Category: Jharkhand Revolts

  • फेटल सिंह खरवार – जनजातीय अधिकारों के संघर्षशील योद्धा

    प्रारंभिक जीवन

    • जन्म: 7 मई 1885, बहाहारा गाँव, गढ़वा ज़िला (अब झारखंड)।
    • पिता: लगन सिंह – पंचायत चट्टा के मुखिया थे।
    • पढ़ाई नहीं कर सके क्योंकि गांव के आसपास स्कूल नहीं था
    • वन क्षेत्र में रहने के कारण जल-जंगल-जमीन की व्यवहारिक शिक्षा मिली।
    • बचपन से ही ढेल बाँस (गुलेल) और झटहा (छोटा डंडा) के प्रयोग में महारत हासिल थी।
    • परम्परा अनुसार तेवार गाँव के गंगा सिंह की पुत्री फूलवासी से बाल विवाह हुआ।

    राजनीतिक चेतना और गांधीजी से प्रेरणा

    • महात्मा गांधी के आंदोलनों से गहरा प्रभावित थे।
    • गढ़वा से सरगुजा तक लोगों को वनभूमि अधिकारों के लिए जागरूक और संगठित किया।
    • रैयतों की भू-बंदोबस्ती को लेकर आजादी के समय लोग ठगा महसूस करने लगे।

    भूमि व्यवस्था और संघर्ष की शुरुआत

    • क्षेत्र में दो प्रकार की भूमि राजस्व पद्धतियाँ थीं:
      • जमींदार पद्धति
      • रैयतदारी पद्धति
    • जनजातीय बहुल क्षेत्रों में डेढ़ी-बाड़ी (अत्यधिक सूद) के कारण बंधुआ मजदूरी की समस्या भी थी।
    • 1949 में जमींदारी उन्मूलन विधेयक और 1950 में भूमि सुधार कानून पारित हुआ।

    वनभूमि विवाद और जनजातीय विस्थापन

    • जमींदारी समाप्ति के बाद जमींदारों ने बकास्त (गैर मजरूआ) ज़मीनें वन विभाग को दे दीं।
    • इससे खरवार, भोक्ता, परहिया, भुईया, कोरता आदि जनजातियाँ भूमिहीन हो गईं।

    1958 का संघर्ष और पुलिस मुठभेड़

    • 1958 में आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया।
    • उस समय पलामू से सरगुजा तक 76% हिस्सा वन से ढका हुआ था।
    • 12 जनवरी 1958 को पुलिस पार्टी से टकराव हुआ।
    • लोग हथियारों से लैस थे, फायरिंग हुई।
    • पुलिस फायरिंग में कुम्भकरण नामक व्यक्ति की मृत्यु हो गई (जो फेटल सिंह के भतीजे थे)।
    • फेटल सिंह और उनके कुछ समर्थक गिरफ्तार हुए।

    कारावास और रिहाई

    • जेल में फेटल सिंह का स्वास्थ्य बिगड़ गया
    • गढ़वा और पलामू के नेताओं ने राष्ट्रपति और राज्यपाल से माफी की अपील की।
    • स्वतंत्रता सेनानी और जेल में अच्छे आचरण के कारण उन्हें रिहा कर दिया गया।
    • उन्हें लगभग एक साल जेल में रहना पड़ा।

    अंतिम समय और विरासत

    • जेल से निकलने के बाद वह काफी बदल गए, उम्र और स्वास्थ्य ने साथ नहीं दिया।
    • फिर भी जमीन अधिकारों के लिए जीवनपर्यंत जागरूक रहे।
    • 31 दिसम्बर 1975 को उनका निधन हुआ।
    • उनका अंतिम संस्कार कन्हर नदी के किनारे उनके भतीजे कुम्भकरण के बगल में किया गया।
    • अस्थियाँ बहाहारा गांव में उनके घर के सामने गाड़ी गई
    • वहां बनी उनकी समाधि आज भी उनके संघर्षों की याद दिलाती है
  • सदन और कोन्ता मुण्डा – तमाड़ क्षेत्र का विद्रोह (1819–1821)


    पृष्ठभूमि: ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रभाव

    • सन 1800 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजा-रजवाड़ों पर शिकंजा कस दिया था।
    • छोटानागपुर क्षेत्र में राजस्व वसूली को लेकर कम्पनी ने लगातार नीति बदली
    • 1817 का वर्ष अहम था, क्योंकि इसी साल कम्पनी ने सामंती सत्ता छीन ली
    • इसी के साथ छोटानागपुर खास में समाड़ विद्रोह के बीज फूटे।

    तमाड़ विद्रोह की शुरुआत (1819)

    • प्रमुख विद्रोही नेता:
      • दौलत राय मुण्डा (इटकी)
      • शंकर मानकी (कासु जंगा)
      • रूदन मुण्डाशिवनाथ मुण्डा (सिंदरी)
      • चंदन सिंह, घुसा सरदार (बगही)
      • भद्रा मुण्डा, टेपा मानकी (बाध बनिया)

    विद्रोह की घटनाएँ

    • 21 अगस्त 1819: विद्रोहियों ने पुराना नगर पर हमला किया।
      • कुछ लोग मारे गए, 20 लोग घायल हुए।
      • सम्पत्ति और मवेशी लूट लिए गए
    • 24 अगस्त 1819: विद्रोहियों ने फिर हमला किया
    • 31 अगस्त 1819: पिटुचाड़ा में हमला किया गया।
    • विद्रोही तमाड़ खास और नवाडीह में भी हमला करना चाहते थे।

    तमाड़ के राजा की प्रतिक्रिया

    • तमाड़ के राजा गोविन्द शाही ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारी रफसेज से सहायता की मांग की
    • तमाड़ की दुर्गम भौगोलिक स्थिति विद्रोहियों के पक्ष में थी।

    इतिहास में उल्लेख

    • इस विद्रोह का विस्तृत वर्णन इतिहासकार डा० वी. वीरोत्तम ने अपनी पुस्तक “झारखण्ड: इतिहास एवं संस्कृति” में किया है।

    विद्रोह का विस्तार और सरकारी प्रतिक्रिया

    • सितम्बर 1819 तक विद्रोह गंभीर रूप ले चुका था।
    • 20 नवम्बर 1819: रफसेज ने शेख इनायतुल्ला खाँ के नेतृत्व में 40 बंदूकधारियों को तमाड़ भेजा
    • दिसम्बर 1819: विद्रोह का विस्तार हुआ, मजिस्ट्रेट ए जे कोलविन पहले से मौजूद था।
    • कम्पनी ने दमन चक्र चलाया:
      • जनवरी से मार्च 1820 तक कई विद्रोही नेता गिरफ्तार किए गए
      • रूदन मुण्डा और कान्ता मुण्डा पकड़ में नहीं आए
      • रूदन मुण्डा की गिरफ्तारी पर इनाम घोषित किया गया।

    रूदन मुण्डा की गिरफ्तारी और मृत्यु

    • जुलाई 1820: सरायकेला के कुंवर विक्रम की सहायता से रूदन मुण्डा पकड़ा गया
    • वह बन्दी अवस्था में ही मर गया

    प्रशासनिक पुनर्गठन

    • इनायतुल्ला खाँ को मुख्यालय लौटने के लिए कहा गया।
    • कोलविन ने रफसेज को संबलपुर भेजने की सलाह दी।

    विद्रोह की पुनरावृत्ति (1821)

    • 1821 में विद्रोह फिर भड़का
    • रामगढ़ के दंडाधिकारी एन स्मिथ को सूचना मिली कि कोन्ता मुण्डा ने सिंहभूम के लड़ाकों को संगठित कर लिया है।
    • कोन्ता मुण्डा तमाड़ पर हमला नहीं कर पाया, लेकिन राजा गोविन्द शाही के लिए आफत बना रहा।

    कोन्ता मुण्डा पर इनाम और गिरफ्तारी

    • गोविन्द शाही ने कोन्ता मुण्डा पर 200 रुपये का इनाम घोषित किया।
    • तत्कालीन ढालभूम के राजा को परवाना और मिदनापुर के दंडाधिकारी को पत्र भेजा गया।
    • कोन्ता मुण्डा पर मुकदमा चला और उसकी मृत्यु जेल में हो गई

    विद्रोह का अंत

    • कोन्ता मुण्डा की मृत्यु के बाद विद्रोह का अंत हो गया

  • पोटो सरदार – कोल्हान के वीर आदिवासी सेनानायक

    प्रारंभिक जीवन और आदिवासी स्वतंत्रता

    • पोटो सरदार का बचपन उन्मुक्त और स्वच्छंद वातावरण में बीता।
    • “हो” आदिवासी प्रकृति के अनुरूप जीवन जीते थे और किसी भी बंधन को नहीं मानते थे
    • अंग्रेजों ने “हो” आदिवासियों को जबरन गुलाम बना लिया और उनके प्राकृतिक अधिकार छीन लिए
    • उन पर अमानवीय अत्याचार भी किए गए।

    कोल्हन में विद्रोह और प्रतिक्रिया

    • “हो” लोगों ने अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ विद्रोह किया।
    • कोल्हन क्षेत्र में लगातार कई विद्रोह हुए।
    • इससे विवश होकर कंपनी सरकार को “विल्किन्सन रूल” लागू करना पड़ा, जो आज भी कोल्हान में लागू है।
      • यह रूल स्थानीय स्वशासन की स्वायत्तता को संवैधानिक मान्यता देता है।

    कोल विद्रोह और प्रशासनिक दमन

    • 1820–21 में अंग्रेज सरकार ने पहले विद्रोह को कुचल दिया
    • 1831–32 के कोल विद्रोह में “हो” आदिवासियों ने फिर से भाग लिया, जिसे फिर से दमन द्वारा दबाया गया

    सत्ता विस्तार और सैन्य रणनीति

    • 18 जनवरी 1833 को सरायकेला में हिल एसेंबली बुलाई गई।
    • नवंबर 1836 – फरवरी 1837 के बीच विल्किन्सन ने पुलिस कार्रवाई कर पूरे क्षेत्र में कंपनी सत्ता स्थापित कर दी
    • दक्षिण-पश्चिम सीमांत एजेंसी की स्थापना हुई और थॉमस विल्किन्सन को एजेंट बनाया गया।

    पोटो सरदार का विद्रोह

    • गाँवों के मुण्डा-मानकियों को अपमानित किया गया, जिससे “हो” समाज की स्वतंत्रता और सामाजिक व्यवस्था चरमरा गई
    • राजा बासा पीर की पोटो सरदार ने अपने साथियों के साथ विद्रोह की घोषणा कर दी।

    विद्रोह का प्रसार और संगठन

    • घने जंगलों और पहाड़ियों से भरे कोल्हान में विद्रोहियों ने ग्राम-प्रमुखों को तीर भेजकर विद्रोह में शामिल होने का निमंत्रण दिया।
    • विद्रोहियों ने कंपनी सेना को आतंकित करना शुरू कर दिया और सशस्त्र विद्रोह की आग पूरे कोल्हान में फैल गई।

    ब्रिटिश सैन्य कार्रवाई

    • 12 नवम्बर 1837 को चाईबासा में अफसरों की बैठक हुई।
    • 17 नवम्बर को कैप्टन आर्मस्ट्रांग को बाढ़पीड़ भेजा गया।
    • सैन्य बल में शामिल थे:
      • 400 सशस्त्र सैनिक
      • 60 घुड़सवार सिपाही
      • दो लेफ्टिनेंट की सेनाएँ:
        • लेफ्टिनेंट टिकेल की सेना ने जयपुर गाँव पर हमला किया।
        • कैप्टन आर्मस्ट्रांग और लेफ्टिनेंट सिम्पसन की सेना ने रूईया गाँव पर धावा बोला।

    संघर्ष और हानि

    • विद्रोही हमले के लिए तैयार नहीं थे।
    • युद्ध के मैदान पर दोनों पक्षों की लाशें बिछ गईं — अधिकांश पोटो सरदार के सैनिक मारे गए।
    • फिर भी, पोटो और अन्य प्रमुख नेता बच निकलने में सफल रहे।

    गिरफ्तारी और मुकदमा

    • 8 दिसम्बर 1837 को पोटो सरदार और उनके सहयोगी डीवे को गिरफ्तार कर लिया गया।
    • 18 से 31 दिसम्बर 1837 तक जगन्नाथपुर में मुकदमा चला, जिसकी अध्यक्षता विल्किन्सन ने की।

    फाँसी की सजा और निष्पादन

    • 31 दिसम्बर 1837 को विल्किन्सन ने निम्नलिखित लोगों को फाँसी की सजा सुनाई:
      • पोटो
      • बोड़ो
      • पंडुआ
      • नारो
      • बड़ाय
    • 1 जनवरी 1838 को जगन्नाथपुर में:
      • पोटो, नारो और बड़ाय को स्थानीय लोगों की भीड़ के सामने फाँसी दी गई।
    • 2 जनवरी 1838 को सेरेंगसिया गाँव में:
      • बोड़ो और पंडुआ को फाँसी के फंदे पर लटकाया गया।
  • बिंदराई और सिंगराई – कोल विद्रोह के सेनानी

    कोल विद्रोह की आंच और क्षेत्र

    • कोल विद्रोह की आंच सिंहभूम, पलामू, और अन्य क्षेत्रों में फैल गई।
    • सिंहभूम के लड़ाका कोल, छोटानागपुर खास के विद्रोहियों के प्रमुख समर्थक थे।

    प्रमुख विद्रोही और उनके सहयोगी

    • बंदगाँव के बिंदराई मानकी, गोदरपिरी का सुई मुण्डा, कोचंया, और जमुर के आदिवासी विद्रोह में शामिल हुए।
    • वे मानकी और कार्तिक सरदार के कहने पर विद्रोह में शामिल हुए थे।
    • अन्य प्रमुख सहयोगियों में शामिल थे:
      • मोहन मानकी
      • सागर मानकी
      • सुग्गा मानकी

    विस्तार और प्रतिक्रिया

    • सोनपुर, बसिया आदि क्षेत्रों की रैयतों ने पहले विद्रोहियों का समर्थन किया।
    • तोरपा के कमल सिंह बड़ाइक ने हरनाथ शाही को काफी परेशान किया।
    • हरनाथ शाही की कुछ जमीन सिंहभूम में थी, जिससे विवाद और संघर्ष बढ़ा।

    ब्रिटिश प्रतिक्रिया और रणनीति

    • विद्रोह के दबाव में, विल्किंसन को बहादुर सिंह व अन्य लोगों से खबर मिली कि बिंदराई मानकी और सुदया (सुईया) मुण्डा आत्मसमर्पण करने वाले हैं।
    • विल्किंसन ने कर्नल बावेन को तमाड़ के बजाय बंदगाँव भेजा।

  • गया मुण्डा – बिरसा आंदोलन के सेनापति

    परिचय और भूमिका

    • गया मुण्डा बिरसा मुण्डा के नेतृत्व में चलने वाले उलगुलान आंदोलन के मुख्य सेनापति थे।
    • वे और उनका पूरा परिवार अंग्रेजों के विरुद्ध वीरता से लड़ा।

    परिवार पर दमन

    • गया मुण्डा के एक पुत्र को फाँसी दी गई।
    • एक अन्य पुत्र को आजीवन देश निकाला मिला।
    • पत्नी माकी दई, बेटियों, पुत्रवधुओं और छोटे बेटे को कठिन कारावास की सजा मिली।

    घटनाक्रम – 5 जनवरी 1900

    • 5 जनवरी 1900 को खूँटी थाना के कांस्टेबल सैको में गया मुण्डा को पकड़ने आया
    • प्रधान कांस्टेबल ने 2 सिपाही और 2 चौकीदार उनकी गिरफ्तारी के लिए भेजे।
    • गया मुण्डा के गाँव एटकेडीह में उलगुलान योजना पर बैठक चल रही थी – जिसकी अध्यक्षता खुद गया मुण्डा कर रहे थे।
    • बैठक में 80 उलगुलानी सेनानी शामिल थे।

    ब्रिटिश सिपाहियों पर हमला

    • गया मुण्डा और उनके साथियों ने सिपाहियों पर तीर चलाना शुरू किया
    • अंग्रेज सिपाही दो दल में बंटकर भाग गए।
    • गया मुण्डा के बेटे सांभर मुण्डा ने जयराम नामक सिपाही पर तीर चलाया।

    घटनाक्रम – 6 जनवरी 1900

    • 6 जनवरी 1900, राँची के उपायुक्त स्ट्रीटफील्ड बंदगाँव से गया मुण्डा के घर एटकेडीह पहुँचा।
    • उसने सिपाहियों के साथ मिलकर गया मुण्डा के घर को चारों ओर से घेर लिया

    गया मुण्डा का प्रतिकार

    • स्ट्रीटफील्ड ने एक सिपाही को घर में भेजा — घर की महिलाओं ने उस पर लाठी से हमला किया
    • पूरा परिवार – पत्नी, बेटे, बहुएँ, बेटियाँ – हथियार लेकर लड़ने को तैयार थे
    • गया मुण्डा ने कहा: “यह घर मेरा है, उपायुक्त को मेरे घर में घुसने का कोई अधिकार नहीं है। अगर घुसे तो मार डालेंगे।”

    घर जलाना और गिरफ्तारी

    • उपायुक्त स्ट्रीटफील्ड ने वायसराय और कमिश्नर को घटना की जानकारी दी।
    • उसने गया मुण्डा के घर में आग लगाने का आदेश दिया
    • तेज हवा के कारण पूरा घर जल गया, और परिवार बाहर आया, तब उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया

    सजा और मुकदमा

    • 348 मुण्डाओं पर आपराधिक मुकदमा चलाया गया, जो दिसम्बर 1900 तक चला।
    • गया मुण्डा के:
      • एक बेटे को फाँसी की सजा मिली।
      • बड़े बेटे डोका मुण्डा को आजीवन कारावास हुआ।
      • पत्नी माकी को दो साल की कठोर कैद दी गई।
      • दोनों बहुओं और बेटियों को तीन महीने की सजा मिली।
      • दूसरे बेटे जयमसीह को देश निकाला दिया गया।
  • तेलंगा खड़िया (09 फरवरी 1806 – 23 अप्रैल 1880)

    झारखंड के महान स्वतंत्रता सेनानी और छापामार योद्धा

    व्यक्तिगत जीवन और प्रारंभिक पृष्ठभूमि

    • जन्म: 9 फरवरी 1806, सिसई मुर्गे गाँव, झारखंड।
    • पिता: दुइया खड़िया – पाहन तथा छोटानागपुर महाराज के भंडारी।
    • माता: पेतो खड़िया
    • बचपन में तेज-तर्रार और बातूनी स्वभाव के कारण उनका नाम “तेड़बलंगा” पड़ा, जो समय के साथ “तेलंगा” बन गया।
    • वह अनपढ़ थे, लेकिन उनमें अद्भुत नेतृत्व क्षमता थी।
    • उन्होंने नौजवानों को एकत्र कर उन्हें युद्ध कौशल और वीरता का पाठ पढ़ाना शुरू किया।
    • विवाह: 1846 में रतनी खड़िया से।

    अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष और विद्रोह

    • उन्होंने पूरे खड़िया क्षेत्र को जुरी पंचायत में गोलबंद किया।
    • अंग्रेजों के शोषण, जमीन हड़पने और धार्मिक उत्पीड़न को देखकर वे क्रोधित थे।
    • उन्हें 1831–32 के कोल विद्रोह की जानकारी थी और वे इससे प्रेरित हुए।
    • धाना-कचहरी में आदिवासियों की जमीन छीनने और न्याय के नाम पर शोषण से वे आक्रोशित थे।
    • उन्होंने सिसई बाजार टांड में युद्ध कला प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किया।
    • उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध छापामार युद्ध शुरू किया।
    • उनके युद्ध के प्रभाव से न केवल खड़िया, बल्कि उरांव, मुंडा, और सदान समुदाय भी उनके साथ जुड़ गए।

    अंग्रेजी सरकार की प्रतिक्रिया और दमन

    • अंग्रेजों को तेलंगा की गतिविधियों की जानकारी मिल गई थी।
    • अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए अभियान चलाया और इनाम घोषित किया।
    • तेलंगा को पकड़ने में असफल रहने पर अंग्रेजों ने उनके परिवार को तंग करना शुरू किया।
    • अंग्रेजों ने तेलंगा के अनुयायियों को विद्रोह से रोकने के लिए उन्हें जेल में डाल दिया।

    1857 के बाद की स्थिति और भूमि संकट

    • 1857 का सिपाही विद्रोह दबा दिया गया था।
    • 1859 में नया भू-कर कानून लागू किया गया, जिससे किसानों की जमीनें फिर से नीलाम की जाने लगीं।
    • मिशनरियों ने धर्मांतरण कराए लोगों को भूमि बचाने में लाभ पहुँचाया

    शहादत और स्मृति स्थल

    • 23 अप्रैल 1880, सिसई के अखरा में युद्ध प्रशिक्षण देने से पहले तेलंगा प्रार्थना कर रहे थे
    • उसी समय बोधन सिंह नामक व्यक्ति ने पीछे से गोली मारकर हत्या कर दी।
    • तेलंगा शहीद हो गए।
    • उनके अनुयायियों ने उन्हें कोयल नदी के किनारे सोसो नीम टोली में दफनाया
    • यह स्थान आज “तेलंगा तोपा टांड़” के नाम से प्रसिद्ध है।
  • टिकैत उमराव सिंह – झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी

    जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन

    • जन्म स्थान: खटंगा गाँव, ओरमाँझी प्रखंड (कुछ लोग गंगा पातर को भी जन्मस्थान मानते हैं)
    • दो भाई थे: टिकैत उमराव सिंह और टिकैत घासी सिंह
    • कुशल घुड़सवार और सफल तलवारबाज थे

    🇮🇳 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और योगदान

    • 1857 के विद्रोह में उन्होंने महत्वपूर्ण और सक्रिय भूमिका निभाई
    • अपने छोटे भाई और दीवान शेख भिखारी के साथ स्वतंत्रता संग्राम के लिए संगठित हुए
    • उस समय:
      • रामगढ़ बटालियन का मुख्यालय राँची में था
      • हजारीबाग में भी सेना की टुकड़ी तैनात थी

    हजारीबाग और राँची का विद्रोह

    • हजारीबाग की सेना में कुछ हलचल हुई जिसे दबाने लेफ्टिनेंट ग्राहम के नेतृत्व में सेना 1 अगस्त 1857 को राँची से हजारीबाग भेजी गई
    • हजारीबाग के कुछ विद्रोही राँची की ओर चले गए
    • यह सुनकर ग्राहम की सेना में भी विद्रोह भड़क उठा
    • विद्रोह का नेतृत्व जमादार माधव सिंह ने किया
    • विद्रोहियों ने अंग्रेजों के हाथी और हथियार जब्त कर लिए
    • इस विद्रोह में टिकैत उमराव सिंह और शेख भिखारी ने खुलकर विद्रोहियों का समर्थन किया

    राँची में स्वतंत्रता की घोषणा

    • 2 अगस्त 1857 को विद्रोही राँची पहुँचे
    • कर्नल डाल्टन और लेफ्टिनेंट ग्राहम ने डोरंडा छोड़कर कांके–पिठोरिया मार्ग होते हुए हजारीबाग की ओर पलायन किया
    • इस पलायन में पिठोरिया के परगने जगतपाल सिंह ने अंग्रेजों की मदद की
    • विद्रोहियों का नेतृत्व अब बड़कागढ़ के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने संभाल लिया
    • सेनापति नियुक्त किए गए: पाण्डेय गणपत राय

    रक्षा उपाय और आगे की रणनीति

    • टिकैत उमराव सिंह ने अंग्रेजों के प्रवेश को रोकने के लिए चुटूपालू घाटी मार्ग को ध्वस्त कर अवरुद्ध कर दिया
    • वीर कुंवर सिंह के बुलावे पर ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, पाण्डेय गणपत राय आदि विद्रोही सेनाएँ चतरा होकर रोहतासगढ़ जाने लगीं
    • चतरा में अंग्रेज सेना से युद्ध हुआ

    अंग्रेजी दमन और गिरफ्तारी

    • जयमंगल पांडे और नादिर अली खान को पकड़कर फाँसी दे दी गई
    • इस सफलता से उत्साहित होकर अंग्रेज फिर से राँची लौटने लगे
    • 23 सितम्बर 1857 को कर्नल डाल्टन राँची लौट आया
    • राँची में स्वतंत्रता आंदोलन कमजोर पड़ने लगा

    गिरफ्तारी, मृत्यु और संपत्ति जब्ती

    • अंग्रेज अधिकारियों ने प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों की तलाश शुरू की
    • टिकैत घासी सिंह को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया जहाँ उनकी मृत्यु हो गई
    • टिकैत उमराव सिंह और शेख भिखारी को भी गिरफ्तार कर 8 जनवरी 1858 को फाँसी दे दी गई

    जमींदारी जब्ती

    • टिकैत उमराव सिंह के 12 गाँवों की जमींदारी जब्त कर ली गई
    • ये 12 गाँव इस प्रकार हैं:
      खटंगा, हरचन्दा, कुटे, सिलदीरी, झीरी, हेसातू,
      कोवालु, गगारी, डहु, चापावाइर, बरवे और (एक गाँव का नाम अधूरा है)

  • बिरसा मुंडा – आदिवासी आंदोलन के महानायक

    जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन

    • जन्म: 15 नवम्बर 1875, ग्राम उलिहातू, अड़की प्रखंड, खूंटी अनुमंडल
    • कुछ विद्वानों में जन्मस्थल उलिहातू को लेकर मतभेद हैं
    • पिता: सुगना मुंडा, दादा: लकारी मुंडा
    • परिवार अत्यंत निर्धन था
    • गरीबी के कारण माता-पिता ने पहले उन्हें आयुभाटु (माँ का गाँव) और फिर खटंगा भेजा

    शिक्षा और धर्म परिवर्तन

    • 7 मई 1886: चाईबासा के लुथरन मिशन में ईसाई धर्म में धर्मांतरण हुआ
    • प्रारंभिक शिक्षा: उलिहातू ग्राम के पास के एक स्कूल में
    • आगे की पढ़ाई: गुरजू मिशन स्कूल
    • उस समय जर्मन लुथरन और रोमन कैथोलिक ईसाइयों द्वारा भूमि आंदोलन चलाया जा रहा था
    • बिरसा मिशनरियों के प्रचार पर ध्यानपूर्वक नजर रखते थे
    • कुछ मतभेदों के कारण स्कूल से निकाल दिया गया
    • 1886–1890 तक चाईबासा में रहे

    मानसिक बदलाव और आदिवासी चेतना

    • 1890 में अपने गाँव लौटने के बाद जीवन में बड़ा परिवर्तन आया
    • रामायण (राम-लक्ष्मण) और महाभारत (कृष्ण-अर्जुन) की कहानियाँ सुनने में रुचि ली
    • एक हिन्दू ब्राह्मण “आनन्द पांडे” के प्रभाव में आए
    • स्थानीय ग्रामीणों की सेवा करने लगे
    • ईसाई मिशनरियों से असंतुष्ट होकर प्राचीन जनजातीय जीवन के पुनर्गठन में लग गए

    बिरसा आंदोलन की शुरुआत

    • उद्देश्य: प्राचीन जनजातीय संस्कृति की पुनः स्थापना
    • राजनीतिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए धर्म का सहारा लिया
    • ईसाई मिशनरियों पर आरोप:
      • मुंडा समाज को दो भागों में बाँटा
    • बिरसा ने मिशनरियों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका
    • आंदोलन धीरे-धीरे जन आंदोलन बन गया
    • सरदारों की भागीदारी से आंदोलन को बल मिला

    आंदोलन की दिशा में बदलाव

    • सरदारों ने बिरसा की अहिंसात्मक नीति को बदले बिना सशस्त्र संघर्ष की तैयारी शुरू कर दी
    • ईसाई मिशनरियों ने अंग्रेजी सरकार को बिरसा के खिलाफ भड़काया

    गिरफ्तारी और सजा

    • 22 अगस्त 1895: बिरसा की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी
    • गिरफ्तारी के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 505 के अंतर्गत मुकदमा
    • सजा: 2 वर्षों की सश्रम कारावास
    • इस दमन का मुंडा समाज पर बुरा प्रभाव पड़ा — लोग डर गए
    • 30 नवम्बर 1897 को बिरसा जेल से रिहा हुए

    विद्रोह और अंतिम गिरफ्तारी

    • जेल से छूटने के बाद लगभग 2 वर्षों तक समर्थकों को संगठित करने में लगे
    • 1899 में बिरसा ने विद्रोह छेड़ा:
      ➤ क्षेत्र: चक्रधरपुर, खूंटी, कर्रा, तोरपा, तमाड़, बसिया आदि
    • बिरसा के विद्रोह से अंग्रेज सरकार अत्यंत नाराज हो गई
    • बिरसा की गिरफ्तारी पर ₹500 इनाम की घोषणा
    • काफी समय तक पुलिस को चकमा देते रहे

    गिरफ्तारी और मृत्यु

    • 9 जून 1900: बिरसा मुंडा गिरफ्तार किए गए
    • राँची जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई (मृत्यु का रहस्य आज भी अस्पष्ट है)

    विरासत

    • बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के चेतनानायक और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूतों में से एक थे
    • उनका आंदोलन धर्म, संस्कृति, भूमि और स्वाभिमान की रक्षा का प्रतीक बना
    • उन्हें “धरती आबा” (धरती पिता) कहा जाता है
    • 15 नवम्बर (जन्मदिवस) को झारखंड स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है

  • शेख भिखारी – झारखंड के अमर स्वतंत्रता सेनानी (1857)

    जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन

    • जन्म: 1819, खुदिया गाँव, ओरमांझी थाना, राँची
    • पिता: शेख पहलवान – 12 गाँवों के ज़मींदार
    • परदादा: शेख बुंलदु
    • बचपन से ही:
      • घुड़सवारी और युद्ध कौशल में निपुणता हासिल की
      • जमींदारी कार्य प्रणाली का अनुभव प्राप्त किया

    प्रशासनिक जीवन

    • खटंगा के राजा टिकैत उमराव सिंह द्वारा शेख भिखारी को दीवान नियुक्त किया गया
    • टिकैत उमराव सिंह एक सच्चे देशभक्त थे, जिन्होंने शेख भिखारी के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया

    1857 की क्रांति में भागीदारी

    • 31 जुलाई 1857: स्वतंत्रता संग्राम का आरंभ चुटूपाली घाटी (टिकैत उमराव सिंह की जमींदारी के अंतर्गत) से हुआ
    • नेतृत्वकर्ता: माधो सिंह और नादिर अली खाँ
    • शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह ने उन्हें खुलकर सहयोग दिया
    • विद्रोही राँची की ओर बढ़े और डोरंडा छावनी को स्वतंत्र घोषित किया

    अंग्रेजों का पलायन

    • डोरंडा की स्वतंत्रता के बाद:
      • छोटानागपुर के आयुक्त डालटन
      • उपायुक्त डेविस
      • न्यायाधीश ऑक्स
        ➤ ये सभी कॉके–पिठौरिया मार्ग से हजारीबाग भाग गए

    संघर्ष का विस्तार और सहयोगी सेनानी

    • विद्रोहियों में प्रमुख रूप से जुड़े:
      • ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव
      • पाण्डेय गणपत राय
      • जयमंगल पाण्डेय

    संताल विद्रोहियों से सम्पर्क

    • शेख भिखारी ने हजारीबाग क्षेत्र के संताल विद्रोहियों से संपर्क स्थापित किया
    • उन्हें अंग्रेजी शासन के खिलाफ सक्रिय किया

    हजारीबाग जेल विद्रोह

    • 30 जुलाई 1857:
      ➤ हजारीबाग जेल तोड़ दी गई
      ➤ कैदियों को मुक्त किया गया
    • उपायुक्त बरही में शरण लेने को मजबूर हुए

    दमनात्मक कार्रवाई और गिरफ्तारी

    • बंगाल के गवर्नर एडली ने विद्रोह को कुचलने का आदेश दिया
    • हजारीबाग का स्वतंत्रता आंदोलन दमन कर दिया गया
    • लगभग 200 विद्रोहियों को फाँसी की सजा दी गई

    शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह की गिरफ्तारी व बलिदान

    • आयुध (हथियार) खत्म होने के कारण उन्हें समर्पण करना पड़ा
    • 6 जनवरी 1858 को गिरफ्तार कर लिए गए
    • 7 जनवरी 1858 को फाँसी की सजा सुनाई गई
    • 8 जनवरी 1858 को फाँसी दी गई

    विरासत

    • शेख भिखारी झारखंड के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) के एक अग्रणी योद्धा थे
    • उन्होंने राजा टिकैत उमराव सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजों को झारखंड क्षेत्र से खदेड़ने में ऐतिहासिक योगदान दिया
    • उनका बलिदान झारखंड के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है
  • ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव – झारखंड के महान स्वतंत्रता सेनानी (1857 क्रांति)

    जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन

    • जन्म: 12 अगस्त 1817
    • जन्मस्थान: सतरंजी (बरकागढ़ की राजधानी) — वर्तमान में एच०ई०सी० परिसर में समाहित
    • पिता: ठाकुर रघुनाथ शाहदेव (छोटानागपुर महाराजा द्वारा प्रदत्त 97 गाँवों के जागीरदार)
    • माता: वाणेश्वरी कुँवर
    • उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त किया
    • बचपन से ही शासन व्यवस्था और युद्ध-कला में रुचि
    • 1840 में पिता की मृत्यु के बाद जागीरदारी का कार्यभार संभाला

    प्रशासनिक सुधार और ब्रिटिश विरोध

    • सबसे पहला कार्य: राजधानी को सतरंजी से हटिया स्थानांतरित किया
    • गद्दी संभालने के बाद पाया कि वास्तविक शासन अंग्रेजों के हाथ में है
    • देशी राजाओं और जागीरदारों के अधिकार नगण्य हो चुके थे
    • अंग्रेजी शासन का विरोध करने का निर्णय लिया और योग्य अवसर की तलाश करने लगे

    विद्रोह और स्वतंत्रता की घोषणा

    • 1855 में, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका
    • स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया
    • कर्नल डालटन को भेजकर ठाकुर पर हमला करवाया गया
    • घमासान युद्ध में ठाकुर ने अंग्रेजों को पराजित किया

    1857 की क्रांति में सक्रिय भूमिका

    • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान झारखंड में भी विद्रोह फैल गया
    • सहयोगियों में:
      • जागीरदार माधो सिंह
      • राजा टिकैत सिंह
      • शेख भिखारी
    • रामगढ़ स्थित विद्रोही सैनिकों ने उनका साथ दिया
    • कुछ तोपखाना और शस्त्र लेकर राँची लौटने में सफल हुए
    • पूर्व दीवान पाण्डेय गणपत राय के साथ मिलकर संघर्ष का नेतृत्व किया
    • विद्रोहियों ने गणपत राय को सेनापति चुना
    • छोटानागपुर के महाराजा ने अंग्रेजों का साथ दिया

    कुँवर सिंह से मिलने की योजना

    • बाबू कुँवर सिंह से संपर्क और सहयोग के लिए योजना बनाई
    • मार्ग: कुडु → चन्दवा → वालुमाथ → चतरा होते हुए
    • लेकिन रास्ते में ही अंग्रेजों ने हमला किया
    • ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव भागने में सफल रहे और फिर से संघर्ष की तैयारी में जुटे

    अंग्रेजों की चाल और गिरफ्तारी

    • अंग्रेजों ने “फूट डालो, राज करो” की नीति अपनाई
    • कई विश्वासघाती साथियों को खरीद लिया
    • 30 मार्च 1858 को वे विश्वासघात के कारण पकड़े गये
    • सूचना देने वाला व्यक्ति: विश्वनाथ दुबे
    • आरोप:
      • रामगढ़ के विद्रोही सैनिकों का साथ देना
      • घाटो मार्ग अवरुद्ध करना
      • सिपाहियों को भड़काना
      • व्यापारियों से अवैध वसूली करना

    मुकदमा, फाँसी और संपत्ति जब्ती

    • उन पर देशद्रोह का संक्षिप्त मुकदमा चलाया गया
    • सजा: फाँसी
    • फाँसी का स्थान: वर्तमान जिला स्कूल, राँची के मुख्य गेट के पास
    • एक कदम के वृक्ष से लटकाकर फाँसी दी गई
    • सजा के साथ:
      • 97 गाँवों की जमींदारी जब्त की गई
      • जगन्नाथपुर मंदिर की संपत्ति भी जब्त की गई (बाद में पुजारी को वापस)
      • 1872 में संपत्ति वापसी के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय में मुकदमा किया गया — अस्वीकृत हुआ

    विरासत

    • ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव झारखंड के प्रथम संगठित स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से एक थे
    • उन्होंने पाण्डेय गणपत राय, शेख भिखारी जैसे योद्धाओं के साथ मिलकर 1857 की क्रांति को झारखंड में सशक्त बनाया
    • उनका बलिदान झारखंड की वीरता, स्वाभिमान और स्वतंत्रता चेतना का प्रतीक है