पोटो सरदार – कोल्हान के वीर आदिवासी सेनानायक
प्रारंभिक जीवन और आदिवासी स्वतंत्रता
- पोटो सरदार का बचपन उन्मुक्त और स्वच्छंद वातावरण में बीता।
- “हो” आदिवासी प्रकृति के अनुरूप जीवन जीते थे और किसी भी बंधन को नहीं मानते थे।
- अंग्रेजों ने “हो” आदिवासियों को जबरन गुलाम बना लिया और उनके प्राकृतिक अधिकार छीन लिए।
- उन पर अमानवीय अत्याचार भी किए गए।
कोल्हन में विद्रोह और प्रतिक्रिया
- “हो” लोगों ने अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ विद्रोह किया।
- कोल्हन क्षेत्र में लगातार कई विद्रोह हुए।
- इससे विवश होकर कंपनी सरकार को “विल्किन्सन रूल” लागू करना पड़ा, जो आज भी कोल्हान में लागू है।
- यह रूल स्थानीय स्वशासन की स्वायत्तता को संवैधानिक मान्यता देता है।
कोल विद्रोह और प्रशासनिक दमन
- 1820–21 में अंग्रेज सरकार ने पहले विद्रोह को कुचल दिया।
- 1831–32 के कोल विद्रोह में “हो” आदिवासियों ने फिर से भाग लिया, जिसे फिर से दमन द्वारा दबाया गया।
सत्ता विस्तार और सैन्य रणनीति
- 18 जनवरी 1833 को सरायकेला में हिल एसेंबली बुलाई गई।
- नवंबर 1836 – फरवरी 1837 के बीच विल्किन्सन ने पुलिस कार्रवाई कर पूरे क्षेत्र में कंपनी सत्ता स्थापित कर दी।
- दक्षिण-पश्चिम सीमांत एजेंसी की स्थापना हुई और थॉमस विल्किन्सन को एजेंट बनाया गया।
पोटो सरदार का विद्रोह
- गाँवों के मुण्डा-मानकियों को अपमानित किया गया, जिससे “हो” समाज की स्वतंत्रता और सामाजिक व्यवस्था चरमरा गई।
- राजा बासा पीर की पोटो सरदार ने अपने साथियों के साथ विद्रोह की घोषणा कर दी।
विद्रोह का प्रसार और संगठन
- घने जंगलों और पहाड़ियों से भरे कोल्हान में विद्रोहियों ने ग्राम-प्रमुखों को तीर भेजकर विद्रोह में शामिल होने का निमंत्रण दिया।
- विद्रोहियों ने कंपनी सेना को आतंकित करना शुरू कर दिया और सशस्त्र विद्रोह की आग पूरे कोल्हान में फैल गई।
ब्रिटिश सैन्य कार्रवाई
- 12 नवम्बर 1837 को चाईबासा में अफसरों की बैठक हुई।
- 17 नवम्बर को कैप्टन आर्मस्ट्रांग को बाढ़पीड़ भेजा गया।
- सैन्य बल में शामिल थे:
- 400 सशस्त्र सैनिक
- 60 घुड़सवार सिपाही
- दो लेफ्टिनेंट की सेनाएँ:
- लेफ्टिनेंट टिकेल की सेना ने जयपुर गाँव पर हमला किया।
- कैप्टन आर्मस्ट्रांग और लेफ्टिनेंट सिम्पसन की सेना ने रूईया गाँव पर धावा बोला।
संघर्ष और हानि
- विद्रोही हमले के लिए तैयार नहीं थे।
- युद्ध के मैदान पर दोनों पक्षों की लाशें बिछ गईं — अधिकांश पोटो सरदार के सैनिक मारे गए।
- फिर भी, पोटो और अन्य प्रमुख नेता बच निकलने में सफल रहे।
गिरफ्तारी और मुकदमा
- 8 दिसम्बर 1837 को पोटो सरदार और उनके सहयोगी डीवे को गिरफ्तार कर लिया गया।
- 18 से 31 दिसम्बर 1837 तक जगन्नाथपुर में मुकदमा चला, जिसकी अध्यक्षता विल्किन्सन ने की।
फाँसी की सजा और निष्पादन
- 31 दिसम्बर 1837 को विल्किन्सन ने निम्नलिखित लोगों को फाँसी की सजा सुनाई:
- पोटो
- बोड़ो
- पंडुआ
- नारो
- बड़ाय
- 1 जनवरी 1838 को जगन्नाथपुर में:
- पोटो, नारो और बड़ाय को स्थानीय लोगों की भीड़ के सामने फाँसी दी गई।
- 2 जनवरी 1838 को सेरेंगसिया गाँव में:
- बोड़ो और पंडुआ को फाँसी के फंदे पर लटकाया गया।
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