झारखंड के महान स्वतंत्रता सेनानी और छापामार योद्धा
व्यक्तिगत जीवन और प्रारंभिक पृष्ठभूमि
- जन्म: 9 फरवरी 1806, सिसई मुर्गे गाँव, झारखंड।
- पिता: दुइया खड़िया – पाहन तथा छोटानागपुर महाराज के भंडारी।
- माता: पेतो खड़िया।
- बचपन में तेज-तर्रार और बातूनी स्वभाव के कारण उनका नाम “तेड़बलंगा” पड़ा, जो समय के साथ “तेलंगा” बन गया।
- वह अनपढ़ थे, लेकिन उनमें अद्भुत नेतृत्व क्षमता थी।
- उन्होंने नौजवानों को एकत्र कर उन्हें युद्ध कौशल और वीरता का पाठ पढ़ाना शुरू किया।
- विवाह: 1846 में रतनी खड़िया से।
अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष और विद्रोह
- उन्होंने पूरे खड़िया क्षेत्र को जुरी पंचायत में गोलबंद किया।
- अंग्रेजों के शोषण, जमीन हड़पने और धार्मिक उत्पीड़न को देखकर वे क्रोधित थे।
- उन्हें 1831–32 के कोल विद्रोह की जानकारी थी और वे इससे प्रेरित हुए।
- धाना-कचहरी में आदिवासियों की जमीन छीनने और न्याय के नाम पर शोषण से वे आक्रोशित थे।
- उन्होंने सिसई बाजार टांड में युद्ध कला प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किया।
- उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध छापामार युद्ध शुरू किया।
- उनके युद्ध के प्रभाव से न केवल खड़िया, बल्कि उरांव, मुंडा, और सदान समुदाय भी उनके साथ जुड़ गए।
अंग्रेजी सरकार की प्रतिक्रिया और दमन
- अंग्रेजों को तेलंगा की गतिविधियों की जानकारी मिल गई थी।
- अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए अभियान चलाया और इनाम घोषित किया।
- तेलंगा को पकड़ने में असफल रहने पर अंग्रेजों ने उनके परिवार को तंग करना शुरू किया।
- अंग्रेजों ने तेलंगा के अनुयायियों को विद्रोह से रोकने के लिए उन्हें जेल में डाल दिया।
1857 के बाद की स्थिति और भूमि संकट
- 1857 का सिपाही विद्रोह दबा दिया गया था।
- 1859 में नया भू-कर कानून लागू किया गया, जिससे किसानों की जमीनें फिर से नीलाम की जाने लगीं।
- मिशनरियों ने धर्मांतरण कराए लोगों को भूमि बचाने में लाभ पहुँचाया।
शहादत और स्मृति स्थल
- 23 अप्रैल 1880, सिसई के अखरा में युद्ध प्रशिक्षण देने से पहले तेलंगा प्रार्थना कर रहे थे।
- उसी समय बोधन सिंह नामक व्यक्ति ने पीछे से गोली मारकर हत्या कर दी।
- तेलंगा शहीद हो गए।
- उनके अनुयायियों ने उन्हें कोयल नदी के किनारे सोसो नीम टोली में दफनाया।
- यह स्थान आज “तेलंगा तोपा टांड़” के नाम से प्रसिद्ध है।
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