झारखंड, जो अपनी समृद्ध आदिवासी विरासत और सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है, यहाँ तीन प्रमुख भाषा परिवारों—हिंदी-आर्य, द्रविड़ियन, और ऑस्ट्रो-एशियाटिक (मुंडा)—से संबंधित भाषाएँ बोली जाती हैं।
हिंदी, राज्य की प्रथम आधिकारिक भाषा होने के साथ-साथ, नागपुरी, खोरठा, कुर्माली जैसी क्षेत्रीय भाषाओं और संविधान में मान्यता प्राप्त आदिवासी भाषाओं जैसे संथाली आदि के चलते यह भाषा परिदृश्य ऐतिहासिक और जातीय विविधता को दर्शाता है।
यह विस्तृत गाइड JPSC, JSSC और अन्य 2025 प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए भाषाओं का वर्गीकरण, बोलने वालों की संख्या, आधिकारिक स्थिति और लिपि विकास से जुड़ी सटीक और अद्यतन जानकारी प्रस्तुत करता है।
झारखंड की आदिवासी भाषाएँ (Adivasi Bhasha)
1. संथाली
- बोलने वाले: संथाल जनजाति
- भाषा का मूल नाम: “Hod Ror” – होड़ लोगों की भाषा
- प्रकार: शुद्ध संथाली और मिश्रित संथाली
- लिपि: ओल चिकी, पंडित रघुनाथ मुर्मू द्वारा 1941 में विकसित
- संवैधानिक स्थिति: 92वें संविधान संशोधन (2003) के तहत भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल – झारखंड की एकमात्र भाषा जिसे यह दर्जा प्राप्त
- साहित्यिक व्यक्तित्व: दोमिन साहू समीर – संथाली साहित्य के भारतेंदु
- प्रमुख कृति: संथाली प्रवेशिका (1951)
- भाषा परिवार: ऑस्ट्रोएशियाटिक (मुंडा)
2. मुंडारी
- बोलने वाले: मुंडा जनजाति
- प्रमुख रूप:
- हसद मुंडारी – खूंटी और मुरहू क्षेत्र
- ताड़िया मुंडारी – तामाड़ और आस-पास
- नागरी मुंडारी – रांची व समीपवर्ती क्षेत्र
- मिश्रित मुंडारी – नागपुरी से प्रभावित
- भाषा परिवार: ऑस्ट्रोएशियाटिक (मुंडा)
3. हो
- बोलने वाले: हो जनजाति
- विशेषता: स्वतंत्र शब्दावली और ध्वन्यात्मकता
- लिपि: वरंग छिति, लाको बोडरा द्वारा विकसित
- भाषा परिवार: ऑस्ट्रोएशियाटिक
4. खड़िया
- बोलने वाले: खड़िया जनजाति
- भाषा परिवार: ऑस्ट्रोएशियाटिक (मुंडा)
5. कुड़ुख (कुरुख)
- बोलने वाले: उरांव जनजाति
- साहित्य: झारखंड की क्षेत्रीय भाषाओं में सबसे समृद्ध लेखन परंपरा
- भाषा परिवार: द्रविड़ियन
6. माल्टो / माल्टा
- बोलने वाले: सौरिया पहाड़िया, माल पहाड़िया, कुछ गोंड समूह
- विशेषता: कुड़ुख की एक उपभाषा
- भाषा परिवार: द्रविड़ियन
7. असुरी
- बोलने वाले: असुर जनजाति
- स्थिति: गंभीर रूप से संकटग्रस्त – केवल कुछ हज़ार लोग बोलते हैं
- भाषा परिवार: ऑस्ट्रोएशियाटिक
झारखंड की सादानी (गैर-आदिवासी क्षेत्रीय) भाषाएँ
8. खोरठा
- बोलचाल का क्षेत्र: हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, संथाल परगना, रांची, पलामू
- मूल: मगधी प्राकृत से विकसित
- भाषा परिवार: हिंदी-आर्य (इंडो-यूरोपीय)
- लिपि संबंध: खरोष्ठी लिपि से जुड़ाव
- साहित्य: राजाओं और रियासतों की कथाएँ
9. पंचपरगनिया
- बोलचाल का क्षेत्र: तामाड़, बुंडू, सोन्हाटू, सिली
- विषय: वैष्णव भक्ति और क्षेत्रीय चेतना का प्रतिनिधित्व
- भाषा परिवार: हिंदी-आर्य (इंडो-यूरोपीय)
10. कुर्माली / करमाली
- बोलने वाले: कुर्मी समुदाय
- बोलचाल का क्षेत्र: रांची, हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, सिंहभूम, संथाल परगना
- भाषा परिवार: हिंदी-आर्य (इंडो-यूरोपीय)
11. नागपुरी (सदरी या गणवारी)
- ऐतिहासिक भूमिका: नागवंशी शासकों की मातृभाषा
- विकास: मगधी प्राकृत से निकली
- सांस्कृतिक भूमिका: झारखंड की मुख्य संपर्क भाषा
- साहित्यकार: बेनी राम महता – नागवंशावली के लेखक
- भाषा परिवार: हिंदी-आर्य (इंडो-यूरोपीय)
12. भोजपुरी
- प्रकार:
- मानक भोजपुरी: पलामू और आस-पास
- नागपुरीया/सदरी भोजपुरी: छोटानागपुर और गैर-आदिवासी क्षेत्रों में
13. मगही
- प्रकार:
- मानक मगही: हजारीबाग, पूर्वी पलामू
- पूर्वी मगही: रांची, रामगढ़, हजारीबाग
- भाषाविज्ञान कार्य: प्रसिद्ध भाषाविद् डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा मान्यता प्राप्त
मुख्य बिंदु (Highlights for Exams):
- संथाली ही झारखंड की एकमात्र भाषा है जो संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित है।
- ओल चिकी और वरंग छिति जैसी लिपियाँ झारखंड की भाषायी विविधता को विशेष पहचान देती हैं।
- कुड़ुख भाषा का साहित्य सबसे समृद्ध माना जाता है।
- नागपुरी, झारखंड की राजभाषा Hindi के साथ मुख्य संपर्क भाषा के रूप में कार्य करती है।
- असुरी को गंभीर रूप से संकटग्रस्त भाषा के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- कई भाषाएँ जैसे खोरठा, नागपुरी, कुर्माली, आदि मगधी प्राकृत की शाखाएँ हैं।
14. अंगिका
- मान्यता: मैथिली की उपभाषा मानी जाती है
- प्रचलन क्षेत्र: संथाल परगना
- प्राचीन ग्रंथ: ललित विस्तार (6वीं शताब्दी ईस्वी) की रचना अंगिका में हुई थी
15. घुमंतू भाषा (Gypsy Language)
- बोलने वाले समुदाय: नट, मलाट, और गुलुगुला समुदाय
- स्थिति: अत्यंत सीमित उपयोग; केवल कुछ विशेष क्षेत्रों में बोली जाती है
परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण तथ्य (JPSC/JSSC):
- संथाली, झारखंड की एकमात्र भाषा है जो भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल है
- पंडित रघुनाथ मुर्मू ने ओल चिकी लिपि का निर्माण संथाली के लिए किया
- दोमन साहू समीर को संथाली साहित्य का भारतेंदु कहा जाता है
- हो भाषा की लिपि को वरंग छिति कहते हैं, जिसका निर्माण लाको बोडरा ने किया
- नागपुरी भाषा नागवंशी राजाओं की राजभाषा थी
- कई सादानी भाषाएँ जैसे खोरठा, नागपुरी, कुर्माली आदि मगधी प्राकृत से उत्पन्न हैं
झारखंड में भाषा परिवार (उदाहरण सहित):
हिंदी-आर्य (इंडो-यूरोपीय) भाषा परिवार
मुख्य भाषाएँ:
- हिंदी
- खोरठा
- पंचपरगनिया
- कुर्माली (करमाली)
- नागपुरी
द्रविड़ियन भाषा परिवार
मुख्य भाषाएँ:
- कुड़ुख (उरांव)
- माल्टो (सौरिया पहाड़िया और माल पहाड़िया जनजातियों द्वारा बोली जाती है)
ऑस्ट्रोएशियाटिक (मुंडा) भाषा परिवार
मुख्य भाषाएँ:
- मुंडारी
- संथाली
- हो
- खड़िया
झारखंड में भाषाएँ – बोलने वालों की संख्या के अनुसार
क्रम.सं. | भाषा | अनुमानित वक्ता संख्या |
---|---|---|
1. | हिंदी | 1.30 करोड़ |
2. | संथाली | 22.7 लाख |
3. | बांग्ला | 22.4 लाख |
4. | उर्दू | 14.7 लाख |
5. | मुंडारी | 6.7 लाख |
6. | हो | 6.5 लाख |
7. | कुड़ुख (कुरुख) | 6.4 लाख |
झारखंड की आधिकारिक भाषाएँ
प्राथमिक राजभाषा (Primary Official Language):
- हिंदी
द्वितीयक राजभाषाएँ (Secondary Official Languages):
(प्रशासन और सार्वजनिक सेवाओं में जनसांख्यिकी एवं सांस्कृतिक महत्त्व के आधार पर मान्यता प्राप्त)
- उर्दू
- संथाली
- बांग्ला
- उड़िया
- मुंडारी
- हो
- खड़िया
- कुड़ुख (कुरुख)
- कुर्माली (करमाली)
- खोरठा
- पंचपरगनिया
- नागपुरी
- मगही
- भोजपुरी
- मैथिली
- अंगिका
अन्य मुख्य तथ्य (JPSC, JSSC आदि परीक्षाओं के लिए)
- 2003 में, झारखंड भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा की स्थापना रांची में की गई थी
- इसका उद्देश्य था – आदिवासी और क्षेत्रीय भाषाओं की वैज्ञानिक लिपियों का विकास करना
- यह पहल स्थानीय बोलियों एवं साहित्यिक रूपों को संरक्षित करने के लिए थी
परीक्षा के लिए संक्षिप्त बिंदु (Exam Pointers):
- हिंदी, झारखंड की प्रथम राजभाषा है
- संथाली, उर्दू सहित 13 अन्य भाषाओं को द्वितीयक राजभाषा का दर्जा प्राप्त है
- संथाली, ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषा परिवार की है और संवैधानिक मान्यता प्राप्त (8वीं अनुसूची)
- कुड़ुख और माल्टो, द्रविड़ियन भाषा परिवार से हैं
- खोरठा, नागपुरी, पंचपरगनिया जैसी अधिकतर क्षेत्रीय भाषाएँ हिंदी-आर्य परिवार से आती हैं
- झारखंड भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा, स्थानीय लिपियों के वैज्ञानिक विकास के लिए वर्ष 2003 में गठित हुआ था