जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन
- जन्म: 15 नवम्बर 1875, ग्राम उलिहातू, अड़की प्रखंड, खूंटी अनुमंडल
- कुछ विद्वानों में जन्मस्थल उलिहातू को लेकर मतभेद हैं
- पिता: सुगना मुंडा, दादा: लकारी मुंडा
- परिवार अत्यंत निर्धन था
- गरीबी के कारण माता-पिता ने पहले उन्हें आयुभाटु (माँ का गाँव) और फिर खटंगा भेजा
शिक्षा और धर्म परिवर्तन
- 7 मई 1886: चाईबासा के लुथरन मिशन में ईसाई धर्म में धर्मांतरण हुआ
- प्रारंभिक शिक्षा: उलिहातू ग्राम के पास के एक स्कूल में
- आगे की पढ़ाई: गुरजू मिशन स्कूल
- उस समय जर्मन लुथरन और रोमन कैथोलिक ईसाइयों द्वारा भूमि आंदोलन चलाया जा रहा था
- बिरसा मिशनरियों के प्रचार पर ध्यानपूर्वक नजर रखते थे
- कुछ मतभेदों के कारण स्कूल से निकाल दिया गया
- 1886–1890 तक चाईबासा में रहे
मानसिक बदलाव और आदिवासी चेतना
- 1890 में अपने गाँव लौटने के बाद जीवन में बड़ा परिवर्तन आया
- रामायण (राम-लक्ष्मण) और महाभारत (कृष्ण-अर्जुन) की कहानियाँ सुनने में रुचि ली
- एक हिन्दू ब्राह्मण “आनन्द पांडे” के प्रभाव में आए
- स्थानीय ग्रामीणों की सेवा करने लगे
- ईसाई मिशनरियों से असंतुष्ट होकर प्राचीन जनजातीय जीवन के पुनर्गठन में लग गए
बिरसा आंदोलन की शुरुआत
- उद्देश्य: प्राचीन जनजातीय संस्कृति की पुनः स्थापना
- राजनीतिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए धर्म का सहारा लिया
- ईसाई मिशनरियों पर आरोप:
- मुंडा समाज को दो भागों में बाँटा
- बिरसा ने मिशनरियों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका
- आंदोलन धीरे-धीरे जन आंदोलन बन गया
- सरदारों की भागीदारी से आंदोलन को बल मिला
आंदोलन की दिशा में बदलाव
- सरदारों ने बिरसा की अहिंसात्मक नीति को बदले बिना सशस्त्र संघर्ष की तैयारी शुरू कर दी
- ईसाई मिशनरियों ने अंग्रेजी सरकार को बिरसा के खिलाफ भड़काया
गिरफ्तारी और सजा
- 22 अगस्त 1895: बिरसा की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी
- गिरफ्तारी के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 505 के अंतर्गत मुकदमा
- सजा: 2 वर्षों की सश्रम कारावास
- इस दमन का मुंडा समाज पर बुरा प्रभाव पड़ा — लोग डर गए
- 30 नवम्बर 1897 को बिरसा जेल से रिहा हुए
विद्रोह और अंतिम गिरफ्तारी
- जेल से छूटने के बाद लगभग 2 वर्षों तक समर्थकों को संगठित करने में लगे
- 1899 में बिरसा ने विद्रोह छेड़ा:
➤ क्षेत्र: चक्रधरपुर, खूंटी, कर्रा, तोरपा, तमाड़, बसिया आदि - बिरसा के विद्रोह से अंग्रेज सरकार अत्यंत नाराज हो गई
- बिरसा की गिरफ्तारी पर ₹500 इनाम की घोषणा
- काफी समय तक पुलिस को चकमा देते रहे
गिरफ्तारी और मृत्यु
- 9 जून 1900: बिरसा मुंडा गिरफ्तार किए गए
- राँची जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई (मृत्यु का रहस्य आज भी अस्पष्ट है)
विरासत
- बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के चेतनानायक और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूतों में से एक थे
- उनका आंदोलन धर्म, संस्कृति, भूमि और स्वाभिमान की रक्षा का प्रतीक बना
- उन्हें “धरती आबा” (धरती पिता) कहा जाता है
- 15 नवम्बर (जन्मदिवस) को झारखंड स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है
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