सदान शब्द की व्युत्पत्ति और अर्थ
‘सद’ से बना, जिसका अर्थ होता है: बैठना, निवास करना, सभा ।
अन्य अर्थों में ‘सद्यः’ = तुरंत, नया, ताज़ा; ‘सद’ = अच्छा, सत्य।
सदान वे हैं जिन्होंने सबसे पहले झारखंड को अपना घर बनाया, या नए निवासियों के रूप में बसे।
सदान शिवप्रिय (नाग प्रिय) भूमि से जुड़े रहे हैं, इसलिए झारखंड में नाग जाति प्रमुख है।
सदान समुदाय के सामाजिक-सांस्कृतिक पक्ष
खुले स्थानों पर पूजा स्थल (सरना) जैसे महादेव मांडा , देवी गुड़ी ।
मंदिरों का निर्माण बाद में बाहरी प्रभाव के कारण हुआ।
सदानों में सहिया-मदइत जैसी समता और सहयोग पर आधारित संस्कृतियाँ हैं।
विवाह में कन्या मूल्य (डाली दाम) लिया जाता है, दहेज प्रथा नहीं ।
पूरा गांव बेटी के विवाह में सहभागी होता है।
सदानों और आदिवासियों का संबंध
आदिवासियों (मुण्डा, उरांव, खड़िया आदि) के आगमन से पूर्व सदान झारखंड में थे।
आदिम सदान = नाग, असुर, सराक जातियाँ।
मुण्डाओं के आगमन के बाद भी सदान और आदिवासी सहअस्तित्व में रहे।
दोनों समुदायों की भाषाएँ, गीत-संगीत, संस्कृतियाँ घुलमिल गईं।
सदान वर्गीकरण
सदानों को चार बड़े वर्गों में बाँटा गया:
प्राचीन मूल सदान : झारखंड के आदि निवासी।
मध्यकालीन लाए गए लोग : (राजाओं द्वारा अन्य राज्यों से बसाए गए) – 75% तक झारखंडी बन गए।
नवागंतुक : (खुद आकर बसे व्यापारी, नौकरी पेशा) – 50% झारखंडी प्रभाव।
हाल के प्रवासी : (1932 के बाद आए), झारखंडी पहचान कमजोर।
सदानों की भाषा और संस्कृति
सदानी भाषा , जिसे आज नागपुरी कहा जाता है, नागवंशी शासनकाल में राजभाषा रही।
विभिन्न बोलियों में हल्का भेद होते हुए भी सांस्कृतिक भावना एक।
सदानी नृत्य : फगुआ, ठड़िया, उमकच, उइधरा, झूमर आदि।
आर्थिक और सामाजिक योगदान
सदानों ने कृषि, लोहा-तांबा कार्य, वस्तु निर्माण, व्यापार इत्यादि में प्रमुख भूमिका निभाई।
मदइत प्रथा (सामूहिक श्रम) और ब्याज रहित उधार प्रथा का झारखंड के आर्थिक ताने-बाने में बड़ा योगदान रहा।
झारखंड में सदानों की स्थिति आज
स्वतंत्रता संग्राम में सदानों की बड़ी भूमिका रही (जैसे पाण्डे गणपत राय, नीलाम्बर-पीताम्बर)।
आजादी के बाद सदानों की राजनीतिक आवाज कमजोर होती गई।
भूरिया कमेटी आदि द्वारा जनजातीय प्रदेश घोषित होने से सदान हाशिए पर चले गए।
सदानों की प्रमुख जनजातियाँ
बिरझिया, चीक बड़ाईक, गोड़ाईत, करमाली, लोहरा, महली, किसान, असुर आदि।
झारखण्ड: एक सम्पूर्ण अध्ययन
3. प्रमुख जनजातियाँ
उराँव (Uraon)
मूल कार्य: स्थायी कृषक, अब उद्योगों और अन्य कार्यों में भी सक्रिय।
साक्षरता (2011):
कुल: 67.0%
पुरुष: 72.9%
स्त्री: 52.4%
विद्यालय जाने वाले बच्चे (5-14 वर्ष): 55%
स्नातक प्रतिशत: 5.9% (अन्य जनजातियों में सर्वाधिक)
धर्म:
पारम्परिक धर्मावलम्बी
मिशनरियों के प्रभाव से कुछ ने ईसाई धर्म अपनाया।
मुण्डा (Munda)
वर्ग: ऑस्ट्रोलायड प्रजाति
भाषा: मुण्डारी (आस्ट्रो-एशियाटिक परिवार से संबंधित)
संख्या:
2001: 10,49,767
2011: 12,29,221
निवास:
ग्रामीण: 89.6%
शहरी: 10.84%
इतिहास:
आर्यों द्वारा खदेड़े जाने के बाद पूर्वांचल होते हुए छोटानागपुर पहुँचे।
प्रमुख केन्द्र: सुतियाम्बेगढ़ (पिठौरिया के समीप)
समाज व्यवस्था:
गाँव प्रमुख: हातुमुण्डा
पंचायत: पड़हा (प्रमुख को ‘पड़हा राजा’ कहा जाता है)
धर्म: सिंगबोंगा (प्रमुख देवता)
विवाह:
जनजाति से बाहर विवाह निषेध
एक ही गोत्र में विवाह वर्जित
विधवा/परित्यक्ता पुनर्विवाह मान्य
साक्षरता (2011):
कुल: 62.6%
पुरुष: 72.9%
स्त्री: 52.4%
त्योहार: सरहुल, करमा, मंडा, जितिया, दीपावली, सोहराई, दशहरा आदि।
खरवार (Kharwar)
निवास क्षेत्र: पलामू, लातेहार, गढ़वा, लोहरदगा, राँची।
विवाह परंपरा:
असगोत्र विवाह अनिवार्य।
बाल विवाह प्रचलित।
परिवार: पितृसत्तात्मक
व्यवसाय: कृषि, शिकार, मजदूरी, नौकरी।
पंचायत:
‘बैठकी’ (ग्राम पंचायत)
‘छाटा’ (कई गाँवों का समूह)
धर्म: सरहुल, कर्मा पर्व मनाते हैं।
साक्षरता (2011):
कुल: 56.4%
पुरुष: 68.2%
स्त्री: 44.2%
खड़िया (Kharia)
उपभेद:
हिल खड़िया (सिमडेगा, मयूरभंज)
ढेलकी खड़िया (राँची, हजारीबाग)
दूध खड़िया (गुमला, सिंसाई)
जनसंख्या (2011): 1,96,135
ग्रामीण: 1,80,179
शहरी: 15,956
इतिहास: रोहतास और पटना क्षेत्र के पुराने निवासी।
विवाह:
गोत्र आधारित, परंतु एक गोत्र में विवाह वर्जित नहीं।
एक पत्नी प्रथा प्रचलित।
साक्षरता: 65.9%
पंचायती व्यवस्था:
‘पड़हा’ और ‘डोकलो सोहोर’ प्रणाली
ग्राम प्रमुख: ‘प्रधान’
धर्म और पर्व: सरहुल (जंकोर), धानबुनी, बंदई (पशु पूजा)
वेदिया (Vedia)
मूल: कुछ विद्वानों के अनुसार कुरमी के भाई, कुछ के अनुसार मुण्डा वंशज।
निवास: हजारीबाग (बरकाकाना), रामगढ़, सिंहभूम, संथाल परगना।
विवाह परंपरा:
सगोत्र विवाह वर्जित।
वर पक्ष वधु मूल्य अदा करता है।
साक्षरता: 58%
त्योहार: दशहरा, छठ, दीपावली, मकर संक्रांति, सरहुल, करमा।
मृत्यु संस्कार: दाह-संस्कार एवं अस्थि विसर्जन (मुख्यतः सोनधारा, कुंदरू)
भूमिज (Bhumij)
मूल: मुण्डा जनजाति की शाखा।
निवास क्षेत्र: राँची, हजारीबाग, धनबाद, सिंहभूम।
भाषा: मुण्डारी पर बंगला और हिन्दी का प्रभाव।
संख्या (2011): 2,09,448
ग्रामीण: 1,93,945
शहरी: 15,903
विवाह परंपरा:
एक ही गोत्र में विवाह वर्जित।
अन्य जाति से विवाह महा-अपराध माने जाते हैं।
सामाजिक दंड: सामाजिक बहिष्कार।
अतिरिक्त आँकड़े (2011 जनगणना से)
क्र. सं. जनजाति पुरुष महिला ग्रामीण शहरी कुल 1 असुर 11,473 10,986 21,351 1,108 22,459 2 बँगा 1,829 1,753 3,439 143 3,582 3 बंजारा 242 245 219 268 487 … … … … … … … 25 मुण्डा 6,15,022 6,15,042 10,96,064 1,33,157 12,29,221 26 उराँव 8,55,210 8,61,408 14,72,590 2,44,028 17,16,618 28 संताल 13,71,168 13,83,555 26,09,066 1,45,657 27,54,723
झारखंड के आदिवासी
सारणी 7.3 – अनुसूचित जनजाति की विवरणी
श्रेणी कुल अनुसूचित जनजाति संथाल उराँव कुण्डा हो खरवार लोहरा भूमिज खड़िया लिंग अनुपात 1003 1009 1007 1001 1021 964 977 996 1019 साक्षरता (%) 57.1 50.8 67.0 62.6 54.0 56.4 56.2 56.7 65.9 मुख्य कामगार (%) 46.2 39.6 53.3 53.3 47.2 33.0 49.8 38.9 53.0 सीमांत कामगार (%) 53.8 60.4 46.7 46.8 52.8 67.0 50.2 61.1 47.0
विवाह प्रथाएँ और सामाजिक व्यवस्था
अधिकतर जनजातियों में बर्हिगोत्र विवाह स्वीकृत है जबकि अंतर्गोत्रीय विवाह वर्जित है।
हो जनजाति में विभिन्न प्रकार के विवाह प्रचलित हैं जैसे ओदी विवाह, दिकू आंढो, राजी खुशी विवाह, अनादर प्रथा।
विधवा और विधुर पुनर्विवाह की छूट है।
महिलाएँ पारिवारिक आय में योगदान देती हैं और व्यय पर उनका नियंत्रण होता है।
हो जनजाति के प्रमुख गोत्र
आंगारिया, बोदरा, बारला, बाकरी, मुडरी बोदरा, हाईवुरु बोदरा, दोराई बुरू, हेम्बरोग, चम्पीया, तामसोय, कुन्तीया, सिंकु, जोजो, सुरका आदि।
धार्मिक विश्वास
सूर्य, चन्द्रमा, नदी, पहाड़ प्रमुख देवता।
सिंगबोंगा प्रमुख भगवान।
त्योहार: माधो वाहा, डमरी, होरो, जोमनारा, कोलोम, बतौली, दीपावली, दशहरा, चैत पर्व।
विभिन्न जनजातियाँ
12. गोंड
द्रविड़ शाखा की जनजाति।
क्षेत्र: राँची, पलामू, सिंहभूम।
जनसंख्या (2011): 53,676।
साक्षरता: 59.8%।
पंचायत व्यवस्था प्रचलित है।
प्रमुख देवता: बूढ़ा देव।
दाह संस्कार अधिक प्रचलित।
13. गोराईत
प्रोटो-आस्ट्रोलॉयड समूह के सदस्य।
क्षेत्र: पलामू और राँची।
जनसंख्या (2011): 4973।
साक्षरता: 62%।
समाज पितृप्रधान।
संपत्ति उत्तराधिकार नियम मौजूद।
अन्य प्रमुख जनजातियाँ
14. करमाली
मुण्डा जनजाति की शाखा।
प्रमुख क्षेत्र: राँची, सिंहभूम, हजारीबाग।
जनसंख्या (2011): 64,154।
साक्षरता: 62.4%।
विवाह: गोत्र के बाहर।
15. किसान
क्षेत्र: राँची और पलामू के जंगल।
जनसंख्या: 37,265।
भाषा: मुण्डारी, सदानी।
विवाह में बाल विवाह वर्जित।
साक्षरता: 49.5%।
आदिवासी भाषा, त्योहार, नृत्य, संगीत और चित्रकला
विषय विवरण भाषाएँ संताली, मुंडारी, कुड़ुख, खोरठा, नागपुरिया, सादरी, खड़िया, पचपरगनिया, हो, मालतो, करमाली, हिन्दी, उर्दू, बांग्ला त्योहार सरहुल, कर्मा, सोहराई, बदना, ईद, क्रिसमस, होली, दशहरा लोकनृत्य एकहरिया, डोमकच, झुमर, फगुवा, पावस वाद्ययंत्र मांदर, ढोल, ढाक, धमसा, बांसुरी, करताल, शहनाई आदि चित्रकला संताली भित्तिचित्र, उरांव भित्तिचित्र
क्षेत्र: संताल परगना।
जनसंख्या (2011): 32,786।
साक्षरता: 55.5%।
विवाह: असगोत्रीय।
मृत्यु संस्कार: दफन प्रथा।
अनुसूचित जनजाति जनसंख्या वितरण (प्रतिशत)
जिला प्रतिशत कोडरमा 0.96 गढ़वा 15.54 पलामू 9.34 चतरा 12.13 गिरिडीह 9.74 देवघर 7.02 हजारीबाग 7.02 रामगढ़ 21.19 बोकारो 12.4 धनबाद 1.66 साहिबगंज 28.41
(स्रोत: जनगणना 2011)
सारणी 7.4 – विशेष रूप से कमजोर जनजाति (PVTG) की जनसंख्या
क्रम नाम 2001 की जनसंख्या 2011 की जनसंख्या साक्षरता (%) 1 बिरहोर 7,514 10,726 34.5 2 परहिया 20,786 25,585 33.1 3 मालपहाड़िया 1,15,093 1,35,797 39.6 4 संबर 6,004 9,688 33.7 5 सौरिया पहाड़िया 31,050 46,222 39.7 6 हिल खड़िया 1,64,022 1,96,135 65.9 7 कोरबा 27,177 35,606 37.9 8 असुर 10,347 22,459 46.9 9 बिरजिया 5,365 6,276 50.2
17. बड़ी
क्षेत्र: सिंहभूम।
जनसंख्या (2011): 3,464।
भाषा: हिन्दी, कुरमाली, बंगाली।
पेशा: वनोत्पाद संग्रहण, मजदूरी।
18. लोहरा
वंश: असुर वंशज।
पारम्परिक पेशा: लोहे का काम।
जनसंख्या (2011): 2,16,226।
साक्षरता: 56.2%।
मृत्यु संस्कार: दफन या दाह संस्कार।
19. महली
वंश: द्रविड़।
प्रमुख पेशा: बांस और लकड़ी के उत्पाद।
उपजातियाँ: बाँस महली, सिलखी महली, ताँती महली आदि।
साक्षरता: 152,663 (2011 जनगणना)।
झारखंड के प्रमुख अनुसूचित जनजातियाँ (जनगणना 2011 के अनुसार):
क्र.सं. जनजाति जिला / प्रमंडल जनसंख्या प्रतिशत भाषा 1 संताल संतालपरगना 27,54,723 31.86% संताली 2 उराँव राँची 17,16,618 19.85% कुड़ुख 3 मुण्डा राँची 12,29,221 14.21% मुंडारी 4 हो सिंहभूम 9,28,289 10.73% हो 5 खरवार पलामू 2,48,974 2.87% खरवारी … … … … … …
(नोट : कुल 32 प्रमुख जनजातियाँ और उपजनजातियाँ बताई गई हैं।)
पीवीटीजी (Particularly Vulnerable Tribal Groups):
माल पहाड़िया , परहिया , सावरा/सांवर , बिरजिया , बिरहोर , असुर आदि।
इनमें से माल पहाड़िया (1,35,797) और हिल खड़िया (1,96,135) की जनसंख्या प्रमुख है।
जनजातीय साक्षरता दर (महत्वपूर्ण बिंदु):
उराँव : 67.8% (पुरुष साक्षरता सबसे अधिक)
खड़िया : 65.9%
संताल : 50.8%
सबसे कम साक्षरता : पहाड़िया (33.1%)
स्त्री साक्षरता सबसे कम : सावर (24%)
जनजातीय धर्म:
हिन्दू धर्म : 39.8%
स्वतंत्र धार्मिक परंपराएँ (सरना आदि) : 45.1%
ईसाई धर्म : 14.5%
मुस्लिम धर्म : 0.4%
अनुसूचित जातियाँ (जनगणना 2011):
कुल जनसंख्या : 39,85,544 (12.08% राज्य की जनसंख्या का)
प्रमुख जातियाँ:
चमार (10,08,507)
भुइयां (8,48,151)
दुसाध (4,24,330)
जिलावार जनजातीय प्रतिशत (चयनित):
जिला जनजातीय प्रतिशत खूंटी 73.3% गुमला 68.9% पश्चिमी सिंहभूम 67.3% सिमडेगा 70.8% लोहरदगा 56.9%
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
माल पहाड़िया और परहिया खेती, मजदूरी और बाँस उत्पादों से अपनी आजीविका चलाते हैं।
संवर (सावर) और हिल खड़िया में विवाह, मृत्युकर्म आदि में विशिष्ट परंपराएँ प्रचलित हैं।
कोल जनजाति का परंपरागत व्यवसाय लोहा गलाना था, जो अब लगभग समाप्त हो चुका है।
अधिकतर जनजातियाँ सरना धर्म के अनुयायी हैं और सिंगबोंगा (प्रकृति देवता) की पूजा करते हैं।