शेख भिखारी – झारखंड के अमर स्वतंत्रता सेनानी (1857)

जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन

  • जन्म: 1819, खुदिया गाँव, ओरमांझी थाना, राँची
  • पिता: शेख पहलवान – 12 गाँवों के ज़मींदार
  • परदादा: शेख बुंलदु
  • बचपन से ही:
    • घुड़सवारी और युद्ध कौशल में निपुणता हासिल की
    • जमींदारी कार्य प्रणाली का अनुभव प्राप्त किया

प्रशासनिक जीवन

  • खटंगा के राजा टिकैत उमराव सिंह द्वारा शेख भिखारी को दीवान नियुक्त किया गया
  • टिकैत उमराव सिंह एक सच्चे देशभक्त थे, जिन्होंने शेख भिखारी के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया

1857 की क्रांति में भागीदारी

  • 31 जुलाई 1857: स्वतंत्रता संग्राम का आरंभ चुटूपाली घाटी (टिकैत उमराव सिंह की जमींदारी के अंतर्गत) से हुआ
  • नेतृत्वकर्ता: माधो सिंह और नादिर अली खाँ
  • शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह ने उन्हें खुलकर सहयोग दिया
  • विद्रोही राँची की ओर बढ़े और डोरंडा छावनी को स्वतंत्र घोषित किया

अंग्रेजों का पलायन

  • डोरंडा की स्वतंत्रता के बाद:
    • छोटानागपुर के आयुक्त डालटन
    • उपायुक्त डेविस
    • न्यायाधीश ऑक्स
      ➤ ये सभी कॉके–पिठौरिया मार्ग से हजारीबाग भाग गए

संघर्ष का विस्तार और सहयोगी सेनानी

  • विद्रोहियों में प्रमुख रूप से जुड़े:
    • ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव
    • पाण्डेय गणपत राय
    • जयमंगल पाण्डेय

संताल विद्रोहियों से सम्पर्क

  • शेख भिखारी ने हजारीबाग क्षेत्र के संताल विद्रोहियों से संपर्क स्थापित किया
  • उन्हें अंग्रेजी शासन के खिलाफ सक्रिय किया

हजारीबाग जेल विद्रोह

  • 30 जुलाई 1857:
    ➤ हजारीबाग जेल तोड़ दी गई
    ➤ कैदियों को मुक्त किया गया
  • उपायुक्त बरही में शरण लेने को मजबूर हुए

दमनात्मक कार्रवाई और गिरफ्तारी

  • बंगाल के गवर्नर एडली ने विद्रोह को कुचलने का आदेश दिया
  • हजारीबाग का स्वतंत्रता आंदोलन दमन कर दिया गया
  • लगभग 200 विद्रोहियों को फाँसी की सजा दी गई

शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह की गिरफ्तारी व बलिदान

  • आयुध (हथियार) खत्म होने के कारण उन्हें समर्पण करना पड़ा
  • 6 जनवरी 1858 को गिरफ्तार कर लिए गए
  • 7 जनवरी 1858 को फाँसी की सजा सुनाई गई
  • 8 जनवरी 1858 को फाँसी दी गई

विरासत

  • शेख भिखारी झारखंड के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) के एक अग्रणी योद्धा थे
  • उन्होंने राजा टिकैत उमराव सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजों को झारखंड क्षेत्र से खदेड़ने में ऐतिहासिक योगदान दिया
  • उनका बलिदान झारखंड के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है

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