व्यक्तिगत जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
- सिद्धु-कान्हु चार भाई थे: सिद्धु, कान्हु, चाँद और भैरो
- पिता का नाम: चुन्नी माँझी
- मूल निवासी: भोगना डीह गाँव, बरहेट प्रखंड, संताल परगना
- जन्म अनुमानित:
- सिद्धु: 1815
- कान्हु: 1820
- चाँद: 1825
- भैरो: 1835
- सिद्धु का कद: 6 फीट, शारीरिक रूप से मजबूत और संगठन क्षमता में अपार
संथाल विद्रोह (हुल) की पृष्ठभूमि
- 1854 में दामिन-ए-कोह क्षेत्र में संथाल किसानों ने महाजनों के घरों पर हमला किया (बिना लूटपाट)
- नेतृत्व कर रहे थे:
- वीर सिंह मांझी (बोरियो)
- डोमन मांझी (हाटबांधा)
- व्यापारी, महाजन और जमींदारों की शोषण नीति, बेईमानी, मालगुजारी की नीलामी जैसी घटनाओं से भारी असंतोष फैला
- सरकार और प्रशासन की उदासीनता भी आंदोलन का कारण बनी
विद्रोह की शुरुआत और संगठन
- 1855 में, सिद्धु-कान्हु ने संथालों का नेतृत्व हाथ में लिया
- चारों भाई ब्रिटिश शासन के अत्याचार, शोषण और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़े
- आंदोलन का उद्देश्य: स्वराज्य (अपना शासन – “अवुआ राज”)
- प्रचार किया गया कि कुल देवी-देवता से आदेश मिला है अंग्रेजों को खदेड़ने का
- सिद्धु ने मौझियों से कहा: साल वृक्ष में कान लगाकर एकजुटता की आवाज सुनो
- “साल टहनी संदेश” गाँव-गाँव फैलाया गया – यह एक क्रांतिकारी संदेश बन गया
विद्रोह की घोषणा और प्रारंभिक सफलता
- 30 जून 1855: भोगनाडीह में माँझियों की सभा
- नारे दिए गए:
- “करो या मरो”
- “अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो”
- पद बाँटे गए:
- सिद्धु – राजा
- कान्हु – मंत्री
- चाँद – प्रशासक
- भैरो – सेनापति
- नारे दिए गए:
- इसी सभा में “अवुआ राज” (अपना शासन) की घोषणा की गई
विद्रोह का विस्तार और हिंसक संघर्ष
- 7 जुलाई 1855: दिग्धी के दारोगा महेश लाल दत्त की हत्या
- 8 जुलाई: सिद्धु-कान्हु का दल पाकुड़ पहुँचा, वहाँ के राजा अपने परिवार समेत भाग निकले
- संथालों ने पाकुड़ से महेशपुर होते हुए राजमहल तक हमला किया
- 10 जुलाई 1855: मेजर एफ.डब्लू. डारफ के नेतृत्व में भेजी गई अंग्रेजी सेना की टुकड़ी को संथालों ने पराजित किया
- अंग्रेजी समर्थक सरदारों और जमींदारों को भी निशाना बनाया गया
- अंबर (पाकुड़) परगना का राजमहल कब्जे में लिया गया
- संथाल विद्रोही मुर्शिदाबाद की ओर बढ़ने लगे
दमन और शहादत
- अंग्रेजों की कड़ी जवाबी कार्रवाई से सैकड़ों संथाल विद्रोही मारे गए
- 10 नवम्बर 1855: क्षेत्र में “मार्शल लॉ” लागू कर दिया गया (2 जनवरी 1856 तक)
- भागलपुर में विशेष मार्शल लॉ लगाया गया और गिरफ्तारी हेतु पुरस्कार घोषित हुए
- बरहैट की लड़ाई में चाँद और भैरो शहीद हो गए
- फरवरी 1856:
- कान्हु को उपरबंदा (जामताड़ा के उत्तर) से गिरफ्तार किया गया
- सिद्धु को बरहैट से गिरफ्तार किया गया
- 26 जुलाई 1856:
- सिद्धु को बरहैट, और
- कान्हु को भोगनाडीह में फांसी दी गई
विरासत
- सिद्धु-कान्हु ने झारखंड और संथाल परगना में पहली बार संगठित जनविद्रोह खड़ा किया
- उनके नेतृत्व में हुआ आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम जनजातीय क्रांति – संथाल हुल (1855) के नाम से इतिहास में अमर है
- उनका बलिदान आदिवासी अस्मिता, स्वाभिमान और स्वराज्य की प्रेरणा का प्रतीक है
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