झारखंड: जनजातीय समुदायों का प्राचीन घर
झारखंड आदिकाल से ही जनजातीय समुदायों का घर रहा है। इन समुदायों का राज्य के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्वरूप में गहरा योगदान रहा है। झारखंड की भाषाएँ, रीति-रिवाज, त्योहार और सामाजिक-आर्थिक जीवन जनजातीय पहचान को दर्शाते हैं।
ऐतिहासिक और संवैधानिक मान्यता
- जनजातीय समुदायों को विभिन्न नामों से जाना जाता है: वनवासी, आदिवासी, आदिम जाति, गिरिजन।
- “आदिवासी” शब्द का अर्थ है – “मूल निवासी” या “प्राचीन काल से रहने वाले”।
- यह शब्द पहली बार गांधीवादी नेता ठक्कर बापा द्वारा प्रयोग किया गया था।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत, जनजातीय समुदायों को भारत के राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया जाता है।
- झारखंड गठन (2000) के समय राज्य में 30 अनुसूचित जनजातियाँ (ST) थीं।
- 2003 में कंवर और कोल जनजातियों के शामिल होने से संख्या 32 हुई।
- 2022 में “पुराण” जनजाति को 33वीं अनुसूचित जनजाति के रूप में प्रस्तावित किया गया।
झारखंड में जनजातियों का वर्गीकरण
- कुल जनजातियाँ (2022): 33
- इनमें से 25 प्रमुख जनजातियाँ हैं।
- 8 जनजातियाँ अति पिछड़ी जनजाति (PVTG या आदिम जनजातियाँ) के रूप में वर्गीकृत हैं:
- बिरहोर, कोरवा, असुर, पहाड़िया, माल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया, बिरजिया, सावर।**
हाल का संवैधानिक संशोधन (2022)
- भारतीय संसद द्वारा पारित – अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम, 2022
- मुख्य प्रस्ताव:
- भोगता समुदाय को अनुसूचित जातियों की सूची से हटाना।
- 8 उप-समूहों — भोगता, देशवारी, गंजू, दौलतबंदी (डवालबंदी), पाटबंदी, राउत, माझिया, खैरी (खेरी) — को खरवार जनजाति के पर्याय माना गया।
- पुराण समुदाय को झारखंड की अनुसूचित जनजाति सूची में जोड़ा गया।
- तमाड़िया/तमरिया को मुंडा जनजाति का पर्याय माना गया।
जनजातीय अर्थव्यवस्था और जीवनशैली
- आदिम जनजातियों की अर्थव्यवस्था कृषि पूर्व (pre-agricultural) है।
- मुख्य आधार: शिकार, संग्रहण, और झूम कृषि।
आजीविका आधारित जनजातीय वर्गीकरण
श्रेणी | जनजातियाँ |
---|---|
कृषि आधारित जनजातियाँ | संथाल, मुंडा, हो, उरांव, भूमिज |
शिकार-संग्रहण जनजातियाँ* | बिरहोर*, कोरवा*, खरिया* |
घुमंतू जनजातियाँ | सौरिया पहाड़िया |
कला/शिल्प जनजातियाँ | करमाली, लोहार, चिक बड़ाइक, महली |
- बिरहोर और खरिया जनजातियाँ कैमूर पहाड़ियों से प्रवास कर आईं।
- मुंडा जनजाति रोहवस क्षेत्र से होकर छोटानागपुर पहुँची।
- उरांव दक्षिण भारत से आकर राजमहल और पलामू में बसे।
- झारखंड की जनजातियों की शारीरिक विशेषताएँ वेद्दा (श्रीलंका) और ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों से मिलती हैं – ये सभी प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड नस्ल से संबंधित माने जाते हैं।
- भाषाविद जॉर्ज ग्रियर्सन ने झारखंड की जनजातियों को ऑस्ट्रिक और द्रविड़ भाषाई समूहों में बाँटा।
जनजातीय भाषाएँ
- उरांव – कुरुख (द्रविड़ भाषाएँ)
- माल पहाड़िया और सौरिया पहाड़िया – माल्टो (द्रविड़)
- अन्य जनजातियाँ – मुख्यतः ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषाएँ
जनगणना 2011: झारखंड में जनजातीय जनसंख्या
- कुल जनजातीय जनसंख्या: 86,45,042
- राज्य की जनसंख्या में प्रतिशत: 26.2% ★
- भारत की कुल जनजातीय जनसंख्या में हिस्सा: 8.3%
- झारखंड भारत में जनजातीय जनसंख्या में 6वें स्थान पर है।
मुख्य जनजातियाँ (जनसंख्या प्रतिशत)
जनजाति | 2011 (%) | 2001 (%) |
---|---|---|
संथाल* | 31.86% | 34.01% |
उरांव* | 19.86% | 19.62% |
मुंडा* | 14.22% | 14.81% |
हो* | 10.74% | 10.51% |
खरवार* | 2.88% | 2.71% |
लोहरा* | 2.50% | 2.61% |
★ इन चार प्रमुख जनजातियों (संथाल, उरांव, मुंडा, हो) की कुल जनसंख्या तीन-चौथाई से अधिक है।
अत्यंत पिछड़ी जनजातियाँ (PVTG) – जनसंख्या प्रतिशत
जनजाति | प्रतिशत |
---|---|
माल पहाड़िया | 46% |
सौरिया पहाड़िया | 16% |
कोरवा | 12% |
पहाड़िया | 9% |
असुर | 8% |
बिरहोर | 4% |
सावर | 3% |
बिरजिया | 2% |
★ PVTG कुल जनजातीय जनसंख्या का 3.38% और झारखंड की कुल जनसंख्या का 0.88% हैं।
सामाजिक संरचना और संस्कृति
- 91% जनजातीय जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में, केवल 9% शहरी में रहती है।
- समाज पितृसत्तात्मक होता है और न्यूक्लियर फैमिली का चलन है।
- लैंगिक समानता आमतौर पर देखी जाती है।
- गोत्र प्रणाली प्रचलित है – इन्हें किली, कुंडा, या परी कहा जाता है।
- प्रत्येक गोत्र से एक विशेष टोटेम (जानवर/वृक्ष/वस्तु) जुड़ा होता है, जिसे नुकसान पहुँचाना या उपयोग करना वर्जित होता है।
- गोत्र के सदस्य एक ही पूर्वज की संतान माने जाते हैं।
- परहिया जनजाति गोत्र प्रणाली नहीं मानती।
- समान गोत्र विवाह वर्जित होता है।
- बंजारा जनजाति में पूर्व-सगाई रस्म होती है।
- सभी जनजातियों में सिंदूर प्रथा होती है।
- केवल खोंड जनजाति में जयमाला प्रथा प्रचलित है।
झारखंड की जनजातियों में विवाह प्रथाएँ
विवाह प्रकार | विवरण एवं प्रचलित जनजातियाँ |
---|---|
क्रय विवाह (दहेज) ★ | दूल्हे का परिवार दुल्हन की कीमत चुकाता है – संथाल (सदयी बापला), उरांव, हो, खरिया (असली विवाह), बिरहोर (सदर बापला), कंवर |
विनिमय विवाह (गोलहट) ★ | पारिवारिक आदान-प्रदान द्वारा विवाह – सभी में सामान्य। मुंडा: करी गोनोंग; बिरहोर: गोलहट बापला; संथाल: गोलैती बापला |
सेवा विवाह ★ | दूल्हा शादी से पहले ससुराल में सेवा करता है – संथाल: जवाई बापला; बिरहोर: किरिंग जवाई बापला |
हाथ विवाह (बलात विवाह) ★ | लड़की को बलपूर्वक पति के घर लाया जाता है – हो: अनादर विवाह; बिरहोर: बोलो बापला; संथाल: निर्बोलक बापला |
हरण विवाह (अपहरण विवाह) ★ | लड़की का अपहरण कर विवाह किया जाता है – उरांव, मुंडा, हो, खरिया, बिरहोर, सौरिया पहाड़िया, भूमिज (★ सौरिया पहाड़िया में सबसे अधिक प्रचलित) |
सह-पलायन विवाह ★ | लड़का-लड़की बिना अनुमति के भाग जाते हैं – मुंडा, खरिया, बिरहोर |
विधवा विवाह ★ | विधवा महिला पुनः विवाह करती है – संथाल, उरांव, मुंडा, बंजारा, बिरहोर |
- विवाह संस्कार में पाहन, देउरी या नयके जैसे जनजातीय पुजारी कार्य करते हैं।
- कुछ मामलों में ब्राह्मण भी विवाह कराते हैं।
- झारखंड की जनजातियों में बाल विवाह का प्रचलन नहीं है।
मुख्य जनजातीय सामाजिक संस्थाएँ
- अखड़ा – गाँव का चौक, पंचायत बैठक/नृत्य स्थल।
- सरना – प्रकृति पूजन स्थल।
- युवागृह – युवा प्रशिक्षण एवं सामाजिक शिक्षा का स्थान।
धार्मिक एवं खानपान प्रथाएँ
- तना भगत और सफाहोर (सिंहबोंगा अनुयायी) को छोड़कर अधिकांश गैर-शाकाहारी।
- प्राचीन धर्म – सरना धर्म (प्रकृति पूजा आधारित)
- त्योहार कृषि और प्रकृति से संबंधित।
- सूर्य देवता को विभिन्न नामों से पूजा जाता है।
अंत्येष्टि प्रथाएँ
- दाह संस्कार और समाधि दोनों प्रचलित।
- ईसाई उरांव केवल दफनाते हैं। ★
आर्थिक गतिविधियाँ
- मुख्य पेशा: कृषि
- अन्य: पशुपालन, शिकार, वनोपज संग्रह, हस्तशिल्प, मजदूरी
- साप्ताहिक हाट – आर्थिक लेन-देन का मुख्य केंद्र
तुरी जनजाति के विशेष तथ्य
- ये घुमंतू होते हैं।
- जन्म या मृत्यु के बाद घरों में जाते हैं।
- गीली मिट्टी से उंगलियों से चित्रकारी करते हैं।
- पौधों और जानवरों के चित्रों से घर सजाते हैं।
संथाल जनजाति: विशेष सामाजिक और वैवाहिक परंपराएँ
संथाल के गोत्र एवं टोटेम ★
- 12 प्रमुख गोत्र (किली) और 144 उप-गोत्र (खूट)
- गोत्र और टोटेम:
- मरांडी – मदरा घास
- हेम्ब्रोम – पान का पत्ता
- हांसदा – जंगली हंस
- सोरेन, तुड्डू – पक्षी
- बेदिया – भेड़
- मुर्मू – नीलगाय
- बेसरा – बाज
- चोंडे – छिपकली
- बास्के – साँप
- किस्कू – अंतर्जातीय विवाह प्रतिबंधित
संथाल विवाह (बापला) के प्रकार ★
विवाह प्रकार | विशेषता |
---|---|
किरिंग बापला ★ | सबसे सामान्य; मध्यस्थ के माध्यम से तय की गई शादी |
गोलैती विवाह | गरीबों द्वारा अपनाया गया; कोई वधू मूल्य नहीं; वधू को घर लाकर सिंदूर लगाया जाता है |
घराड़ी जवाई बापला | दूल्हा वधू के घर में रहता है; कोई वधू मूल्य नहीं |
अपगिर बापला | प्रेम विवाह जिसमें पंचायत की स्वीकृति होती है |
इतुत बापला | किसी आयोजन में जबरन सिंदूर लगाया जाता है; बाद में लड़की का परिवार इसे स्वीकार करता है |
निर्बोलक बापला | लड़की जबरन चुने हुए साथी के साथ रहने लगती है; बाद में विवाह मान्यता प्राप्त करता है |
बहादुर खपला | जंगल में भाग कर की गई शादी |
राजा-रानी बापला | समाज द्वारा स्वीकृत प्रेम विवाह |
संगा बापला | विधवा/तलाकशुदा महिला का विधुर/तलाकशुदा पुरुष से विवाह |
किरिंग जवाई बापला | अविवाहित गर्भावस्था के बाद विवाह |
सदाई बापला | आपसी सहमति से विवाह; ‘टकाचल’ समारोह के साथ वधू मूल्य का भुगतान होता है ★ |
- ‘पोन’ (वधू मूल्य) संथाल विवाहों का आवश्यक हिस्सा है।
- तलाक के समय वधू मूल्य लौटाया जाता है। ★
- विवाह का मुख्य संस्कार ‘सिंदूर दान’ होता है। ★
संथाल न्याय व्यवस्था और नामकरण परंपराएँ
- सामाजिक न्याय:
- संथाल समाज में सबसे कठोर दंड ‘बिठलाहा’ होता है, जो अवैध संबंधों पर सामाजिक बहिष्कार के रूप में दिया जाता है। ★
- नामकरण परंपराएँ:
- पहला बच्चा – पितृ पक्ष के दादा-दादी के नाम पर।
- दूसरा बच्चा – मातृ पक्ष के नाना-नानी के नाम पर। ★
संथाल ग्राम सामाजिक व्यवस्था
भूमिका | कार्य |
---|---|
मांझी ★ | ग्राम प्रमुख; प्रशासनिक और न्यायिक शक्तियाँ रखते हैं |
परanik/प्रमाणिक | मांझी के सहायक |
गोडैथ/गुडैत | संदेशवाहक |
जोगी | मांझी का सहायक |
- ‘मांझी थान’ ग्राम प्रमुख के घर में बना चबूतरा होता है जहाँ पंचायतें आयोजित होती हैं।
- संथाल महिलाएं ‘मांझी थान’ और ‘जाहेर थान’ (पवित्र उपवन) में प्रवेश नहीं कर सकतीं।
त्योहार और संस्कार
- संथाल त्योहारों की शुरुआत आषाढ़ (जून-जुलाई) माह से होती है। ★
- उमिहाई: ईसाई संथालों द्वारा मनाया जाने वाला संस्करण।
- छठियार: नामकरण संस्कार — लड़कों के लिए 5वें दिन, लड़कियों के लिए 3रे दिन।
- गंडी: जन्म पर नीम पत्तों की खिचड़ी बनाई जाती है। ★
संथाल जनजाति: संस्कृति, त्योहार और जीवनशैली
- संथाल जनजाति परिचय
- झारखंड की सबसे बड़ी जनजातियों में एक।
- प्रारंभ में जंगल आधारित, अब पूर्णतः कृषि प्रधान समाज।
- मुख्य देवता – सिंगबोंगा (ठाकुर), जिन्हें सूर्य देवता और सृष्टिकर्ता माना जाता है।
- द्वितीय प्रमुख देवता – मरांग बुरु।
- ग्राम देवता – जाहेर एरा, जिनका स्थान ‘जाहेर थान’ (साल/महुआ वृक्षों के पास)।
- घरेलू देवता – ओड़क बोंगा।
- कुल देवता – अबगे बोंगा।
- ग्राम पुजारी – नायके।
- पूर्वजों और आत्माओं को – हापरमको कहा जाता है।
संथाल त्योहार और अनुष्ठान
त्योहार | माह | विशेषताएँ |
---|---|---|
सोहराय | कार्तिक | 5 दिनों का त्योहार; पशुओं की पूजा और कटाई के बाद धन्यवाद उत्सव। |
बहा | फाल्गुन | साल वृक्ष पर फूल आने पर मनाया जाता है; 3 दिन का वसंत उत्सव। |
सकरात | पौष अंत | प्रमुख शीतकालीन पर्व। |
माघ सिम | माघ | पवित्र जल से जुड़े होली जैसे अनुष्ठान। |
करम | भादों | 2 दिन का पारिवारिक सुख-समृद्धि का पर्व। |
एरोक | आषाढ़ | बीज अंकुरण हेतु मनाया जाने वाला पर्व। |
हरियाड़ | सावन | धान की हरियाली शुरू होने पर मनाया जाता है। |
जापर | अगहन | कृषि समृद्धि हेतु प्रार्थना। |
संथाल कला और सांस्कृतिक विशेषताएँ
- संथाल चित्रकला और बुनाई में निपुण होते हैं।
- प्रसिद्ध कला – कॉम्ब-कट पेंटिंग, जिसमें बर्तन और दैनिक वस्तुओं का चित्रण होता है।
- गोदना (टैटू) दोनों लिंगों में प्रचलित।
- पुरुषों के बाएं हाथ पर सिक्के जैसे टैटू होते हैं।
- बिना टैटू वाले पुरुषों से लड़कियाँ शादी नहीं करतीं।
- महीने को ‘बोंगा’ कहा जाता है; वर्ष ‘माघ बोंगा’ से शुरू होता है।
घरों की छत के प्रकार:
- एकछाला – चारों ओर ढलान वाली।
- डूबाला – दो तरफ ढलान वाली।
संथाल भोजन और पेय
- मुख्य भोजन: दाल-भात और सब्जियाँ (स्थानीय नाम: डाका-उरू)।
- मक्के की खिचड़ी – जोंद्रा-डाका।
- प्रसिद्ध पेय: हड़िया या पोचाई – चावल से बना पारंपरिक शराब।
- भोजन के नाम:
- बसकयाक – नाश्ता
- मजवान – दोपहर का भोजन
- कावोक – रात का भोजन
धार्मिक प्रथाएँ
- पूर्वज आत्माओं हापरमको को प्रसन्न रखने के लिए पूजा, बलि और भेंट की जाती है।
- संथाल महिलाएं तंत्र-मंत्र और जादू विद्या में कुशल मानी जाती हैं।
- मृत्यु के बाद दाह संस्कार और दफन, दोनों परंपराएँ प्रचलित हैं।
उराँव (उरांव) जनजाति: पहचान, भाषा और परंपराएँ
- जनसांख्यिकीय और भौगोलिक वितरण
- झारखंड की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति।
- कुल जनजातीय आबादी का 19.86%।
- दक्षिण छोटानागपुर और पलामू प्रमंडल में उच्च सघनता।
- संथाल परगना, उत्तर छोटानागपुर और कोल्हान में भी निवास।
पहचान और भाषा
- स्वयं को ‘कुड़ुख’ कहते हैं, जिसका अर्थ होता है ‘मानव’।
- भाषा: कुड़ुख, जो द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित है।
- झारखंड की सबसे शिक्षित और जागरूक जनजाति।
- सबसे अधिक सामाजिक-आर्थिक विकास इन्हीं में देखा गया है।
- लिपि: टोलोंग सिकी, जिसके निर्माता नारायण उराँव हैं।
- टाइपिंग हेतु फ़ॉन्ट: Kelly Tolong।
गोत्र व्यवस्था (किल्ली)
- वैज्ञानिक अध्ययन – शरदचंद्र रॉय द्वारा।
- कुल 68 गोत्र, मुख्यतः 14 प्रमुख गोत्र (किल्ली) में विभाजित।
गोत्र | टोटेम / प्रतीक |
---|---|
किसपोड़ा | जंगली सूअर |
बरला / बरा | बरगद वृक्ष |
खोया | चींटी |
केरकेट्टा | गौरैया |
किंडो | मछली |
खेसे | धान |
खाखा | कौवा |
खालखो | मछली |
एक्का | कछुआ |
लकड़ा | बाघ |
टोप्पो | छोटा पक्षी |
बाखला | घास |
कुजूर | बेल |
मिंज | सांप समान पौधा |
सांस्कृतिक और सामाजिक प्रथाएँ
गोदना (टैटू) विशेषकर महिलाओं में महत्वपूर्ण।
बहिर्विवाही व्यवस्था: एक ही गोत्र में विवाह वर्जित। सामान्य विवाह प्रकार:
- वर खोज विवाह (वधू मूल्य सहित)
- सेवा विवाह: वर वधू के परिवार की सेवा करता है।
विधवा पुनर्विवाह मान्य।
एक ही गाँव में विवाह वर्जित।
परिवारों के बीच संबंध स्थापित करने हेतु सहिया (सहियारो) चुना जाता है, प्रत्येक तीसरी फसल के बाद एक विशेष सहिया चयन समारोह में।
विविध विशेषताएँ
- उराँव बुनाई, चित्रकला और खेती में निपुण।
- पूर्वज आत्माओं के प्रति गहन श्रद्धा और विस्तृत अनुष्ठान।
- इनके जीवंत त्योहार, सामाजिक एकता और कलात्मकता झारखंड की जनजातीय विविधता का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
झारखंड की उरांव जनजाति
1. सामाजिक संरचना और संबंध
- जनजाति के भीतर मित्रता का सांस्कृतिक महत्व होता है।
- लड़कियाँ अपनी घनिष्ठ सहेली को “गोई” या “करमदार” कहती हैं।
- लड़के अपने दोस्त को “लार” या “संगी” कहते हैं।
- विवाह के बाद दोस्तों की पत्नियाँ एक-दूसरे को “लारीन” या “संगिनी” कहती हैं।
- पारिवारिक संपत्ति पर केवल पुरुषों का अधिकार होता है।
2. सामाजिक शब्दावली और ग्राम प्रशासन
- सामुदायिक संस्थाएँ:
- अखड़ा – गाँव का नृत्य स्थल।
- पंचोरा – पारंपरिक ग्राम परिषद।
- पहान – गाँव का धार्मिक मुखिया।
- महतो (मुखिया) – गाँव का प्रमुख।
- घमकरिया – युवकों का छात्रावास।
- पहनावा:
- पुरुष त्योहारों में केरिया पहनते हैं।
- महिलाएँ खानरिया पहनती हैं।
- सामाजिक संरचना पितृसत्तात्मक और पितृवंशीय है।
- प्रमुख नृत्य शैली को “यदुर” कहते हैं।
3. पर्व और मौसमी शिकार
- प्रमुख उत्सव:
- विसु सेंदरा – वैशाख (अप्रैल–मई)।
- फागु सेंदरा – फागुन (फरवरी–मार्च)।
- जेठ शिकार – वर्षा ऋतु के आगमन पर शिकार।
- दउराहा शिकार – अनौपचारिक शिकार परंपरा।
- उरांव जनजाति का नववर्ष कटाई के बाद (नवंबर–दिसंबर) से प्रारंभ होता है।
4. प्रमुख त्योहार
- करमा – भादों शुक्ल एकादशी को मनाया जाता है।
- सरहुल, खद्दी – चैत्र शुक्ल तृतीया को।
- जात्रा – जेठ, अगहन और कार्तिक में धर्मेस देवता की पूजा हेतु।
- सोहराय – कार्तिक अमावस्या को, पशुधन के सम्मान में।
- फागु परब – होली के समान, फागुन में मनाया जाता है।
5. कृषि प्रथाएँ
- छोटानागपुर में बसने के बाद उरांवों ने जंगल साफ कर खेती शुरू की।
- इन्हें “भुइंहर” कहा गया और भूमि को “भुइंहर भूमि”।
- ऐसे गाँव कहलाते हैं – “भुइंहर गाँव”।
- बाद में बसने वालों को “रैयत” या “जेठ रैयत” कहा गया।
- “पासरी” – कृषि कार्य में श्रम विनिमय की विशिष्ट परंपरा।
- मुख्य भोजन – चावल, वन्य पक्षी और फल।
- वानर का मांस नहीं खाते।
- पारंपरिक पेय – हड़िया (चावल से बनी देशी शराब)।
6. धर्म और विश्वास
- प्रमुख देवता: धर्मेस या धर्मी, जिन्हें सूर्य से जोड़ा जाता है।
- अन्य प्रमुख देवता:
- मरांग बुरू, ठाकुर देव, डीहवार (पूर्वज आत्मा),
- पहाड़ देवता, ग्राम देवता, सीमांत देवता, कुल देवता।
- भेलवा पूजा – बुआई के मौसम में।
- गोरैया पूजा – वार्षिक ग्राम कल्याण हेतु।
- पहान धार्मिक प्रमुख, पुजार उनका सहायक।
- सरना – पूजा का पवित्र स्थान।
- ससन – पूर्वजों की आत्माओं का निवास स्थान।
7. मृत्यु संबंधी संस्कार और विश्वास
- “हड़बोरा संस्कार” – जनवरी में, मृत पूर्वजों की अस्थियों को नदी में विसर्जन हेतु।
- इसे “गोत्र-खंडी” कहा जाता है।
- आत्मा का पुनर्मिलन पूर्वजों के साथ “कोहाबेंजा” माना जाता है।
- टोना-टोटका और जादू-टोने में विश्वास।
- काला जादू करने वाले को “माटी” कहते हैं।
- हिंदू उरांव दाह संस्कार, जबकि ईसाई उरांव दफन करते हैं और ईसाई विधियों का पालन करते हैं।
घुमकुरिया या धुमकुरिया (युवा छात्रावास प्रणाली)
- पारंपरिक छात्रावास जहां बालक-बालिकाएँ सामाजिक प्रशिक्षण पाते हैं।
- प्रवेश – 10–11 वर्ष की आयु में, विवाह तक।
- दीक्षा हर 3 साल में सरहुल पर्व पर होती है।
- सदस्यता की 3 श्रेणियाँ:
- पुना जोखर – नव प्रवेशी।
- माझ जोखर – 3 साल बाद।
- कोहा जोखर – वरिष्ठ सदस्य।
- दो खंड:
- जोख एड़पा – लड़कों का छात्रावास।
- पेल-एड़या – लड़कियों का छात्रावास।
- जोख एड़पा का मुखिया – ढंगर/महतो, सहायक – कोटवार।
- पेल-एड़या की प्रमुख महिला – बड़की ढंगरीन।
- अधिकारी हर 3 साल में “मुखिया हांड़ी” समारोह के दौरान बदले जाते हैं।
झारखंड की मुंडा जनजाति
1. जनसांख्यिकी और पहचान
- अन्य नाम: “कोल”।
- झारखंड की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति (14.22%)।
- “मुंडा” का अर्थ – विशिष्ट व्यक्ति या गाँव का प्रधान।
- प्रोटो-ऑस्ट्रालॉयड नस्लीय समूह से संबंधित।
- भाषा: मुंडारी, ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार की सदस्य।
- स्वयं को “होड़ोको”, भाषा को “होरो जगर” कहते हैं।
2. प्रवास इतिहास
- बाहरी आक्रमणों के कारण लगातार प्रव्रजन।
- आर्य आक्रमण के बाद आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में बसे।
- प्रवास मार्ग:
कलंजर → गढ़चित्रा → गढ़-नगरवार → गढ़-धारवार → गढ़-पाली → गढ़-पीपरा → मंडर पहाड़ → बिजयनगढ़ → हरदिनगढ़ → लखनउगढ़ → नंदनगढ़ (बेतिया, बिहार) → ऋजगढ़ (राजगीर, बिहार) → रुड़ियासगढ़ → अंततः झारखंड (ओमेदांडा, बुरमु) में बसे। - झारखंड आगमन – लगभग 600 ईसा पूर्व।
3. वर्तमान वितरण
- सर्वाधिक: राँची, फिर गुमला, सिमडेगा, पश्चिम सिंहभूम, सरायकेला-खरसावाँ।
- तमाड़ क्षेत्र के मुंडा – तमाड़ी मुंडा / पातर मुंडा।
- 2022 के संविधान संशोधन में “मारिया / तमाड़िया” को पर्याय के रूप में जोड़ा गया।
- अब अन्य राज्यों में भी रहते हैं (संचार और परिवहन के कारण)।
4. भूमि और भाषा
- मुंडाओं द्वारा विकसित भूमि – “खुंटकट्टी भूमि”।
- “खुंट” – वंश/परिवार का द्योतक।
- “मंदारी लिपि” – 1982 में ओडिशा के रोहिदास सिंह नाग द्वारा निर्मित।
सामाजिक विभाजन और पारिवारिक ढाँचा
- उप-समूह: ठाकुर, मांकी, मुंडा, बाबू भंडारी, पातर।
- गोत्र बहिर्विवाह – एक ही गोत्र में विवाह निषिद्ध।
- नाभिकीय, पितृसत्तात्मक, पितृवंशीय परिवार।
- वंश प्रणाली – खेड़, गोत्र – कीली।
- ब्रिटिश नृवंशशास्त्री रिज़ली ने लगभग 340 गोत्रों का उल्लेख किया।
विवाह प्रथाएँ
- व्यवस्थित विवाह सर्वाधिक प्रचलित।
- अन्य प्रकार:
- राजी-खुशी विवाह – सहमति आधारित।
- हरण विवाह – वधू का अपहरण।
- सेवा विवाह – वर द्वारा सेवा के रूप में दहेज।
- हठ विवाह – वधू जबरन वर के घर में प्रवेश कर रहती है।
- दहेज = “गोनोंग टाका”,
- यदि महिला तलाक लेती है तो दहेज लौटाना होता है।
- तलाक = “सकमचरी”।
स्थानीय शासन और सामाजिक संस्थाएँ
- युवा छात्रावास: गिटियोड़ा।
- सगाई: अरांडी।
- दहेज: कुरी गोंग।
- ग्राम प्रमुख: मुंडा।
- ग्राम सभा: ग्राम पंचायत।
- पंचायत प्रमुख: हाटू मुंडा।
- क्षेत्रीय पंचायत (कई गाँव मिलकर): मांकी।
- वंश/गोत्र संगठन: पड़हा।
- सभा स्थल: हाटू अखड़ा।
सांस्कृतिक प्रतीक और टोटेम
- प्रत्येक गोत्र का प्रतीक:
- नाग, सोय (मछली), होरो (कछुआ), बोडरा (मोर), बिरनी (पक्षी), टोपनो (लाल चींटी), बारजो (कुसुम फल), भेंगा (घोड़ा), पुर्ती (मगरमच्छ), हंसा (हंस), ऐड (मछली), वेंगा धान।
आर्थिक गतिविधियाँ
- मुख्य कार्य: कृषि और पशुपालन।
- भूमि के प्रकार:
- पांकू – उपजाऊ।
- नगरा – मध्यम।
- खिर्सू – बालुकामय।
- सोमा सिंह मुंडा ने 13 उप-शाखाओं का उल्लेख किया, जैसे महली मुंडा, कमपत मुंडा।
महत्वपूर्ण लोककथा
- “सोसो योगा” – नृत्य-नाटक शैली में मुंडा विरासत का वर्णन करती है।
लैंगिक वर्जनाएँ और रीतियाँ
- महिलाएँ नहीं कर सकतीं:
- धान की बुआई।
- हल को सिर पर ले जाना।
- श्मशान भूमि जाना।
- यदि गाँव की बेटी हैं तो सरहुल की प्रसाद नहीं ले सकतीं।
- पारंपरिक वस्त्र:
- पुरुष – बाटोई / करवट।
- महिला – परेया।
त्योहार
- सरहुल/बाहा – वसंत उत्सव, चैत्र शुक्ल तृतीया।
- करमा – प्रकृति पूजा, भाद्रपद शुक्ल एकादशी।
- सोहराय – पशुओं के लिए, कार्तिक अमावस्या।
- अन्य: रोपन, बाटाउली, फगु, मागे, जात्रा, जोमना, बुरुप।
धार्मिक विश्वास
- प्रमुख देवता: सिंहबोंगा (सौर देवता) – पूजा में सफेद फूल, सफेद वस्तु, सफेद मुर्गा।
- अन्य देवता:
- हाटू बोंगा – कुल देवता।
- देसौली – ग्राम देवी।
- खुंतांकर / ओरा बोंगा – गृह देवता।
- इकीर योगा, बुरु बोंगा – जल और पहाड़ी देवता।
- सरना – पवित्र उपवन।
- पहान – ग्राम पुजारी।
- पुजार / पांभरा – पुजारी का सहायक।
- देहरी – धार्मिक पुरोहित।
- देवरा – ओझा / झाड़फूंक वाला।
- ससन – पूर्वजों का अंतिम निवास।
- ससन दीरी / हरगड़ी – मृतकों की स्मृति में रखे गए पत्थर।
हो जनजाति
जनसांख्यिकी और वर्गीकरण
- झारखंड की चौथी सबसे बड़ी जनजाति, जो कुल आदिवासी आबादी का 10.74% है।
- प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड (Proto-Australoid) नस्लीय समूह से संबंधित।
- कोल्हान प्रमंडल इस जनजाति की मुख्य सांद्रता क्षेत्र है।
भाषा और लिपि
- हो भाषा बोलते हैं, जो ऑस्ट्रो-एशियाटिक (मुंडारी) भाषा परिवार से संबंधित है।
- इन्होंने अपनी स्वतंत्र लिपि “वरांग क्षिति (Warang Chiti)” विकसित की।
- इस लिपि के आविष्कारक “लाको बोदरा” हैं।
सामाजिक व्यवस्था
- परंपरागत रूप से स्त्रीप्रधान (मैट्रिआर्कल) समाज था, वर्तमान में पितृसत्तात्मक (Patriarchal) हो गया है।
- परिवार और गोत्र प्रणाली “कीली (Keeli)” पर आधारित है।
- 80 से अधिक गोत्रों में विभाजित हैं।
विवाह की परंपराएं
- गोत्र बहिर्विवाह (Exogamy) का पालन होता है; एक ही गोत्र में विवाह वर्जित है।
- क्रॉस-कजिन विवाह को प्राथमिकता दी जाती है, जैसे मामा की बेटी/बेटे से विवाह।
गोत्र और टोटेम प्रतीक
कुछ प्रमुख गोत्र और प्रतीक:
- पुर्ति (Purti) – चूहा
- बालमच (Balmuch) – प्रतीक नहीं ज्ञात
- बरला (Barla) – बरगद का पेड़
- जोजो (Jojo) – इमली का पेड़
- हेम्ब्रोम (Hembrom) – लसोड़ा (Cordia पेड़)
हो जनजाति के विवाह रिवाज़
- बहुपति विवाह (Polygamy) की प्रथा प्रचलित है।
- “आदि विवाह” सबसे प्रतिष्ठित विवाह होता है, जिसमें वर की ओर से प्रस्ताव किसी मध्यस्थ के माध्यम से भेजा जाता है।
अन्य विवाह प्रकार: - दिक्कू आदि विवाह – हिंदू परंपरा से प्रभावित विवाह, हिंदू बहुल गांवों में प्रचलित।
- अंडी-ओपोर्टिपी विवाह – वर द्वारा वधु का अपहरण करके विवाह करना।
- राजी-खुशी विवाह – वधु वर के घर में जबरदस्ती प्रवेश कर जाती है जब तक विवाह न हो जाए।
सामाजिक संरचना
- “युवागृह” (Youth Dormitory) – जिसे अखाड़ा कहते हैं, गांव के मध्य में होता है।
- ग्राम प्रधान (Gram Pradhan)
- पंचायत प्रमुख (मानकी)
- उप-मुंडा (डाकुआ)
- मुंडा और गोतिआरा – ग्राम स्तरीय पद।
- एते तुरतु – पारहा (जनजातीय परिषद) का न्याय प्रमुख।
आर्थिक संरचना
- “मुंडा-मानकी” स्वशासन प्रणाली, एक प्रकार की लघु लोकतांत्रिक व्यवस्था है।
- महिलाएं हल या धनुष-बाण का प्रयोग नहीं कर सकतीं।
- हो पुरुष दाढ़ी-मूंछ नहीं रखते।
- इनकी पवित्र पेय “इली” (Ili) कहलाती है, जो देवी-देवताओं को भी अर्पित की जाती है।
- मुख्य पेशा: कृषि।
भूमि की श्रेणियाँ:
- बेरो – नीची और उपजाऊ भूमि।
- वाड़ी – धान की खेती की भूमि।
- गोड़ा – कम उपजाऊ भूमि, मोटे अनाज के लिए।
- शराब पीना इनकी पसंदीदा प्रवृत्ति है।
धार्मिक विश्वास
- मुख्य देवता: सिंगबोंगा (Singbonga)
अन्य देवी-देवता: - पहुई बोंगा – ग्राम देवता
- ओटी बोडोम – धरती की देवी
- मरांग बुरू – पर्वत देवता
- नाग देवता
- देसौली बोंगा – वर्षा देवता
धार्मिक संरचना:
- रसोई के कोने में “अडिग” (Adig) नामक पवित्र स्थान – पूर्वजों की आत्मा के लिए।
- देवरी (पुरोहित) धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करता है।
- भूत-प्रेत व जादू-टोने में विश्वास प्रचलित है।
- दाह-संस्कार और दफ़न दोनों प्रकार के अंतिम संस्कार होते हैं।
त्योहार
- प्रमुख त्योहार: मागे, बहा, उमरी, होरो, जोमान्ना, कोलम आदि।
- ये त्योहार कृषि से संबंधित गतिविधियों से जुड़े होते हैं।
खरवार (खेड़वार) जनजाति – झारखंड
जनसांख्यिकी और उत्पत्ति
- झारखंड की पाँचवीं सबसे बड़ी जनजाति।
- मुख्य रूप से पलामू प्रमंडल में पाई जाती है, अन्य ज़िलों में – हज़ारीबाग, चतरा, रांची, लोहरदगा, संथाल परगना, सिंहभूम।
- “खेड़वार” नाम “खेरीझार” से लिया गया है।
- खारवेल वंश (ओडिशा) से संबंध माना जाता है।
- खुद को सूर्यवंशी राजपूत राजा हरिश्चंद्र रोहिताश्व का वंशज मानते हैं।
- पलामू और लातेहार में “अठारह हजारी” (18,000) नाम से प्रसिद्ध।
पहचान और वर्गीकरण
- एक योद्धा (Martial) जनजाति, जो सत्यनिष्ठा और वीरता के लिए जानी जाती है।
- प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड नस्लीय समूह से संबंधित।
- भाषा: खेड़वारी, जो ऑस्ट्रो-एशियाटिक परिवार से जुड़ी है।
2022 के संविधान संशोधन के तहत इन उप-जातियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया:
भोगता, देशवारी, गंजू, दौलतबंदी, पटबंदी, रौत, मझिया, खेरी (खेढ़ी)।
उप-जनजातियाँ
सुंदर की वर्गीकरण: मझिया, गंजू, पटबंदी, दुसादी, भोगता, खेरी।
डाल्टन की वर्गीकरण: भोगता, मांझी, रौत, महतो।
सामाजिक संरचना
- “घुंकरिया” (युवागृह) की परंपरा इनकी समाज में नहीं पाई जाती।
- पितृसत्तात्मक व पितृवंशीय समाज।
- संपत्ति का समान वितरण सभी पुत्रों के बीच होता है।
- बाल विवाह मान्य व प्रचलित है।
- बहुपति विवाह की परंपरा भी मिलती है।
विवाह के प्रकार:
- डोला विवाह – जब वधु गरीब हो, तब वर के घर में होता है।
- चढ़वा विवाह – वधु के घर में सम्पन्न।
- रिजनिया – बांझ स्त्री की बहन का अपने जीजा से विवाह।
- पारस्परिक तलाक को सामाजिक मान्यता प्राप्त है।
सामुदायिक शासन व्यवस्था
मुख्य संस्थाएं:
- ग्राम पंचायत
- बैठकी – ग्राम सभा
- मुखिया (पलामू), बैगा (शाहाबाद) – ग्राम प्रधान
- छट्टी / छत – चार गांवों की पंचायत
- सतौरा – सात गांवों की पंचायत
- पचौरा – पांच गांवों की पंचायत
आर्थिक जीवन
- बैगा पुजारियों को दी गई ज़मीन – “बैगाई भूमि” कहलाती है।
- बैगा द्वारा काटे गए धान की एक पूली का ⅓ हिस्सा “पोजा” कहा जाता है।
- ग्राम या समूह प्रमुख को “प्रधान” कहा जाता है – यह पद वंशानुगत होता है।
- पुरुष – धोती, बंडी, पगड़ी पहनते हैं।
- महिलाएं – साड़ी पहनती हैं।
- मुख्य पेशा: कृषि।
- पारंपरिक पेशा: खैर वृक्ष से कत्था बनाना।
- गरीब खरवार – कृषि मज़दूरी करते हैं व बांस से टोकरियाँ व अन्य वस्तुएं बनाते हैं।
भोजन:
- सुबह – लुकमा, दोपहर – कलेबा, रात – बियारी।
त्योहार
मुख्य त्योहार: सरहुल, करमा, नवाखानी, सोहराय, जितिया, दुर्गा पूजा, दीपावली, रामनवमी, फागू।
धार्मिक विश्वास
- मुख्य देवता: सिंगबोंगा
- धार्मिक अनुष्ठान “पाहन” या “बैगा” द्वारा सम्पन्न किए जाते हैं।
- गंभीर बीमारी या संकट में ये “ओझा” या “माटी” (जादू-टोना करने वाला) की सहायता लेते हैं।
- “माटी” – वह व्यक्ति जिसे जादू-टोना करने वाला माना जाता है।
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