
जनजातीय शासन व्यवस्था
मुण्डाओं की स्वशासन व्यवस्था
- भाषा: मुण्डारी (आस्ट्रो-एशियाटिक परिवार)
- मुख्य निवास स्थान: राँची, सिंहभूम, हजारीबाग, पलामू, धनबाद
- जनसंख्या: लगभग 12.29 लाख
- प्रमुख उद्देश्य: सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और आपराधिक मामलों का निपटारा।
| पदाधिकारी | भूमिका |
|---|---|
| मुण्डा | गाँव का प्रधान; प्रशासन, न्यायिक कार्यों का नेतृत्व; कर वसूली। |
| पड़हा राजा | 12-20 गाँवों के समूह (पड़हा) का प्रधान; जटिल विवादों का निपटारा। (मानेदय ₹1000/-) |
| राजा | 22 पड़हा का प्रधान; उच्च स्तर का निर्णयकर्ता। |
| ठाकुर | पड़हा राजा का सहायक। |
| दीवान | राजा का मंत्री; आदेशों का क्रियान्वयन। (गढ़ दीवान और राज दीवान) |
| बरकंदाज (सिपाही) | नोटिस वितरण। |
| दारोगा | सभा में नियंत्रण और सुरक्षा। |
| पाण्डेय | कागजातों का संरक्षण व नोटिस जारी करना। |
| लाल (बड़लाल, मझलाल, छोटेलाल) | सभा में वकील जैसे बहसकर्ता। |
| पाहन | मुण्डा का सहायक; धार्मिक कार्यों का निर्वहन। |
| पुजारी पाहन | पर्व-त्योहारों में पूजा कार्य। |
| महतो | सूचना प्रसारक; मुण्डा व पाहन का सहायक। |
| पुरोहित | समाज में शुद्धिकरण कार्य। |
| घटवार | दंड सामग्री का वितरण। |
| चवार डोलाइत | सभा में हाथ-पैर धुलाने का कार्य। |
| पान खवास | सभा में चूना-तम्बाकू वितरण। |
विवाद निपटारा प्रक्रिया
प्रथम चरण:
- पीड़ित व्यक्ति मुण्डा को सूचित करता है।
- महतो सूचना फैलाता है।
- गाँव सभा में दोनों पक्षों की सुनवाई।
- निर्णय: आर्थिक दंड या सामाजिक बहिष्कार।
द्वितीय चरण:
- गाँव स्तर पर मामला न सुलझने पर पड़हा सभा बुलाई जाती है।
- दीवान और बरकंदाज के माध्यम से सूचना प्रसारित।
तृतीय चरण:
- पड़हा सभा में भी न सुलझने पर 22 पड़हाराजा की महासभा में निर्णय।
- निर्णय अनिवार्य रूप से मान्य होता है।
विभिन्न क्षेत्रों में पारंपरिक व्यवस्था का योगदान
- आपराधिक मामले: आर्थिक दंड; मानवीय मूल्यों पर आधारित निर्णय।
- यौन अत्याचार: कड़ी सजा; विवाह की स्थिति में लड़की की जिम्मेदारी।
- विकास कार्य: श्रमदान द्वारा सड़क, कुएँ, नहर का निर्माण।
- भूमि विवाद: मुण्डा द्वारा निष्पक्ष बँटवारा।
- धार्मिक कार्य: पाहन द्वारा तिथि निर्धारण।
- महिलाओं के अधिकार: भरण-पोषण हेतु भूमि पर सीमित अधिकार।
- पद का वंशानुगत अधिकार: योग्य उत्तराधिकारी को ही पद सौंपा जाता है।
अखड़ा और सामूहिक निर्णय
- स्थान: गाँव के मध्य, पेड़ के नीचे (यदि उपलब्ध हो)।
- कार्य: सामूहिक विचार-विमर्श, नैतिकता आधारित निर्णय, त्वरित और न्यूनतम खर्च में न्याय।
पड़हा पंचायत शासन व्यवस्था (उराँव जाति)
गाँव पंचायत
- प्रमुख पदाधिकारी: महतो (प्रधान), पाहन (पुजारी), भंडारी (संदेशवाहक)।
- कार्य: विवाद निपटारा, आपदा प्रबंधन, त्योहार आयोजन।
पड़हा पंचायत
- समूह: 9-12 गाँव।
- प्रमुख: पड़हा राजा।
- अन्य पदाधिकारी: दीवान, मंत्री, कोटवार, पैनभरा।
- कार्य: अपीलीय न्यायालय की तरह कार्य; सामाजिक नियमों का पालन कराना।
विशेष:
राँची जिले का “मुड़मा मेला” पड़हा पंचायत का प्रभावशाली उदाहरण है।
महतो और पड़हाराजा के बीच संबंध
- महतो, पड़हाराजा के अधीनस्थ कार्य करता है।
- किसी मामले में महतो के आग्रह के बिना पड़हाराजा हस्तक्षेप नहीं करता।
(ग) मानकी-मुण्डा स्वशासन व्यवस्था
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- यह व्यवस्था मुख्यतः पश्चिमी व पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला-खरसांवा जिलों के ग्रामों में प्रचलित है।
- ब्रिटिश सरकार के आगमन से पूर्व पोड़ाहाट (सिंहभूम) के राजा द्वारा शासन चलता था।
- ‘हो’ समुदाय राजा के प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं थे।
ब्रिटिश शासन के बाद परिवर्तन
- 1821 में ब्रिटिश सरकार ने सिंहभूम का दक्षिणी भाग कब्जे में लिया।
- इस क्षेत्र को कोल्हान गवर्नमेंट स्टेट नाम दिया गया और कैप्टन थॉमस विल्किंसन को 1837 में प्रशासन के लिए नियुक्त किया गया।
- प्रशासन हेतु विल्किंसन रूल बनाया गया, जिसमें:
- दीवानी मामलों की सुनवाई मुण्डा करते थे।
- आपराधिक मामलों की सुनवाई मानकी करते थे।
कोल्हान क्षेत्र में प्रशासन के उद्देश्य
- स्थानीय सरकार को सुरक्षित रखना।
- जनता से सरकार का सीधा संबंध बनाए रखना।
- विवादों का निपटारा ग्राम पंचायतों के माध्यम से करना।
- क्षेत्र में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश रोकना।
मानकी के अधिकार और कर्तव्य
- ओहदा मारूसी (वंशानुगत) होता है।
- पीड़ क्षेत्र का प्रमुख और जिम्मेदार अधिकारी।
- राजस्व वसूली के लिए मुण्डा के साथ उत्तरदायी।
- वसूली पर 10% कमीशन पाने का अधिकार।
- पुलिस पदाधिकारी के रूप में कार्य करना।
- अपराधियों को गिरफ्तार कर सुपुर्द करना।
- सरकारी आदेशों के अनुसार काम करना।
- छोटे विवादों का निपटारा और रिपोर्टिंग उपायुक्त को करना।
मुण्डा के अधिकार और कर्तव्य
- ग्राम प्रधान और ग्राम की स्वायत्तता का प्रतिनिधित्व करता है।
- परती जमीन का बंदोबस्त करने का अधिकार।
- बाहरी व्यक्ति के बसने की सूचना सरकार को देना।
- गाँव के सार्वजनिक संसाधनों की देखरेख करना।
- ग्राम का पुलिस पदाधिकारी होना।
- अपराधों की सूचना जिला प्रशासन को देना।
- वन संरक्षण और कानून व्यवस्था बनाए रखना।
- किसी भी सरकारी अधिकारी को सहायता प्रदान करना।
कोल्हान क्षेत्र के अन्य पदाधिकारी
| पद | कार्य |
|---|---|
| तीन मानकी समिति | जटिल विवादों का समाधान |
| डकुआ | मुण्डा का सहायक, बैठकों की सूचना देना |
| तहसीलदार | मानकी का सहायक, राजस्व संग्रहण कार्य |
| दिउरी | धार्मिक पूजा-पाठ और सामाजिक अपराधों का निपटारा |
| यात्रा दिउरी | ग्राम देवी-देवताओं की पूजा और धार्मिक मामलों में सहभागी |
माँझी-परगना शासन व्यवस्था (संथाल परगना)
संरचना
- परगनैत (15-20 गाँवों का प्रमुख)
- देश माँझी / मोड़े माँझी (5-8 गाँवों का प्रमुख)
- माँझी (ग्राम प्रधान)
- प्रानीक (उप-माँझी)
- गोड़ाईत (सचिव और खजांची)
- जोग माँझी (युवा नेतृत्व)
- जोग प्रानीक (उप-जोग माँझी)
- भग्दो प्रजा (ग्राम सभा के प्रमुख सदस्य)
- लासेर टँगोय (सुरक्षा प्रमुख)
- नायके (धार्मिक कार्यों का प्रमुख)
- चौकीदार (अपराधियों को पकड़ने का कार्य)
- दिशुम परगना (सभी परगनैतों का प्रमुख)
विवाद निपटारा प्रक्रिया
- माँझी द्वारा गाँव में विवाद का निपटारा।
- असंतोष होने पर देश माँझी के पास मामला भेजना।
- आवश्यकता पड़ने पर परगनैत के पास अंतिम निर्णय के लिए भेजना।
आपराधिक मामलों का निपटारा
- हत्या जैसे गंभीर अपराध छोड़कर बाकी अपराध ग्राम स्तर पर निपटाए जाते हैं।
- दंड का निर्धारण अपराध की गंभीरता के अनुसार किया जाता है:
- हल्का दंड (करेला दंड) — 1.50 रु. तक।
- गंभीर दंड में बड़ा आर्थिक दंड लगाया जाता है।
- दोषी के पास धन नहीं होने पर भुगतान की अवधि दी जाती है।
- गम्भीर अपराधों में रिहाई नहीं दी जाती।
यौन अपराधों का निपटारा
- पीड़िता या उसके अभिभावक द्वारा माँझी को सूचना दी जाती है।
- बैठकी बुलाकर तीनों पक्षों (शिकायतकर्ता, आरोपी, गवाह) की बात सुनी जाती है।
- दोषी पाए जाने पर:
- विवाह का प्रस्ताव दिया जाता है (यदि दोनों सहमत हों तो)।
- इनकार करने पर उपयुक्त दंड लगाया जाता है।
1. अवैध संतान और विवाह का नियम (संताल समाज)
- अवैध संतान होने पर उसे “जोग माँझी” गोत्र दिया जाता है।
- लड़की के पिता किसी अन्य लड़के से विवाह करवा सकते हैं, सहमति पर।
- विवाह होने पर हजनी (दहेज) के रूप में संपत्ति दी जाती है।
2. परिवार और गाँव के विवाद
- विवादों को सबसे पहले गाँव के माँझी के सामने लाया जाता है।
- सभा बुलाकर गवाहों और पक्षों से सुनवाई होती है।
- दंड का निर्धारण प्राणीक करता है।
- यदि गाँव स्तर पर समाधान न हो, तो मामला देश माँझी और फिर परगनैत तक जाता है।
3. बिटलाहा प्रथा
- दंड न मानने पर सामाजिक बहिष्कार।
- गाँव-गाँव जाकर समझाया जाता है।
- नहीं मानने पर तय दिन, समय, स्थान पर ‘बिटलाहा’ कर दिया जाता है।
4. सोहोर पंचायत (खड़िया समाज)
- कई गाँव मिलकर बनाते हैं।
- गाँव स्तर पर न सुलझने वाले मामले सोहोर पंचायत में जाते हैं।
- सोहोर की अध्यक्षता में निर्णय लिया जाता है।
5. ग्राम स्तर पर पंचायत व्यवस्था
- झगड़े निपटाने के लिए महतो और बुजुर्गों की सभा।
- महतो का नेतृत्व जरूरी।
- भूमि विवादों का समाधान डोकलो और महतो करते हैं।
- पर्व-त्योहारों का निर्णय भी महतो और बुजुर्ग करते हैं।
- हत्या को छोड़कर अन्य गम्भीर मामलों का निपटारा गाँव में होता है।
6. जातीय पंचायत और निजी पंचायत व्यवस्था
- व्यक्तिगत झगड़ों के लिए निजी पंचायत बुलाई जा सकती है।
- पंच और सरपंच मिलकर निर्णय करते थे।
- अग्निपरीक्षा और शपथ के माध्यम से सत्यापन होता था।
7. संथाल पंचायत प्रणाली (मांझी थान)
- पंचायत के पाँच पदाधिकारी: माँझी, परानिक, जोग माँझी, जोग परानिक, गोडेत।
- पंचायत का चुनाव कभी वार्षिक था, बाद में वंशानुगत।
- सामाजिक अपराधों का दंड जैसे ‘बिटलाहा’ यहीं तय होता था।
- अपील के लिए ‘मोड़े मांझी’ और ‘सेन्दरा वंसी’ में बैठक होती थी।
8. अन्य जनजातीय पंचायतें
- भूमिज, चेरो, उराँव, मुंडा, बिरहोर आदि जनजातियों की अलग-अलग पंचायतें थी।
- पंचायत प्रमुख: महतो, देहरी, राजा, मुंडा, नाया आदि।
9. नागवंशी शासन व्यवस्था
- राजा शासन का प्रमुख था।
- सेना, जमींदार, जागीरदार, ब्राह्मण, राजगुरु, पुरोहित प्रमुख सहयोगी।
- राजस्व व्यवस्था में दीवान, पटवारी, अमीन की भूमिका।
- परहा पंचायतें प्रशासन की नींव।
- धीरे-धीरे कोल और उराँव का प्रभाव घटा, कायस्थ प्रभाव बढ़ा।
