झारखंड विस्थापन और पुनर्वास नीति (2008) को झारखंड राजपत्र में 25 जुलाई 2008 को प्रकाशित किया गया था। यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक दस्तावेज़ है जो भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए राज्य का ढांचा प्रस्तुत करता है। यह नीति 9 अध्यायों में विभाजित है।
अध्याय 1: प्रस्तावना
- झारखंड में ऐतिहासिक जनआंदोलन विशेष रूप से आदिवासी नेताओं द्वारा बाहरी हस्तक्षेप के विरोध में शुरू हुए थे।
- स्वतंत्रता के बाद एक अलग राज्य की माँग तेज़ हुई ताकि स्थानीय व आदिवासी समुदायों के हितों की रक्षा हो सके।
- इस माँग के परिणामस्वरूप 15 नवम्बर 2000 को झारखंड राज्य का निर्माण हुआ।
- राज्य के प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता से औद्योगीकरण के माध्यम से समृद्ध भविष्य की आशा थी।
- भूमि अधिग्रहण प्रमुखतः निम्न कानूनों के तहत हुआ:
- भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894
- कोयला वहन क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम, 1957
इन अधिग्रहणों से हुआ नुकसान:
- वन, भूमि, जल संसाधन, आजीविका, सामुदायिक पहचान की क्षति
- 60–70 वर्षों में बड़े पैमाने पर बाहरी लोगों का आगमन, जिससे आदिवासियों की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान प्रभावित हुई।
- आदिवासी जनसंख्या में गिरावट:
- 1931 में 50% → 2011 में 26.3%
- विधानसभा में आरक्षित सीटें: 32 → 28
- लोकसभा में आरक्षित सीटें: 7 → 5
‘उच्च लोक हित’ के नाम पर भूमि अधिग्रहण (Doctrine of Eminent Domain) से:
- भूमि और आजीविका का नुकसान
- मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, सांस्कृतिक प्रभाव
- विशेष रूप से अनुसूचित जातियों, जनजातियों, सीमांत किसानों, महिलाओं और कमजोर वर्गों पर असमान प्रभाव
पुनर्वास और पुनर्स्थापन के सिद्धांत:
- प्रभावित समुदायों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक
- उन्हें विकास प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाए
- कानूनी अधिकार न रखने वालों को भी मुआवजा व सहायता दी जाए
अध्याय 2: उद्देश्य
नीति के प्रमुख उद्देश्य:
- विस्थापन को न्यूनतम करना और इसके विकल्पों को प्रोत्साहित करना।
- प्रभावित व्यक्तियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना और प्रक्रिया का शीघ्र क्रियान्वयन करना।
- एससी/एसटी जैसे कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा।
- प्रभावित परिवारों की जीवन स्तर में सुधार और स्थायी आय के साधनों की गारंटी।
- पुनर्वास प्रयासों को व्यापक विकास योजनाओं में सम्मिलित करना।
- अधिग्रहण निकायों और प्रभावित परिवारों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
अध्याय 3: प्रमुख परिभाषाएँ
नीति के अंतर्गत महत्वपूर्ण परिभाषाएँ:
- प्रभावित परिवार: भूमि अधिग्रहण या अनैच्छिक विस्थापन से प्रभावित।
- प्रभावित क्षेत्र: जहाँ भूमि अधिग्रहण से 100 या अधिक परिवार विस्थापित हों।
- कृषि मजदूर:
- अनुसूचित क्षेत्र: अधिसूचना से पूर्व 30 वर्ष निवास
- गैर-अनुसूचित क्षेत्र: 15 वर्ष निवास
- कृषि भूमि: खेती, बागवानी, डेयरी, मुर्गी पालन, मछली पालन, औषधीय पौधे, चारा इत्यादि हेतु प्रयुक्त भूमि
- विस्थापन: मकान या आवासीय भूमि की हानि
- परिवार: पति/पत्नी, अविवाहित संतानें/भाई-बहन
- अलग परिवार:
- 30 वर्ष से अधिक आयु के अविवाहित
- 40% विकलांग व्यक्ति
- अनाथ, विधवा
- ग्रामसभा: झारखंड पंचायत राज अधिनियम, 2001 के अनुसार
- धारण क्षेत्र: किसी व्यक्ति द्वारा किरायेदार या कृषक के रूप में धारित भूमि
- रैयत: भूमि राजस्व अभिलेखों में नाम दर्ज व्यक्ति
- भूमि अधिग्रहण: भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 या राज्य के किसी अन्य कानून के अनुसार
- नगर क्षेत्र: झारखंड नगर निगम अधिनियम, 2001 के अनुसार
- अधिकारी: वन भूमि पर 13 दिसंबर 2005 से पूर्व काबिज जनजातीय या वन समुदाय
- परियोजना: जिससे अनैच्छिक विस्थापन हो
- आवश्यक निकाय: वह कंपनी/संस्था जिसके लिए भूमि अधिग्रहित की जा रही हो
- पुनर्वास क्षेत्र: घोषित क्षेत्र जहाँ पुनर्वास किया जाना है
अध्याय 4: सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA)
यदि किसी परियोजना से किसी क्षेत्र में 100 या अधिक परिवारों का विस्थापन हो सकता है:
- पुनर्वास प्रशासक SIA कराना सुनिश्चित करेंगे।
SIA के मुख्य बिंदु:
- सार्वजनिक संपत्तियाँ, जैसे: तालाब, चारागाह, पंचायत भवन, बिजली, स्वास्थ्य केंद्र
- आदिवासी संस्कृति व पहचान पर प्रभाव
- EIA के साथ समन्वय:
- जहाँ EIA व SIA दोनों अनिवार्य हों, वहाँ सार्वजनिक सुनवाई 30 दिनों में पूरी होनी चाहिए।
SIA की अनिवार्यता:
- 100+ परिवारों के विस्थापन की स्थिति में अनिवार्य
- सभी पक्षों को SIA में वर्णित शर्तों का पालन करना होगा
आवश्यक निकाय की लिखित प्रतिबद्धता:
- भूमि अधिग्रहण से पहले पुनर्वास नीति का पालन करने की लिखित प्रमाण-पत्र देना होगा
अध्याय 5: प्रशासक एवं आयुक्त की नियुक्ति, शक्तियाँ एवं कर्तव्य
पुनर्वास प्रशासक की नियुक्ति:
- 100 या अधिक परिवारों के विस्थापन पर, उपायुक्त स्तर या उससे ऊपर के अधिकारी की नियुक्ति
- 100 से कम विस्थापन पर उपायुक्त जिम्मेदार होंगे
प्रशासक के कर्तव्य:
- न्यूनतम विस्थापन के उपाय
- ग्रामसभा व प्रभावित व्यक्तियों से परामर्श
- अनुसूचित जनजातियों और कमजोर वर्गों की पहचान
- पुनर्वास योजना बनाना, बजट बनाना
- पर्याप्त भूमि की व्यवस्था
- लाभों की मंजूरी
- राज्य सरकार द्वारा सौंपे गए अन्य कार्य
तकनीकी सहायता:
- विशेषज्ञों/संस्थानों की सहायता ली जा सकती है – खर्च आवश्यक निकाय वहन करेगा
- अधिकारों का हस्तांतरण सर्किल अधिकारी या समकक्ष को किया जा सकता है
पुनर्वास आयुक्त की भूमिका:
- नीति की निगरानी और योजना क्रियान्वयन
- सभी अधिकारी प्रशासक को रिपोर्ट करेंगे
अध्याय 6: पुनर्वास और पुनर्स्थापन योजना
1. प्रभावित क्षेत्र की घोषणा:
- SIA अनुमोदन के 15 दिनों में प्रभावित क्षेत्रों की घोषणा
- 3 समाचार पत्रों में प्रकाशन, जिनमें से 2 हिंदी में
2. बेसलाइन सर्वेक्षण:
- 60 दिनों में पूरा करना अनिवार्य
- विवरण में शामिल:
- निवासियों का पेशा
- SC/ST, पिछड़ा वर्ग, कमजोर वर्ग
- 50+ उम्र के बुजुर्ग
- BPL व भूमिहीन परिवार
- 13 दिसंबर 2005 से पूर्व वन भूमि पर रह रहे लोग
- शिक्षण योग्यता व रोजगार संभावनाएँ
3. जन परामर्श:
- योजना का ग्रामसभा व सार्वजनिक सुनवाई में प्रस्तुतिकरण
- अनुसूचित क्षेत्र में PESA अधिनियम के अनुसार ग्रामसभा से परामर्श
- 100+ अनुसूचित जनजातीय परिवारों के विस्थापन पर जनजातीय सलाहकार परिषद से परामर्श अनिवार्य
4. वित्तीय और कानूनी प्रावधान:
- सभी खर्च अधिग्रहण निकाय द्वारा वहन किए जाएँगे
- अंतिम मंजूरी से पूर्व राज्य सरकार को लागत वहन की सहमति प्राप्त करनी होगी
- योजना की राजपत्र में अधिसूचना के साथ यह प्रभावी हो जाएगी
5. कंपनियों द्वारा भूमि अधिग्रहण:
- कंपनी के शेयर/डिबेंचर जारी करने की स्थिति में, R&R अनुदान का 25% हिस्सा शेयर/डिबेंचर के रूप में लेने का विकल्प प्रभावित व्यक्तियों को दिया जाएगा
6. अधिग्रहित भूमि के उपयोग पर प्रतिबंध:
- भूमि का उपयोग केवल सार्वजनिक उद्देश्य हेतु किया जा सकता है
- 5 वर्ष में आंशिक या 15 वर्ष में पूर्ण उपयोग न होने पर भूमि राज्य सरकार को वापस मिल जाएगी
- यदि भूमि बेची जाती है, तो मूल भू-स्वामियों को प्राप्त राशि का 80% हिस्सा दिया जाएगा
झारखंड विस्थापन और पुनर्वास नीति, 2008 – एक व्यापक अवलोकन
झारखंड की विस्थापन और पुनर्वास नीति, 2008 उन परिवारों के अधिकारों की रक्षा हेतु विस्तृत ढांचा प्रस्तुत करती है जो औद्योगिक, अवसंरचना या विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित होते हैं।
1. भूमि और आवास प्रावधान
- स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क अधिग्रहणकर्ता संस्था द्वारा वहन किए जाएंगे।
- आवंटित भूमि/घर किसी भी प्रकार के ऋण या बंधक से मुक्त होगा।
- भूमि या घर का आवंटन पति-पत्नी के संयुक्त नाम पर किया जाएगा।
- मौद्रिक मुआवजा भी संयुक्त बैंक खाते में भुगतान किया जाएगा।
मुख्य बिंदु: संयुक्त स्वामित्व, ऋण-मुक्त आवास, पंजीकरण शुल्क का भुगतान परियोजना द्वारा।
2. आजीविका हेतु वित्तीय सहायता
- यदि विस्थापित परिवार के पास पशुधन है तो ₹35,000 पशु शेड निर्माण हेतु दिया जाएगा।
- प्रत्येक विस्थापित परिवार को ₹15,000 एकमुश्त सहायता दी जाएगी, जिससे वे परिवार, सामान, भवन सामग्री व पशुओं को स्थानांतरित कर सकें।
- स्थायी दुकानों/खोमचों के मालिकों को ₹50,000 एकमुश्त सहायता दी जाएगी।
मुख्य बिंदु: पुनर्वास की शुरुआत में आर्थिक सहायता, दुकान मालिकों हेतु विशेष प्रावधान।
3. रोजगार और प्रशिक्षण प्रावधान
- भूमि अधिग्रहण होने पर कम से कम एक योग्य सदस्य को रोजगार देना अनिवार्य है।
- अधिग्रहणकर्ता संस्था तकनीकी/व्यावसायिक प्रशिक्षण उपलब्ध कराएगी।
- पात्र व्यक्ति को उम्र सीमा में 10 वर्ष तक की छूट दी जाएगी।
- सभी नई असंगठित और अर्ध-कुशल नौकरियां प्रभावित परिवारों को प्राथमिकता में दी जाएंगी।
- नौकरी में लगे विस्थापित की मृत्यु पर आश्रित को अनुकंपा नौकरी मिलेगी।
- यदि रोजगार नहीं दिया गया, तो परिवार को प्रति एकड़ ₹1000/माह 30 वर्षों तक मिलेगा, जो हर 2 वर्ष में ₹500 से बढ़ेगा।
मुख्य बिंदु: अनिवार्य रोजगार, प्रशिक्षण, आजीवन वित्तीय विकल्प, अनुकंपा नियुक्ति।
4. परियोजना मुनाफे में हिस्सा (सार्वजनिक क्षेत्र परियोजनाओं को छोड़कर)
- निजी वाणिज्यिक परियोजनाएं (राज्य/केंद्र सरकार उपक्रम को छोड़कर) वार्षिक मुनाफे का 1% प्रभावित परिवारों में वितरित करेंगी।
- यह वितरण वित्तीय परिणाम घोषित होने के 3 माह में किया जाना चाहिए।
मुख्य बिंदु: निजी मुनाफे में स्थानीय भागीदारी सुनिश्चित करना।
5. मासिक सहायता और आजीवन पेंशन
- हर अनैच्छिक रूप से विस्थापित परिवार को 25 दिन के कृषि न्यूनतम मजदूरी के बराबर मासिक सहायता एक वर्ष तक दी जाएगी।
- शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति को ₹1500 मासिक पेंशन बीमा योजना के माध्यम से दी जाएगी।
मुख्य बिंदु: आजीविका के लिए प्रारंभिक समर्थन और विकलांगों के लिए पेंशन।
6. अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) हेतु विशेष प्रावधान
- यदि 100 या अधिक ST परिवार विस्थापित होते हैं:
- भूमि अधिकारों हेतु विशेष अभियान चलाया जाएगा।
- जनजातीय विकास योजना तैयार की जाएगी।
- 1/3 मुआवजा अग्रिम में और शेष भूमि अधिग्रहण पर दिया जाएगा।
- ST परिवारों को सामान्यतः अनुसूचित क्षेत्रों में पुनर्वासित किया जाएगा।
- धार्मिक व सामुदायिक गतिविधियों के लिए मुफ्त भूमि दी जाएगी।
- यदि SC/ST/OBC परिवार को जिले से बाहर बसाया जाता है, तो 25% अतिरिक्त मुआवजा दिया जाएगा।
मुख्य बिंदु: ST परिवारों के लिए विशेष संरक्षण और सामाजिक-सांस्कृतिक पुनर्स्थापन।
7. जलविद्युत परियोजनाओं हेतु प्रावधान
- मत्स्य पालन पर निर्भर परिवारों को परियोजना जलाशयों में मछली पकड़ने का अधिकार मिलेगा।
मुख्य बिंदु: जलस्रोत-निर्भर आजीविका को बनाए रखने की व्यवस्था।
8. पुनर्वास क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं (100+ परिवारों पर लागू)
- सड़क, सार्वजनिक परिवहन, जल निकासी, पेयजल
- सामुदायिक तालाब, चरागाह, सामाजिक व कृषि वानिकी
- उचित मूल्य दुकानें, पंचायत भवन, डाकघर
- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पोषण सेवाएं
- खेल मैदान, पार्क, प्रशिक्षण संस्थान, पूजास्थल
- कब्रिस्तान/श्मशान भूमि, सुरक्षा व्यवस्था
मुख्य बिंदु: न्यूनतम सामाजिक अवसंरचना की अनिवार्यता।
9. ग्राम एकीकरण व वैधता
- पुनर्वास क्षेत्र को किसी मौजूदा ग्राम पंचायत या नगरपालिका में एकीकृत किया जाएगा।
- स्वामित्व प्रमाण पत्र जिला प्रशासन द्वारा सौंपा जाएगा।
- नया गांव राजस्व ग्राम घोषित किया जाएगा यदि पुराना भाग नहीं है।
- निवास प्रमाणपत्र हेतु पिछली भूमि प्रविष्टि (खातियान) मान्य होगा।
मुख्य बिंदु: कानूनी वैधता और दस्तावेजीकरण सुनिश्चित करना।
10. मुआवजा सूचकांक
- सभी मौद्रिक सहायता उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) से जोड़ी जाएगी और समय-समय पर राज्य सरकार द्वारा संशोधित की जाएगी।
मुख्य बिंदु: आर्थिक सहायता को महंगाई से जोड़ना।
11. परियोजना क्षेत्र के आसपास विकास
- परियोजना स्थल से 15 किलोमीटर के भीतर विकास का दायित्व अधिग्रहणकर्ता संस्था का होगा।
मुख्य बिंदु: व्यापक क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित करना।
12. शिकायत निवारण तंत्र
- 100 या अधिक विस्थापित परिवारों वाली परियोजना में पुनर्वास समिति बनेगी।
- अध्यक्ष – उपमंडल पदाधिकारी (SDO)
- सदस्य: महिला, SC/ST/OBC प्रतिनिधि, बैंक प्रतिनिधि, जनप्रतिनिधि, अधिग्रहणकर्ता संस्था का प्रतिनिधि
मुख्य बिंदु: समावेशी समिति द्वारा शिकायत निवारण।
जिला स्तरीय पुनर्वास समिति
- अध्यक्ष: उपायुक्त
- सभी परियोजनाओं हेतु निगरानी व समीक्षा
- राज्य सरकार द्वारा शक्तियाँ निर्धारित
न्यायाधिकरण (Tribunal)
- राज्य सरकार द्वारा तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण गठित
- शिकायत करने का अधिकार विस्थापितों को
- भूमि या संपत्ति मुआवजा विवादों का निपटारा भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के अंतर्गत होगा।
अध्याय 9 – निगरानी तंत्र
राज्य स्तरीय पुनर्वास परिषद
- अध्यक्ष – मुख्यमंत्री
- दो बैठकें सालाना आवश्यक
- सदस्य: संबंधित मंत्री, मुख्य सचिव, विभागीय सचिव, राष्ट्रीय विशेषज्ञ
राज्य स्तरीय निगरानी समिति
- अध्यक्ष – विकास आयुक्त
- सचिव – राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग
- सदस्य – सभी संबंधित विभागों के सचिव, परियोजना R&R प्रशासक
पारदर्शिता और सार्वजनिक सूचना
- सभी जानकारी ऑनलाइन प्रकाशित की जाएगी।
- ग्राम सभाओं को आधिकारिक सूचना दी जाएगी।
- प्रत्येक परियोजना हेतु एक विभागीय निगरानी समिति बनेगी।
नोडल विभाग व संशोधन
- राजस्व और भूमि सुधार विभाग नोडल एजेंसी
- राज्य सरकार को नीति में संशोधन का अधिकार
RFCTLARR झारखंड नियम, 2015 के अंतर्गत नियम
सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (SIA)
- अनिवार्य, हिंदी में रिपोर्ट बनाना अनिवार्य
- जन सुनवाई ग्राम/वार्ड सभाओं में
- अनुसूचित क्षेत्रों में स्थानीय भाषा में अनुवाद जरूरी
भूमि अधिग्रहण हेतु सहमति
- ज़मींदारों और PESA अधिनियम के तहत ग्राम सभा से सहमति अनिवार्य
वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत पात्रता
- जिन परिवारों को वन भूमि का अधिकार मिला है, वे भी पुनर्वास लाभों के पात्र होंगे।
कृषि व सीमांत श्रमिक
- 200 दिन की मजदूरी दर से भुगतान
भुगतबंधक (Encroachers) के लिए मुआवजा
- ₹25,000 प्रति एकड़ एकमुश्त राशि
R&R आयुक्तों की नियुक्ति
- अतिरिक्त उपायुक्त व प्रमंडलीय आयुक्त R&R आयुक्त घोषित
परियोजना स्तर पर R&R समिति
- अध्यक्ष – उपायुक्त
- सदस्य – निर्वाचित प्रतिनिधि, प्रभावित परिवारों के प्रतिनिधि
राज्य स्तरीय पुनरावलोकन समिति
- अध्यक्ष – विकास आयुक्त
प्रमंडलीय (डिविजनल) R&R प्राधिकरण
- उच्च न्यायालय की सलाह पर कार्रवाई
भूमि बैंक नीति
- भविष्य में अधिग्रहण आवश्यकता को कम करने हेतु भूमि बैंक बनाया जाएगा।
भूमि अधिग्रहण की सीमा
- किसी भी जिले में:
- बहुफसली सिंचित भूमि का 2% से अधिक अधिग्रहण नहीं होगा।
- कुल शुद्ध बोई गई भूमि का 25% से अधिक अधिग्रहण नहीं होगा।
ग्रामीण व शहरी भूमिधारकों हेतु मुआवजा
- ग्रामीण क्षेत्र: बाजार मूल्य का 4 गुना
- शहरी क्षेत्र: बाजार मूल्य का 2 गुना
सामुदायिक अवसंरचना की पुनर्स्थापना
- सड़क, परिवहन, जल निकासी, पेयजल, सामुदायिक तालाब, चरागाह आदि को पुनः स्थापित किया जाएगा।
परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण बिंदु:
- न्यायाधिकरण की संरचना
- मुआवजा प्रावधान
- भूमि अधिग्रहण की सीमा
- निगरानी समितियों की भूमिका
- SIA व PESA अधिनियम का एकीकरण
Also read in English:-
https://jharkhandexam.in/jharkhand-displacement-and-rehabilitation-policy-complete-guide-for-competitive-exams/
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