोडा, दोगेड़, दसाय, शिकारी, सोहराई, दोसमी आदि।

हो नृत्य

  • हो समाज, मुंडा समुदाय का विशेष अंग है।
  • आग्नेय भाषा परिवार से संबंध।
  • नृत्य-संगीत में साम्यता होते हुए भी विशिष्ट छाप है।
  • प्रमुख नृत्य: माग, विवाह, बा, हेरो, जोमनाम, दसंय, सोहराई आदि।

खड़िया नृत्य

  • खड़िया, आग्नेय भाषा परिवार का हिस्सा हैं लेकिन मुंडा-संताल से कम निकटता है।
  • सांस्कृतिक रूप से अलग पहचान।
  • नृत्य-संगीत में विशिष्ट छवि और शैली।
  • सामूहिकता की प्रवृत्ति प्रबल; सभी रिश्ते-नाते इसमें सम्मिलित होते हैं।
  • महिलाएँ एक या अधिक पंक्तियों में हाथ जोड़कर नृत्य करती हैं।
  • पुरुष भी स्वतंत्र या सम्मिलित होकर नृत्य करते हैं।
  • प्रिय वाद्य: मांदर, नगाड़ा, ढोल आदि।
  • प्रमुख नृत्य: हरियो, किनभर हल्का, कुअडींग, इंदो कुअडींग, डोयोर जदुरा, जेठ लहसुआ, कुबार अगहनी लहसुआ, करम उड़िया, अंगनई, चैत-वैशाख ठढ़िया आदि।

उराँवों के नृत्य

  • झारखंड में द्रविड़ परिवार का प्रमुख समाज।
  • अत्यंत संगीतप्रिय एवं कलाप्रिय समाज।
  • वेशभूषा और वाद्ययंत्र अत्यंत आकर्षक होते हैं।
  • लोकप्रिय वाद्य: मांदर, नगाड़ा, ठेचका, घंटी, तिरियो आदि।
  • गीतों में कभी-कभी वाद्य और नृत्य दोनों नहीं होते।
  • नागपुरी (सदरी) गीतों का भी प्रयोग होता है।
  • सदानों का प्रभाव उराँवों पर भी पड़ा है।
  • महिलाएँ हाथों में हाथ डालकर कतार बनाकर नृत्य करती हैं, पुरुष भी सम्मिलित हो जाते हैं।
  • विशेष नृत्य क्रियाएं:
    • तोतकाना – दो कदम पीछे
    • लंगड़ाना – आगे बढ़ना
    • जोड़ना – कंधे और हाथों से जुड़ना
  • मांदर वादक का महत्त्वपूर्ण स्थान; महिलाएँ भी अब मांदर बजाने लगी हैं।
  • प्रमुख नृत्य: फर खदीजादि, जेठवारी, रोपा, करम, तुर्गा, डमकच, झुमइर, डोडोंग, घुड़िया, सुरगुजिया, छा टुटा, देशवाड़ी, अंगनई, चाली, बिरिंझिया आदि।

वाद्य यंत्र

झारखंडी जनजीवन में संगीत और नृत्य

  • एक कहावत प्रचलित है: “चलना ही नृत्य है, बोलना ही संगीत।”
  • पर्व-त्योहार, विवाह, पूजा आदि अवसरों पर वाद्य यंत्रों का भरपूर उपयोग होता है।
  • वाद्ययंत्रों की शिक्षा अखड़ा, धुमकुरिया, गितिओड़ा में होती है।
  • महिलाएँ सामान्यतः केवल घुँघरू, ठेचका, करताल जैसे वाद्य बजाती हैं।
  • बड़े वाद्य (नगाड़ा, ढोल आदि) तथा हल्के वाद्य (बाँसुरी, मुरली, शहनाई आदि) भी महिलाओं के लिए वर्जित हैं।
  • ताल वाद्य संगीत का प्रमुख अंग है।

वाद्ययंत्रों का वर्गीकरण – शार्ङ्गदेव (13वीं सदी, ‘संगीत रत्नाकर’)

तत् वाद्य / तंत्री वाद्य

  • तारों से ध्वनि उत्पन्न होती है।
  • जैसे: केंदरा, टुहिला, भुअंग, एकतारा, सारंगी।
  • दो प्रकार:
    • (क) अँगुली या लकड़ी से बजाए जाते हैं – टुहिला, केंदरा आदि।
    • (ख) घोड़े के बालों से बने धनुष से रेतकर बजाए जाते हैं।

सुषिर वाद्य

  • फूँक कर बजाए जाते हैं।
  • जैसे: बाँसुरी, मदन भेरी, सानाई (शहनाई), तुमड़ी (बीन), सिंघा।

अवनद्ध वाद्य

  • चमड़े से बनाए जाते हैं।
  • जैसे: नगाड़ा, मांदर, धमसा, ढाक, ढोल, चांगु।

घन वाद्य

  • धातु से निर्मित गूँजदार वाद्य।
  • जैसे: करताल, मंदिरा, झाँझ, थाला।

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