झारखंड की जनजातीय और लोक परंपराएं इसकी गहराई से जुड़ी सांस्कृतिक पहचान की जीवंत गवाही देती हैं, जहाँ प्रत्येक नृत्य, गीत और प्रस्तुति भूमि और लोगों की कहानी कहती है। यह सम्पूर्ण गाइड झारखंड की विविध लोकनृत्य शैलियों और जीवंत लोकनाट्य रूपों जैसे डोडोंग, तुमगो, फिरकल और सोहराय नृत्य तथा जात-जटिन, समा-चकेवा और डोमकच जैसे समृद्ध लोकनाटकों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करता है। ये कला रूप धार्मिक त्योहारों, विवाह समारोहों और मौसमी उत्सवों से जुड़ी सामाजिक और धार्मिक महत्ता रखते हैं। यह ब्लॉग इनके प्रमुख विशेषताओं, प्रदर्शन शैली, शामिल समुदायों और पारंपरिक अवसरों को सरल भाषा में समझाते हुए JPSC, JSSC और UPSC जैसी परीक्षाओं में पूछे गए महत्वपूर्ण तथ्यों को भी उजागर करता है। यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं या झारखंड की सांस्कृतिक आत्मा को समझना चाहते हैं, तो यह ब्लॉग आपके लिए 2025 और उससे आगे तक का सम्पूर्ण स्रोत है।
झारखंड के लोकगीत
मुंडा जनजाति के लोकगीत
- दोड़ – विवाह से संबंधित लोकगीत
- वीर सेरेन – जंगलों से संबंधित गीत
- सोहराय लगड़े, मिंसर, बहा, दसाय, पतवार, रिजा, डाटा, धार, मतवार, भींसर, गोलवारी, धरुमजक, रिंझो, झीका – विभिन्न मौसमी एवं धार्मिक अवसरों से संबंधित
- जादुर – सरहुल/बाहा पर्व पर गाया जाने वाला
- गेना और ओरा जादुर – जादुर गीत के पूरक
- अदांदी – एक और विवाह गीत
- जापी – शिकार से संबंधित गीत
- जार्गा, कर्मा – जनजातीय अनुष्ठानों से जुड़ा
उरांव जनजाति के लोकगीत
- वा – बसंत ऋतु का लोकगीत
- हैरो – धान की बुआई के समय
- नोमनामा – नया अन्न खाने के समय
- सरहुल – वसंत गीत
- जात्रा – सरहुल के बाद
- कर्मा – जात्रा के बाद
- अन्य प्रमुख गीत: धूरिया, असाढ़ी, जदुरा, माथा
विशेष अवसरों के लोकगीत
- झांझैन – जन्म संस्कार के समय महिलाएं गाती हैं
- दईधारा – वर्षा ऋतु में देवस्थलों पर गाया जाता है
- प्रताकली – सुबह-सुबह गाया जाता है
- अधर्तिया – मध्यरात्रि में गाया जाता है
- कजली – वर्षा ऋतु का गीत
- अंडी – विवाह में महिलाएं गाती हैं
- अंगाई – केवल महिलाएं गाती हैं
- मार – जितिया, सोहराय, कर्मा जैसे पर्वों में शुमरा राग में
- उदासी और पावस –
- उदासी – गर्मी में
- पावस – वर्षा ऋतु के प्रारंभ में
- तुनमुनिया, बारहमासा, झलागीत – कजली शैली से संबंधित
महत्वपूर्ण: कजली, अंडी, उदासी, पावस से जुड़े प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में कई बार पूछे गए हैं।
झारखंड के लोकनृत्य
छऊ नृत्य – झारखंड का सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य
- शब्दार्थ: छाया
- उत्पत्ति: सरायकेला (झारखंड), बाद में मयूरभंज (ओडिशा) और पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) में फैला
- पहली अंतरराष्ट्रीय प्रस्तुति: 1938 में सुदेन्द्र नारायण सिंह द्वारा
- गांधी जी के समक्ष प्रदर्शन: 1941
- प्रदर्शन शैली: केवल पुरुष, उर्जावान नृत्य
- प्रमुख शैलियाँ:
- सरायकेला छऊ – झारखंड (सबसे प्राचीन)
- मयूरभंज छऊ – ओडिशा
- पुरुलिया छऊ – पश्चिम बंगाल
मुख्य विशेषताएं:
- मास्क का प्रयोग (मयूरभंज को छोड़कर)
- पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं का चित्रण
- कथा, भावना और मार्शल कला का मिश्रण
- सरायकेला और मयूरभंज – तांडव + लास्य
- पुरुलिया – केवल तांडव
- शस्त्र और वाद्ययंत्रों में वीर रस
- संवाद नहीं – केवल पृष्ठभूमि संगीत
- प्रारंभ – भैरव वंदना (शिव प्रार्थना)
- गुरु की उपस्थिति अनिवार्य
युनेस्को मान्यता:
- 2010 – UNESCO अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल
- 2022 – प्रभात कुमार महतो द्वारा IPL समापन समारोह (अहमदाबाद) में प्रदर्शन
प्रमुख छऊ केंद्र (झारखंड):
केंद्र | स्थान | स्थापना वर्ष |
---|---|---|
सरायकेला छऊ केंद्र | सरायकेला | 1960 |
नटराज कला केंद्र | चौगा, इचागढ़, सरायकेला-खरसावां | 2004 |
मानभूम छऊ केंद्र | सिल्ली | 2011 |
प्रसिद्ध छऊ गुरु एवं पुरस्कार:
नाम | पुरस्कार वर्ष |
---|---|
सुदेन्द्र नारायण सिंह | 1991 |
केदारनाथ साहू | 2005 |
श्यामचरण पाटी | 2006 |
मंगलाचरण मोहंती | 2009 |
मकरध्वज दरोगा | 2011 |
पं. गोपाल प्रसाद दुबे | 2012 |
गुरु शशधर आचार्य | 2020 |
जादुर नृत्य (नीर सुसांको) – उरांव जनजाति का प्रमुख नृत्य
- अवसर: फाल्गुन में कोलम सिंग-बोंगा उत्सव के बाद शुरू होकर चैत्र के सरहुल तक
- भावना: उत्पादकता, ऊर्जा, मातृभूमि के प्रति सम्मान
- प्रकार: सह-नृत्य (महिला-पुरुष दोनों), गोल घेरे में
- महिलाएं ताल और धुन के साथ वृत्ताकार भागती हैं
जापी नृत्य
- भावना: शिकार से विजयी लौटने का प्रतीक
- अवसर: सरहुल (चैत्र) से आशाढ़ी पर्व (आषाढ़) तक
- प्रकार: मध्यम गति, सह-नृत्य
- महिलाएं – एक-दूसरे की कमर पकड़कर नाचती हैं
- पुरुष – गायक व वादक के रूप में घेरे में रहते हैं
सारांश और परीक्षा बिंदु
- छऊ नृत्य – सबसे महत्वपूर्ण; अंतरराष्ट्रीय मान्यता; UNESCO 2010
- जादुर और जापी नृत्य – उरांव जनजाति के मुख्य नृत्य
- कजली, उदासी, पावस, अंडी – प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार पूछे गए
- लोकगीत – कृषि, विवाह, शिकार, त्योहार और सामाजिक अनुष्ठानों से संबंधित
- छऊ नृत्य के गुरु – 1991 से 2020 तक सम्मानित
- छऊ की विशेषता – नृत्य, कथा, भावना और युद्ध कला का संगम
करमा / लहुसा नृत्य
- भागीदारी: 8 पुरुष और 8 महिलाएं
- अवसर: करमा पर्व
- शैली: झुककर नृत्य करते हैं; पुरुष और महिलाएं आमने-सामने होकर आगे-पीछे झूमते हैं
- गीत: लहुसा गीतों पर आधारित
- प्रकार: दो – खेमता और भीनुसारी
बुरू नृत्य
- स्वरूप: जादुर और करमा नृत्य का मिश्रण
- अवसर: मागे और गेना पर्वों के समान
पैका नृत्य
- शब्दार्थ: पैका = पैदल सैनिक
- स्वभाव: वीरता और युद्ध शैली
- पोशाक: तलवार, ढाल, रंगीन कलगी या मोरपंख की सजावट
- प्रकार: युद्ध नृत्य; गीत रहित
- विशेषता: युद्ध कौशल का प्रदर्शन
- प्रदर्शन: केवल पुरुष; जोड़े में – 5, 7 या 9
- समुदाय: आदिवासी और सदान दोनों
- जनजाति: विशेष रूप से मुंडा जनजाति
- मान्यता:
- 1987 – भारत उत्सव (रूस) में डॉ. रामदयाल मुंडा के नेतृत्व में प्रदर्शन
- प्रसिद्ध कलाकार: शिवशंकर महतो, रामप्रसाद महली, अशोक कच्छप
जातरा नृत्य (Jatra Nritya)
- समुदाय: उराँव जनजाति
- रचना: पुरुष और महिलाएँ हाथ पकड़कर वृत्ताकार/अर्धवृत्ताकार पंक्ति में
- महत्व: सामाजिक मेलजोल व उत्सव का प्रतीक
परीक्षा बिंदु: उराँव जनजाति का पारंपरिक समूह नृत्य
नतुआ नृत्य (Natua Nritya)
- प्रकृति: पुरुष प्रधान
- वेशभूषा: पुरुष स्त्री वेश में
- अवसर: मेलों, उत्सवों में हास्य-रस हेतु
मुख्य विशेषता: स्त्रीवेश में पुरुष कलाकार
नाचनी नृत्य (Nachni Nritya)
- प्रकार: पेशेवर लोकनृत्य
- जोड़ी: महिला नाचनी और पुरुष रसिक
- अवसर: कार्तिक पूर्णिमा, मेले
- कला स्वरूप: संगीत, अभिनय, नृत्य का समावेश
काली नृत्य (Kaali Nritya)
- मुख्य भूमिका: महिला नर्तकी (काली)
- सजावट: मुकुट, आभूषण
- विषय: राधा-कृष्ण प्रेम प्रसंग
- वाद्ययंत्र: नगाड़ा, ढाक, शहनाई
महत्व: स्त्री सौंदर्य व प्रेम का प्रतीकात्मक नृत्य
अग्नि नृत्य (Agni Nritya)
- प्रकृति: धार्मिक अनुष्ठानिक
- अवसर: मंडा या बीपू पूजा
- उद्देश्य: ‘शील’ देवता की आराधना
परीक्षा बिंदु: ‘शील’ देवता की पूजा हेतु किया जाने वाला नृत्य
मंडा / भगतिया नृत्य (Manda / Bhgatiya Nritya)
- लिंग: केवल पुरुष
- अवसर: शिव पूजा अवसर
- अनुष्ठान: महिलाएँ जल लाकर नर्तकों को शुद्ध करती हैं
- वाद्ययंत्र: ढाक, शहनाई, नगाड़ा
विशेषता: सात्विक भावना और भक्ति भाव से किया जाने वाला नृत्य
झूमर नृत्य (Jhumar Nritya)
- प्रकृति: महिला प्रधान, वृत्तीय शैली
- अवसर: फसल कटाई, त्योहार, विवाह
- प्रमुख रूप:
- करिया झूमर (हाथ पकड़कर)
- उधुआ झूमर (भावपूर्ण)
- रसकी झूमर (तेज गति)
- अध रातिया झूमर (रात्रि)
- भिनसरिया झूमर (प्रभात)
मर्दानी झूमर नृत्य
- प्रकृति: पुरुष प्रधान
- विशेषता: वीरता व शक्ति प्रदर्शित
- गति: तीव्र, सामूहिक लय
अंगनई नृत्य (Angnai Nritya)
- समुदाय: सदान महिलाएँ
- अवसर: करमा व जितिया
- प्रकार: महिला प्रधान समूह नृत्य
परीक्षा बिंदु: करमा व जितिया पर किया जाने वाला महिला प्रधान नृत्य
लुहारी / लुहकुआ नृत्य
- प्रकृति: झूलन गति वाली शैली
- सामान्य रूप: अंगनई नृत्य की एक शैली
- भागीदारी: दोनों लिंग
ददरा धारा नृत्य
- प्रकृति: पुरुष प्रधान
- शैली: कमर पकड़कर पंक्ति में नृत्य
- विशेषता: तेज गति और सामूहिक समन्वय
कठोरवा नृत्य
- प्रकृति: पुरुष प्रधान
- विशेषता: मुखौटे पहनकर प्रदर्शन
परीक्षा बिंदु: पारंपरिक मुखौटों के प्रयोग वाला नृत्य
जनजातीय विशिष्ट नृत्य
मुंडा जनजाति
- प्रमुख नृत्य:
- गेना नृत्य (विजय पर आधारित)
- जापी नृत्य (शिकार उत्सव)
- चिटिड नृत्य (पूजा)
- जादुर, बारू, छव आदि
संथाल जनजाति
- लंगड़े नृत्य: हर्ष व उल्लास
- बाहा नृत्य: सरहुल में, साल-महुआ फूलों के साथ
- दाहर नृत्य: मागह बोंगा पर्व
- दसाइन नृत्य: दशहरा के समय, पुरुष स्त्रीवेश में
हो जनजाति
- गऊंग नृत्य: समुदायिक पर्वों में
- मागे नृत्य: मागह पूर्णिमा, सामूहिक
- बा नृत्य: सरहुल पर्व
अन्य प्रमुख नृत्य
डोमकच नृत्य
- अवसर: विवाह
- प्रकृति: महिला प्रधान, गायक-उत्तर शैली
- वाद्ययंत्र: मादर, शहनाई, थेचुका आदि
विशेषता: विवाह के अवसर पर नृत्य-गीत का संगम
घोड़ा नृत्य
- अवसर: मेले, बारात
- प्रदर्शन: बांस के घोड़े पर
- प्रसिद्ध कलाकार: दुर्गानाथ राय (नगड़ी)
परीक्षा बिंदु: नकली घोड़े और तलवार के साथ किया जाने वाला युद्ध रूपक नृत्य
सोहराय नृत्य
- अवसर: दीपावली के अगले दिन
- उद्देश्य: पालतू पशुओं की रक्षा व सम्मान
विशेषता: पशुओं की भलाई के लिए समर्पित नृत्य
निष्कर्ष: परीक्षा हेतु अति महत्वपूर्ण बिंदु
नृत्य | समुदाय/अवसर | मुख्य विशेषता |
---|---|---|
पैका | मुंडा | युद्ध शैली, तलवार-ढाल |
झूमर | सभी | महिला प्रधान, फसल उत्सव |
डोमकच | सदान | विवाह में, गीतों के साथ |
घोड़ा | सभी | घोड़े के आकार में युद्ध शैली |
दसाइन | संथाल | दशहरा, स्त्रीवेश |
मंडा | उराँव | भक्ति गीत, शिव पूजा |
काली नृत्य
- केवल महिलाएँ इस नृत्य में भाग लेती हैं।
- नृत्य करते समय श्रृंगार व मुकुट पहनती हैं।
- राधा-कृष्ण की प्रेम-लीला पर आधारित।
- इसे नाचनी-खेलाड़ी नृत्य भी कहते हैं।
दोहा (दरम-दह) नृत्य
- संथाल जनजाति का पारंपरिक नृत्य।
- शादी के अवसर पर दुल्हा-दुल्हन दोनों के घर में किया जाता है।
- इसे दरम-दह नृत्य भी कहा जाता है।
डोंगेड नृत्य
- संथाल जनजाति के पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
- सामूहिक शिकार के दौरान जंगल में किया जाता है।
- वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है।
संकतुल्य संशय नृत्य
- दशहरा पर गुरुगृह (आश्रम) में किया जाता है।
- मंत्र विद्या व तांत्रिक परंपरा से जुड़ा है।
- पुरुष स्त्री वेशभूषा में नृत्य करते हैं।
- वाद्य: आग, नगाड़ा, डांक, बांसुरी, तुरही, बनाम।
दोसामी नृत्य
- अगहन माह में जाहेरथान (पवित्र स्थल) पर किया जाता है।
- वाद्य: मंदर, नगाड़ा, तमाक, घंटी।
- लंगरे गीत इस दौरान गाया जाता है।
सकरात नृत्य
- संथाल जनजाति में प्रचलित।
- पौष माह में दरवाजे की चौखट पूजन के बाद किया जाता है।
- पुरुष और महिलाएँ दोनों भाग लेते हैं।
हल्का नृत्य
- पुरुष व महिलाएँ अलग-अलग समूहों में नृत्य करते हैं।
- गायन और नृत्य एक साथ होता है।
- अंत में नर्तक ज़ोर से पाँव पटकते हैं।
- ‘पाड़ गीत’ गाया जाता है।
- दूसरा समूह पहले समूह के बाद ही नृत्य करता है।
दोयर नृत्य
- हल्का नृत्य का एक प्रकार।
- नर्तक कंधों पर लकड़ी का डंडा रखते हैं।
- नाग-शैली में आगे बढ़ते हुए नृत्य करते हैं।
फगुआ नृत्य
- फाल्गुन-चैत्र संधि काल का पुरुष प्रधान नृत्य।
- होली व बसंत उत्सव के दौरान किया जाता है।
- वाद्य: शहनाई, बांसुरी, मुरली, ढोल, नगाड़ा, करहा, डांक, मंदर।
प्रकार:
- पंचरंगी फगुआ: प्रत्येक अंतरे में राग बदलता है।
- फगुआ पुच्छरी: दो दलों द्वारा प्रश्नोत्तरी शैली में गीत गाए जाते हैं।
कड़सा नृत्य
- कलश उठाकर महिलाएँ नृत्य करती हैं।
- पुरुष केवल वाद्य बजाते हैं।
- स्वागत व त्योहारों के अवसर पर किया जाता है।
मैतकोध व पादकाटना नृत्य
- विवाह से पूर्व की रस्मों (मिट्टी खोदना, पानी भरना) पर आधारित।
- दो महिलाएँ एक-दूसरे की कमर पकड़कर नृत्य करती हैं।
- केवल वाद्य बजते हैं, कोई गीत नहीं गाया जाता।
हरियो नृत्य
- युवा समूहों (यात्रा दल) द्वारा किया जाता है।
- पुरुष-महिला मिलकर तेज़ गति से गोल घूमते हुए नृत्य करते हैं।
किनभार नृत्य
- फाल्गुन से बैसाख तक किया जाता है।
- घर के आंगन में होता है।
- नर्तक “हो हरे हारे रे” कहते हुए नृत्य करते हैं।
जेठ लहसूआ नृत्य
- जेठ माह की रातों में अखड़ा मैदान पर किया जाता है।
- खासकर खड़िया जनजाति के युवा (स्त्री-पुरुष) इसमें भाग लेते हैं।
फग्गू खड़ी नृत्य
- सरहुल की प्रतीक्षा में फाल्गुन से शुरू होता है।
- “हुुर्रे” ध्वनि के साथ समाप्त होता है।
परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रमुख लोकनृत्य
- टुसू नृत्य
- रास नृत्य
- धुरिया नृत्य
- दोहा (दरम-दह) नृत्य
- फगुआ नृत्य
- कड़सा नृत्य
- संकतुल्य संशय नृत्य
- दोसामी नृत्य
- सकरात नृत्य
- जेठ लहसूआ नृत्य
- फग्गू खड़ी नृत्य
अन्य प्रमुख लोकनृत्य
डोडोंग नृत्य (जवीरा नृत्य)
- दो कतारों में खड़े होकर किया जाता है।
- जादुर नृत्य का एक प्रकार है।
- मुंडा और सदान समुदाय में प्रचलित।
- वाद्य: मंदर
- “खेल लझर लझर” का जाप होता है।
- परीक्षा हेतु अति महत्वपूर्ण।
टुमगो नृत्य
- करमा त्योहार के बाद किया जाता है।
- सभी आयु वर्ग भाग लेते हैं।
- वाद्य: मंदर
- “चल हारे हारे” कहते हुए कंधे पकड़कर आगे बढ़ते हैं।
फिरकल नृत्य
- झारखंड का ‘कलारिपयट्टू’ नृत्य। (परीक्षा उपयोगी तथ्य)
- केरल की युद्ध कला से प्रेरित।
- जमशेदपुर के जनुमदीह क्षेत्र में किया जाता है।
- भूमिज समुदाय द्वारा किया जाता है।
- अब यह नृत्य पुनर्जीवन की स्थिति में है।
सोहराय नृत्य
- गोषाला (पशुशाला) पूजन से जुड़ा नृत्य।
- पुरुष “गांव जमाव” और महिलाएँ “चुमावड़ी” गीत गाती हैं।
- जनुमदीह (जमशेदपुर) में भी प्रचलित।
- भूमिज समुदाय की सांस्कृतिक शान।
प्रमुख नृत्यों से संबंधित माह / पर्व
नृत्य | माह / पर्व |
---|---|
जादुर नृत्य | फागुन से चैत्र (सरहुल) |
जापी नृत्य | चैत्र से आषाढ़ |
करमा नृत्य | आषाढ़ से भादों, कार्तिक |
सोहराय नृत्य | कार्तिक |
माघ पर्व | कार्तिक से फागुन |
प्रदर्शक के आधार पर लोकनृत्य का वर्गीकरण
पुरुष प्रधान नृत्य
- चद, पैका, नटुआ, फिरकल, कठोरबा, मरदानी झुमर, दसई, दैंढ़ारा, दसाय, मंड़ा, फगुआ, हुंटा, रास
महिला प्रधान नृत्य
- उमकच, अंगनाई, करिया, जननी झुमर, दुश, काली, गेना, जार्गा
स्त्री-पुरुष संयुक्त नृत्य
- जोमनामा मागे, नाचनी, सकराव, करमा/राया, हीरो, हरियो, हल्का, जात्रा, जापी, जादुर, ठाढ़िया
झारखंड के प्रमुख लोकनाट्य
1. जात-जटिन
- श्रावण से कार्तिक माह के बीच खेला जाता है।
- अविवाहित लड़कियाँ अभिनय करती हैं।
- जात व जटिन के दाम्पत्य जीवन की कहानी पर आधारित।
- परीक्षा में बार-बार पूछा जाता है।
2. भकुली-बंका
- श्रावण से कार्तिक तक प्रदर्शित।
- जात-जटिन के साथ प्रदर्शित किया जाता है।
- भकुली (पत्नी) व बांका (पति) के संबंधों को दर्शाता है।
3. सामा-चकेवा
- कार्तिक शुक्ल सप्तमी से पूर्णिमा तक खेला जाता है।
- मिट्टी की मूर्तियों के माध्यम से युवा लड़कियाँ अभिनय करती हैं।
मुख्य पात्र:
- सामा (नायिका), चकेवा (नायक), चुगला (खलनायक), सांबा (सामा का भाई)
- भाई-बहन के पवित्र संबंध पर आधारित।
- प्रश्नोत्तर शैली में समूह गीतों के माध्यम से प्रस्तुत।
4. डोमकच
- स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला घर पर आधारित लोकनाट्य।
- शादी व त्योहारों पर किया जाता है।
- हास्य, व्यंग्य व अश्लील संवादों के लिए प्रसिद्ध।
- सार्वजनिक रूप से नहीं खेला जाता, पुरुषों को देखना मना है।
5. लोक
- शादी या सामाजिक अवसरों पर रात्रिकालीन लोकनाट्य।
6. कीर्तनिया
- भगवान कृष्ण की लीलाओं को गीतों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
परीक्षा उपयोगी संक्षिप्त तथ्य
- जवीरा (डोडोंग), फिरकल, सामा-चकेवा, जात-जटिन: बार-बार पूछे जाने वाले नाट्य।
- भूमिज समुदाय: फिरकल व सोहराय नृत्य के लिए प्रसिद्ध।
- मंदर वाद्य: डोडोंग, टुमगो जैसे अनेक नृत्यों में प्रयोग होता है।
- डोमकच: महिला-केन्द्रित घरेलू लोकनाट्य – लैंगिक संस्कृति से संबंधित प्रश्नों में पूछा जाता है।