झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत इसकी पारंपरिक जनजातीय चित्रकलाओं एवं हस्तशिल्पों के माध्यम से स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है, जो केवल कलात्मक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि राज्य की धरोहर के महत्वपूर्ण अंग भी हैं।
सोहराय और कोहबर चित्रकलाएं, जिन्हें भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त है, से लेकर जादोपटिया स्क्रॉल आर्ट और डोकरा धातु शिल्प तक, ये कलाएं झारखंड की आदिवासी परंपराओं, विश्वासों और जीवनशैली को उजागर करती हैं।
प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण:
जेपीएससी (Jharkhand Public Service Commission) एवं जेएसएससी (Jharkhand Staff Selection Commission) जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए इन कलाओं की गहन जानकारी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि झारखंड की जनजातीय कला एवं शिल्प से संबंधित प्रश्न बार-बार पूछे जाते हैं।
इस ब्लॉग में आपको मिलेगा:
झारखंड की प्रमुख चित्रकलाओं एवं शिल्प पर आधारित एक व्यापक मार्गदर्शिका, जो उनकी विशिष्टताओं, सांस्कृतिक महत्त्व, एवं क्षेत्रीय प्रसार को रेखांकित करती है। यह न केवल परीक्षा सफलता के लिए, बल्कि सांस्कृतिक समझ के लिए भी एक आवश्यक स्रोत है।
रथ यात्रा मेला – जगन्नाथपुर (रांची)
समय: आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया; वापसी यात्रा एकादशी को
मुख्य बातें:
- ओडिशा के पुरी मंदिर की तर्ज़ पर बने ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर में मनाया जाता है।
- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियों को रथ में मौसी बाड़ी ले जाया जाता है।
- 9 दिनों तक वहां रहने के बाद “घुड़ती रथ यात्रा” नामक वापसी यात्रा होती है।
- इस दौरान भव्य मेला आयोजित होता है।
इन्द जातरा मेला – रांची
समय: कर्मा पूजा विसर्जन के बाद त्रयोदशी
मुख्य बातें:
- नागवंशी शासनकाल में सुतियाम्बे गढ़ से इसकी शुरुआत मानी जाती है।
- मदरा मुंडा को इसका संस्थापक माना जाता है।
- मेला में बड़े टोप्पर की पूजा होती है, जो गोवर्धन पर्वत का प्रतीक होता है।
- कुंवारी कन्या के चरण स्पर्श के बाद टोप्पर 9 दिनों के लिए गाड़ा जाता है और फिर पूजा होती है।
नवमी डोला मेला – तातीसिलवे (रांची)
समय: चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की नवमी
मुख्य बातें:
- राधा-कृष्ण की मूर्तियों को डोला (पालकी) में रखकर पूजा होती है।
- होली के 9 दिन बाद मनाया जाता है।
- जनजातीय कला एवं परंपराओं का प्रदर्शन होता है।
मुडमा जातरा मेला – मुडमा (रांची से 28 किमी दूर)
समय: दशहरा के 10 दिन बाद
मुख्य बातें:
- उरांव जनजाति द्वारा मनाया जाता है।
- 40 परहा के पाहान इसे आयोजित करते हैं।
- कलश स्थापना, मुर्गा बलि, जात्रा खुंटा पूजा एवं लोकनृत्य होते हैं।
- 30 फीट लंबा लकड़ी का लठ्ठा (राम चम्पा) एक व्यक्ति के कंधे पर उठाता है – यह प्रमुख आकर्षण है।
मंड़ा मेला – हजारीबाग, रामगढ़, बोकारो
समय: वैशाख, जेठ, आषाढ़ माह में
मुख्य बातें:
- भक्त नंगे पांव अंगारों पर चलते हैं – आस्था की परीक्षा।
- रातभर जागरण होता है और अगले दिन मेला लगता है।
- भगवान शिव को समर्पित मेला।
सूरजकुंड मेला – हजारीबाग
समय: मकर संक्रांति के बाद 10 दिन
मुख्य बातें:
- सूरजकुंड के गर्म जलकुण्ड के पास होता है, जिसे औषधीय माना जाता है।
नरसिंह स्थान मेला – हजारीबाग
समय: कार्तिक पूर्णिमा
मुख्य बातें:
- नरसिंह स्थान मंदिर पर आधारित शहरी मेला।
हथिया पत्थर मेला – फुसरो (बोकारो)
समय: मकर संक्रांति
मुख्य बातें:
- हाथी के आकार के पौराणिक पत्थर के नाम पर नामकरण।
- स्नान व पूजा होती है।
कुंडा मेला – प्रतापपुर (चतरा)
समय: फाल्गुन माह की शिवरात्रि
मुख्य बातें:
- पशु मेला – खासकर पशुओं की खरीद-फरोख्त।
चापरी मेला – बरवाडीह (लातेहार)
समय: पौष द्वितीया से शुरू होकर 2 दिन
मुख्य बातें:
- दुर्जगिन देवी की पूजा की जाती है।
भूत मेला – हैदरनगर (पलामू)
समय: चैत्र माह की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक (15 दिन)
मुख्य बातें:
- देविदाम परिसर में आयोजित होता है।
- ओझाओं द्वारा भूत-प्रेत हटाने की विधि का प्रदर्शन होता है।
रामरेखा धाम मेला – सिमडेगा (★)
समय: कार्तिक पूर्णिमा से 3 दिन
मुख्य बातें:
- मान्यता: भगवान राम ने वनवास के दौरान यहां निवास किया था।
- झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और एमपी से श्रद्धालु आते हैं।
बुधई मेला – देवघर
समय: अगहन माह की शुक्ल पक्ष पंचमी
मुख्य बातें:
- नवान पर्व के बाद मनाया जाता है।
- बुधेश्वरी मंदिर की पूजा होती है।
श्रावण / सावन मेला – बैद्यनाथ धाम, देवघर (★)
समय: पूरे श्रावण मास
मुख्य बातें:
- श्रद्धालु जल चढ़ाते हैं बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर – 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक।
- दुनिया का सबसे बड़ा मानव मेला।
हिजला मेला – दुमका (★)
समय: वसंत ऋतु (फरवरी–मार्च) – 1 सप्ताह
मुख्य बातें:
- मयूराक्षी नदी तट पर आयोजित होता है।
- 1890 में कमिश्नर कास्टेयर ने आरंभ किया।
- 1975 में जीआर पटवर्धन ने “जनजातीय” जोड़ा।
- 2008 में इसे उत्सव, और 2015 में राज्य मेला घोषित किया गया।
- अब मनाया जाता है – राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव के रूप में।
नुनबिल मेला – केन्द्र घाट (दुमका)
समय: मकर संक्रांति के समय एक सप्ताह
मुख्य बातें:
- पहाड़िया जनजाति का प्रमुख मेला
- नुनबिल गर्म जलकुण्ड में स्नान व जुंबूदी देवी की पूजा।
करमडाहा मेला – जामताड़ा
समय: मकर संक्रांति के समय 15 दिन
मुख्य बातें:
- बाबा नहखरान (शिव मंदिर) में आयोजित होता है।
- परंपरा 17वीं शताब्दी से चली आ रही है।
लंगटा बाबा मेला – खरकडीह (गिरिडीह) (★)
समय: पौष पूर्णिमा
मुख्य बातें:
- लंगटा बाबा, एक संत – हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक।
- हिन्दू समाधि की पूजा करते हैं, मुस्लिम चादर चढ़ाकर फातिहा पढ़ते हैं।
परीक्षा-दृष्टि से प्रमुख मेले (★ सारणी तालिका):
मेला | स्थान | तिथि | विशेषता |
---|---|---|---|
रथ यात्रा मेला | जगन्नाथपुर, रांची | आषाढ़ (द्वितीया & एकादशी) | जगन्नाथ की रथ यात्रा |
इन्द जातरा मेला | रांची | कर्मा पूजा के बाद | टोप्पर अनुष्ठान, जनजातीय मूल |
मुडमा जातरा मेला | रांची | दशहरा के बाद | जनजातीय पूजा, मुर्गा बलि |
मंड़ा मेला | हजारीबाग, आदि | वैशाख–आषाढ़ | अंगारों पर चलना |
रामरेखा मेला (★) | सिमडेगा | कार्तिक पूर्णिमा | भगवान राम का निवास स्थल |
श्रावण मेला (★) | देवघर | श्रावण मास | ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक |
हिजला मेला (★) | दुमका | फरवरी–मार्च | जनजातीय मेला – सरकारी मान्यता |
लंगटा बाबा मेला (★) | गिरिडीह | पौष पूर्णिमा | हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक |
झारखंड की समृद्ध चित्रकला और शिल्प परंपरा
झारखंड, जो अपनी विविध जनजातीय संस्कृति और विरासत के लिए जाना जाता है, प्राचीन और अद्वितीय चित्रकला एवं हस्तशिल्प परंपराओं का धनी राज्य है। ये कला रूप न केवल सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता भी प्राप्त कर चुके हैं।
झारखंड की पारंपरिक चित्रकलाएं
1. जादोपटिया चित्रकला
- अर्थ: जादो (चित्रकार) और पटिया (कागज़ या कपड़े के छोटे टुकड़े) का संयोग।
- तकनीक: छोटे-छोटे कागज़ के टुकड़ों को जोड़कर 15 से 20 फीट लंबे पैनल बनाए जाते हैं।
- एक पैनल में 4 से 16 चित्र होते हैं।
- रंग: प्रमुख रंग – लाल, हरा, पीला, भूरा, काला।
- विषयवस्तु: बाघ देवता और मृत्यु के बाद जीवन से जुड़े दृश्य।
- सांस्कृतिक संदर्भ: संथाल जनजाति द्वारा प्रचलित।
- प्रसिद्ध क्षेत्र: दुमका और जामताड़ा ज़िले में विशेष प्रसिद्धि।
- महत्वपूर्ण तथ्य: इस कला के कलाकारों को संथाली भाषा में “जादो” कहा जाता है।
2. सोहराय चित्रकला
- सम्बंध: सोहराय पर्व से जुड़ी हुई।
- कब बनाई जाती है: वर्षा ऋतु के बाद, जब घरों की सफाई और रंगाई की जाती है।
- प्रस्तुति: प्रजापति या पशुपति (पशुओं के देवता) को सांड की पीठ पर खड़े हुए दिखाया जाता है।
- मुख्य शैलियां: ‘मांझू सोहराय’ और ‘कुर्मी सोहराय’।
- प्रसिद्ध क्षेत्र: हजारीबाग जिला।
- मान्यता: इस कला को 2020 में भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त हुआ – झारखंड की पहली कला जिसे GI टैग मिला।
- आवेदनकर्ता संस्था: सोहराय कला विकास सहयोगी समिति, हजारीबाग।
3. कोहबर चित्रकला
- अर्थ: कोहबर का अर्थ – विवाहित जोड़े का गुफानुमा निवास स्थान।
- कला रूप: विवाहित महिलाएं इसे अपने पति के घर की दीवारों पर बनाती हैं।
- डिजाइन: ज्यामितीय पैटर्न, फूल, पत्ते, पेड़ और मानव आकृतियां (स्त्री-पुरुष)।
- समुदाय: मुख्यतः बिरहोर जनजाति द्वारा प्रचलित।
- विषयवस्तु: सिकी देवी का चित्रण प्रमुख।
- मान्यता: इस कला को भी 2020 में GI टैग मिला।
4. गंजू चित्रकला
- विषयवस्तु: जंगली और पालतू पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों के चित्र।
- उद्देश्य: संस्कृति में पशुओं की भूमिका को दर्शाना, विशेष रूप से संकट की स्थिति में।
5. paitkar (पैटकर) चित्रकला
- प्रसिद्ध स्थान: सिंहभूम का आमडुबी गांव – जिसे “चित्रों का गांव” कहा जाता है।
- दूसरा नाम: झारखंड की स्क्रॉल पेंटिंग।
- ऐतिहासिक महत्व: सबसे प्राचीन जनजातीय चित्रकलाओं में एक।
- शुरुआत: कहा जाता है कि इसकी शुरुआत सबर जनजाति ने की थी।
- प्रसंग: इसका उल्लेख गरुड़ पुराण में भी मिलता है।
- प्रसार: बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल तक फैली।
- विषय: जनजातीय कहानियां, स्थानीय रीति-रिवाज, मृत्यु के बाद जीवन इत्यादि।
6. राणा, तेली और प्रजापति चित्रकला
- प्रयोगकर्ता: ये तीन उप-जातियां इस चित्रकला को अपनाती हैं।
- विषय: पशुपति (भगवान शिव) को वनस्पतियों और पशुओं के देवता के रूप में दर्शाया जाता है।
- तकनीक: धातु के तारों का उपयोग।
7. भित्ति चित्रकला (Wall Painting)
- स्थान: घर की दीवारों पर बनाई जाती है।
- शैली: ज्यामितीय प्रतीकों का उपयोग।
- ऐतिहासिक सन्दर्भ: W.C. Archer ने 1940 में पत्रिका Vertical Man में वर्णन किया।
- सांस्कृतिक मान्यता: संथाल इसे अपने प्राचीन क्षेत्र “चाई-चंपागढ़ (हजारीबाग)” से जोड़ते हैं।
- प्रसिद्ध क्षेत्र:संथाल परगना और छोटानागपुर।
- संथाल परगना: चित्रों में प्राचीनता और उभरे हुए पैटर्न।
- छोटानागपुर: आधुनिक शैली, चमकदार रंग, सपाट सतह।
8. भूसे की चित्रकला (Straw Art Painting)
- नवाचार: झारखंड में विकसित नई कला विधा।
- तकनीक: धान के भूसे (पुआल) को कैनवास की तरह उपयोग किया जाता है।
- भूसा को समतल और हीट-ट्रीट करने के बाद उस पर चित्र बनाए जाते हैं।
- चित्र को काटकर काले रंग की पृष्ठभूमि पर चिपकाया जाता है।
9. बैद्यनाथ चित्रकला
- उत्पत्ति: बैद्यनाथ धाम मंदिर के आसपास विकसित हुई।
- विषयवस्तु: कांवड़ यात्रा, शिवरात्रि, रुद्राभिषेक जैसी परंपराओं का चित्रण।
- प्रवर्तक: नरेंद्र पंजियारा – जिन्होंने 2016 में “कार्टूनिस्ट ऑफ द ईयर” पुरस्कार प्राप्त किया।
शैक्षणिक तथ्य:
जादोपटिया और पैटकर चित्रकलाएं रांची विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट्स पाठ्यक्रम में शामिल हैं।
कोहबर और सोहराय चित्रकला में अंतर:
पक्ष | कोहबर चित्रकला | सोहराय चित्रकला |
---|---|---|
मुख्य चित्रण | देवी सिकी, स्त्री-पुरुष संबंध | प्रजापति या पशुपति (पशुओं के देवता) |
विषयवस्तु | ज्यामितीय आकृतियां, फूल, मानव चित्र | जंगली जानवर, पक्षी, पौधे |
समुदाय | बिरहोर जनजाति | संथाल जनजाति |
झारखंड की पारंपरिक शिल्पकला (हस्तशिल्प)
डोकरा कला (धातु शिल्प)
- महत्त्व: यह झारखंड की संस्कृति का प्राचीन और महत्वपूर्ण हस्तशिल्प है।
- स्थानीय नाम: “सीरे पेड़ू” या “ढड़वा (गढ़वा)”।
- तकनीक: प्राचीन “लॉस्ट-वॉक्स कास्टिंग” (cire perdue) तकनीक का उपयोग।
- सामग्री: तांबा, जिंक, टिन, और अन्य धातु मिश्रधातुएं।
- उत्पाद: मूर्तियां, बर्तन, कृषि उपकरण जैसे पदला (धान मापने का उपकरण)।
- ऐतिहासिक संदर्भ: मोहनजोदड़ो में मिली प्रसिद्ध कांस्य नृत्यांगना इसी तकनीक का उदाहरण है।
- समुदाय: मालेर जाति से जुड़ा हुआ।
- प्रमुख केंद्र: झारखंड के 5 डोकरा क्लस्टर –
- हजारीबाग
- रामगढ़
- दुमका
- खूंटा
- पूर्वी सिंहभूम
- रांची का बुंडू क्षेत्र भी डोकरा कारीगरों के लिए प्रसिद्ध।
- सरकारी सहायता: झारखंड सरकार के हथकरघा निदेशालय द्वारा कलामंदिर (जमशेदपुर) के साथ मिलकर इस कला को बढ़ावा दिया जा रहा है।
मुखौटा शिल्पकला (Mask Craft)
- केंद्र: मुख्यतः पूर्वी सिंहभूम में विकसित।
- प्रयोग: सरायकेला-खरसावां में होने वाले छऊ नृत्य के लिए मुखौटे आवश्यक होते हैं।
- सामग्री: मिट्टी से बनाए जाते हैं और कागज से सजाए जाते हैं।
- शिल्पकार: इन्हें महापात्र, महाराणा, या सुतरधार कहा जाता है।
कांशी घास की शिल्पकला (Kashi Grass Craft)
- क्षेत्र: संथाल परगना में लोकप्रिय।
- उत्पाद: घरेलू उपयोगी वस्तुएं और घास से बने खिलौने।
- मौसमी उपयोग: विशेषतः वर्षा ऋतु में प्रयोग किया जाता है।
- उदाहरण: सुबई नामक जंगली घास से बने कटोरे।
बांस की शिल्पकला (Bamboo Craft)
- शिल्पकार: मुख्य रूप से माहली जनजाति, जो टोकरी बुनाई में निपुण होती है।
- अन्य समुदाय: बिरहोर, गोंड, और पहाड़िया जनजाति भी बांस की वस्तुएं बनाते हैं।
- विशेष वस्तु: झारखंड में बांस की छतरियां, जिन्हें “चाटोम” कहा जाता है।
- अतिरिक्त तथ्य: गुंगू के पत्तों से बनी छतरियों को “चुकरी” कहा जाता है।
अतिरिक्त महत्वपूर्ण तथ्य (Additional Important Facts)
- 2021 में, भारतीय डाक विभाग ने सोहराय और कोहबर चित्रकला वाले लिफाफे जारी किए।
- प्रसिद्ध झारखंडी चित्रकार:
- ललित मोहन राय (दुमका):
- दुमका स्कूल ऑफ आर्ट्स के संस्थापक।
- उनकी कलाकृतियां पटना म्यूजियम, दुमका म्यूजियम, और संथाल डांस आर्ट सेंटर में संरक्षित हैं।
- उन्हें 1970 में “कलाश्री” और 2015 में झारखंड सरकार द्वारा “राष्ट्रीय शिखर सम्मान” मिला।
- हरेंद्र ठाकुर:
- झरिया में जन्मे, रांची के रॉक गार्डन, श्रीकृष्ण पार्क, और रांची रेलवे स्टेशन में चित्रों के लिए प्रसिद्ध।
- जल संकट विषय पर उनकी चित्रकला प्रसिद्ध है।
- ललित मोहन राय (दुमका):
- डोकरा कला की मान्यता:
- तेलंगाना के आदिलाबाद को डोकरा कला के लिए GI टैग प्राप्त हुआ है।
- झारखंड की जनजातीय हस्तशिल्प वस्तुएं:
- कांकी कंघी और हार, जिन्हें पहाड़िया जनजाति बनाती है।