
रघुनाथ शाह (लगभग 1658–1690)
- औरंगज़ेब के शासनकाल के अधिकांश समय में शासक रहे; धार्मिक और दानशील स्वभाव के लिए प्रसिद्ध।
- गुरु हरिनाथ से प्रेरणा लेकर रघुनाथ शाह ने अपने नाम में “नाथ” जोड़ा और उन्हें गुरु माना।
- इस समय से नागवंशी शासकों ने अपने नामों में “नाथ” और “शाह” दोनों का प्रयोग करना शुरू किया।
- राजधानी: डोईसा मुख्यालय बना रहा।
वास्तुकला में योगदान:
- डोईसा में मंदिर बनवाए, विशेष रूप से जगन्नाथ मंदिर (संवत 1739 / 1682 ई.)
- बोरिया गाँव में मदनमोहन मंदिर बनवाया (संवत 1722 / 1665 ई.)
- चुटिया में मंदिर, जिनमें हरि ब्रह्मचारी द्वारा बनाया गया राम-सीता मंदिर (1685)
- यह युग समृद्धि और मुग़ल हस्तक्षेप की कमी से चिह्नित था।
संघर्ष:
- चेरो परंपराओं के अनुसार, पलामू के मेदिनीराय ने डोईसा पर आक्रमण किया और लूटपाट की; कथित रूप से एक बड़ा पत्थर का दरवाज़ा लाया गया, जिसे अब पलामू में नागपुर गेट कहा जाता है (संभवत: अतिरंजित कथा)।
यदुनाथ शाह (लगभग 1690–1724)
- रघुनाथ शाह के उत्तराधिकारी; लगभग 25 वर्ष शासन किया।
- कपिलनाथ मंदिर के शिलालेख (1710 ई.) से इनके शासन की पुष्टि होती है।
- मुग़लों (औरंगज़ेब) से संबंध सौहार्दपूर्ण रहे।
- 1692 ई. में उड़ीसा सूबा के माध्यम से मुग़लों को ₹9,705 की राजस्व राशि दी।
आंतरिक मामलों के बारे में कम जानकारी उपलब्ध है।
- संभवतः 9–10 वर्षों तक शासन किया; ऊर्जावान शासक के रूप में वर्णित।
- औरंगज़ेब के बाद मुग़ल अस्थिरता का लाभ उठाकर कर देना बंद कर दिया।
- संभवतः 1719 में पलामू के रंजीत राय ने रामगढ़ की मदद से परगना टोरी छीन लिया।
1717 ई.: बिहार के गवर्नर सरबुलंद ख़ान द्वारा मुग़ल अभियान का सामना किया।
- यदुनाथ शाह ने बिना प्रतिरोध के आत्मसमर्पण किया।
- ₹1,00,000 का नजराना अदा किया (₹45,000 नकद, शेष हीरे में)।
- संभवतः सुरक्षा कारणों से राजधानी को डोईसा से पालकोट स्थानांतरित किया गया।
- 1724 ई. में मृत्यु; 12 पुत्र थे, जिनमें शिवनाथ शाह उत्तराधिकारी बने।
शिवनाथ शाह (1724–1733)
- यदुनाथ शाह के ज्येष्ठ पुत्र।
- शासन के पहले छह वर्ष शांतिपूर्ण रहे।
- इस समय छोटा नागपुर पर मुग़ल नियंत्रण न्यूनतम था।
🟫 उदयनाथ शाह (1733–1740)
- शिवनाथ शाह के उत्तराधिकारी बने।
इस अवधि की प्रमुख विशेषताएं:
- 1733 में अलीवर्दी ख़ान को बिहार का डिप्टी गवर्नर नियुक्त किया गया।
- 1734 में अलीवर्दी ने टेकारी के ज़मींदार के विरुद्ध अभियान चलाया; छोटा नागपुर के निकट पहुंचे।
- रामगढ़ के प्रमुख बिषुण सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया और शायद उदयनाथ शाह की ओर से कर अदा करने का वादा किया।
- 1734 के बाद, 1740 तक कोई प्रमुख घटना दर्ज नहीं की गई।
नागवंशी और मराठा संपर्क (1740–1765)
- श्यामसुंदर नाथ शाह (1740 ई.) का शासन छोटा नागपुर के इतिहास में नए युग की शुरुआत मानी जाती है।
मराठा आक्रमण (1742–1751 ई.):
- श्यामसुंदर के शासन में मराठा घुसपैठ शुरू हुई और 19वीं सदी की शुरुआत तक जारी रही।
- भास्कर पंडित ने 1742 में छत्तीसगढ़ के रास्ते छोटा नागपुर में प्रवेश किया, बंगाल की ओर जाते समय।
- ग्रांट डफ के अनुसार, मराठा सेना रामगढ़ के पास पहुंची और पचेट (आधुनिक रानीगंज क्षेत्र) पर हमला किया।
मराठा मार्ग:
- रांची के घने जंगलों से गुज़रता था, विशेषकर गुमला और बुरवा से।
- कटवा में हार के बाद भास्कर पंडित रामगढ़ होते हुए भागे, लेकिन अलीवर्दी ख़ान के दबाव और कठिन भू-भाग के कारण उड़ीसा के रास्ते लौटे।
मराठा बैरागी (साधु-दस्यु):
- भास्कर के लौटने के बाद भी लघु छापेमारी करते रहे; अलीवर्दी ख़ान ने उनका पीछा कर रामगढ़ तक खदेड़ा।
रघुजी भोंसले का बंगाल अभियान (1743 ई.):
- भास्कर के पहले के मार्ग का अनुसरण किया।
- पेशवा बाजीराव द्वारा पीछा किए जाने पर नागपुर भाग गए।
- पेशवा ‘बेदूगढ़’ से गुज़रे, जो शायद आधुनिक रामगढ़ नहीं है।
मराठा प्रभाव:
- बार-बार की मराठा गतिविधियों ने छोटा नागपुर में मुग़ल प्रभुत्व को कमजोर कर दिया।
- 31 अगस्त 1743: पेशवा और रघुजी के बीच समझौता हुआ; छोटा नागपुर रघुजी के क्षेत्र में आया।
- मराठा दबाव नागवंशी क्षेत्रों पर 1800 के दशक की शुरुआत तक जारी रहा।
नागवंशी शासकों की कालानुक्रमिक सूची (1740–1790):
- श्यामसुंदर नाथ शाह (1740–1745): निःसंतान मृत्यु।
- बलराम नाथ शाह (1745–1748): श्यामसुंदर के छोटे भाई।
- मणिनाथ शाह (1748–1762): बलराम के पुत्र, 14 वर्षों तक शासन।
- नागवंशी सत्ता का पुनः समेकन किया।
- बंडू, सिल्ली, बारवा, राहे, तामाड़ जैसे स्थानीय मुखियाओं को वश में किया, जिन्होंने नजराना देना शुरू किया और नागवंशी को अपने अधिपति के रूप में मान्यता दी।
- दृपनाथ शाह (1762–1790): नृपनाथ शाह के पुत्र, मणिनाथ शाह के चचेरे भाई।
इस काल की विशेषताएं:
- मुग़ल प्रभाव का पतन
- मराठा आक्रमण जारी
- स्थानीय अशांति
- छोटा नागपुर में अंग्रेज़ों की प्रवेश
1765 तक: छोटा नागपुर को बिहार के राजस्व अभिलेखों में “विखंडित क्षेत्र” के रूप में दर्ज किया गया।
- मीर क़ासिम (1760–63) के शासन में, पलामू, रामगढ़ और खरगडीहा से होने वाले आक्रमणों से बीरभूम की रक्षा की गई।
- नागवंशी वास्तव में स्वतंत्र हो गए थे और आसपास के क्षेत्रों पर छापे मारने लगे थे।
यह समृद्ध ऐतिहासिक विवरण औरंगज़ेब के शासनकाल में मुग़ल-चेरो संघर्ष को दर्शाता है, विशेष रूप से दाऊद ख़ान कुरैशी द्वारा पलामू के चेरो शासक मेदिनी राय के विरुद्ध चलाए गए अभियान को। नीचे इस विवरण का सारांश प्रस्तुत है:
पृष्ठभूमि और प्रस्तावना
- चेरो, मेदिनी राय के नेतृत्व में, लंबे समय से मुग़ल सत्ता का विरोध कर रहे थे, कर नहीं चुकाते थे और आस-पास के इलाकों में लूटपाट करते थे।
- मेदिनी राय, महत्वाकांक्षी और विद्रोही थे, जिन्होंने कोकराह जैसे इलाकों पर हमला किया और डोईसा से पत्थर का द्वार उठाकर पलामू लाए, जिसे अब नागपुर गेट कहा जाता है।
- न्यू पलामू किला बनवाकर चेरो रक्षा को सुदृढ़ किया गया।
औरंगज़ेब की प्रतिक्रिया
- सिंहासन पर आते ही औरंगज़ेब ने चेरो विद्रोह को गंभीरता से लिया।
- बिहार के गवर्नर दाऊद ख़ान को आदेश दिया कि पलामू को अधीन करें, बकाया कर वसूलें और आवश्यकता पड़ने पर क्षेत्र पर अधिकार कर लें।
प्रारंभिक गतिविधियां:
- दाऊद ख़ान के साथ अन्य मुग़ल अधिकारी और स्थानीय सहयोगी शामिल हुए, जिनमें कोकराह के नागवंशी शासक भी थे (संभवत: बदले की भावना से)।
- प्रमुख मुग़ल कमांडरों में मिर्ज़ा ख़ान, तहव्वुर ख़ान, शेख ततार और राजा बहरोज़ शामिल थे।
- अभियान की शुरुआत कोठी पर कब्ज़े से हुई, फिर कुंडा, जहाँ के प्रमुख चुन राय ने आत्मसमर्पण किया, परंतु बाद में अपने भाई सुरवर राय द्वारा मार डाले गए, जो मेदिनी राय के इशारे पर हुआ।
पलामू की घेराबंदी:
- दाऊद ख़ान ने मेदिनी राय द्वारा दिए गए नजराना और बातचीत को ठुकरा दिया।
- दोनों पक्षों ने खाई और मिट्टी की दीवारें बनाईं।
- तीव्र तोपबारी हुई, जिसमें दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ। चेरो ने भू-भाग का लाभ उठाया, लेकिन तकनीकी रूप से कमजोर थे।
- मेदिनी राय की कूटनीति और प्रतिरोध असफल रहे, विशेषकर एक शाही कारवां को रोकने के बाद, जिससे मुग़ल आक्रामकता और बढ़ी।
ओरंगा नदी की लड़ाई:
- मुग़ल सेना ने तीन ओर से हमला किया, चेरो पहले निचले किले और फिर ऊपरी किले में पीछे हटे।
- तीव्र प्रतिरोध के बावजूद किले जीत लिए गए।
- मेदिनी राय जंगल में भाग निकले; अधिकांश सेना मारी गई, पकड़ ली गई या बिखर गई।
परिणाम:
- अभियान मुग़ल जीत के साथ समाप्त हुआ:
- दोनों पलामू किले अधिग्रहित।
- मंदिर नष्ट किए गए, इस्लामी प्रथाएं लागू की गईं।
- चेरो राज्य कमजोर हुआ, परंतु पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ।
ऐतिहासिक महत्व:
- यह घटना औरंगज़ेब की आक्रामक सीमावर्ती नीति का उदाहरण है।
- मेदिनी राय प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में उभरते हैं, वहीं दाऊद ख़ान की मुहिम शाही दृढ़ता को दर्शाती है।
- यह संघर्ष पहाड़ी किलों, जनजातीय प्रतिरोध और शाही सैन्य अनुशासन के मध्य रणनीतिक द्वंद्व को प्रकट करता है।
1. मुग़ल अभियान और मेदिनी राय की पुनर्स्थापना (1658–1674)
- औरंगज़ेब के बिहार गवर्नर: दाऊद ख़ान के बाद 1665 में यदगर बेग (जन निसार ख़ान / लश्कर ख़ान) बने। पलामू सीधे बिहार के अधीन हुआ।
मेदिनी राय की वापसी:
- 1666 में मनक़ली ख़ान के स्थानांतरण के बाद, मेदिनी राय ने निर्वासन (सरगुजा) से लौटकर नियंत्रण प्राप्त किया। उनका शासन (1674 तक) पलामू का स्वर्ण युग माना जाता है।
सुधार और समृद्धि:
- कृषि पुनरुत्थान, करों की समाप्ति, और जनकल्याण को बढ़ावा देने के लिए सराहे जाते हैं। लोक स्मृति में उन्हें करुणामय और न्यायप्रिय माना गया है।
2. निरंतर मुग़ल पर्यवेक्षण और स्थानीय शासन (1674–1707)
चेरो उत्तराधिकार:
- रुद्र राय (1674–1680), दृकपाल राय (लगभग 1697 तक), साहब राय (1716 तक)।
मुग़ल अनुदान:
- 1661 में अनिरुद्ध राय को ग्राम उंटारी लखराज जागीर के रूप में दिया गया; 1667 में उनके पुत्र निरहर देव को पुष्टि हुई।
- बिहारी दास द्वारा लगभग ₹16,637 का कर भुगतान जैसे समझौते, पलामू के आंशिक रूप से मुग़ल राजस्व नेटवर्क में शामिल होने को दर्शाते हैं।
साहब राय और कर रोक:
- औरंगज़ेब के बाद, साहब राय ने कर देना बंद कर दिया; इससे मुग़ल प्रभाव की गिरावट स्पष्ट होती है।
3. क्षेत्रीय चुनौतियाँ और चेरो पतन (1716–1740 के दशक)
रंजीत राय का शासन (1716–1722):
- मुग़ल सत्ता के प्रति विद्रोही; रामगढ़ की सहायता से अस्थायी रूप से टोरी पर अधिकार कर लिया।
चेरो गृहयुद्ध और जयकृष्ण राय का उदय:
- बाबुआन गुट ने रंजीत राय को हटाया। जयकृष्ण राय दीवान अमर सिंह ठाकुराई की सहायता से शासक बने।
आक्रमण और कर संधियाँ:
- सरबुलंद ख़ान का अभियान (फर्रुख़सियर के अंतर्गत)।
- फखरुद्दौला का 1730 में आक्रमण, जिसे स्थानीय छापामार रणनीति से रोका गया।
- अलीवर्दी ख़ान का दंडात्मक अभियान (1734) चेरो को और कमजोर करता है।
4. अंतिम मुग़ल हस्तक्षेप और मराठा दबाव (1740–1765)
अंतिम मुग़ल अभियान:
- हिदायत अली ख़ान का 1740 का अभियान आखिरी सीधा हस्तक्षेप था। वार्षिक किराया ₹5,000 तय किया गया।
मराठा घुसपैठ:
- बालाजी राव शायद पलामू से गुज़रे (1743); मराठा उपस्थिति की झलक गांवों के नामों (मरहटिया, पेशका) से मिलती है।
- सरगुजा, जो भोंसलों के अधीन था, दक्षिण से नियमित रूप से आक्रमण करता रहा।
5. अधिकार का विघटन और ब्रिटिश अवसर (1750 के दशक–1765)
मुग़ल अनुदान बनाम स्थानीय स्वायत्तता:
- सम्राट मुहम्मद शाह ने जापला और बेलौंजा को हिदायत अली ख़ान को प्रदान किया, परंतु स्थानीय राजपूत (सोनपुरा) विरोध प्रबल रहा।
- केवल जापला को सुरक्षित किया गया; बेलौंजा विवादित रहा।
राजपूत और मुस्लिम ज़मींदारों का उदय:
- उत्तरी पलामू पर उंटारी के भइया, चैनपुर और रंका के ठाकुराई का नियंत्रण हो गया।
दरबारी साज़िशें और चेरो शक्ति का पतन:
- जयकृष्ण राय का दरबार अस्थिर हो गया। दक्षिणी चेरो नाममात्र रूप से मजबूत रहे, परंतु वास्तविक रूप से कमजोर।
ब्रिटिश प्रवेश:
- यह विघटन और कमजोर राजनीतिक ढांचा, 1765 के दीवानी के बाद अंग्रेज़ी नियंत्रण को अपेक्षाकृत आसान बनाता है।