“झारखंड का प्राचीन इतिहास: छोटानागपुर की जनजातियाँ, वंश, धर्म और सांस्कृतिक विकास | JPSC/JSSC के लिए महत्वपूर्ण नोट्स”

1. प्रागैतिहासिक काल

  • छोटानागपुर का प्राकृतिक आवरण:
    प्रागैतिहासिक काल में छोटानागपुर घने जंगलों से आच्छादित था, परंतु यह क्षेत्र बाहरी दुनिया से पूरी तरह अलग नहीं था। इसकी भौगोलिक स्थिति ने इसे विशेष लाभ प्रदान किया — कैमूर और विंध्य पर्वत शृंखलाओं ने इसे उत्तर दिशा से होने वाले आक्रमणों से सुरक्षा दी।
  • प्रमुख खोजें और संस्कृतियाँ:
    • मानगोविंद बनर्जी के अनुसार, सिंधु घाटी और छोटानागपुर पठार की पुरातात्विक खोजों में गहरी समानता है। इससे संकेत मिलता है कि छोटानागपुर क्षेत्र प्रागैतिहासिक असुरों के समय से पहले ही चालकोलिथिक संस्कृति (ताँबे-पत्थर युग) में प्रवेश कर चुका था।
    • तांबे की कुल्हाड़ियाँ राँची, पलामू और मानभूम जिलों में पाई गई हैं। पटना संग्रहालय में भी इनके नमूने सुरक्षित हैं।
    • भूगर्भ वैज्ञानिक जे. काग्गिन ब्राउन ने 1915 में गुमला (बसिया) और पलामू (हा गाँव) में शोध किया था।
  • प्राचीन जनजातियाँ:
    • प्रारंभिक जनजातियाँ: खड़िया, बिरहोर, असुर।
    • बाद की जनजातियाँ: मुण्डा, उरांव।
    • मध्यवर्ती जनजातियाँ: कोरवा।
    • अन्य: चैरो, खेरवार, भूमिज, संथाल आदि परवर्ती काल के हैं।
  • जनजातीय प्रवास और उत्पत्ति:
    • खड़िया और बिरहोर संभवतः कैमूर की पहाड़ियों के रास्ते छोटानागपुर आए थे।
    • मुण्डा जनजाति की उत्पत्ति के दो मत हैं:
      1. उत्तर प्रदेश और मध्य भारत से आर्यों के आगमन के बाद विस्थापन।
      2. तिब्बत से बिहार होते हुए छोटानागपुर में आगमन।
    • उरांव संभवतः दक्षिण भारत के निवासी थे; उनकी भाषा में तमिल-कन्नड़ से समानता मिलती है।

2. आरंभिक ऐतिहासिक काल

  • प्रमुख आरंभिक जनजातियाँ:
    भूमिज और संथाल की मिली-जुली जनसंख्या लाखों में थी। आर्य इन जनजातियों को ‘अदर्शनीय’, ‘अमानवीय’, ‘स्वान पूजक’ आदि कहते थे।
  • छोटानागपुर में जनजातीय वितरण:
    • मुण्डा और उरांव: छोटानागपुर खास।
    • हो जनजाति: सिंहभूम।
    • भूमिज: मानभूम।
    • बिरजिया: पलामू।

3. बौद्ध धर्म का प्रभाव

  • प्रसार:
    झारखण्ड क्षेत्र में बौद्ध धर्म के कई अवशेष मिलते हैं:
    • धनबाद (दालमी, बुद्धपुर)।
    • राँची (खूँटी के पास बेलवादाग)।
    • गुमला (बानो, कुटगा ग्राम)।
    • जमशेदपुर (पतम्बा ग्राम, भूला स्थान)।
    • अन्य स्थान: ईचागढ़, जोन्हा जलप्रपात आदि।
  • विशेष उल्लेख:
    • मौर्य सम्राट अशोक के अभिलेखों (शिलालेख 2 और 13) में छोटानागपुर क्षेत्र का उल्लेख ‘आटवी’ या ‘आटवा’ के रूप में मिलता है।
    • समुद्रगुप्त और कलिंग के खारवेल जैसे सम्राटों ने इस क्षेत्र से होकर अभियानों का संचालन किया।
    • ह्वेनसांग ने संथाल परगना (राजमहल क्षेत्र) का वर्णन किया है।
    • शशांक के शासनकाल में बौद्ध धर्म का दमन हुआ और हिन्दू धर्म का प्रभुत्व स्थापित हुआ।

4. जैन धर्म का प्रभाव

  • पार्श्वनाथ का निर्वाण:
    गिरिडीह जिले की पार्श्वनाथ पहाड़ी पर 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व में 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का निर्वाण हुआ।
  • प्रमुख जैन स्थल:
    पाकबीरा, तुईसामा, देवली, पवनपुर, पलमा, चर्रा, गोलमारा, कुसाई नदी का तट, और पालमा।
  • स्रोत:
    • कर्नल डाल्टन और डेविड मकटासियन ने पाकवीरा और कुसाई नदी तट पर जैन मूर्तियों की खोज की थी।

5. प्रारंभिक राजवंश और राजनीतिक विकास

  • नागवंश की स्थापना:
    • नागवंश का संस्थापक भीमकर्ण माना जाता है।
    • कोराम्बे में वासुदेव मंदिर का निर्माण भी इसी काल का है।
  • रक्सैल वंश:
    • सरगुजा और पलामू क्षेत्र में शासन किया।
    • बाद में चेरो जनजाति ने इन्हें अपदस्थ किया।
  • चेरो वंश:
    • सम्भवत: भार जनजाति की शाखा थे।
    • फ्रांसिस बुकानन के अनुसार, वे “सुनक परिवार” के सदस्य थे।
    • पलामू में चेरो वंश का शासन स्थापित हुआ।
  • खरवार वंश:
    • खयाखाल राजवंश के प्रताप धवल ने जपला क्षेत्र में शासन किया।
    • उनकी राजधानी शाहाबाद के खयारगढ़ में थी।
  • मुण्डा राज्य गठन:
    • सुतना पाहन ने “सुतियानागखण्ड” राज्य की स्थापना की।
    • सात गढ़ों में राज्य विभक्त किया गया:
      1. लोहागढ़ (लोहरदगा)
      2. हजारीबाग
      3. पालुनगढ़ (पलामू)
      4. सिंहगढ़ (सिंहभूम)
      5. केसलगढ़
      6. सुरमुगगढ़ (सुरगुजा)
      7. मानगढ़ (मानभूम)
    • इन्हें 21 परगनों में बांटा गया था, जैसे: ओमदंडा, दोइसा, खुखरा, बेलसिंग, तमाड़, लोहारडीह आदि।

नोट्स:

  • बौद्ध धर्म के पतन के बाद हिन्दू धर्म और जैन धर्म का प्रभाव बढ़ा।
  • दशमी शताब्दी तक छोटानागपुर क्षेत्र में हिन्दू धर्म का पूर्ण प्रभुत्व स्थापित हो गया था।
  • पाल वंशीय शासकों ने भी इस क्षेत्र में काफी प्रभाव डाला।

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