झारखंड भूमि कानूनों की व्यापक मार्गदर्शिका: अधिकार अभिलेख, किराया निपटान और विशेषाधिकार प्राप्त भूमि (2025 अपडेट)

झारखंड का आदिवासी क्षेत्र एक अनोखी भूमि स्वामित्व प्रणाली को दर्शाता है जो परंपरा और रीति-रिवाजों पर आधारित है। आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकारों को मान्यता और विनियमित करने के लिए, ब्रिटिश उपनिवेशी प्रशासन ने छोटानागपुर के लिए विशेष काश्तकारी कानून लागू किए। इनमें छोटानागपुर भूपति अधिनियम, 1869 और छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 सबसे महत्वपूर्ण हैं।

छोटानागपुर भूपति अधिनियम, 1869

यह अधिनियम छोटानागपुर में प्रचलित परंपरागत भूमि अधिकारों को मान्यता देता है और भूमि अधिकारों तथा विवादों के प्रबंधन के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है।

मान्यता प्राप्त प्रमुख भूमि स्वामित्व प्रकार:

  • भुईहरी (भुईहरी): गांव के मूल बसने वालों के वंशजों द्वारा धारण की गई भूमि। ये अधिकार सामुदायिक मान्यता प्राप्त होते हैं।
  • भूतखेत: गांव के पुजारी या पाहन के लिए धार्मिक कर्तव्यों की पूर्ति हेतु आरक्षित भूमि।
  • दलिकतारी: परंपरागत काश्तकारी के अंतर्गत रखी गई एक अन्य भूमि श्रेणी।
  • पाहनाई: केवल गांव के पुजारी के लिए आरक्षित भूमि।
  • महतोई: गांव के मुखिया (महतो) के लिए आरक्षित भूमि।
  • माझीहास भूमि: विशिष्ट पारंपरिक गांव प्राधिकरण या अधिकारधारकों के लिए रखी गई भूमि।
  • बधखेत: माझीहास भूमि पर कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए निर्धारित भूमि।

विशेष आयुक्त की भूमिका:

  • दावों की जांच: भुईहरी या माझीहास भूमि से संबंधित दावों की जांच करना।
  • निपटान का अधिकार: राजस्व निपटान हेतु कलेक्टर के समान शक्तियाँ।
  • अभिलेख की तैयारी: भुईहरी और माझीहास भूमि का पंजीकरण।
  • स्वामित्व की बहाली: अवैध रूप से कब्जाई गई भूमि को मूल स्वामी को वापस दिलाना।
  • अंतिम निर्णयकर्ता: केवल विशेष आयुक्त ही भूमि विवादों पर निर्णय ले सकता था।
  • पुनरीक्षण और अपील: पुनरीक्षण का अधिकार विशेष आयुक्त को, अपील डिविजनल कमिश्नर के पास।
  • कानूनी प्रतिनिधित्व पर प्रतिबंध: मुकदमे में मख्तार या वकील केवल आयुक्त की अनुमति से ही पेश हो सकते थे।
  • सरकार की नियम-निर्माण शक्ति: राज्य सरकार को आदेश या नियम बनाने का अधिकार।

नोट: भूतखेत और दलिकतारी जैसे कई शब्द प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए हैं।

छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908

यह अधिनियम छोटानागपुर क्षेत्र में काश्तकारों को वर्गीकृत करने और काश्तकारी अधिकारों को नियंत्रित करने का पूर्ण कानूनी ढांचा प्रदान करता है।

अध्याय I – प्रारंभिक

  • संक्षिप्त शीर्षक और क्षेत्र: छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 — उत्तर, दक्षिण छोटानागपुर और पलामू क्षेत्रों पर लागू।
  • महत्वपूर्ण परिभाषाएँ:
    • कृषि वर्ष, भुगतबंध बंधक, जोत, कोड़कार/कोरकार, भूमिपति, काश्तकार, लगान, चल संपत्ति, मुंडारी खुनकट्टी काश्तकारी, भू-धृति, स्थायी भू-धृति, पुनः प्राप्त करने योग्य भू-धृति, गांव मुखिया (मानकी/प्रधान/माझी), स्थायी बंदोबस्त (1793), डिक्री आदि।

नोट: कोरकार, लगान, खुनकट्टी जैसे शब्द परीक्षाओं में बार-बार पूछे गए हैं।

अध्याय II – काश्तकारों के प्रकार (धारा 4–8)

मुख्य श्रेणियाँ:

  • भू-धृति धारक
  • राययत
    • अधिकारयुक्त राययत: जिसे भूमि पर स्थायी अधिकार प्राप्त है।
    • गैर-अधिकारयुक्त राययत: कोई स्थायी अधिकार नहीं।
    • दर राययत: किसी राययत के अधीन उप-काश्तकार।
    • खुनकट्टी राययत: जिनके पूर्वजों ने जंगल को साफ कर खेती प्रारंभ की थी।
    • मुंडारी खुनकट्टीदार: मुण्डा आदिवासी जिन्होंने जंगल की भूमि साफ कर खेती की और अधिकार प्राप्त किए।

महत्वपूर्ण स्पष्टताएँ:

  • भूमिधारी: जो किसी भी रूप में कृषि के लिए भूमि धारण करता है।
  • राययत: खेती करने वाला, जिसे भूमि अधिकार प्राप्त है।

अध्याय III – अधिकारयुक्त राययत के अधिकार (धारा 19–27)

(i) अधिकार:

  • अधिकारयुक्त राययत (Permanent Tenant) को अपनी भूमि पर स्थायी काश्तकारी अधिकार होता है।
  • ये अधिकार विरासत में स्थानांतरित किए जा सकते हैं।
  • भूमिपति (जमींदार) जबरन उन्हें भूमि से नहीं हटा सकता।
  • किसी भी असंवैधानिक तरीके से बेदखली नहीं की जा सकती।

(ii) लगान (Rent):

  • लगान पूर्व निर्धारित होता है।
  • भूमिपति मनमानी वृद्धि नहीं कर सकता।
  • अदालत या निपटान अधिकारी द्वारा ही लगान में वृद्धि संभव है।

(iii) सुधार (Improvements):

  • राययत द्वारा किए गए सुधार (जैसे सिंचाई, मिट्टी सुधार, बाँध आदि) के लिए मुआवज़ा मिलना चाहिए यदि भूमिपति उन्हें बेदखल करता है।

(iv) अधिकारों का अंत:

  • यदि राययत लगातार 3 साल तक भूमि जोतना बंद कर दे, या जमीन छोड़ दे तो उसके अधिकार समाप्त किए जा सकते हैं, पर उचित प्रक्रिया द्वारा ही।

अध्याय IV – गैर-अधिकारयुक्त राययत और दर राययत (धारा 28–31)

  • गैर-अधिकारयुक्त राययत:
    • अस्थायी किरायेदार होता है।
    • उसे भूमि पर स्थायी अधिकार नहीं होता।
    • भूमिपति चाहें तो समय के बाद उसे भूमि खाली करने को कह सकता है।
  • दर राययत (Under-Raiyat):
    • वह व्यक्ति जो राययत के अधीन भूमि जोतता है।
    • उसके अधिकार और भी सीमित होते हैं।

ध्यान दें:
इन वर्गों की परीक्षा में पहचान कराने वाले प्रश्न पूछे जाते हैं जैसे:

  • “खेत साफ कर बसने वाले राययत को क्या कहते हैं?” → खुनकट्टी राययत
  • “जो किसी राययत के अधीन भूमि जोतता है?” → दर राययत

अध्याय V – राययत और दर राययत का बेदखल होना (धारा 32–36)

  • बिना कानूनी प्रक्रिया के कोई भी राययत या दर राययत को बेदखल नहीं किया जा सकता।
  • केवल निम्न स्थितियों में बेदखली संभव:
    • लगान का लगातार भुगतान न होना।
    • ज़मीन को अनुपयोगी छोड़ना।
    • किराया समझौते का उल्लंघन।
  • बेदखली का आदेश न्यायालय या विशेष मजिस्ट्रेट द्वारा ही हो सकता है।
  • खेत सुधार या निर्माण कार्य के कारण जब बेदखली की जाती है तो मुआवज़े का प्रावधान है।

अध्याय VI – लगान की वसूली और अधिकार (धारा 37–51)

  • भूमिपति लगान की वसूली के लिए मुकदमा कर सकता है।
  • लगान की रसीद देना अनिवार्य है।
  • यदि भूमिपति लगान न ले, तो किरायेदार खुद अदालत में जमा कर सकता है।
  • लगान के भुगतान में चूक होने पर ब्याज लागू हो सकता है (निर्धारित सीमा तक)।

अध्याय VII – भू-धृति (Tenure) से संबंधित प्रावधान (धारा 52–66)

  • भू-धृति धारकों को भी सुरक्षा प्राप्त होती है जैसे राययत को।
  • ये भी भूमि को उत्तराधिकार में दे सकते हैं या उधार पर दे सकते हैं (कुछ शर्तों के साथ)।
  • बेदखली की प्रक्रिया इन पर भी लागू होती है।

महत्वपूर्ण धाराएँ (संक्षेप में)

धाराविषय
धारा 5अधिकारयुक्त राययत की परिभाषा
धारा 6गैर-अधिकारयुक्त राययत
धारा 7दर राययत
धारा 19अधिकारयुक्त राययत के अधिकार
धारा 32राययत की बेदखली की प्रक्रिया
धारा 37लगान की वसूली
धारा 66भू-धृति का अंत

अंतिम बिंदु:

  • छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 ने आदिवासी और पारंपरिक काश्तकारों को कानूनी संरक्षण प्रदान किया।
  • ब्रिटिश शासनकाल में इस अधिनियम के माध्यम से भूमि अधिकारों का प्रलेखन और वैधीकरण हुआ।
  • यह झारखंड के सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना को समझने में अत्यंत उपयोगी है।

धारा 46 – अनुसूचित जनजातियों से संबंधित भूमि स्थानांतरण के नियम

(3A) अनुसूचित जनजातियों के मामलों में उपायुक्त की भागीदारी

  • यदि विवाद में एक पक्ष अनुसूचित जनजाति (ST) और दूसरा गैर-जनजातीय है,
  • तो उपायुक्त (DC) को अनिवार्य रूप से पक्षकार बनाया जाएगा।

(4) मूल राययत द्वारा भूमि पुनः प्राप्त करने का अधिकार

  • यदि अस्थायी हस्तांतरण हुआ है, तो:
    • राययत तीन वर्षों के भीतर उपायुक्त को आवेदन देकर भूमि वापस ले सकता है।

(4A) अवैध हस्तांतरण को रद्द करने के लिए आवेदन

  • ST राययत को अधिकार है कि यदि हस्तांतरण धारा 46(1)(a) का उल्लंघन है:
    • तो वह 12 वर्षों के भीतर उपाय दे सकता है।
    • उपायुक्त जांच कर निर्णय देगा।

(4B) अवैध पाए गए हस्तांतरण की स्थिति में:

  • उपायुक्त द्वारा पुष्टि होने पर कि स्थानांतरण अवैध है:
    • स्थानांतरण अमान्य घोषित होगा
    • भूमि वापस मूल राययत को मिलेगी
    • यदि भवन बना हो, तो:
      • स्थानांतरणकर्ता 2 वर्षों में हटाए, अन्यथा उपायुक्त हटवाएगा।

(4C) 1969 से पहले हुए निर्माण का विशेष प्रावधान

  • यदि निर्माण 1969 से पहले हुआ:
    • DC हस्तांतरण को वैध कर सकता है, बशर्ते:
      • समतुल्य भूमि दी जाए, या
      • निर्धारित मुआवज़ा दिया जाए

भूमि स्थानांतरण पर न्यायालयीय प्रतिबंध

सामान्य प्रतिबंध

  • कोई न्यायालय रैयती भूमि की बिक्री का आदेश नहीं देगा, जब तक कि:
    • यह किराया बकाया, ऋण वसूली, या
    • राज्य की मांगों के लिए न हो।

ST/SC भूमि का विशेष नियम

  • यदि भूमि ST या SC की है,
    • तो उसे केवल उसी वर्ग (SC/ST) के व्यक्ति को बेचा जा सकता है।

भुइंहरी भूमि स्थानांतरण पर विशेष प्रावधान

स्थानांतरण की सीमाएं

  • भुइंहरी परिवार केवल उन्हीं सीमाओं में भूमि स्थानांतरित कर सकता है:
    • जैसे कि कोई ST राययत धारा 46 के अंतर्गत कर सकता है।

अनाधिकृत हस्तांतरण

  • ऐसे हस्तांतरण निषिद्ध होंगे।
  • उपायुक्त ऐसे मामलों में बेदखली का आदेश दे सकता है।

बंधक रखने का अधिकार

  • कृषि ऋण हेतु भुइंहरी भूमि को बंधक रखा जा सकता है:
    • सहकारी समिति, बैंक, या राज्य निगम के पास।

धारा 49 – भुइंहरी भूमि बिक्री पर न्यायिक रोक

  • कोई न्यायालय बिक्री का आदेश नहीं दे सकता, भले ही:
    • किराया बकाया हो।
  • केवल उपज की जब्ती या चल संपत्ति की बिक्री द्वारा वसूली हो सकती है।

रैयती व भुइंहरी भूमि का प्रयोजन आधारित स्थानांतरण

अनुमति प्राप्त प्रयोजन

  • भूमि औद्योगिक, खनन, या इससे संबंधित उद्देश्यों के लिए स्थानांतरित की जा सकती है।

विशेष मुआवज़ा प्रावधान

  • भूमि स्वामी को मिलेगा:
    • 20% अधिक मुआवज़ा
  • धार्मिक स्थलों (मंदिर, मस्जिद, कब्रिस्तान आदि) का अधिग्रहण निषिद्ध है।

अध्याय 9 – किराया संबंधित सामान्य प्रावधान

किराया भुगतान का समय

  • चार तिमाही किश्तों में कृषि वर्ष के अंत तक।

भुगतान के माध्यम

  • तहसील कार्यालय या मनी ऑर्डर द्वारा

रसीद देना अनिवार्य

  • भूमि स्वामी को रसीद देनी होगी,
    • न देने पर ₹100 जुर्माना या 1 माह कारावास

बकाया किराया और ब्याज

  • भुगतान न करने पर बकाया माना जाएगा।
  • ब्याज दरें:
    • सामान्य: 6.25% प्रतिवर्ष
    • अगले वर्ष भुगतान पर: 3% प्रतिवर्ष

बेदखली का अधिकार

  • किराया न देने पर पट्टा रद्द कर बेदखली की जा सकती है।

भूमि पुनः प्राप्ति और मापन संबंधी अधिकार (धारा 75–79)

भूमि पुनः प्राप्ति (धारा 75)

  • कब्जाधारी राययत: 3 वर्षों के भीतर आवेदन।
  • गैर-कब्जाधारी राययत: 1 वर्ष में।

भूमि मापन (धारा 76–79)

  • भूमि स्वामी को मापन कराने का अधिकार
  • किरायेदार विरोध करे तो उपायुक्त जांच करेगा।

अध्याय 12 – अभिलेख और किराया निर्धारण

धारा 80 – अभिलेख तैयार करने का अधिकार

  • राज्य सरकार राजस्व अधिकारी को निर्देश दे सकती है:
    • अधिकारों का अभिलेख तैयार करने हेतु।

प्रविष्टियों में शामिल जानकारी

  • किरायेदार का नाम, भूमि सीमाएं, किराया, शर्तें आदि।

जल विवादों का अभिलेख (धारा 81)

  • राज्य सरकार आदेश दे सकती है।

न्यायसंगत किराया निर्धारण (धारा 82–85)

  • सर्वेक्षण के आधार पर किराया तय किया जाएगा।
  • विवादों का निपटारा राजस्व अधिकारी द्वारा।

RoR की न्यायिक सुरक्षा (धारा 85–87)

  • 6 माह तक न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
  • अधिकार क्षेत्र सीमित

अध्याय 14 – विशेषाधिकार प्राप्त भूमि (Protected Land)

परिभाषा (धारा 118)

  • भूमि जिसे भूमि स्वामी स्वयं या श्रमिकों द्वारा जोते।
  • पुरानी मान्यता प्राप्त भुइंहरी भूमि (जैसे: जीरात, मान, महिस)।

महत्व

  • किराया-मुक्त, पारंपरिक उपयोग के लिए आरक्षित भूमि।
  • इससे संबंधित प्रविष्टियाँ अभिलेखों में दर्ज होती हैं।

झारखंड भूमि एवं कानून के बारे में अधिक पढ़ें:-
https://jharkhandexam.in/%e0%a4%9d%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%96%e0%a4%82%e0%a4%a1-%e0%a4%ad%e0%a5%82%e0%a4%ae%e0%a4%bf-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%82%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a5%8d/

One thought on “झारखंड भूमि कानूनों की व्यापक मार्गदर्शिका: अधिकार अभिलेख, किराया निपटान और विशेषाधिकार प्राप्त भूमि (2025 अपडेट)”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Post

Local Governance in Jharkhand – Panchayati Raj & Rural Administration (2001–2024)Local Governance in Jharkhand – Panchayati Raj & Rural Administration (2001–2024)

Discover a complete guide to Local Governance and Constitutional Provisions in Jharkhand, covering Panchayati Raj, Urban Administration, Scheduled Areas, and key constitutional articles—essential for UPSC, JPSC, and state exam preparation.

झारखंड की प्रमुख नीतियाँ (2011–2015): औद्योगिक विकास, सौर ऊर्जा, पर्यटन और खाद्य सुरक्षा की व्याख्या (भाग II)झारखंड की प्रमुख नीतियाँ (2011–2015): औद्योगिक विकास, सौर ऊर्जा, पर्यटन और खाद्य सुरक्षा की व्याख्या (भाग II)

झारखंड ने हाल के वर्षों में समावेशी विकास, औद्योगिक प्रगति और नागरिकों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए कई नीतिगत पहल की हैं। यहां वर्ष 2016 में शुरू की