पृष्ठभूमि: ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रभाव
- सन 1800 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजा-रजवाड़ों पर शिकंजा कस दिया था।
- छोटानागपुर क्षेत्र में राजस्व वसूली को लेकर कम्पनी ने लगातार नीति बदली।
- 1817 का वर्ष अहम था, क्योंकि इसी साल कम्पनी ने सामंती सत्ता छीन ली।
- इसी के साथ छोटानागपुर खास में समाड़ विद्रोह के बीज फूटे।
तमाड़ विद्रोह की शुरुआत (1819)
- प्रमुख विद्रोही नेता:
- दौलत राय मुण्डा (इटकी)
- शंकर मानकी (कासु जंगा)
- रूदन मुण्डा व शिवनाथ मुण्डा (सिंदरी)
- चंदन सिंह, घुसा सरदार (बगही)
- भद्रा मुण्डा, टेपा मानकी (बाध बनिया)
विद्रोह की घटनाएँ
- 21 अगस्त 1819: विद्रोहियों ने पुराना नगर पर हमला किया।
- कुछ लोग मारे गए, 20 लोग घायल हुए।
- सम्पत्ति और मवेशी लूट लिए गए।
- 24 अगस्त 1819: विद्रोहियों ने फिर हमला किया।
- 31 अगस्त 1819: पिटुचाड़ा में हमला किया गया।
- विद्रोही तमाड़ खास और नवाडीह में भी हमला करना चाहते थे।
तमाड़ के राजा की प्रतिक्रिया
- तमाड़ के राजा गोविन्द शाही ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारी रफसेज से सहायता की मांग की।
- तमाड़ की दुर्गम भौगोलिक स्थिति विद्रोहियों के पक्ष में थी।
इतिहास में उल्लेख
- इस विद्रोह का विस्तृत वर्णन इतिहासकार डा० वी. वीरोत्तम ने अपनी पुस्तक “झारखण्ड: इतिहास एवं संस्कृति” में किया है।
विद्रोह का विस्तार और सरकारी प्रतिक्रिया
- सितम्बर 1819 तक विद्रोह गंभीर रूप ले चुका था।
- 20 नवम्बर 1819: रफसेज ने शेख इनायतुल्ला खाँ के नेतृत्व में 40 बंदूकधारियों को तमाड़ भेजा।
- दिसम्बर 1819: विद्रोह का विस्तार हुआ, मजिस्ट्रेट ए जे कोलविन पहले से मौजूद था।
- कम्पनी ने दमन चक्र चलाया:
- जनवरी से मार्च 1820 तक कई विद्रोही नेता गिरफ्तार किए गए।
- रूदन मुण्डा और कान्ता मुण्डा पकड़ में नहीं आए।
- रूदन मुण्डा की गिरफ्तारी पर इनाम घोषित किया गया।
रूदन मुण्डा की गिरफ्तारी और मृत्यु
- जुलाई 1820: सरायकेला के कुंवर विक्रम की सहायता से रूदन मुण्डा पकड़ा गया।
- वह बन्दी अवस्था में ही मर गया।
प्रशासनिक पुनर्गठन
- इनायतुल्ला खाँ को मुख्यालय लौटने के लिए कहा गया।
- कोलविन ने रफसेज को संबलपुर भेजने की सलाह दी।
विद्रोह की पुनरावृत्ति (1821)
- 1821 में विद्रोह फिर भड़का।
- रामगढ़ के दंडाधिकारी एन स्मिथ को सूचना मिली कि कोन्ता मुण्डा ने सिंहभूम के लड़ाकों को संगठित कर लिया है।
- कोन्ता मुण्डा तमाड़ पर हमला नहीं कर पाया, लेकिन राजा गोविन्द शाही के लिए आफत बना रहा।
कोन्ता मुण्डा पर इनाम और गिरफ्तारी
- गोविन्द शाही ने कोन्ता मुण्डा पर 200 रुपये का इनाम घोषित किया।
- तत्कालीन ढालभूम के राजा को परवाना और मिदनापुर के दंडाधिकारी को पत्र भेजा गया।
- कोन्ता मुण्डा पर मुकदमा चला और उसकी मृत्यु जेल में हो गई।
विद्रोह का अंत
- कोन्ता मुण्डा की मृत्यु के बाद विद्रोह का अंत हो गया।

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