परिचय और पृष्ठभूमि
- नीलांबर और पीतांबर पलामू जिले के महान स्वतंत्रता सेनानी थे।
- वे दोनों सहोदर (सगे) भाई थे।
- उनके बचपन के बारे में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है।
- दोनों ने खरवार समुदाय को संगठित कर एक शक्तिशाली संगठन बनाया।
- पलामू जिले में चेरो और खरवार जातियों की प्रमुखता है, जिनमें भोक्ता खरवार एक उपजाति है।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
- 1857 की क्रांति में नीलांबर और पीतांबर ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
- उन्होंने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए चेरो जागीरदारों से मित्रता की।
- बदले में उन्हें उनके अधिकार वापस दिलाने का वादा किया गया।
- 21 अक्टूबर 1857 को दोनों भाइयों के नेतृत्व में चैनपुर, साहपुर, और लेस्लीगंज पर आक्रमण किया गया।
- वे इस अभियान में काफी हद तक सफल रहे।
चैनपुर में संघर्ष
- उस समय चैनपुर के जागीरदार रघुवर दयाल सिंह अंग्रेजों के समर्थक थे।
- नीलांबर–पीतांबर ने उन पर आक्रमण किया, लेकिन रघुवर सिंह अपना क्षेत्र बचाने में सफल रहे।
- विद्रोह की सूचना मिलने पर अंग्रेजों ने मेजर कोर्टर के नेतृत्व में एक सैन्य टुकड़ी भेजी।
- ग्राहम भी साहपुर पहुँचकर सहयोग में शामिल हुए।
- इस संयुक्त सेना का नीलांबर–पीतांबर सामना नहीं कर सके और उन्हें मनिका के जंगल में भागना पड़ा।
जंगलों से विद्रोह और संघर्ष
- जंगल में रहकर दोनों भाइयों ने अपने कमजोर संगठन को मजबूत किया।
- कुछ समय बाद उन्होंने मनिका और उसके आस-पास के क्षेत्रों में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भड़काया।
- 16 जनवरी 1858 को कर्नल डाल्टन के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने मनिका के जंगलों से विद्रोहियों को खदेड़ दिया।
- इसके बाद कर्नल डाल्टन लेस्लीगंज चले गये।
गिरफ्तारी और दमन
- अंग्रेजी सरकार लगातार नीलांबर और पीतांबर को पकड़ने का प्रयास करती रही, लेकिन वे बार-बार बच निकलते रहे।
- अंततः कर्नल डाल्टन ने एक भोज के अवसर पर चालाकी से दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर लिया।
- उनके खिलाफ एक संक्षिप्त मुकदमा चलाकर उन्हें फाँसी की सजा दे दी गई।
- बाद में उनकी संपत्ति जब्त कर ली गई।
प्रशासनिक परिणाम
- विद्रोहों के बाद ब्रिटिश सरकार ने जनजातीय क्षेत्रों के लिए एक विशेष रेगुलेशन प्रणाली लागू करने का निर्णय लिया।
- इस प्रणाली का उद्देश्य था: जनजातीय हितों की रक्षा करना।
- इस प्रणाली के लागू होने के बाद कोई बड़ा जनजातीय विद्रोह नहीं हुआ।
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