प्रारंभिक जीवन
- जन्म: 17 जनवरी 1809
- जन्म स्थान: भौरो ग्राम, लोहरदगा (वर्तमान में भंडरा प्रखंड, झारखंड में स्थित)
- जातीय पृष्ठभूमि: कायस्थ
- बचपन: चाचा सदासिव राय के साथ बिताया, जो छोटानागपुर के महाराजा के दीवान थे और पालकोट में रहते थे
- शिक्षा: उच्च शिक्षा प्राप्त की, अरबी और फारसी भाषाओं में दक्षता प्राप्त की
पारिवारिक जीवन
- पहला विवाह: 15 वर्ष की आयु में हुआ, पर संतान नहीं हुई
- दूसरा विवाह: 1837 में पलामू में हुआ
- दूसरी पत्नी से: 2 पुत्र और 3 पुत्रियाँ थीं
राजनीतिक और प्रशासनिक जीवन
- चाचा की मृत्यु के बाद, छोटानागपुर के महाराजा के दीवान बने
- कार्यकुशलता और प्रशासनिक निपुणता से राजा को प्रभावित किया
- ब्रिटिश हस्तक्षेप: छोटानागपुर के 59वें महाराज जगन्नाथ शाहदेव के उत्तराधिकार विवाद में अंग्रेजों की प्रिवी कौंसिल ने नागवंशी राजा के खिलाफ निर्णय दिया
- अंग्रेजों ने एडम ह्यूम को छोटानागपुर राज्य का प्रबंधक नियुक्त किया
- इस अन्यायपूर्ण हस्तक्षेप से उनके मन में विद्रोह की भावना उत्पन्न हुई
1857 की क्रांति में भूमिका
- अगस्त 1857: डोरंडा छावनी में अंग्रेजी सेना की टुकड़ी ने बगावत की
- पाण्डेय गणपत राय ने ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के साथ मिलकर विद्रोह का नेतृत्व किया
- विद्रोही सैनिकों ने:
- विश्वनाथ शाहदेव को राजा और
- गणपत राय को सेनापति घोषित किया
विद्रोही गतिविधियाँ
- विद्रोहियों ने:
- राँची की कचहरी को जलाया
- ट्रेजरी लूटी
- अंग्रेजों के मकानों पर हमला किया
- राँची जेल को तोड़कर 300 कैदियों को मुक्त कराया
संपर्क और रणनीति
- विद्रोह को व्यापक रूप देने के लिए, वालुमाथ, चतरा होते हुए कुँवर सिंह से मिलने की योजना बनाई गई
- यात्रा के दौरान 2 अक्टूबर 1857 को अंग्रेजी सेना ने उन्हें घेर लिया, जिससे उन्हें भागना पड़ा
गिरफ्तारी और विश्वासघात
- आंदोलन को पुनर्जीवित करने के लिए लोहरदगा में समर्थन जुटाने का प्रयास किया
- वहाँ के जमींदार महेश साही ने विश्वासघात किया
- उन्हें कोठरी में बंद कर अंग्रेजों को सूचना दे दी
- कैप्टन नेशन ने उन्हें गिरफ्तार किया और राँची लाकर मुकदमा चलाया गया
फांसी और बलिदान
- 16 अप्रैल 1858: उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई
- 21 अप्रैल 1858: उन्हें राँची के उसी कदम्ब वृक्ष से फाँसी दी गई जहाँ ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को दी गई थी (वर्तमान राँची जिला स्कूल के गेट के पास)
विरासत
- पाण्डेय गणपत राय को झारखंड के संगठित विद्रोह का प्रथम सेनापति माना जाता है
- उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ साहस, संगठन और रणनीति का परिचय दिया
- उनका नाम झारखंड के स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानियों में सदा के लिए अमर है
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